शनिवार, 16 जनवरी 2010

दुष्टों की चारित्रिक विशेषताएं ..... ..(बालकाण्ड)

पिछले दिनों नजदीकी सम्बन्धी का ऑपरेशन , पिता की पुण्यतिथि और मकर संक्रांति के कारण कुछ व्यस्तता रही ...कभी कभी व्यस्तता मन मस्तिष्क में सुन्नता , खिन्नता या जड़ता उत्पन्न कर देती हैं ....ना ज्यादा कुछ पढ़ा ...ना टिप्पणी ही की ...संक्रांति की रिपोर्ट धरी की धरी रह गयी ...मगर आज प्रण लिया है ...बस ...यह अनमनापन और नहीं ....

आज कुछ लिखना ही है....कुछ पन्ने संभालती हूँ ...पिछले दिनों एक कविता लिखी थी ...वह पन्ना कही खो गया है शायद ...अब फिर से वही सब कैसे लिखा जाएगा ...देखेंगे ...

कुछ पन्ने और हाथ लगे ....ये तो बाल काण्ड की कुछ सूक्तियां हैं ....याद आया .......यूँ तो पहले भी बहुत बार पढ़ा था ...मगर इस बार कुछ खास पंक्तियाँ नोट कर ली थी ...वही लिख देती हूँ ...मन अशांत हो तो अपने आराध्य से बढ़कर कौन ...अब चाहे कुछ लोगों के लिए ईश्वर कपोल कल्पित कल्पना ही हो ....मगर मैं इसे मनोवैज्ञानिक उपचार की तरह ही लेती हूँ ....जब मन बहुत अशांत हो तब कुछ देर आँखे बंद कर अपने आराध्य का ध्यान सचमुच बहुत सुकून देता है ....

बालकाण्ड से कुछ दोहे (सूक्तियां )...इन सूक्तियों में तुलसीदास जी ने दुष्टों के स्वभाव का वर्णन किया है ...

उदासीन अरि मीत हित सुनत जरहिं खल रीती
जानि पानी जुग जोरी जन बिनती करही सप्रीती

दुष्टों की यह रीति है कि वे उदासीन शत्रु अथवा मित्र किसी का भी हित सुनकर जलते हैं , यह जानकार शठ जन उन्हें प्रेमपूर्वक विनय करता है ....

मैं अपनी दिसी किन्ही निहोरा तिन्ह निज ओर लाउब भोरा
बायस पली अहिं अति अनुरागा होहिं निरामिष कबहूँ कि कागा

मैंने अपनी ओर से विनती की है , परन्तु वे अपनी ओर से कभी नहीं चुकेंगेकौवों को कितना भी प्रेम से पालिए परन्तु वे क्या कभी मांस के त्यागी हो सकते हैं ......

बहुरि बंदी खल गन सतिभाएँ जे बिनु काज वाहिनेहू बाएं
पर हित हानि लाभ जिन्ह करें उजरे हर्ष बिषाद बसेरे

अब मैं सच्चे भाव से दुष्टों को प्रणाम करता हूँ कि जो बिना ही प्रयोजन अपना हित करने वाले के भी प्रतिकूल आचरण करते हैंदूसरों के हित की हानि ही जिनकी दृष्टि में लाभ है , जिनको दूसरों के उजड़ने में ही हर्ष और बसने में विषाद होता है ....

खल परिहास होई हित मोरा काक कहहीं कलकंठ कठोरा
हँसहिं बक दादुर चातकहिं हँसहिं मलिन खल बिमल बतकही

दुष्टों के हंसने से मेरा हित ही होगामधुर कंठ वाली कोयल को कौवे कठोर ही कहा करते हैं जैसे बगुले हंस को , मेंढक पपीहे को हँसते हैं , वैसे ही मलिन मन वाले दुष्ट निर्मल वाणी को हँसते हैं ......


हालाँकि दुष्टों की चारित्रिक विशेषता प्रदर्शित करते दोहे और सूक्तियां और भी हैं ...मगर अभी बस इतना ही ... पूरी कोशिश की है वर्तनियों में कोई अशुद्धि ना रहे , यदि फिर भी रह गयी हो तो क्षमा करते हुए कृपया इस ओर ध्यान आकृष्ट करायेंं ....

29 टिप्‍पणियां:

  1. @तुलसी मेरे आराध्य हैं और उनके प्रेमी मेरे प्रणम्य!
    आपने सुन्दर पंक्तियों का चयन किया है जिनमें दुष्टों की
    प्रक्रति की विवेचना है और उनकी आराधना भी -
    बिना दुष्टों के भी सहयोग के कोई अनुष्ठान पूरा नहीं हो सकता .
    यह तुलसी का एक लाक्षणिक व्यंग है या सुदीर्घ अनुभव -
    बड़ी ही क्षीण सी विभेदक रेखा है .
    कभी इस प्रसंग की आपकी इस प्रेरणा से ही मैं और विस्तारित
    प्रस्तुति कर सकूंगा !
    आभार

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  2. पहले पन्नों पर लिखी जाती हैं कवितायें, फिर चिट्ठों पर । ऐसी कई शख्सियतें मिल गयीं अब, मैं अकेला नहीं । आपकी कतार में शेफाली जी, अमरेन्द्र भाई, मैं और न जाने कितने अनाम भी हैं !

    यह तुलसी ही हैं कि दु्ष्टों को प्रणाम करते हैं, उनकी वन्दना करते हैं और इसी बहाने सारा आचरण उघाड़कर रख देते हैं । तुलसी बाबा की अनोखी अदा है यह ! दुष्टों को थपकी देकर सुलाने का उपक्रम है उनकी यह प्रणाम-क्रिया ! खेचरी मुद्रा है बाबा की ! मधु और दंश की शैली के उस्ताद हैं तुलसी बाबा । खूब हवा भरते हैं, फिर काँटा चुभा देते हैं । मतलब यह कहने का - कि जब तुलसी बाबा कहते हैं कि "दुष्ट (निन्दक) महान हैं" तो ध्वनि आती है -"महान दुष्ट (निन्दक) हैं ।

    प्रविष्टि का आभार ।

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  3. कौवों को कितना भी प्रेम से पालिए लेकिन क्या कभी वो मांस के त्यागी हो सकते हैं...

    बहुत गहरी बात...

    जय हिंद....

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  4. िस मनोवैग्यानिक उपचार से ही तो आदमी आज भी जी रहा है वर्ना संसार के दुख कहाँ सह पाता बहुत सुन्दर सूक्तियाँ पढवाई हैं धन्यवाद्

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  5. आपने विषय की मूलभूत अंतर्वस्तु को उसकी समूची विलक्षणता के साथ बोधगम्य बना दिया है। हरि अनन्त .. हरि कथा अनन्ता।

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  6. बहुत श्रेष्ठ कार्य किया है आपने...बधाई...इससे बेहतर उपचार मानव मात्र के लिए संभव ही नहीं हो सकता...हर अच्छे मनुष्य को अपनी अच्छाई का आभास दुष्टों के प्रति सद् व्यवहार बनाए रखते हुए ही होता है..श्री राम आप पर कृपालु हों....

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  7. कॊवॊ वाली बात तो आप ने बिलकुल सही कही, यानि दुष्ट हमेशा दुष्ट ही रहता है, आप का लेख बहुत अच्छा लगा

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  8. दुष्टों की वन्दना तो सबसे पहले? बाबा तुलसी का जिक्र होते ही आज आपकी पोस्ट पूजनीय हो गयी.

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  9. आपके लिखे तुलसी दास जी के दोहे .... उनका अर्थ और हिमांशु जी की प्रतिक्रिया ....... आनंद ले रहा हूँ हैं इन सब क ........... आपक बहुत बहुत आभार ........

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  10. बहुत बहुत शुक्रिया..रामचरित मानस की इन सूक्तियों को पढवाने का...
    सच कहा..जब मन अशांत हो तो अपने अराध्य से बढ़कर कौन...अपनी सारी चिंताएं उनपर सौंप हम मुक्त हो जाते हैं..

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  11. ek bahut hi sarthak aur gahan lekh.........tulsidas ji dwara rachit har chopayi ek aakhyan hai agar koi use dhang se samjhe to........manushya jeevan sanwar jaye yad koi ek bhi chopayi ya dohe ko pakad le aur zindagi bhar uska aacharan kare to.

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  12. अरे वाणी जी,
    इतना अच्छा कार्य कर दिया ...
    और जब श्रधेय divinepreaching ने अपनी बात कह दी है तो कहने को रहता भी क्या है...
    लेकिन एक बात फिर भी ज़रूर कहूँगी...कभी कभी अपवाद भी हो ही जाते हैं...अब देखिये न...डाकू रत्नाकर, वाल्मीकि बन ही गए थे न.....!!!
    इसलिए मुझे उसी category में रखियेगा...:):)
    बहुत सुन्दर संग्रह.....
    हरि अनंत हरि कथा अनन्ता...कहहु सुनहूँ बहु विधि सब संता
    राम सिया राम सिया राम जय जय राम....!!

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  13. shukriya vani ji...chalo is bahane thoda hamara bhi kuchh manovaigyanik upchaar ho gaya. shukriya.

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  14. संदेश से निहित सत्य वचन..रामचरितमानस में एक से बढ़कर एक सुंदर विचार मिलते है...बढ़िया प्रस्तुति धन्यवाद!!

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  15. बाबा का कुछ भी पढता हूँ , हृद-हर्षित हो बैठता हूँ ...
    अतः .......... आभार ,,,
    हाँ , टाइपिंग में असावधानी न होती तो और अच्छा होता !

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  16. आप ने फिर 'टिपण्णी' लिखा !
    'टिप्पणी' होती है - टि+प्प+णी
    चलिए इसे दस बार टाइप कीजिए। :)

    चौपाइयों में भी त्रुटियाँ हैं - रामचरित मानस में एक बार पुन: देखें।
    ________________________________________

    गोसाईं जी का खल मनोविज्ञान उनका अनुभूत था। नागर जी का 'मानस का हंस' उल्लेखनीय है। कैसे कैसे चरित्र !
    'वैदेही वल्लभ चरण कमल रज धूलिदास' जैसे महंतों से लेकर मोहिनी तक ... न पढ़ी हो तो पढ़ डालिए। बहुत आनन्द आएगा।
    विनय पत्रिका के विनय और कवितावली के जाने कितने कवित्तों को नागर जी ने मूर्तिमान कर दिया है।

    लेख तो सँजोने योग्य है। तुलसी को इस तरह से पढ़ने वाले कम हैं।

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  17. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  18. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  19. @ गिरिजेश राव
    गुरुदेव ...देर आये दुरुस्त आये ...गलतियों की ओर ध्यान दिलाने तथा गृह कार्य देने के लिए बहुत आभार ..हर बार आपकी टिप्पणी ज्ञान में बढ़ोतरी कर जाती है ...!!

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  20. Aapki abhiruchi ne abhibhoot kar diya hai...

    Bahut hi achchi lagi aapki yah post....

    Aasha hai anmanepan se abtak bahar aa gayin hongi aap...Aapke vishwaas se mel khate mere bhi vishwaas hain....

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  21. Waaqayi bahut achhee post hai..kayi baar durjanon ke vyavharse seekh milti hai, ki,hamne waisa wyavhaar kiseeke saath nahi karna chahiye.
    "Kavita" blogpe aapki tippanee behad achhee aur sahi hai!Tahe dilse shukriya!

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  22. वाह ....ज्ञानवाणी में ज्ञान की वर्षा .....???

    संजो कर नहीं गिरह बांध कर रखने वाली उक्तियाँ ......!!.

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