मंगलवार, 31 जनवरी 2012

नृत्य भी ईश्वर के रूबरू होने का एक ज़रिया है !


चौंसठ कलाओं में से एक प्रुमख कला है नृत्य -कला. विभिन्न हाव भाव के साथ एक लयबद्ध रूप में घूर्णन को ही नृत्य कहा जाता है . मानव के इतिहास जितना ही पुराना है
नृत्य का इतिहास .
नृत्य कला हमारी भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख अंग है . हमारे देश में शास्त्रीय और लोक नृत्यों की एक विशिष्ट परंपरा है. ईश्वर को रिझाने के लिए अथवा अपनी ख़ुशी या आभार प्रकट करने के लिए मंदिरों में नृत्य -भजन की क्या बात है. हमारे तो आराध्य भी स्वयं इस कला के प्रणेता हैं . नटराज शिव की ता- ता -थैया पर तो कई बार सृष्टि का आदि -अंत हुआ . कृष्ण का अपने चरणों द्वारा कालिया का मर्दन हो या राधा और गोपियों के संग रास , नृत्य ही तो था.
नृत्य को कब कला और इतिहास का विषय बनाया गया यह अलग बात है , मगर बच्चा जब चलना शुरू करता है तो उसकी ठुमक भी नृत्य का ही एक प्रतीक बन जाती है . ठुमक चलत रामचंद्र की स्वरलहरियों पर किसी भी बालक /बालिका को डगमगाते क़दमों से चलते देख नृत्य का ही आभास होता है . हाव भाव क्या कम होते हैं जैसे एक- एक कदम आसमान पर रखा जा रहा है . चलना सीखने वाले बच्चे के चेहरे का उल्लास नयनाभिराम दृश्य बन जाता है .
आज की युवा पीढ़ी अन्य विदेशी संस्कारों के साथ ही विदेशी नृत्य के प्रति अधिक उत्सुक दिखती है . विभिन्न टी वी शो में होने वाली नृत्य प्रतियोगिताएं से शास्त्रीय और लोक नृत्य लगभग गायब ही हैं . आज हिप हॉप , कंटेम्पररी , बैले , फ्यूजन का ही बोलबाला है . विभिन्न प्रॉप के सहारे जिम्नास्टिक -सा प्रदर्शन करती इन प्रतियोगिताएं को लेकर मेरी धारणा इतनी अच्छी नहीं रही कभी मगर इधर कुछ नृत्य प्रतियोगिताएं में विभिन्न कोरिओग्रफर्स की प्रस्तुति ने प्रभावित किया .
डी आई डी सीजन थ्री जैसे नृत्य कार्यक्रम ने अपनी कोरिओग्राफी और प्रतियोगियों के हाव- भाव , साहस और नृत्य के प्रति समर्पण ने बहुत चौंकाया . अपने भाव -सम्प्रेषण से इस दौर के युवा साबित करते हैं कि इस पीढ़ी में भावनाएं पूरी तरह मरी नहीं हैं . ऐसा ही एक दृश्य इस नृत्य प्रतियोगिया के दौरान नजर आया .

पिता को खो देने के मानसिक आघात से पीड़ित इस युवती अपने पिता को अपने आस पास ना पाने और आभासी रूप में पिता के साथ होने के बीच भावों का प्रदर्शन किसी भी इंसान को भावुक करने की सामर्थ्य रखता है .




इन नृत्य भंगिमाओं में संप्रेषित आध्यात्म जैसे स्वयं ईश्वर से साक्षात्कार करवाता है ....


22 टिप्‍पणियां:

  1. @ठुमक चलत रामचंद्र की स्वरलहरियों पर किसी भी बालक /बालिका को डगमगाते क़दमों से चलते देख नृत्य का ही आभास होता है. हाव भाव क्या कम होते हैं, जैसे एक- एक कदम आसमान पर रखा जा रहा है. चलना सीखने वाले बच्चे के चेहरे का उल्लास नयनाभिराम दृश्य बन जाता है.
    बहुत सुन्दर बात - शायद संसार के सुन्दरतम दृश्यों में से एक। सुन्दर विडियो और अच्छे शब्द। ईश्वर साहस दे!

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  2. नृत्य एक ऐसी विधा है जो बहुत ही कम हाव-भाव से मनोगत भाव प्रस्तुत करने में सक्षम है। भक्ति भी एक भाव है जो नृत्य के माध्यम से सम्प्रेषित किया जा सकता है।
    बहुत ही मनमोहक आलेख!! आभार

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  3. नृत्य में हाव भाव मन को बांधते हैं .. सुन्दर लेख ..

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  4. नृत्य किसी को भी अपने भाव के जरिये सम्मोहन की स्थिति में लाने की क्षमता रखता है ....
    इंसान खुद मृत्य के साथ मन में उछालें लेता है ...

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  5. नृत्य के साधना भी है और एक मेडिटेशन भी.बहुत सुन्दर आलेख.

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  6. आजकल कई नृत्य प्रस्तुतियों में परंपरागत नृत्य शैली और पश्चिमी नृत्य शैली का अद्भुत सम्मिश्रण देखने को मिलता है..जो सचमुच नयनाभिराम होता है.

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  7. नृत्य वो कला है जो मन को सुकून पहुँचती है फिर छाए आपका मन किसी बात से दुखी भी क्यूँ न हो मगर उन हालातों में भी यदि आप नृत्य का सहारा लें तो आपके मन को बहुत शांति मिलेगी क्यूंकि नृत्य मात्र नृत्य नहीं एक तरह की योग साधना भी है सुंदर आलेक समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  8. काश हमें भी आता नृत्य करना !
    बस एक उंगली के इशारे पर ही नाच कर रह जाते हैं . :)

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  9. नृत्य ईश्वर प्रदत्त कला है. इसीलिये शायद ईश्वर को समर्पित भी है. सुन्दर वीडियो दिखाने के लिये आभार.

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  10. इस सीरियल को आप लगता बहुत गहनता से देखती हैं। मेरी श्रीमती जी को भी बहुत पसंद है।
    पर यह समय मेरे प्रिय सीरियल कॉमेडी सर्कस से टकड़ाता है।
    आलेख में प्रस्तुत विचार बहुत ही सही है। ये कोरियोग्राफर बहुत प्रभावित करते हैं और इस सीरियल ने नृत्य को नई ऊंचाइयां प्रदान की है।

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  11. नृत्य भी ईश्वराधना का एक माध्यम है।
    नृत्य से ध्यान भी लगा करता है।
    शुभकामनाएं

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  12. नृत्य सच में मनोभावों को सामने रखने और औरों को बांधने की कला है...... सुंदर आलेख

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  13. वीडियो खुले नहीं सो 'टीप नहीं' !
    डीआईडी 1,2,3 बढ़िया !

    @ नृत्य ,
    कभी कलम / कभी ब्रश / कभी ध्वनि / कभी अंगों के माध्यम से अभिव्यक्त होना मनुष्य की अपनी अनिवार्यता है ! सुख / दुःख / विषाद / उल्लास और अन्य साधारण / असाधारण मनोभावों का प्राकट्य , इन्हीं उपकरणों का महती योगदान है ! कहना यह है कि आप मनुष्य की आंतरिकता के प्रकटीकरण के उपरान्त ही तय करते हैं कि यह कला है अथवा साहित्य ! मेरे तईं नृत्य को ईश्वरीयता से जोड़ें याकि नहीं यह प्रश्न आवश्यक नहीं है ! बल्कि नृत्य को मौलिक रूप से मनुष्य की देह भाषा रचित कला या साहित्य कहने में मुझे कोई हिचक नहीं होगी !
    आपने जिन नृत्य प्रसंगों का उल्लेख किया है उन सभी में मनुष्य अपनी देह के माध्यम से कुछ 'कहता' है ! ये 'कहन' भाषा की पहचान है अतः मैं दैहिक अभिव्यक्ति के रूप में नृत्य को पहले एक भाषाई अभिव्यक्ति कहना चाहूँगा फिर उसके वैशिष्ट्य के आधार पर उसे अलग अलग श्रेणी का नृत्य और सबसे अंत में कला या साहित्य की कोई कोटि !

    और अंततः यह कि आपने एक सुन्दर और महत्वपूर्ण विषय पर कलम चलाई है इसके लिए साधुवाद !

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  14. बहुत खूब अपनी टिप्पणी स्पैम में गई :)


    @ लय पूर्वक घूर्णन ,
    हर भाषा की तरह देह भाषा की भी अपनी व्याकरण है !

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  15. देखा था ... पर जिस ख़ूबसूरती से इस कठिन ख़ूबसूरती को तुमने प्रस्तुत किया है - वह प्रशंसनीय है . यहीं पर दृष्टि की बात आती है कि हम किस तरह किस बात को लेते हैं . नृत्य संगीत ... कोई भी कला हो , ईश्वर की निकटता है

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  16. वह एपिसोड देखा था, अत्यन्त भावुक कर गया...

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  17. मुझे बचपन में यह गलत नोशन था कि नृत्य "नचनिया-गवैय्या" जैसी छुद्र चीज है। यह प्रचलित मान्यता के आधार पर था।

    एक बार यामिनी कृष्णमूर्ति का भरतनाट्यम देखा और सारी धारणा ही आमूल बदल गयी।

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