वह एक नदी थी ....
जब तुमसे मिली थी
बहती थी अपनी रौ में
कल- कल करती.... कूदती- फांदती
प्यार की फुहारों से भिगोती
इठलाती थी.... इतराती थी
चंचल शोख बिजली- सी बल खाती थी
पर ....
तब तुम्हे कहाँ भाती थी ......!!
राह में उसके कंकड़- पत्थर भी थे
कुछ सूखे हुए फूल
कुछ गली हुई शाखाएं भी
कुछ अस्थि कलश जो डाले थे किसी ने
किसी अपने को मोक्ष प्रदान करने के लिए
कुछ टोने टोटके बंधे धागे जो बांधे थे किसी ने
अपने पाप किसी और के सर मढने के लिए
गठरी बंधी थी कामनाओं की ...वासनाओं की
जो बांधी थी कुछ अपनों ने कुछ बेगानों ने
और भी ना जाने क्या क्या था उसके अंतस में
था जो भी ....उसके अंतस में
ऊपर तो थी बस
कल-कल करती मधुर ध्वनि
पर ....
तुम्हारी नजरे तो टिकी थी
बस अंतस की गांठों को तलाशने में
उस तलाश में तुमने नहीं देखा
उसकी पावन चंचलता को
क्या- क्या नाम दिए तुमने
उसकी चपलता को
तुम ढूंढते ही रहे कि ...कोई सिरा मिल जाये
कि रोक पाओ उसे ....बांध पाओ उसे
और कुछ हद तक बांधा भी तुमने उसे
पर ... क्या तुम्हे पता नहीं था ....!!
धाराएँ जब आती हैं उफान पर
सारे तटबंधों को तोड़ जाती हैं
कोई दीवार नहीं बाँध पाती है
और अगर दीवारों में बंध जाती है
तो नदी कहाँ कहलाती है ....
नदी का पानी जब ठहर जाता है
कीचड हो जाता है ...
क्या तुम्हे पता नहीं था ...!!
पर ...जरा ठहरो ....
अपनी दीवारों पर इतना मत मुस्कुराओ
उम्मीद की एक किरण अभी भी बाकी है
कीचड में फूल खिलाने का हुनर
नदी जानती है
कभी हार कहाँ मानती है
नदी हमेशा मुस्कुराती है .......!!
जब तुमसे मिली थी
बहती थी अपनी रौ में
कल- कल करती.... कूदती- फांदती
प्यार की फुहारों से भिगोती
इठलाती थी.... इतराती थी
चंचल शोख बिजली- सी बल खाती थी
पर ....
तब तुम्हे कहाँ भाती थी ......!!
राह में उसके कंकड़- पत्थर भी थे
कुछ सूखे हुए फूल
कुछ गली हुई शाखाएं भी
कुछ अस्थि कलश जो डाले थे किसी ने
किसी अपने को मोक्ष प्रदान करने के लिए
कुछ टोने टोटके बंधे धागे जो बांधे थे किसी ने
अपने पाप किसी और के सर मढने के लिए
गठरी बंधी थी कामनाओं की ...वासनाओं की
जो बांधी थी कुछ अपनों ने कुछ बेगानों ने
और भी ना जाने क्या क्या था उसके अंतस में
था जो भी ....उसके अंतस में
ऊपर तो थी बस
कल-कल करती मधुर ध्वनि
पर ....
तुम्हारी नजरे तो टिकी थी
बस अंतस की गांठों को तलाशने में
उस तलाश में तुमने नहीं देखा
उसकी पावन चंचलता को
क्या- क्या नाम दिए तुमने
उसकी चपलता को
तुम ढूंढते ही रहे कि ...कोई सिरा मिल जाये
कि रोक पाओ उसे ....बांध पाओ उसे
और कुछ हद तक बांधा भी तुमने उसे
पर ... क्या तुम्हे पता नहीं था ....!!
धाराएँ जब आती हैं उफान पर
सारे तटबंधों को तोड़ जाती हैं
कोई दीवार नहीं बाँध पाती है
और अगर दीवारों में बंध जाती है
तो नदी कहाँ कहलाती है ....
नदी का पानी जब ठहर जाता है
कीचड हो जाता है ...
क्या तुम्हे पता नहीं था ...!!
पर ...जरा ठहरो ....
अपनी दीवारों पर इतना मत मुस्कुराओ
उम्मीद की एक किरण अभी भी बाकी है
कीचड में फूल खिलाने का हुनर
नदी जानती है
कभी हार कहाँ मानती है
नदी हमेशा मुस्कुराती है .......!!
तस्वीर गूगल से साभार
(डेली न्यूज़ के खुशबू परिशिष्ट में प्रकाशित )
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(डेली न्यूज़ के खुशबू परिशिष्ट में प्रकाशित )
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वाणी,
जवाब देंहटाएंतेरी कविता का क्लाइमक्स ओह्ह्ह क्या बात.....नदी मुस्कुराती है !!!
बहुत खूबसूरत....नदी अगर दीवारों में बंध जाए तो वो नदी कहाँ कहलाती है....वो कीचड़ हो जाती.....सत्य वचन ..
आपकी कविता डेली न्यूज़ के खुशबू परिशिष्ट में छपी जान कर कितनी प्रसन्नता हुई क्या बताएं आपको...
एक ट्रक बधाई भेजा है शर्मा जी से कहियेगा उतरवा लेंगे...:):)
धाराएँ जब आती हैं उफान पर तो सारे तटबंधों को तोड़ जाती हैं........मन ...एक स्त्री के गहन मन को उतारा है,
जवाब देंहटाएंशब्द अन्दर उमड़-घुमड़ रहे हैं ........ शायद धाराएँ हैं, आपने महसूस किया ?
nadi muskarati hai, dhyan se dekha hai nadi ansu bhi bahatai haijab use kal ki yaad ati hai
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है , लाजवाब प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंदी... ultimate कविता लिखी आपने... मुझे ऐसा लगता है कि इस कविता में नदी मैं ही हूँ....... बहुत शानदार कविता......
जवाब देंहटाएंआपने नदी के माध्यम से एक स्त्री के मन को दर्शाया है.
जवाब देंहटाएंमुझे कविता बहुत पसंद आयी.
ये नदी भी न सब कुछ खामोश झेल जाती है.
जवाब देंहटाएंक्या इशारा किया है कविता ने.
हाँ, नदी मुस्कुराती है !!!
"धाराएँ जब आती हैं उफान पर
जवाब देंहटाएंतो सारे तटबंधों को तोड़ जाती हैं."
बहुत अच्छी तरह से अभिव्यक्त किया है आपने नदी के माध्यम से , आभार !!
आपको बहुत बहुत बधाई !!
नदी का क्या खूबसूरत एहसास दिया आपने/......
जवाब देंहटाएंबेहतरीन और नायाब रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
ek nadi ke madhyam se bahut kuch kah dia aapne..uchchkoti ki rachna vaani ji ! badhai swikaren.
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरती के साथ बहुत कुछ कह रहीं हैं हर लाइनें.
जवाब देंहटाएंनदी मुस्कुराती है से बढ़कर नदी की राह की व्याधियां और बाधाएं -उफ क्या चित्रण किया है !
जवाब देंहटाएंकीचड मे फूल खिलाने का हुनर नदी जानती है
जवाब देंहटाएंवाह क्या गहरी और सुन्दर बात कही बधाई
खिलने की जगह खिलाने कर दीजिये ...रचना अच्छी है.
जवाब देंहटाएंaww.... beautiful... *smiles!*
जवाब देंहटाएंvani ji aapki ye rachna copy paste nahi ho rahi varna ek ek line par apne comments deti aur wah wah kehti...such me aaj aapne ye rachna kamaal ki likhi hai..bahut kuchh apni si lagi..Ada ji ki tareh me b truck k piche mal gaadi ka dibba bhar ke bhej rahi hu badhayi sweekar kijiyega...aur stock jyada ho jaye to mere blog per la kar store kar dijiyega..ha.ha.ha..
जवाब देंहटाएंek bar fir se aapki is rachna k liye dil se daad deti hu.
BAHUT SHASHAKT ....KOMAL NAARI MAN KO BAHTI HUYI NADI KE MAADHYAM SE BAHUT SUNDAR TARIKE SE LIKHA HAI ...... ACHEE KALPANA HAI ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ... शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना!
जवाब देंहटाएंaaj kuchh khud ko padh rhi hoon jaise......badhai ho aapko
जवाब देंहटाएंनदी के माध्यम से नारी के अंतर्मन कि खूबसूरती को बहुत ही सलीके से उतारा है शब्दों के केनवास पर |
जवाब देंहटाएंबहुत ही गर्व का अहसास कराती अपूर्व अभिव्यक्ति |
बधाई
सच मे..हर नदी की यही बायॉग्राफी भी होती है..पहाड़ से समंदर के बीच के पूरे सफ़र की दास्ताँ...मगर बेहतरीन चीज यह है कि उम्मीद की किरण हमेशा बाकी रहती है और कीचड़ मे फूल खिलाने के हुनर को जानती है..
जवाब देंहटाएंसच ही तो कहा है आप ने ..नदी को बांध सका है कोई..बहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआशु
बहुत अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लगी आपकी यह रचना ..सुन्दर तरीके से आपने इन्हें लफ़्ज़ों में पिरोया है ..शुक्रिया
जवाब देंहटाएंकीचड़ में कमल खिलाने का हुनर जानती है...नदी हमेशा मुस्कराती है....क्या बात कह दी..बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति...नारी मन के अंतस से निकली ये कविता..बस मुग्ध कर गयी.
जवाब देंहटाएंअदभुत भाव, अनन्य रचना।
जवाब देंहटाएं--------
बारिश की वो सोंधी खुश्बू क्या कहती है?
क्या सुरक्षा के लिए इज्जत को तार तार करना जरूरी है?
लाजवाब! बहुत सुन्दर कविता है. इसी नदी पर मैंने एक कहानी लिखी थी, [संपादिका जी को नापसंद रही इसलिए छपी नहीं] बाद में कभी ब्लॉग पर रखूंगा.
जवाब देंहटाएंapni kavita ki kuch lines pratikriya swaroop
जवाब देंहटाएं"कल रात sapne में हंसी थी नदी
मुझसे लिपट कर ए़क उन्मुक्त हंसी
और नदी बोली
कोई पूछे तो कहना
रुकना नदी की प्रकृति नही...."
behtreen rachna !
अगर नदी के हाथ होते तो कहती हाथ जोड़कर
जवाब देंहटाएंकर दो मुझे क्षमा कि मैंने तुमसे दोस्ती की.
सोच रहा हूँ, नदी को यूं बिम्ब बना कर कितना कुछ कह दिया आपने...
जवाब देंहटाएंमुझे थोड़ी देर हो गयी आपकी इस खूबसूरत कविता तक पहुँचने में..क्षमा कीजिएगा..नदी की खूबसूरती और हिम्मत बयाँ करती एक बेहतरीन कविता..प्रकृति के इस अद्भुत वरदान को समर्पित लाज़वाब कविता..बधाई
जवाब देंहटाएंyakinan kavita daad ki haqdaar hai
जवाब देंहटाएंkubool karen ..shabd or bhaav ki bejoD adaygii
बिलकुल सही कहा अदा जी ने - क्लाइमेक्स ! यह तो बेहद शानदार है !
जवाब देंहटाएंपूरी जीवन यात्रा के अनगिन घात-प्रतिघातों को सम्पुटित करती मुस्कराहट ! ’कैसे-कैसे हादसे सहते रहे,फिर भी हम जीते रहे ,हँसते रहे’ की मानिन्द !
बेहतरीन रचना । आभार ।
hame aap per GARVE he!!
जवाब देंहटाएंbadhai ho aapko.
pyari di!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंsudha ne kha..........
जवाब देंहटाएंhame aap per GARVE he di!!
badhai ho aapko!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंhame aap per GARVE he di!!
जवाब देंहटाएंaap ki anguli thanbh ker es raste per chalana chaheti hu...... jo syayed me bhul si gayi the.....
badhai ho aapko!!
बहुत सुंदर रचना वाणी जी ....आज के परिपेक्ष में भी कितनी सही लग रही है ....!!!
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