शुक्रवार, 14 जून 2013

पहचाना सफ़र अनजाने लोग .

सुपर फास्ट एक्सप्रेस तेजी से दौड़ती जा रही है . चलो दिल्ली की बदबू से तो छुटकारा  मिला .  सिकंदराबाद वाया दिल्ली के लिए दिल्ली पहुंचे तो बदबू के मारे बुरा हाल था , कभी सोचा नहीं था की दिल्ली इतनी बदबूदार होगी ...बस स्टैंड से लेकर रेलवे स्टेशन तक बदबू का साम्राज्य .... गलती शायद यह रही की हम हजरत निजामुद्दीन स्टेशन जाने के लिए मेन बस स्टैंड से पहले ही रुक गए  ....सड़कों से जैसे बदबू की भापें उठ  रही थी . स्टेशन पर भी यही हाल .  जब ट्रेन दिल्ली से रवाना  हुई तब जाकर इस बदबू से छुटकारा मिला .  घंटों माथा भन्नाया रहा . देश का दिल कही जाने वाली राजधानी में आम आदमी को इस बदबू में रहना होता है ?? !!

रेल  के रवाना होने पर ही ध्यान जाता है कि सहयात्री कौन है . छुट्टियाँ होने के बावजूद कोच ज्यादा भरा नहीं था . कुछ सीट्स खाली नजर आ रही थी.  शायद इंदौर या भोपाल से दूसरे यात्रियों का रिजर्वेशन था . कोच में नजर दौडाई तो हर तरफ लगभग एक ही उम्र के बच्चे कोई लैपटॉप तो कोई मोबाइल पर आँखें और अंगुलियाँ गडाए . पता चला चंडीगढ़ की किसी इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र हैं जो छुट्टियों में घर लौट रहे हैं .

ये पीढ़ी अनोखी है . आस- पास की दुनिया से बेखबर  मगर मीलों और समन्दर पार की दुनिया से जुड़े हुए . एक तरह अच्छा ही है ज्यादा कायं कायं नहीं होगी.  इत्मीनान से उपन्यास पूरा होगा . 
मगर कहाँ .. अगर भाई बहन साथ में हो तो टांग खिंचाई और  सुपरफास्ट के स्लीपर कोच में हिचकोले के बीच  "लाइफ ऑफ़ पाई " नहीं पढ़ी जा सकेगी . यहाँ तो हलकी -फुलकी पत्रिकाएं या अखबार ही पलटे  जा सकते हैं।

सिर्फ एक ही छात्र ऐसा था जो चुपचाप अपना बैग  हाथ में लिए बैठा . थोड़ी हैरानी हुई.  ना मोबाइल हाथ में ना लैपटॉप बस ख़ामोशी से  क्रिकेट के दीवाने मेरे भाई भतीजे को सुन रहा था .
पूछ लिया मैंने - ये बच्चे तुम्हारे  साथ नहीं हैं ?

नहीं . हैं तो मेरी कॉलेज के .  हम सब जानते हैं एक दूसरे  को मगर ये जूनियर हैं .

इंजीनियरिंग के क्षेत्र में संभावनाओं पर आगे जानकारी देते हुए बताने लगा - 
बहुत कम्पटीशन है इस फील्ड में. आजकल कैंपस प्लेसमेंट होने का भी मतलब यह नहीं है कि  जॉब मिल गया . कई बार कॉल लेटर नहीं भी आते हैं . मेरे फादर का रेडीमेड गारमेंट्स का शोरुम है मगर मेरा इंटरेस्ट इंजीनियरिंग में है इसलिए उन्होंने मुझे रोका  नहीं .  माँ पापा की हेल्प करती है बिजनेस में . मैं आगे लाईफ में इसी लाईन में रिसर्च करना चाहता हूँ , आदि -आदि.  अपने भविष्य की योजना शेयर करता रहा .

मेरे हाथ में  उपन्यास   देखकर बोला - अच्छा नॉवेल है . इस पर फिल्म भी बन चुकी है . 
मैंने कहा - हाँ , इसकी समीक्षा मैंने पढ़ी है . मूवी की भी  मगर खुद पढना चाहती थी . अभी यहाँ कंसंट्रेट नहीं हो रहा है . 
बड़े स्नेह से कहने लगा  - आपको देखना है ये मूवी.   मेरे लैपटॉप पर है  तब मैंने ध्यान दिया था कि अपने साथियों से विपरीत इस बच्चे के हाथ में ना मोबाइल है  ना लैपटॉप है . भीड़ से अलग लगने वाले बच्चे . 
भाई -बहनों से पूछा तो सबने एक सुर में गर्दन ना में हिला दी .  मैंने कहा - रहने दो , मेरे बाल -बच्चे बोर होने लगेंगे .
 
 इतने लोगो के बीच आप से ही इतना घुल मिल कर बात करने वाले बच्चे से मिलना अच्छा लगा  . कॉर्नर की ऊपर की बर्थ पर एक बच्चे को अपने पर्स से माँ -पिता की तस्वीर निकाल कर देखते हुए चुपके से आँखों की कोर पोंछते भी देखा . कुछ देर बाद वही बच्चा किसी बुजुर्ग महिला को खिड़की से बाहर शहर के बारे में तेलगु में समझाते नजर आ गया .

पढाई के लिए घर से दूर रहने वाले ये बच्चे माता- पिता को मिस करते ही होंगे . जिस भी स्त्री में माँ की झलक दिखती हो , अपनापन हो जाता होगा .
 माँ होने का सुखद एहसास और अनजान बच्चों  के लिए भी माँ जैसी ही स्त्री होने का अहसास कई बार गर्व महसूस करवाता है . 
 हैदराबाद के चिल्कुर बालाजी  के बारे में बताते हुए कहने लगा  कि आप वहां जरुर जाना.   वहां मांगी हुई हर मन्नत पूरी होती है . परीक्षा से पहले और बाद में विद्यार्थियों का तांता लगा होता है वहां . मन्नत मांगते समय आवश्यक है कि ग्यारह परिक्रमा की जाए , मन ही मन प्रार्थना की जाए की मन्नत पूरी होने पर हम परिक्रमा पूर्ण करेंगे . 
उस बच्चे को याद करते हुए हैदराबाद पहुँचते ही मैंने सबसे पहले चिल्कुर बालाजी जाने का कार्यक्रम ही बनाया . देखकर अच्छा लगा कि भक्तों की भीड़ को नियंत्रित करने से लेकर प्रसाद बांटने तक मंदिर का पूरा प्रबंधन स्त्रियों के हाथों में है .  
ईश्वर हमारी और ऐसे जहीन बच्चों की सभी  सद्इच्छाये अवश्य  पूरी करें ! 

24 टिप्‍पणियां:

  1. एक ही यात्रा में कई आरम्भ और विराम मिलते हैं ....बहुत अच्छा लगा

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  2. पता नहीं क्यों ऐसी इच्छा हुई कि यह संस्मरण चिल्कुर बालाजी और वहां की प्रबंधक महिलाओं पर ज्यादा विस्तार पाता तो ...!

    फिर यह भी कि वहां जाने से पहले अगर आप हमें सचेत कर देतीं तो हम भी अपनी एक आध मन्नत आपके हाथों वहां तक पहुंचा देते...!

    अब देखना यह है कि दिल्ली की उस अ-झेल बदबू पे वहां के ब्लागर्स क्या प्रतिक्रिया देते हैं ...!

    उस दिन आपने वो उपन्यास पढ़ पाया या नहीं जानने की ख्वाहिश अधूरी बनी रही...!

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  3. सबकी आकांक्षायें ईश्वर पूरी करे।

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  4. रोचक शैली .... यात्राओं के ऐसे संस्मरण मन को सुकून पहुंचाते हैं ।

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  5. लोगों को लगता है कि‍ रेल में बात करना नि‍हायत ज़रूरी होता है

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  6. संस्कार और भावनाओं का गहन सम्बंध है। सम्वेदनाएं संस्कारी बनाती है तो संस्कार सम्वेदनशील!!
    वस्तुपरक यात्रा वृत्तांत!! बहुत बहुत आभार!!

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  7. ये कौन सी दिल्ली की बात कर रही हैं ,वाणी जी ...?हमारी दिल्ली इतनी गंदी तो हरगिज़ नहीं है ....!!
    जीवन यात्रा जैसा आपका आलेख .....सब तरह के लोग ....सब तरह का वातावरण अंततः चुनाव अपना अपना ....!!अच्छा लगा पढ़कर ....

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  8. माँ होने का सुखद एहसास और अनजान बच्चों के लिए भी माँ जैसी ही स्त्री होने का अहसास कई बार गर्व महसूस करवाता है .

    बहुत ही सुंदर, इसीलिये मां मां होती है.

    रामराम.

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  9. चिल्कुर बालाजी मंदिर का प्रसाद (पोस्ट) भी भक्त जनों को अगली पोस्ट में जरूर बांट दिजीयेगा.:) प्रसाद का इंतजार करेंगे.

    रामराम.

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  10. हर सफ़र कुछ बेहतरीन यादें दे जाता है...
    (इन यादों की तो श्रीन्खला लिखी जानी चाहिए )

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  11. अफ़सोस आपको बदबू का सामना करना पड़ा। कभी लुटियंस दिल्ली में घूमिये , सारे जहाँ को भूल जाएँगी। :)
    आज की युवा पीढ़ी हमसे बहुत अलग है , इसका अहसास अक्सर होता रहता है।

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  12. विस्तार से लिखने के चक्कर में कब से लिख ही नहीं पा रही थी , सोचा बेतरतीब सा ही कुछ लिख दिया जाए !

    दिल्ली में पराठों की गली , शीशगंज गुरुद्वारा तो कई बार जाना हुआ है , इस बार घूमने नहीं गए थे . सिर्फ बस स्टॉप से स्टेशन की दूरी तय की थी , ऐसी बदबू का सामना इस बार ही हुआ !
    @ दिल्ली वालों ....ये आपकी दिल्ली की ही बात है , मैं आम लोगों की बात कर रही हूँ , पॉश एरिया बेहतरीन होगा जरुर मगर कम से कम आम आदमी के आवागमन के प्रमुख केन्द्रों पर तो बदबू नहीं ही होनी चाहिए !! :)

    @ali ji कहाँ पढ़ पाई उपन्यास :(

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  13. भावुक कर गए वे पल -वात्सल्य कौन बच्चा नहीं चाहता

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  14. आजकल सब आत्म केन्द्रित हो रहे हैं .सामने के या बाजू के फ्लैट में कौन रह रहे है यह भी नहीं होता है शहरों में.
    latest post पिता
    LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !

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  15. भावपूर्ण आलेख ... ऐसा होता है .. जो भी अपनों से दूर रहता है उन्हें अपनों का एहसास, उनकी झलक अगर कहीं दिखाई दे तो सच्चा एहसास होता है ... फिर माँ की ज्खालक दिखाई दे तो बात ही क्या ...

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  16. दिल्ली में दोनों जहाँ हैं एक जगह जहाँ गंदगी है तो वहीँ दूसरी जगह ऐसी सफाई मिलेगी जैसी कहीं भी देखने में दुर्लभ होगी. वैसे दक्षिण के रेलवे स्टेशनों पर उत्तर के मुकाबिले काफी अधिक सफाई है.

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  17. बहुत सुंदर संस्मरण ! निजामुद्दीन स्टेशन के पास की गन्दगी और बदबू विश्व विख्यात हो चली है ! पता नहीं किस विभाग की जिम्मेदारी है इसे साफ़ करवाने की ! लेकिन निजामुद्दीन पहुँचने से आधा घंटे पहले से ही ट्रेन में बैठ पाना दूभर हो जाता है ! यात्रा में अक्सर बहुत दिलचस्प लोग मिल जाते हैं जिनसे मिल कर प्रसन्नता होती है !

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  18. संवेदना की कोई सीमा नहीं होती पर संवेदना उजागर जरुर होती है
    रोचक,पठनीय संस्मरण
    सादर

    आग्रह है
    पापा ---------



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  19. जीवन के कितने ही रंग लिए है ये यात्रा वृतांत ...... शुभकामनायें मेरी भी

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  20. You have very nicely dipicted true picture of different charatcters of young generation.
    Very well written.Best wishes.
    Please visit my blog"Unwarat.com"& give your valuable suggestions.
    Vinnie

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