शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

जो आपके लिए अनमोल हो , हो सकता है कि दूसरों के लिए उसका मोल कौड़ी भर भी ना हो !




श्री राधा दामोदर , जयपुर

तीन दिन की दीवाली की छुट्टियों के बाद दो और दिन शनिवार और रविवार होने के कारण उत्सवी सप्ताह दो और दिन अधिक खींच गया है , अच्छा है , राम -श्यामा के दो अतिरिक्त दिन मिल जाने के बहाने पुराने परिचितों और रिश्तेदारों से भी मुलाकात हो जाती है . उत्तर भारत में अभी छठ तक त्योहारों की धूम रहने वाली है , वही कार्तिक व्रतियों के लिए यह धूम धाम कार्तिक पूर्णिमा तक चलने वाली है .

राधा -दामोदर को समर्पित इस पवित्र कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में विभिन्न तिथियों ( कार्तिक षष्ठी , गोपाष्टमी , आमला नवमी ,वैकुण्ठ चतुर्दशी , भीष्म पंचक ) के अनुसार पर्व विशेष उत्साह पूर्वक मनाये जाते हैं . सुबह -सवेरे महिलाओं और पुरुषों द्वारा तारों की छाँव में किये जाने वाली स्नान -पूजा और भजन , गीतों से पूरा वातावरण पवित्र हो उठता है . कार्तिक मास में दामोदर भगवान् को रिझाने के लिए ग्रामीण आंचलिक बोलियों में गये जाने वाले गीतों की बात ही अनूठी है . इन ( पाँवड़ियाँ , रसोई , बुहारी , आरती आदि ) गीतों के मध्यम से वे श्रीकृष्ण को विभिन्न वस्त्रादि , भोजन , खडाऊ आदि भेट करती हैं . ऐसा ही एक लोक भजन/गीत " श्रीकृष्ण की पाँवड़ियाँ" मुझे बहुत प्रिय है . इन गीतों के मध्यम से ये स्त्रियाँ श्रीकृष्ण को अपने मध्य एक आम इंसान ही बना लेती हैं . योगेश्वर कृष्ण अपनी आम इंसानी लीलाओं के माध्यम से ही तो जन -जन से जुड़े हुए थे . वही बालसुलभ मिट्टी खाने , माखन मिश्री चुराने , माता को विभिन्न उलाहने देने , मित्रों के साथ चुहलबाजी जैसी कारस्तानियाँ ही उन्हें आम इंसान से इतना जोड़े रखती हैं कि वह उनके बीच का तू ही हो जाता है .

" श्रीकृष्ण की पाँवड़ियाँ"

म्हे थाने पूछा म्हारा श्री भगवान्
रंगी चंगी पाँवड़ियाँ कुण घाली थांके पाँव
म्हे तो गया था राधा खातन के द्वार
वे ही पहराई म्हाने पवरियाँ जी राज़
इतनी तो सुन राधा खातन के जाए
खातन बैठी खाट बिछाए
म्हे तो ए खातन थां स लड़बा ना आया
थे मोहा जी म्हारा श्री भगवान्
थार सरीखी म्हारी पाणी री पणिहार
कान्हा सरीखा म्हारा गायाँ रा गवाल
राधा खातान में हुई छे जो रार
उभा -उभा मुलक श्री भगवान्
सामी पगां थे लड़बा ना जाए
आछो ए राधा मांड्यो छे रार
आप कुवाया पाणी री पणिहार
म्हाने कुवाया थे गायां रा गवाल ...

इस गीत में वर्णित कथा इस प्रकार है कि एक दिन श्री भगवान् के चरणों में रंग -बिरंगी खडाऊ देख कर श्री राधा उनसे पूछती है कि आपके पैरों में इतनी सुन्दर खडाऊ कहाँ से आई . श्रीकृष्ण उनसे कहते हैं कि मैं खातन ( बढई की पत्नी ) के घर गया था , उसने ही मुझे इतनी सुन्दर खडाऊ भेंट की . इस पर जलती- भुनती राधा उस खातन से लड़ने पहुँच गयी कि वह इतनी सुन्दर खडाऊ भेंट कर श्रीकृष्ण को रिझाना /मोहना चाहती हैं . इस पर खातन उन्हें आड़े हाथों लेते हुए कहती है कि राधा ,तू अपने आपको क्या समझती है. तेरे जैसी तो मेरे पानी भरने वाली पनिहारनियाँ हैं , और तेरे कृष्ण जैसे मेरे गायों को चराने वाले गवाल , मैं क्यों उन्हें रिझाउँगी . राधा का गर्व चूर -चूर हो गया .
श्रीकृष्ण मुस्कुराते हुए कहते हैं ... " राधा , सामने होकर लड़ने गयी इसलिए ही खुद को साधारण पनिहारन और मुझे साधारण ग्वाला कहलाया ".

इस गीत में प्रेम और ईर्ष्या के कारण होने वाली तकरार तो है ही और सबसे बड़ी सीख यह है कि ईर्ष्या से ग्रस्त होकर जानबूझकर किसी से झगडा मोल लेने वाले का अपना मान- सम्मान तो कम होता ही है , बल्कि इसी कारण से वह अपने सबसे प्रिय व्यक्ति को भी अपमानित होने पर विवश करता है .

इस गीत के बहाने ही उस साधारण स्त्री ने उन आत्ममुग्ध , अपने और अपने परिवार , अपन रुतबे से गर्वोन्मत्त सभी स्त्री- पुरुषों को सन्देश दे दिया जो बेवजह ईर्ष्या से ग्रस्त होकर उन पर अधिकार ज़माने की चेष्टा में अपने सबसे प्रिय व्यक्तियों की जगहंसाई करवाते हैं . यह कत्तई आवशयक नहीं कि जो व्यक्ति आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण है , दूसरे के लिए भी उसका उतना ही महत्व हो .
जो आपके लिए अनमोल हो , हो सकता है कि दूसरों के लिए उसका मोल कौड़ी भर भी ना हो !

31 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा।

    वाकई कभी कभी इस तरह की बातें हो जाती हैं कि जिसे हम अपनी नजर में बहुत सम्माननीय मानते हैं वो दूसरों की नजर में साधारण ही रहता है।

    एक रोचक हालिया उदाहरण देखिये कि खेल मंत्री को यह नागवार गुजरा कि भारत में हो रहे अंतर्राष्ट्रीय स्तर के फार्मूला वन की रेस देखने उन्हें ग्रैंड प्रिक्स वालों ने नहीं बुलाया, उन्हें सम्मान नहीं दिया जबकि आयोजकों का मानना है कि - हमें उससे क्या......आप खेल मंत्री हैं तो रहिये....जरूरी थोड़ी है कि इसी ओहदे के चलते आपको बुलाया ही जाय।

    यानि फिर वही बात कि आप भले दूसरों की नजर में सम्माननीय हों, लेकिन हर कोई उस नजर से नहीं देखेगा और आप की रही सही साख पर आँच आयेगी सो अलग ।

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  2. यह कत्तई आवशयक नहीं कि जो व्यक्ति आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण है , दूसरे के लिए भी उसका उतना ही महत्व हो .
    काम की बात बहुत ही सारगर्भित पोस्ट आभार .......

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  3. पूरे महीने की उत्सव झांकि आपने प्रस्तुत कर दी है।
    हम भी गांव आ गये हैं, उत्सवों का आनन्द लेने।
    गीत बहुत ही रोचक और अर्थवान है।

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  4. सोच रहा हूँ ,परिप्रेक्ष्यों को जोड़ रहा हूँ पात्रों को पहचान रहा हूँ ..आप भी न :)

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  5. सब रहे इस जगत में उन्मुक्त, अधिकारों से परे।

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  6. हर चीज के प्रति हर किसी की सोच अपनी अपनी होती है ....इसलिए यह सिद्धांत सभी पर लागु होता है ...!

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  7. सुन्दर प्रविष्टि ! पोस्ट के अंतिम पैरे को विशेष समर्थन !

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  8. मानो तो मैं गंगा मां हूं, न मानो तो बहता पानी...

    जय हिंद...

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  9. ईर्ष्या ग्रस्तता अगर झगड़ा कराती है तो राधा वाला हाल होना है। अगर ईर्ष्या उत्कृष्ट काम करने को प्रेरित करती है, तो श्रेयस है!

    --- जैसे आपकी इस पोस्ट की उत्कृष्टता से हम ईर्ष्याग्रस्त हो बेहतर लिखे‍, तो श्रेय है!

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  10. इस गीत में प्रेम और ईर्ष्या के कारण होने वाली तकरार तो है ही और सबसे बड़ी सीख यह है कि ईर्ष्या से ग्रस्त होकर जानबूझकर किसी से झगडा मोल लेने वाले का अपना मान- सम्मान तो कम होता ही है , बल्कि इसी कारण से वह अपने सबसे प्रिय व्यक्ति को भी अपमानित होने पर विवश करता है

    गीत के मध्यम से सार्थक सन्देश दिया है .. अच्छी पोस्ट ..

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  11. इस मनोहारी गीत के माध्‍यम से आज आपने बहुत गहरी बात कह दी है। वाकयी में कई लोग अपने प्रियों का अनजाने में ही अपमान करा देते हैं। कार्तिक स्‍नान पर जाते लोगों का भी ध्‍यान आ गया जब गलता जी में भीड़ लगी रहती थी।

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  12. जो आपके लिए अनमोल हो , हो सकता है कि दूसरों के लिए उसका मोल कौड़ी भर भी ना हो ! …………बहुत ही रोचक प्रसंग के माध्यम से बहुत सुन्दर सीख दे डाली।

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  13. ईर्ष्या से ग्रस्त होकर जानबूझकर किसी से झगडा मोल लेने वाले का अपना मान- सम्मान तो कम होता ही है
    सचमुच अच्‍छी सीख है !!

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  14. कहते हैं न, अपनी इज्जत अपने हाथ...अच्छी सीख देती हुई सार्थक पोस्ट.

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  15. जो आपके लिए अनमोल हो , हो सकता है कि दूसरों के लिए उसका मोल कौड़ी भर भी ना हो !
    Bilkul sahee kaha!

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  16. बहुत कुछ कहती हुई सार्थक पोस्ट,आभार.

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  17. सुन्दर! आपको प्रणाम, कृष्ण को प्रणाम, खातन ( बढई की पत्नी ) को प्रणाम, श्री जू राधा रानी को प्रणाम! सुन्दर सीख इन सब के माध्यम से हुयी!

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  18. प्रकरण और गीत तो अच्छे लगे ही, आपकी पोस्ट की शिक्षा भी सटीक है। आभार!

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  19. the glass is half empty or half full

    all of us move in the same vicious circle

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  20. वाह ...बहुत बढि़या प्रस्‍तुति ।

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  21. जो आपके लिए अनमोल हो , हो सकता है कि दूसरों के लिए उसका मोल कौड़ी भर भी ना हो !

    हम्म...सच है...
    बढ़िया सीख देती पोस्ट.

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  22. कृष्ण राधा का प्रसंग और बढई की पत्नी की तो टुक बातें बहुत ही अच्छी लगीं .... कृष्ण ने सच ही कहा कि राधा ने ऐसा कहलवाया . राधा का डर बेवजह वहाँ तक खरी खोटी सुनाने गया ... फिर खुद तो गई ही , कृष्ण को भी ले डूबी ....

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  23. जो आपके लिए अनमोल हो , हो सकता है कि दूसरों के लिए उसका मोल कौड़ी भर भी ना हो !
    जितना सुंदर ना उतनी ही सारगर्भित एवं सार्थक अभिव्यक्ति जो की बहुत ही बढ़िया संदेश भी देती है पढ़कर अच्छा लगा।
    समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

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  24. .

    "सुन्दर शिक्षा देता आलेख " ...यह लिखकर टिप्पणी की इतिश्री नहीं करूंगी।

    राधा के मन में ईर्ष्या का जन्म लेना , श्रीकृष्ण के प्रति गहन प्रेम को दर्शाता है। अपनों का अधिकार जमाना प्रेम की सार्थकता को बढ़ाता है।

    राधा का सन्मुख जाकर लड़ना बहुत से तथ्यों को स्पष्ट कर गया। एक तो यह की वह अज्ञानी स्त्री जो श्री कृष्ण का इस प्रकार अपमान कर रही है वह भला क्या छीन सकेगी उन्हें उनकी राधा से।

    दुसरे राधा के प्रेम की गहनता कृष्ण के लिए तो नहीं , लेकिन हम आम जनों के लिए तो मिसाल ही है। जहाँ सच्चा प्रेम होता है वहाँ उसके छिन जाने का भर सदा लगा ही रहता है।

    उस अज्ञानी स्त्री के मनोभाव और अहंकार सामने नहीं आ सकते थे यदि राधा सन्मुख जाकर उसके समक्ष प्रश्न नहीं उपस्थित करती। अतः राधा का जाना , विवाद करना , प्रश्न करना और फिर नए तथ्यों का सामने आना ही इस प्रकरण की सार्थकता है।

    राधा हो अथवा गोपी, बढई हो अथवा हम और आप ........हम सभी मनुष्य हैं। परिस्थियों के दास होकर हम सभी जीवन के किसी न किसी पड़ाव पर राधा के समान ही आचरण करते हैं। कोई भी इससे मुक्त नहीं है।

    एक आम इंसान न ही श्रीकृष्ण की तरह बन सकता है , न ही मुरलीधर का अपमान कर सकता है।

    इस जगत में जो कुछ घटता है , उसमें विधि का विधान ही होता है और हम साधारण जन, उन नित्य प्रति घटने वाली घटनाओं से कुछ सीखते ही हैं।

    राधा हो या शबनम , उद्धव हो या पार्थ , हम सभी मनुष्य रूप में जन्में हैं और ईश्वरत्व को प्राप्त होने पहले "मनुष्य" रूप में ही समाप्त हो जायेंगे।

    हाँ , ईश्वर ने हमें एक ही वरदान दिया है , हर परिस्थिति से लड़ने का। वो है "विवेक"। हम साधारण मनुष्य उसी विवेक के अनुसार , संस्कारों और परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेते हैं । जिसमें सही होने और गलत होने की गुंजाइश ५०% बनी रहती है। लेकिन इस पर अपना कोई वश नहीं है । क्यूंकि हम मात्र मनुष्य हैं।

    राधा के निर्णय में परिलक्षित उसका प्रेम अनुकरणीय एवं वन्दनीय है।

    .

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  25. अपनी तुच्छ बुद्धि के अनुसार मैं मानती हूँ कि सच्चा प्रेम मुक्त करता है , बंधन नहीं बनता , वह अपने प्रिय से चुहल कर सकता है , मगर उसके अपमान का कारण नहीं बन सकता ! ईर्ष्या , अविश्वास , खो देने का भय यह सब किशोरावस्था में साथ चले तो समझ आता है , एक पूर्ण व्यक्तित्व में इन भावनाओं के होने का मतलब खुद अपने आप पर अविश्वास है !
    मुक्त करने का मतलब यह नहीं है कि कोई नरक में गिर रहा हो तो उसका रास्ता साफ़ कर दे , बल्कि साथ रहकर उसके खतरे से सावधान करे और रोके !
    विवेक के तर्क से मैं सहमति रखती हूँ कि हम सब अपने विवेक का प्रयोग करते हैं , मगर मानव होने के कारण इसमें भूल- चूक हो सकती है , इसलिए सब कुछ ईश्वर पर छोड़ कर निश्चिन्त ही रहा जाए, जो उसकी मर्जी !

    इस टिप्पणी में मैं उस दिव्या को फिर से देख रही हूँ जिसे मैं सिर्फ उसकी टिप्पणी के कारण जानती थी ...
    सस्नेह !

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  26. सच्चा प्रेम मुक्त करता है , बंधन नहीं बनता , वह अपने प्रिय से चुहल कर सकता है , मगर उसके अपमान का कारण नहीं बन सकता ! ईर्ष्या , अविश्वास , खो देने का भय यह सब किशोरावस्था में साथ चले तो समझ आता है , एक पूर्ण व्यक्तित्व में इन भावनाओं के होने का मतलब खुद अपने आप पर अविश्वास है !

    वाणी दी नमन आपकी सोच को .......

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