सोमवार, 23 जुलाई 2012

लड़कियां इतनी खुश कैसे रह लेती !!


एक ज़माने में सभी लड़कियां खूबसूरत थी या नहीं ,रोती बहुत थी. चक्की चलाते आटा पिसती , तेज धूप में मीलों सिर पर पानी की गागर उठाये चलती , कपास कातती, खेतों से सिर पर मनों वजन उठाये उबड़ खाबड़ सड़क पर लड़खड़ा कर  चलते सहमकर बातें करती , हंसती मुस्कुराती यूँ कि जैसे रोती थी .
वक़्त से पहले झुकती कमरें , चेहरों की झुर्रियों वाली उन रोती हुई उदास स्त्रियों में से ही किसी एक ने रची एक कहानी , यह सोच कर कि उनकी बेटी को भी यूँ ही रोना ना पड़े ....
ठुड्डी पर दोनों हाथ टिकाये एक उदास बच्ची को उसकी माँ ने पास बुलाया , गुदगुदाया ...क्या हुआ ?
कुछ नहीं ...अनमनेपन से नहीं कहते हुए  उसकी आँखों के पीछे उदासियों का शुष्क समंदर लहराया ... 
हूँ ...माँ की आँखों में प्रश्न नहीं थे ! वह भी कभी एक ऐसी ही उदास बच्ची थी , उसकी नानी भी , दादी भी ....
मगर उस माँ को इन उदासियों को यही रोक देना था ...
तुम्हे पता है , मैं जब छोटी थी मेरे माँ ने मुझे एक कहानी सुनायी थी , तुम सुनोगी ...
हाँ हाँ, क्यों नहीं , मगर परियों वाली , सफ़ेद घोड़े के राजकुमार की कहानी तो तुम मुझे कई बार सुना चुकी ....अब लड़की की आँख में आकाशदीप झलका.
कहानी तो सुनायी मैंने , लेकिन कहानी कहते हुए माँ ने जो कहा , मैंने नहीं सुनाया ...तुम्हे पता है , जिस वक़्त परमात्मा ने सृष्टि रची , स्त्री को बनाया , उसी समय उस ने किसी को उसके लिए बनाया जो उसे हर समय प्रेम करता है , हर स्थिति में , उसके होने में , ना होने में ! अच्छे- बुरे होने में , सफल -असफल होने में ! वह उसे कभी मिलता है , कभी नहीं मिलता है , कभी दिखता है , कभी नहीं दिखता है ...मगर वह होता है या होती भी है !   
ऐसा हो सकता है मां , ऐसा होता है !! 
हाँ,होता है ना , वह हमेशा सफ़ेद घोड़े पर आने वाला राजकुमार ही नहीं होता , हाथ पकड़कर पुल पार कराने वाला पिता भी हो सकता है , चोटी खींच कर भाग जाने वाला भाई , रूठ कर मनाने वाली बहन , चिढाते रहने वाला मित्र , कोई भी हो सकता है ...वह दृश्य हो या अदृश्य , मगर वह होता जरुर है ! 
लड़की की आँखों के शुष्क समंदर में आशाओं का पानी उतर आया था ...
तुमने मुझे बताया , मगर सब उदास बच्चों को कैसे पता होगा ....
तुम उनको यही कहानी सुनाना !
लड़की ने इस कहानी के आगे सोचा ... कहानी सुनाने के साथ वह स्वयं भी तो वैसी ही हो जाए तो , जैसे कि किसी को ईश्वर ने किसी के लिए बनाया , उसे भी बनाया ...
आँचल के साए में घेर लेने वाली मां , अनुशासन में सुरक्षित  रहने की सीख देता पिता , उसकी पसंद की चीज बहुत खिझा कर देने वाला  वाला स्नेहिल भाई या बहन , सन्मार्ग को प्रेरित करता मित्र , कंटीली राहों पर क़दमों के नीचे फूल बिछाने वाला प्रेमी या हाथ पकड़कर हर मुश्किल में साथ रहने वाली प्रेमिका ....वह जितनी अपने करीब आती गयी वैसी ही होती गयी , जैसे कि ईश्वर ने उसे किसी के लिए बनाया . 
उस लड़की ने कहानी में सब कहा , जोड़ा और स्वयं भी वैसी हो गयी . जब वह लड़की बड़ी हुई , माँ हुई तब उसने अपनी बेटी को सुनायी  यही कहानी ... पीढ़ी दर पीढ़ी सब कहते सुनते गये , खुशहाल होते गये ....
वरना ऐसा कैसे हो सकता था कि लड़कियां इतनी खुश रह लेती !!!!

46 टिप्‍पणियां:

  1. " जब वह लड़की बड़ी हुई , माँ हुई तब उसने अपनी बेटी को सुनायी यही कहानी ... पीढ़ी दर पीढ़ी सब कहते सुनते गये , खुशहाल होते गये ...."

    इसके पीछे शायद यही पीढी दर पीढी की दी गई सीख है. शुभकामनाएं.

    रामराम

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  2. यही तो संस्कार और हमारी संस्कृति है ।

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  3. बहुत खूब | खुशियाँ भी क्रमशः चलती हैं | वाह |

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  4. satire likhae aur mahila adharit vishyo par to please neechae bataadae ki yae satire haen warna log usko aap ki soch samjhtey haen kyuki mahila kae prati unkae sahii vichaar wo haen jo aap ke satire me hotae haen

    put a disclaimer please so that people can understand this is a classic piece of satire because the comments show that they are taking it as a story of woman / happiness / society or how happy the woman always is

    ask anushumalaa wo bhukht bhogi haen !!!!!!!!

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  5. प्राचीन कथा को बहुत ही सुन्दर , प्रभावी पाजिटिव और आधुनिक आयाम दे दिया आपने -आनंद या पढ़ कर!
    जीवन में भरोसा जगे -ऐसी युक्तियों का सदैव स्वागत होना चाहिए!

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  6. अगर इसे कहानी मानूं तो आपकी काहानी पढ़ते वक़्त पाठक को हर पल ऐसा लगता है कि यह तो हमारे बीच की ही कोई कहानी है। आपने भारतीय परिवेश व मानसिकता को बड़े ख़ूबसूरत और संतुलित रूप से पन्ने पर उतारा है। सहज कथानक के साथ शिल्प के बोझ से मुक्त होकर कलम चलाने वाली सर्जक हैं आप। आपने स्त्री अस्मिता के मुद्दे को बड़ी शालीनता और गंभीरता से उठाया है। सहज और सरल जीवन जीने वाली स्त्रियों का स्वर (हंसी-खुशी) संयमित और कहीं न कहीं मौन रूप में है।

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  7. जीवन के रेगिस्तान में एक मीठे सोते सी खुशीयाँ

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  8. छोटी छोटी बात में आनन्द और बड़ी बातें सह जाने की कला कोई उनसे सीखे।

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  9. वह हमेशा सफ़ेद घोड़े पर आने वाला राजकुमार ही नहीं होता , हाथ पकड़कर पुल पार कराने वाला पिता भी हो सकता है , चोटी खींच कर भाग जाने वाला भाई , रूठ कर मनाने वाली बहन , चिढाते रहने वाला मित्र , कोई भी हो सकता है ...वह दृश्य हो या अदृश्य , मगर वह होता जरुर है !
    ..... यह सुकून , विश्वास से लबालब ख्वाब लड़कियों को हँसाते रहे और वे अपने बच्चों को जीती जागती हकीकत देती गईं और कुछ लेमनचूस से ख्वाब .... क्योंकि यात्रा में जब तबीयत घबराये तो ये लेमनचूस ताकत दे जाए .

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  10. हाँ,होता है ना , वह हमेशा सफ़ेद घोड़े पर आने वाला राजकुमार ही नहीं होता , हाथ पकड़कर पुल पार कराने वाला पिता भी हो सकता है , चोटी खींच कर भाग जाने वाला भाई , रूठ कर मनाने वाली बहन , चिढाते रहने वाला मित्र , कोई भी हो सकता है ...वह दृश्य हो या अदृश्य , मगर वह होता जरुर है !.......... bahut achhi baat kahi aapne ....ab khush rahne ka bahana bhi hona chahiye .........

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  11. जितना अधिक वो खुश रहती हैं उतना दर्द भी तो तभी सह लेती हैं।

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  12. एक सार्थक, सकारात्मक सन्देश प्रसारित करती बहुत ही सुन्दर सोद्देश्य कथा ! स्त्री विमर्श और उसके शारीरिक व मानसिक दोहन की सच्चाई को बड़ी कुशलता से उकेरा है ! यदि यह कहीं सेटायर भी है तो भी इस कथा से सही शिक्षा ग्रहण की जा सकती है ! इस प्रकार लेखन का ध्येय भी कहीं प्रतिफलित होता है ! इतनी अच्छी कथा सुनाने के लिए आभार आपका !

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  13. लड़के भी कहानी बुनते हैं। बस सुनाना नहीं आता उनको।

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  14. वाह ... लाजवाब प्रस्‍तुति..
    कल 25/07/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    '' हमें आप पर गर्व है कैप्टेन लक्ष्मी सहगल ''

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  15. बहुत अच्छा वाणी जी, हाँ यही होता है जो माँ देती है अपनी बेटी को, विचारों और सोच को एक नई दिशा - जिसके बल पर वह जीवन में हर लड़ाई लड़ती है और मुस्कराती है. अगर वास्तव में उसके जीवन में झांक कर देखे तो पायेंगे कि वह चाहे पढ़ी लिखी या फिर कामगार महिला. वक्त निकल कर हँस कर अपने परिवेश में सब कुछ भुला कर खुश रहती है और सारी थकन और तनाव दूसरों को बांटने में भूल जाती है.

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  16. वाह मज़ा आगया आपकी यह कहानी पढ़कर मोनिका जी की बात से सहमत हूँ कहीं न कहीं हर लड़की के अंदर ही रचा बसा है यह सब शायद इसी को संस्कार कहते हैं। बहुत ही उम्दा प्रस्तुति आभार...

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  17. जब खुद को हर रूप में ढाल लेने की क्षमता हो फिर तो खुशियाँ ही बिखरी होंगी चहुँ ओर

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  18. कितना कम चाहिए न लड़कियों को खुश रहने के लिए ....
    सुन्दर सकारात्मक तरीके से अपनी बात कही आपने.

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  19. कथा बहुत अच्छी है पर हमारी अपनी समझ से मेल नहीं खातीं ! हमारा ख्याल ये है कि पहले पहल हमने रिश्ते बनाये, वो सारे रिश्ते जो कथा में कहे आपने, और फिर अपने लिए एक / अनेक नग परमात्मा ! उसके बाद परमात्मा को हमारे रिश्तों का नियंता घोषित कर दिया ताकि हमारे अच्छे बुरे सारे कामों का ठीकरा उसके सिर पर फोड़ सकें !

    दरअसल लड़कियां खुश रहती हैं अपनी आशावादिता और अपनी सकारात्मक सोच के कारण से ! परन्तु हमारी घोषणानुसार परमात्मा इस सोच का नियंता भी हुआ ना, और उन बेहिसाब दुखों का भी जो इन खुश रह पाने वाली लड़कियों पर अज़ाब की तरह टूटते हैं हर पल हर लम्हा ! बहरहाल इसके आगे खुशदिली नियतिवाद है हर लड़की के वास्ते !


    अपनी बेढब सी टिप्पणी के लिए खेद सहित पर आज ना जाने क्यों यही लिखने का दिल किया ! आपकी कथा बड़ी अच्छी है ! शानदार है ! पर अपना ईमान कुछ डोला हुआ सा है !

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  20. पुरानी कथा को नए समय के अनुसार ढाल दिया आपने ...
    सकारात्मक पोस्ट ...

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  21. हर स्त्री का जीवन व्यक्त करती सुन्दर प्रस्तुति।

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  22. भागवान ने नारी को भी तो कुछ विशेष गुण दिए हैं जिनमे से एक यही है . सहिष्णुता भी है . प्रेम और त्याग भी . इतने गुणों के रहते भला खुश क्यों न रहेंगी .
    वैसे सच पूछा जाए तो पुरुष की भी सारी खुशियाँ नारी के इर्द गिर्द ही रहती हैं .

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  23. हम थोड़े से कन्फ्यूज हो गए...समझने की कोशिश कर रहे हैं...
    और जो हम समझे वही कह रहे हैं...बुरा मत मानियेगा..
    मतलब ये हुआ कि लडकियाँ ख़ुश होने के बहाने ढूंढ ही लेतीं हैं...
    सही भी है, मतलब तो है ख़ुश होने से, फिर वो बहाने से ही क्यों न हो..:):)
    का हम सही समझे ???

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  24. संरक्षक है स्त्री ...संस्कृति की ...मान की ..सम्मान की ...
    बहुत सुंदर आलेख ...!!
    शुभकामनायें वाणी जी ...

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  25. @जैसा कि अली जी ने कहा कि लड़कियां अपनी आशावादिता और सकारत्मक सोच के कारण ही खुश रहती हैं , अमूमन ऐसा ही है , वरना सामाजिक और प्राकृतिक परिस्थितियों में उनकी लिए यह बहुत मुश्किल है . इस परिप्रेक्ष्य में इसे सटायर मान लेने भी हर्ज़ नहीं !
    लड़कियां खुश रहती हैं क्योंकि वे खुश रहना जानती हैं ! और वे अपनी भावी पीढ़ी को खुश रहना , छोटी बातो में बड़ी खुशियाँ तलाशना सिखाती है , इस लिहाज़ में यह स्त्रियों की खुशियों की ही बात है !
    पाठक की स्वयं की इच्छा , वह किसका क्या अर्थ लगाये :)

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  26. लडकियाँ खुश भी रहती हैं
    खुद खुश रहना भी जानती है
    और सिखाना भी नहीं भूलती हैं
    लड़कियाँ सहनशील भी होती हैं
    लड़किया ही होती है
    जो वास्तव में परिवारों में
    घुलनशील भी होती हैं
    जहाँ से आती हैं वहां कि खुशी
    को भी कभी नहीं भूलती हैं
    जहाँ जाती है उस जगह की
    हवा फिर खुशियों से झूलती भी है !

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  27. लड़कियों के गर्व की कहानी भी पीढी दर पीढी सुनायी जाए तो वे हमेशा ही हंसेगी।

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  28. खुश रहती हर हाल में, करती मिलकर काम।
    इसीलिए तो पा लिया, नारी अपना नाम।।

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  29. लड़कियां खुश रहना जानती हैं ..... और इसी कारण शायद ज्यादा दुख पाती हैं । वो हर परिस्थिति में संतुलन बनाए रखने का प्रयास करती हैं , मन में न जाने क्या क्या चलता रहता है ॥खैर यह सब विषय से अलग है ...

    आपकी कहानी सकारात्मक सोच भरी है और नयी ऊर्जा देती है ।

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  30. ऐसे सामजिक माहोल में अपनी खुशियाँ चुरानी पड़ती हैं नारी आज तक यही तो करती आई है पर जब अपनी बच्चियों का भविष्य सोचती हैं आज कि नारियां तो खुशियों के सभी आयाम के रास्ते खोज कर समझाने में भी नहीं हिचकती जो सहा सो सहा अब और नहीं अब हम अपनी बच्चियों कि आँखों में आंसू कि एक बूँद भी बर्दाश्त नहीं करेंगी बहुत सुन्दर व्यंग्य छुपा है आपकी इस कहानी में बधाई आपको इस विषय पर लिखने के लिए

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  31. लड़कियां इतनी खुश कैसे रह लेती :) :)

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  32. वरना ऐसा कैसे हो सकता था कि लड़कियां इतनी खुश रह लेती !!!!

    ..करारा कटाक्ष है इस एक पंक्ति में।

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    1. samjhnae kae liyae abhaar maenae apnae kament mae yahii kehaa thaa ki yae vipreet vidhaa kaa seedha satyaar haen jo log sach samjhaegae aur taarif karagae

      wahii hua
      aakhri pankti kyaa yae kisi ne nahin ! daekhaa


      a classic piece of writing went waste according to me because people did not see the pun in it

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  33. नारी समाज की सेतु है,बंटती है हर बार
    फिर भी परिपूर्ण है,चाहे टुकड़े होय हजार,,,,,

    वाणी जी,,,,लाजबाब प्रस्तुति,,,,

    RECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,

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  34. गूढ बात! कहानी में लड़कियाँ ही नहीं, हम सब के लिये शिक्षा है। कुढते रहने से कुछ नहीं बदलता। स्वीकार करें, यथा सम्भव कर्म करें, और प्रसन्न रहें!

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    उत्तर
    1. यही सार है,
      सकारात्मक दृष्टि और सहज मनोवृति का विकास। आक्रोश विषाद में कुढते रहने से निराकरण भी तो नहीं।

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  35. Vani di...

    Aapki kahani achhi lagi....ladkiyan ya kahiye mahilayen parivar ki khushiyon ka sampark sootr hoti hain....kabhi aap udaas hon, hatash hon ya nirash hon...aapki maa, bahan, patni aur beti parivar ke sabse pahle sadasya hote hain, jo aapke sath sahyog karte hain, aapke man ka sara vishad har kar nayi sufoorti aur utsaah se sancharit karte hain.... Wo swyam khush rahte hain aur parivaar main khushiyon ka sanchar karti hain....akshrakshah satya kahani...

    Aaj kafi din baad blog ki taraf aaya hun...yahan aana aur yah kahani padhna achha laga...

    Shubhkamnaon sahit...

    Deepak Shukla..

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  36. .
    .
    .
    सुन्दर, अति सुन्दर !

    चलिये लड़कियों के बारे में तो आपने समझा दिया, पर लड़के कैसे इतना खुश रह लेते हैं... या शायद नहीं रहते ?... :)





    ...

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