गुरुवार, 21 जनवरी 2010

मेरे घर की खुली खिड़की से .....



मेरे घर की खुली खिड़की से
अलसुबह
जगाता है मुझे
चिड़ियों का कलरव गान.....

ठिठोली कर जाती है
रवि की प्रथम किरण
अंगडाई लेते कई बार.....



पूरनमासी का चाँद भी
झेंपता हुआ सा
झांक लेता है बार -बार....

झर-झर झरते पीले फूल
देते हैं दस्तक
खिडकियों पर कई बार.....



मीठी तान छेड़ जाती है
मदमस्त हवा
चिलमन से लिपटकर बार-बा....

खिडकियों से ही नजर आती है
कुछ दूर ...बंद खिड़कियाँ ..
हवेली की ऊँची दीवार......


सुबह-शाम
देख कर उन्हें
सोचती हूँ
कई बार ....

ऊँचे जिनके मकान होते हैं
छोटे कितने उनके आसमान होते हैं ....



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वसंत आया मेरे घर की छोटी सी बगिया में ....



















40 टिप्‍पणियां:

  1. इसे कहते हैं दुहरी संवेदना की अभिव्यक्ति !
    बहुत खूब।
    मैं तो लय और शब्दों का सहज प्रवाह निरख रहा हूँ।
    गंगा किनारे बैठ कर
    - लहर लहर सुघर सुन्दर सर
    सर कल कल टल मल
    सँवर चल
    कलरव
    रव
    री !
    आज की कविता हो गई।
    आभार।

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  2. हुम्ह्ह ...पता नहीं लोगों को क्यों दूसरों की खिडकियों से झांकने में मज़ा आता है :):)
    just kidding ...!!!
    अरे आपकी कविता इतनी सुन्दर कि हम सोच ही नहीं पा रहे हैं कि क्या कहें...देखिये वाणी जी आपके ऊपर कुछ ऐसे-वैसे लोगों का असर हो रहा ही जो ऐसा-वैसा लिखते हैं और जिनको कमेन्ट करने में हमारी नानी याद आ जाती है .आप जरा ऐसे लोगों से दूर ही रहिये नहीं तो हम शब्दों से कंगले हो कर कंगाल शब्द कोष बैंक के मनेजर हो जायेंगे...हाँ नहीं तो...:):)
    वैसे आपकी कविता बेमिसाल...और आपकी बगिया के फूल लाजवाब , और गुलाब से साथ जो कमल ककड़ी सी अंगुलियाँ हैं....अआह...अप्रतिम...नायब....मुझे तो पाकीजा फिल्म का डायलोग याद आगया ...आपके हाथ देखे...थप्पड़ मत मारिएगा...वर्ना...हम फिर खाने आ जायेंगे....हा हा हा
    लेकिन हज़ार बात कि एक बात...कविता झक्कास है बिडू....:)

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  3. बड़ी बात कहती सुन्दर सुघड़ और सधी कविता ,तिस पर नयनाभिराम फूलों का चटख रंग !
    लगता है अब नहीं रुकेगा बसंत !

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  4. लाजबाव - बसंत के आगमन पर हार्दिक बधाई

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  5. जो रचता है वह भगवान की तीन विभूतियों - शक्ति, शील और सौन्दर्य में से सौन्दर्य को और ब्रह्म की तीन शक्तियों-सत, चित और आनन्द में से आनन्द को पकड़ता है और अनुभूत कर रचना की राह चलता है । जो अभिव्यक्त होता है वह वस्तुतः व्यक्त जगत के बीच फैली भगवान की मंगल कला का दर्शन एवं इस दर्शन से हृदय में आयी छलकन होती है ।

    रचना देख रहा हूँ, जैसा गिरिजेश भईया ने कहा, उसकी गति, उसका प्रभाव निरख रहा हूँ । कहते हैं न बगिया में वसंत आये और उसे अभिव्यक्त करना हो तो तीनों की जरूरत पड़ती है - sense of beauty, sense of proportion और sense of selection की ! और रह गयी इन सबके बीच अँगड़ाई लेती स्वाभाविकता, तो वह तो आपकी रचनाओं का स्वभाव है ।

    इतनी खूबसूरत बगिया है आपकी । आपको गूगल इमेजेस की क्या जरूरत !
    सुन्दर प्रविष्टि । आभार ।

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  6. और गुलाब तो लपकने का मन कर रहा है !

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  7. सुन्दर लगे आपकी बगिया के फूल और आपकी कविता भी। दोनों ही अभिव्यक्ति से भरे-पूरे हैं।

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  8. आपकी कविता बेहद खूबसूरत है .. सच तो है की जिनके घर ऊंचें होते हैं उनके आसमान छोटे हों जाते हैं .. दिल से बधाई .

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  9. उँचे जिनके मकान होते हैं...छोटे कितने आसमान होते हैं...कितना सही चित्रण किया है....फूलो के चित्र...लाजबाब!!

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  10. बेहद खूबसूरत रचना , गुलाब के तो क्या कहने , .......

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  11. धन्यवाद इन फूलों से याद आया कि बसंत आया.

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  12. वाह! जैसे फूलों की खुशबू और उनकी खुशबू से सराबोर कविता की सुगंध हम तक पहुँच गयी...बहुत खूब

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  13. वाकई बसन्त उतार लिया आपने लफ़्ज़ों में और इन सुन्दर चित्रों में शुक्रिया

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  14. jesa ke Himanshu ji ne kha ke aapki racanao me swabhavikta burbus he man moh lete he.....aapke racana padhker_jese demag ka koi pyasa kona trept hua ho.
    aapke bagiya ke khilte fhul dil me basant ki dustak de rahe he!

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  15. ऊँचे जिनके मकान होते हैं
    छोटे कितने उनके आसमान होते हैं ......

    पूर्व प्रधान मंत्री श्री वाजपाई जी ने भी अपनी एक कविसा में ऊँचाई के साथ साथ विस्तार की आवश्यकता की बात की है!

    इस सुंदर रचना के लिए बधाई !

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  16. क्या मेरे अगले संचयन संग्रह में आप शामिल होना चाहेंगी?

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  17. फूलो को और खूबसूरत कविता को देख के सच में बसंत की आमद का अहसास हो रहा है.

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  18. बहुत सही कहा...ऊंचे मकान वालों के आसमान छोटे ही होते हैं. शायद वो अभिशप्त हैं. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  19. हां एक बात कहना तो रह ही गयी...

    आपकी बगिया के फ़ूल बहुत ही मनमोहक हैं. आपकी इन पर नजर गई यही आपकी आपकी पारखी नजर है. हमने भी नजर दौडाई और हमारे यहां बःइ ऐसे ही सुंदर फ़ूल खिल रहे हैं, पर उन पर नजर आप्की पोस्ट को पढने के बाद गई.:)

    बहुत आभार आपकी पारखी नजर का...आज कईयो का ध्यान जायेगा अपने घर की बगिया की तरफ़.

    रामराम.

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  20. दी.... बहुत सुंदर बगिया के साथ ....बहुत सुंदर कविता.... क्या बात है.... अति सुंदर....

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  21. SUNDAR FOOL HAI SAARE AUR RACHNA BHI UTNI HI SUNDAR HAI .... FOOLON KI TARAH MAHAKTI ....

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  22. जितने सुंदर फूल उतनी सुंदर कविता....बहुत सुंदर

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  23. रचना ने भाव विभोर कर दिया और फूलों ने मन मोह लिया!

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  24. बहुत सुंदर फ़ुल लगे ओर कविता भी बहुत सुंदर, खिडकियो पर पर्दे लगा कर रखे :)

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  25. Lagata hai jaise aapne apani kavita main apani hi bagiya se chun chun kar phoolo se komal bhav aur sunder rang dale hai.....Very nice.

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  26. बहुत सुन्दर कविता है । कविता में इसी तरह सौन्दर्य के साथ साथ सामाजिक सरोकार भी होने चाहिये तभी कविता सार्थक होती है । हर बार कुछ नई बात कहने की कोशिश करें ।

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  27. vaani ji bahut sunder kavita... khas taur par antim dono panktiya... sath mein vasant ke sabrang tasveerein... duhri khushi de gai... aapke blog par naya aaya... ab aate rehna hoga !

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  28. अंतिम की दो पंक्तिया पंच कर गयीं..........वैसे तो पूरी कि पूरी कविता सुन्दर भाव लिए हुए है ......बहुत बहुत शुक्रिया!

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  29. आखिरी दो पंक्तियों की मार ने स्तब्ध कर दिया...एकदम सहज-सरल शब्दों में इतनी बड़ी बात

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  30. आपकी बगिया में यूँ ही सुन्दर फूल खिलते रहें
    बहुत बहुत आभार ..............

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  31. aap ki kavita padkar bhahut hi acha mahsoos hua. this time u have really written a good poem. thnks and carry on good work. my best wishes to u

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  32. ऊंचे जिनके माकन होते हैं
    छोटे कितने उनके आसमान होते हैं.

    ...सुंदर भाव. अच्छी कविता.

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  33. vani ji bahut sundher abhivyakti hai aur ek baat kahu bura mat maniyega...us se bhi sunder to aapki bagiya k gulab lage...maine to chura bhi liye hai.

    bahut badhiya...lage raho munna bhai.

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  34. कविता तो है ही, चित्र भी गज़ब के हैं.

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  35. jeevant kvita ,jeevant bagiya isi jeevvntta me to asli jeevan hai .
    bahut sundar prstuti .badhai

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