बुधवार, 16 मार्च 2011

बहारें फिर भी आती हैं ...बहारें फिर भी आएँगी ....






परीक्षाओं का घनघोर माहौल बना हुआ है घर में ...पतिदेव के एम बी ए की परीक्षाएं बस अभी ख़त्म हुई है , बच्चों को अभी फ्री होने में थोडा समय लगेगा ...बहुत दिनों बाद घर से निकलना हुआ ...कार , ट्रक , दुपहिया वाहन , सब्जी के ठेलेवालों की रेलमपेल के बीच कार के शीशे से झांकते दूर तक पेड़ों की कतार इस शोरगुल को नजरंदाज कार देती थी , मगर आज देखा जैसे दूर तक सिर्फ शोर -ही- शोर , धूप भी अब अपना रंग दिखाने लगी है , ऐसे में सड़कों के किनारे बड़े पेड़ों की छाया से महरूम होना ....आधुनिकता की दिशा में तेजी से अग्रसर शहर में मेट्रो का निर्माण कार्य चल रहा है ...कई स्थानों पर चेतावनी के बोर्ड गाडी की स्पीड को कम कर देते हैं ... लम्बी दूरियों पर धीमे गाड़ी चलाना भी अच्छा लगता है , मगर पेड़ों के बिना सड़कें वस्त्रविहीन , तो लैम्प पोस्ट उघडे हुए से नजर आ रहे हैं ...हाऊसिंग बोर्ड के कतारबद्ध मकानों के आगे सड़क पर दस फीट चौड़ी पट्टियां सिर्फ हरियाली के लिए ही आरक्षित थी ... बड़े पेड़ों के नीचे फल- सब्जी , चाय -नाश्ते की छोटी थड़ीयां , पंचर ठीक करने वाले बाल कारीगर , धूप में चलते राहगीरों को सुकून के दो पल मिलते थे ...मगर अभी सब कुछ उजाड़- सा पड़ा है ....विकासशीलता की भी अपनी परेशानियाँ है ...महानगर की दौड़ में कदम मिलते शहर को आये दिन हरे भरे पेड़ों की कुर्बानियां देनी पड़ती है ....कब निर्माण कार्य समाप्त होगा , कब फिर से पेड लगाये जायेंगे और फिर से सब कुछ हरा-भरा होगा , होगा भी कि नहीं ...मुझे जापान पर आया संकट भी याद आ जाता है ...उन्हें विकास की इतनी लम्बी सीढियाँ चढ़ने के बाद अब फिर सिफ़र से शुरू करना होगा.. ..विकास और तकनीक का ही तो प्रभाव है की भयंकरतम आपदा में भी राहत बचाव कार्य किये जा रहे हैं वरना कई पुरानी सभ्यताओं को इन प्राकृतिक आपदाओं सुनामी , भूकंप आदि ने ऐसे ही एक पल में समाप्त कर दिया होगा , दुनिया के दूसरे हिस्सों में हलचल भी नहीं हुई होगी...
सभी मकान बेजान से नजर आ रहे हैं , पेड़ों के बिना निर्जीव से लगते हैं ,कितनी भी बड़ी और सुन्दर कोठी हो , फूल ,पौधे ना हो तो जीवन्तता का अभाव ही लगता है ...

बहार का मौसम अपने पूरे उठान पर है , मगर बेमौसम रुक -रुक कर होती बरसात ने पूरी रंगत नहीं आने दी , गुलदाउदी के पौधों में फूल ठीक से लगे ही नहीं , बस कलियाँ लगती और मुरझा जाती ...पेड़ों के बिना उघडी सड़कों से उपजी मेरी निराशा को देखते हुए पतिदेव ने कार एक हरी -भरी नर्सरी के बाहर रोक दी ....ताजा हरी पत्तियों वाले , खुशनुमा रंगों वाले पौधे ही पौधे ...गुलाब की क्यारियां सजी पडी हैं ....पिछली बार आई थी तो गुलाब कलियों में ही थे ... बिना खिले क्या पता चलता है रंग का ....यूँ तो फूल और पौधे किसी भी रंग और आकार के हों , खूबसूरत ही लगते हैं ...खुद प्रकृति अपने हाथों से बुनती है जो उनकी बुनावट ...अंदाजे से सुर्ख लाल रंग और नारंगी रंग का गुलाब चुना था ...नारंगी तो गुलाबी निकला , सुर्ख लाल वाले गुलाब में सफ़ेद किनारियाँ ... डेहलिया और गुलाब देते हुए माली ने ख़ास ताकीद की थी ....एक मोटी क्राउन बड को छोड़ कर आस -पास की सभी छोटी कलियों को तोड़ देना है , अगर एक बड़ा खूबसूरत फूल चाहिए तो ....डेहलिया अब तो काफी बड़ा हो गया है , और बहुत सारी कलियाँ भी लगी है , मगर मुझसे बागवान की बात मानी नहीं गयी ....एक बड़े फूल को पाने के लिए छोटी -छोटी कलियाँ तोड़ दूं , मन नहीं मानता ....ऐसे ही छोड़ दिया मैंने ...क्या होगा फूल छोटे ही तो होंगे ...खूबसूरती का क्या बड़ा या छोटा होना ...कम -से -कम उस एक बड़े फूल को देखकर तोड़ी हुई कलियाँ याद करते मन मलिन तो नहीं होगा ...

कलिओं को तोड़ने से रुके हाथ , किसी की हंसी सुनायी देती है ..." बहुत सेंसिटिव हो तुम , गाँठ बाँध लो मेरी बात ...ये दुनिया सेंसिटिव लोगों के लिए नहीं है "
मैं प्रतिवाद करती हूँ, " नहीं , मैं इतनी ज्यादा भावुक भी नहीं मगर प्रैक्टिकल होने के साथ इंसान बने रहने जितनी सेंसिटिवीटी तो मुझमे है ...

गौर से देखा एक गुलाब की टहनी पर फफूंद नजर आ रही थी ...पिछले हफ्ते ही तो दवा डाली थी , अब इतनी जल्दी और कीटाणु नाशक का प्रयोग नहीं किया जा सकता , पौधा जल सकता है ...मैं रसोई से हल्दी लाकर छिड़क देती हूँ , नीम की पत्तियां उबालकर उसका पानी डालकर देखती हूँ ....दवा तो सभी पौधों को एक जैसी ही डाली थी , कुछ पौधों को नवजीवन मिल गया ...नए पत्ते और फुनगी पर नयी कलियाँ , मगर कुछ नहीं बच सके ...हर बदलता मौसम मौसमी पौधों के अलावा कुछ सदाबहार पौधे भी लील जाता है ...इस बार क्रिसमस ट्री चला गया ... राजस्थान की जलवायु मे भी ये पहाड़ी पौधा अच्छी बढ़त ले लेता है ...अच्छा बढ़ गया था , अचानक पता नहीं क्या हुआ ...
हर पौधे के लिए एक जैसी जलवायु , दवा , खाद कहाँ मुफीद है ...होती तो कुछ पौधे असमय काल कलवित नहीं होते ...माँ कहती है , बच्चे किताबें पढ़कर नहीं पाले जा सकते , मैं सोचती हूँ पौधे भी कहाँ पाले जा सकते हैं किताबें पढ़कर ...

हर सुबह नींद खुलते ही इन पौधों के पास खड़े होना , उनकी नयी कलियों को गिनना ,कलियों को धीमे खिलते देखना ,मुरझाये हुए फूलों को समेटना , कोमल पत्तों से ओस की बूंदों को समेटना बचपना ही सही , मुझे अच्छा लगता है ....हर नयी सुबह प्रकृति अपना सन्देश देती है ...गहन अँधेरे के बाद भी प्रकाश का आना तय है , जैसे पतझड़ के बाद वसंत का आना !

37 टिप्‍पणियां:

  1. सड़क बनाने के नाम पर पेड़ सब काट डाले गए।
    दो पल को ठहरने के लिए भी छाया नही मिलती।

    हरियाली बिन सब सून।

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  2. प्रैक्टिकल होने के साथ इंसान बने रहने जितनी सेंसिटिवीटी तो मुझमे है ...

    इंसान बने रहना ही बडी बात है। बधाई!

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  3. मैं इतनी ज्यादा भावुक भी नहीं मगर प्रैक्टिकल होने के साथ इंसान बने रहने जितनी सेंसिटिवीटी तो मुझमे है ...

    यही तो जीवन है ....हमें संवेदनशील बने रहना चाहिए ...अच्छा विश्लेषण है

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  4. आपकी बात बिलकुल सही है ..वैसे भी प्रकृति के साथ छेड़ छाड़ करने के दुष्परिणाम भी हमें ही भुगतने होंगे !!

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  5. पेड़ों के बिना सड़कें वस्त्रविहीन....ये दुनिया सेंसिटिव लोगों के लिए नहीं है "... yahi sach hai , per ummeed hai -baharon ke aane ka

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  6. बड़े की चाहत में छोटे को नष्‍ट करना यही तो आज हो रहा है और इसका दुश्‍परिणाम दिखायी भी पड़ रहे हैं। इसलिए प्रकृति से ज्‍यादा छेड़छाड़ ठीक नहीं।

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  7. आज इस मुंबई का भी यही हाल है. प्राकृतिक द्रश्य देखने के लिए खंडाला और महाबलेश्वर जाना होता है. यही नज़ारे कभी मुंबई मैं मिल जाया करते थे.

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  8. आपमें अपनी बात को लिखने की अद्भुत क्षमता है ...बड़े फूल की चाहत में और कलियों को न तोडने की भावना ...मन में कुछ पिघल सा गया ... तकनीकि विकास के साथ सारी खबरें विश्व में पहुँच जाती हैं ..वरना .न जाने कब और कितनी बार ऐसी सुनामी पहले भी आई हो और किसी को खबर तक न लगी हो ...


    माँ कहती है , बच्चे किताबें पढ़कर नहीं पाले जा सकते , मैं सोचती हूँ पौधे भी कहाँ पाले जा सकते हैं किताबें पढ़कर .
    सटीक बात कही है ...


    हर नयी सुबह प्रकृति अपना सन्देश देती है ...गहन अँधेरे के बाद भी प्रकाश का आना तय है , जैसे पतझड़ के बाद वसंत का आना !
    उम्मीद ही है जो जीवंतता को बनाये रखती है ....फूल बहुत सुन्दर खिले हैं ...अच्छी पोस्ट के लिए आभार

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  9. हर नयी सुबह प्रकृति अपना सन्देश देती है ...गहन अँधेरे के बाद भी प्रकाश का आना तय है , जैसे पतझड़ के बाद वसंत का आना !

    प्रेक्टिकल रहते हुए इन्सान बन रहना , इससे बड़ी उपलब्धि और कुछ नहीं हो सकती . प्रकृति के बहाने सार्थक सम्प्रेषण .

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  10. बहुत सुन्दर और सार्थक बात कही है ………………प्रकृति से ज्‍यादा छेड़छाड़ ठीक नहीं।

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  11. बहुत सही कहा आपने कुदरत अपने रंग अपने अंदाज में दिखाती है

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  12. mujhe pata hi nahi tha, haldi ka chhidkao bhi kiya ja sakta hai...:)

    bahut sarthak rachna..

    happy holi

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  13. बहारें तो आती ही रहेंगी....
    पर बीते पतझड़ की कसक कभी जाती नहीं....क्रिसमस ट्री का जिक्र मुझे अपना रबर प्लांट याद दिला गया...बड़े जतन से बड़ा किया था....
    सच है...पौधे ,किताब पढ़कर नहीं पाले जा सकते. जब एक बार नर्सरी से प्लांट लेने गयी थी...तो नर्सरी वाली महिला.."बार-बार पूछती...आपने पहले पौधे रखे हैं,कभी?"..इत्मीनान दिलाने के बाद भी वह दस दिनों बाद घर पर आई...पौधों का हाल देखने...वो हमेशा ऐसा किया करती है ...
    ऐसा होता है पौधों से प्यार.

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  14. बिन पानी सब सून वाला परिदृश्य बनता जा रहा है ।

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  15. कितनी भी बड़ी और सुन्दर कोठी हो , फूल ,पौधे ना हो तो जीवन्तता का अभाव ही लगता है ...
    सच कह रही हैं,आभार.

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  16. ये दुनिया सेंसिटिव लोगों के लिए नहीं है "
    मैं प्रतिवाद करती हूँ, " नहीं , मैं इतनी ज्यादा भावुक भी नहीं मगर प्रैक्टिकल होने के साथ इंसान बने रहने जितनी सेंसिटिवीटी तो मुझमे है ...

    शब्दशः यही मेरे भी विचार हैं..

    लाख कोई कहे,मैं मान लूँ...कि यह दुनियां संवेदनशील लोगों के लिए नहीं है...पर मुझे यही रुचता है..ऐसा ही रहना जंचता है...तो ऐसे ही ठीक हूँ..भले सबको आपत्ति हो...

    प्रगति की आंधी जब केवल भौतिक स्तर पर चलती है तो सभ्यताओं के विनाश का द्वार भी खोल लेती है..

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  17. अगर संवेदनशीलता खत्म हो जाएगी तो फिर इस दुनियाँ का रूप ही बदल जाएगा. ये संवेदनशीलता ही मानव को बहुत कुछ गुणों से युक्त रखती है.

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  18. संवेदनशीलता तो मनुष्यता का परिचायक है ...इसके बिना मानव अधूरा है..
    व्यावहारिकता की होड़ में संवेदनशीलता गुम नहीं होनी चाहिए...
    अच्छी प्रस्तुति....आभार..

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  19. तुम्हारी यही मीठी मीठी बातें तो मुझे इस ब्लाग पर खींच लाती हैं। सुन्दर सार्थक पोस्ट। होली की हार्दिक शुभकामनायें।

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  20. बहुत सुन्दर रंग बिरंगे फूल हैं वाणी जी ।
    लेकिन क्या इनमे खुशबू भी है ?
    बच्चे पूछते हैं , खुशबू क्या होती है ।

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  21. बहुत सटीक लिखा आप ने, हम पेडो को नही इस प्राकृति को काट रहे हे, जो एक दिन हमे ही भुगतना हे इस लिये हमे इन सब को बचाने का प्रयास करना चाहिये, पेडो को काटने की जगह उन्हे दुसरी जगह लगा देना चाहिये जो,फ़ुल बहुत सुंदर लगे, धन्यवाद

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  22. बहुत सुन्दर!
    होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
    --
    वतन में अमन की, जागर जगाने की जरूरत है,
    जहाँ में प्यार का सागर, बहाने की जरूरत है।
    मिलन मोहताज कब है, ईद, होली और क्रिसमस का-
    दिलों में प्रीत की गागर, सजाने की जरूरत है।।

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  23. आम ज़िन्दगी की कितनी खास बात है ये और उतने ही खास ढंग से आपने इसे शब्दों में बांधा .... सच में हम आये दिन प्रकृति से छेड़छाड़ करते हैं ....ऐसे में थोड़ी भी सेंसिटिविटी कितना फर्क ला सकती है..... हमें इंसान बनये रख सकती है... :)

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  24. सामजस्य बहुत जरुरी है ...बढ़िया चिंतन और बढ़िया पोस्ट.

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  25. एक निबंध सा सुन्दर आलेख और चित्र भी लाजवाब -अगर मनुष्य के जीवन को इस आलेख के जरिए देखा जाय तो भावपूर्ण अन्तरानुभूति होती है !
    आपमें एक सिद्धहस्त लेखिका का प्रारब्ध है -पूर्वार्ध भी और अब उत्तरार्ध भी !

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  26. आपकी खूबियाँ एक एक कर सामने आ रही हैं ! हमारी दुआ है कि पौधों को प्रेम करने वाले हजारों साल जियें !

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  27. तन रंग लो जी आज मन रंग लो,
    तन रंग लो,
    खेलो,खेलो उमंग भरे रंग,
    प्यार के ले लो...

    खुशियों के रंगों से आपकी होली सराबोर रहे...

    जय हिंद...

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  28. भजन करो भोजन करो गाओ ताल तरंग।
    मन मेरो लागे रहे सब ब्लोगर के संग॥


    होलिका (अपने अंतर के कलुष) के दहन और वसन्तोसव पर्व की शुभकामनाएँ!

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  29. हमें संवेदनशील बने रहना चाहिए, अच्छा विश्लेषण है|
    होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  30. हर सुबह नींद खुलते ही इन पौधों के पास खड़े होना , उनकी नयी कलियों को गिनना ,कलियों को धीमे खिलते देखना ,मुरझाये हुए फूलों को समेटना , कोमल पत्तों से ओस की बूंदों को समेटना बचपना ही सही , मुझे अच्छा लगता है
    yah bachpna hmesha bana rahe .
    टेसू के फूलो की बहार हो
    आपके आंगन में होली का त्यौहार हो |
    शुभकामनाये

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  31. सही कहा आपने, हम तकनीक और विकास के नाम पर बावले हो गये हैं. कागजी फ़ूलों और सिंथेटिक सुगंध के पीछे भाग रहे हैं. ऐसे में कलियों को खिलते देखना, उनको गिनना, पत्तों पर पडी ओस का देखना.....आपके सवेंदन शील और निर्मल मन का प्रतीक है. यह निर्मलता कुछ लोगों में भी बची रहे तो यह दुनियां निश्चित ही बच जायेगी.

    होली पर्व की घणी रामराम.

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  32. प्रकृति की सुन्दरता में ही जीवन की पूर्णता है. हैप्पी होली

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  33. परीक्षाओं और होली की आँख मिचौनी चलती रहती है।

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  34. प्रकृति न हो तो जीवन भी नही होगा ... इस बात को सदेव याद रखना चाहिए ... अच्छी संवेदनशील पोस्ट ...
    आपको और समस्त परिवार को होली की हार्दिक बधाई और मंगल कामनाएँ ....

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