शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

धुन्धलाया सूरज

सुबह सबेरे उगता सूरज कितना प्यारा लगता है ...अंधियारे को चीरता सतरंगी किरणें बिखेरता ...सब कुछ धुला धुला सा , पाक साफ़ सा ..
नहा धो कर पूजा की थाली लिए मंदिर की ओर जाती अर्चना के पैर थम से गए ...पार्क से होकर गुजारने वाले रास्ते पर एक मकान के बाहर महिलाओं का एक झुण्ड खड़ा था ...मेन गेट के पास एक दो महिलाएं मकान मालिक से उलझ रही थी ।उस मकान के निचले हिस्से में एक तरफ ब्यूटी पार्लर बना हुआ था जब कि उसके दूसरे हिस्से में एक जालीदार पार्टीशन के साथ दो किरायेदार रहते थे । सोमवार का दिन होने के कारण मंदिर में भीड़ बढ़ जाने की चिंता में अपनी पूरी उत्सुकता को समेटे अर्चना मंदिर की ओर ही बढ़ ली ...मगर पूजा अर्चन करते समय ध्यान वही अटका रहा। उसकी उत्सुकता का कारण मकान मालिक और किरायदार दोनों से उसका परिचय होना था ...अभी कुछ दिनों पहले ही उसकी सिफारिश पर यह मकान उसकी सहेली को किराये के लिए उपलब्ध हुआ था ..उसकी किस्मत की मारी सहेली के परिवार मालिक में अब वे माँ -बेटी ही बची थी ... महानगर की ओर बढ़ते इस शहर में बढ़ते अपराधों और घटती सुरक्षा के कारण कोई बिना किसी जानपहचान के किरायेदार नहीं रखता । ब्यूटी पार्लर की मालकिन अर्चना की परिचित थी इसलिए थोड़ी ना नुकुर के बाद उसने इन माँ बेटिओं को निचली मंजिल पर एक कमरा किराये पर देने को राजी हुई थी ...अर्चना घर लौटते दुबारा वहां पहुंची तो भीड़ छंट चुकी थी ...दोनों माँ बेटी कुछ सहमी सी अपने कमरे में बैठी थी । उन्होंने जो बताया एक बारगी तो अर्चना के रोंगटे खड़े हो गए ... उसकी सहेली के कमरे से लगे दूसरे कमरे में मकान मालिक के कॉलेज का एक विद्यार्थी रहता था । उन दोनों कमरों के बीच सिर्फ एक जालीदार दरवाजा था जिसे दोनों तरफ परदे लगा कर वे वे अपनी प्राईवेसी बनाये रखे हुए थे . आज दोपहर को जब दोनों माँ बेटी स्कूल से लौट कर आराम कर रही थी की अचानक उस तरफ कैमरे की फ्लैश लाईट और फुसफुसाहट भरी आवाज़ ने उनका ध्यान आकर्षित किया . चूँकि उनके कमरे में अँधेरा था इसलिए दूसरी ओर से उन्हें देखा नहीं जा सकता था ..मगर साथ वाले कमरे में कैमरे की रौशनी के कारन हुए हलके उजाले में अस्पष्ट से दृश्य नजर आ रहे थे जिसे देखखर माँ बेटी दोनों घबरा गयी . चुपचाप धीरे से कमरे से बाहर निकलते उन्हें याद आया की मकान मालकिन तो अपनी जचगी के लिए मायके गयी हुई है . उपरी मंजिल पर अपने कमरे में लेटे मकान मालिक को वे किस तरह उस घटना का ब्यौरा देंगी ..यह सोचकर उनके कदम वहीँ रुक गए ...मगर इस तरह खामोश होकर बैठे रहना उनकी अंतरात्मा को गवारा नहीं था और कुछ भय भी था ...उन्होंने चुपके से पड़ोस के उस कमरे की कुण्डी बाहर से बंद कर दी और दबे पाँव वे पड़ोस के मकान में अपनी परिचित के पास पहुँच गयी और उन्हें पूरी घटना का ब्यौरा दिया . मामले की गंभीरता को देखते हुए उस परिचित ने आस पास की कुछ और महिलाओं को इकठ्ठा किया और वापस उस मकान में पहुच कर तेज स्वर में मकान मालिक को आवाज़ देने लगी . कुछ नाराजगी भरे अंदाज़ में वह व्यक्ति सीढियों से उतर कर उनके पास पहुंचा तो एक महिला ने उसे लताड़ते हुए उस बंद कमरे की कुण्डी खोलने को कहा . हिचकते और खीझते उस व्यक्ति ने जब कमरा खोला तो उसकी ऑंखें फटी रह गयी ...सभी महिलाओं ने उस लड़के को पुलिस में रिपोर्ट की धमकी देते हुए खूब भला बुरा कहा.. घबरा कर वह लड़का पहली और आखिरी गलती का वास्ता देकर उनके हाथ पैर जोड़ने लगा ..उसके साथ की लड़की शायद नशे के प्रभाव में थी ..

दूसरे दिन सुबह दूध की डेयरी के पास उसकी मायूस सहेली मिल गयी ...वह उससे नया कमरा ढूंढ देने की विनती कर रही थी ...पता चला की उसकी मकान मालकिन रात में घर लौट आयी थी ...साथ ही उस लड़के के अभिभावक भी ...उनके बीच क्या मंत्रणा हुई भगवान् जाने ... अब मकान मालिक उसकी सहेली को दो दिन के भीतर घर ख़ाली करने का नोटिस दे चुका था .आँखें मल कर कई बार देखने पर भी अर्चना को आज सूरज धुन्धलाया सा क्यों लग रहा था ...

20 टिप्‍पणियां:

  1. जो सच को देख लेता है उसके साथ यही होता है। बहुत ही अच्‍छी कहानी। बधाई।

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  2. kaash ye uski aakhiri galati ho, aur kaash ye akhiri ladka ho jo aise galti kar raha ho.

    Bahut sundar likha hai..

    .

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  3. itni nirbhikta galti hoker bhi saath hi chalti hai, bahut hai mushkil girke sambhalna

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  4. बहुत मुश्किल होता है ऐसी रचनाओं पर कमेन्ट करना...सारी !

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  5. हाँ क्या कमेन्ट कर सकते हैं। धन्यवाद।

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  6. सोचने पर मजबूर करती कहानी....अच्छी प्रस्तुति

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  7. Afsos,ki saheli ko ghar chhodna pada...kahani bahut badhiya tareeqese jeevan ka yatharth bayaan karti hai.

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  8. बेहतरीन प्रस्तुति ..सोचने पर विवश करती है कहानी.

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  9. मन विचलित कर गयी कहानी...बस समर्थ लोगों की ही यह दुनिया है...बेबस कमजोर लोगों को ऐसे ही मुसीबत उठानी पड़ती है.

    बहुत ही यथार्थपरक कहानी

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  10. अब क्या कहे!! पता नही कितने लोग ऎसे ही मजबुर हो...कहानी बहुत कुछ सोचने को मजबुर करती है

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  11. yahi hota hai...hazaaron filmein dekh chuke hain...hamesha acchon ke saath ki bura hota hai...ye alag baat hai ki THE END se pahle sab theek ho jaata hai...lekin jeewan mein to wo THE END, THE END mein aata hai...
    bahut sundar prastuti..

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  12. जब भी लगता है अब सूरज चमकेगा, वह धुँधलाने लगता है । बहुत अच्छी कहानी ।

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  13. कुछ गलतियाँ कभी भी माफ़ी के लिए नहीं होती है |ऐसी गलती जिससे सूरज भी धुन्ध्लाया लगे वो तो कभी नहीं ?

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  14. धुंधलका अगर जीवन पर छाया रहता है तो बाह्य प्रकृति भी मलिन सी लगती है !

    वाकया पढ़कर मकान खोजने के जीवन वाले कई वाकये याद आने लगे ! यथार्थ पूर्ण !

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  15. सुनते हैं सांच को आंच नहीं...लेकिन यहाँ तो सांच को ही आंच मिलती है. अच्छी प्रस्तुति.

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  16. क्या सचमुच?

    पापा का तबादला लगातार होते रहता था...तो एकदम से उन दिनों की याद आ गयी घर की तलाश वाली।

    आज दिनों बाद फुरसत निकाल कर आना अच्छा लगा यहां।

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