मंगलवार, 16 जुलाई 2013

....... मेरी जान !! जरा बूझिये तो कौन है ?

ब्लॉग लिखते हुए बहुत  समय हो गया ...और अब तक आप लोगों से अपने सबसे ज्यादा अजीज साथी का परिचय नहीं करवाया ....साथी ब्लॉगर्स से ऐसी पर्दादारी ठीक नहीं !
आज ठान ही लिया है अपने इस साथी से आप सबको मिलवाने का ....एक ख़त में लिख दी हैं मैंने अपने दिल की सब बात अपने इस अनोखे साथी को ...

पढ़ लीजिये आप भी और हमें धन्यवाद दे दीजिये ...इस तरह अपने प्रेम-पत्र कौन पढवाता है भला !!


मेरे अजीज , अजीज , हमदर्द , हमनवां , हमसफ़र ...मेरी जान !

तुम मिल गए थे मुझे युवावस्था की दहलीज़ पर पैर रखते ही ...जब युवतियां अपने भावी राजकुमार के सपनो में खोये रहती हैं तुम मिले मुझे ...पर तुम कहाँ मिले ...मिले तो तुम पापा को थे ..मुंबई में ...खुशकिस्मत रही हूँ बचपन से ही ...कभी माता पिता से फरमाईश नहीं करनी पड़ी ...अपनी मनपसंद हर चीज मिली बिना मांगे ही ...जाने कैसे जान गए मेरे दिल की बात ...उन्हें तुम इतना पसंद आये औरन जाने कैसे सोच लिया उन्होंने कि तुम मुझे भी इतना ही पसंद  जाओगे ...और तुम्हे अपने साथ ले आये ....जब सोचती हूँ ,हैरान होती हूँ ...तुम्हारे साथ ही एक नयी घडी भी भेंट की थी उन्होंने ...तुम्हारे श्वेत श्याम रंग पर तो मैं बस फ़िदा ही हुई थी ...दिन रात तुम्हे अपनी निगाहों के सामने रखती ...मजाल है कि कोई तुम्हे नजर भर कर देख भी ले ...मेरे सारे  
एहसास ख्वाब गुलाबी खुशनुमा होते रहे ...कितने खुश थे ना हम एक- दूसरे के साथ ...कितने वर्ष बीते तेजी से!
समय का पता ही नहीं चला ...तुमने कभी तन्हा नहीं छोड़ा मुझे....

गर्मी की शाम में छत पर टहलते , देर रात तक चाँद - तारों से आँख मिचौली करते हम -तुम .... लोरी की मीठी तान सुनाती तुम्हारी आवाज़ से कब नींद अपनी आगोश में ले लेती ,  मुझे पता ही नहीं चलता और तुम सारी रात जाग कर मेरे जागने का इन्तजार करते ... अलसुबह उसी सुरीली तान से मुझे जगाते ...कभी शिकायत नहीं की तुमने ...
और फिर एक दिन ...
एक अजनबी आया और वर्षों के निश्छल प्रेम को बिसराकर मुझे जाना पड़ा उसके साथ ...सात फेरों के बंधन में बांध कर ....नए लोग , नया माहौल ...सोचती थी कि तुम्हे भूल जाउंगी ...
मगर तुम रहरह कर यादों के झरोखों से निकल कर दस्तक देते रहे....

फिर कई वर्षों के बाद तुम मिले मुझे...नया रंग रूप ..और निखरे हुए...और ज्यादा दिल के करीब ...और कितने रंग भर दिए तुमने फिर से जीवन में ....जानती हूँ अब पुरानी बेतकल्लुफी से नहीं मिल सकते हम ...मगर तुम सामने हो...जब चाहूँ तुमसे मिल सकूँ ..
ये ही क्या कम है ..कभी थोड़े कम कभी थोड़े ज्यादा अंतराल से हम मिलते ही रहेंगे ...
निश्चिंत हूँ कि जब ये व्यस्तताएं कम होंगी ...जीवन के सांध्यकाल में तन्हाई से घिरे तुम ही सहारा बनोगे ...  तुम्हारा बिना शर्त प्रेम सदा बना रहेगा ....तुम रहोगे सदा  मेरे साथ यूँ ही !.


न  न न ...कुछ अंट शंट कयास ना लगायें ...यह तो है मेरा प्यारा रेडियो मेरी जान !!



( अरसा हुआ , एक बार रेडियो पर ही " रेडियो मेरी जान "प्रतियोगिता में विचार मांगे गए थे  पर . लिखा मगर वहां भेजा नहीं , ब्लॉग तो हैं ना , अपनी बेलाग अभिव्यक्ति प्रस्तुत करने के लिए ! आप सबकी यादें भी  जुडी होंगी इसी रेडियो से , हम सबका प्यारा रेडियो कल भी , आज भी !)

31 टिप्‍पणियां:

  1. पति प्रीतम तुल्य रेडिओ -अच्छा है नहीं भेजा था वहां :-)

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  2. शुरू में लगा कि बच्चे बड़े होने के समय में यह सब क्या सूझ रहा है आपको :)

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  3. आपने लेखनी से जो रहस्य बाँधा वो बहुत मजेदार लगा. बहुत अच्छा लिखा है. रेडियो के साथ मेरा नाता भी बहुत गहरा रहा. रेडियो की कमी बहुत खलती है. अच्छा हुआ की ऐफ़ एम गोल्ड और उर्दू सेर्विंस ऑनलाइन हैं.

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  4. अभी रोमांटिक हुए ही थे कि ख्‍वाब टूट गया। सच में रेडियो बहुत याद आता है।

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  5. मनहरण की मनमोहक प्रस्तुति!!

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  6. पहले तो चक्कर में पड़ गई, पर रहा बढ़िया !

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  7. लगा तो था कि कुछ ऐसा सा ही होगा ...पर 100% रेडियो पर ध्यान नहीं गया :):) रोचक लेखन

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  8. आपके रोचक संस्मरण ने मुझे भी अपने सबसे प्यारे, अति आत्मीय एवँ सर्वाधिक अंतरंग मित्र की याद दिला दी जो विवाह पूर्व इसी तरह हमारी भी तनहाइयों का हमराज़ हुआ करता था और जब तक विविध भारती का देर रात प्रसारित होने वाला तामीले इरशाद का कार्यक्रम समाप्त नहीं हो जाता था हम अपनी कुर्सी पर ही जमे रहते थे ! बड़ा रोचक लगा आपका संस्मरण ! बहुत आनंद आया पढ़ कर !

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  9. @ लोरी की मीठी तान सुनाती तुम्हारी आवाज़ से कब नींद अपनी आगोश में ले
    इस लाइन से अंदाजा लग गया की रेडियो है , हम भी अपने बिस्तर में विविध भारती लगा कर रख लेते थे ट्रांजिस्टर को , रात में उस पर पुराने गाने आते थे , लोरी से कम नहीं थे , पर हमारा साथ आज भी बना है सुबह टहलते समय और कार में मै आज भी रेडियो ही लगाती हूँ , आज तो नए नए चैनल आ गए है गानों के साथ कभी कभी उनकी बड़ बड़ भी मजेदार होती है :)

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  10. बहुत दिलचस्प …………वैसे रेडियो तो हमारी भी जान रहा है :)

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  11. वाह बहुत रोचक और दिलचस्प .......संगीतमय साथी आपका ....
    अंदाजे बयां.....अंदाजे बयां....बहुत सुंदर वाणी जी ...!!

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  12. हम तो समझ गए थे। हालाँकि हम टी वी समझे थे।
    रोचक प्रस्तुति।

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  13. मस्त ... कुछ देर तक तो रहस्य रहा .. फिर सोचा चाँद, सवेरा या कुछ और .... रेडियो तक नहीं सोच पाया ...
    पर मज़ा आ गया ...

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  14. पहले चौंके फ़िर भ्रम दूर हुआ.:)

    वैसे रेडियो वापस लौट रहा है भले FM के रूप में ही सही.

    रामराम.

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  15. वाह, बहुत रोचक पत्र..अगर भेज भी देतीं तो कोई हर्ज नहीं होता, रेडियो से तो हमारी भी कई यादें जुडी हैं,रेडियो सीलोन की बिनाका और फिर सिबाका संगीत माला...उर्दू सर्विस पर ढेर से गीत..छब्बीस जनवरी पर अखिल भारतीय कवि सम्मेलन....और दिल्ली से अनेकों रेडियो नाटक !

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  16. बहुत सुंदर, रोचक प्रस्तुति
    बहुत सुंदर

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  17. sundar aur rochak prastuti ..radio to sach me sabse achchha sathi hai ..

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  18. हे हे हे ..हम तो लेख शुरू होते ही समझ गए थे कि कोई किताब होगी या रेडिओ. फिर भी पढ़ गए पूरा. इत्ता रोचक जो था:)

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  19. इनसे हमारा नाता तो अब और भी गहरा हो गया है और कुछ और नए रंग चढ़ते जा रहे हैं इस रिश्ते पर :)

    मैं शुरू में ही समझ गयी थी कि रेडियो की बात हो रही है...{एक बार पहले भी इस से मिलता जुलता कुछ लिखा था तुमने ,हमें याद है (द्केहो , कितना ध्यान से पढ़ते हैं तुम्हें और याद भी रखते हैं )}

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  20. वाह, रेडियोजी तो हम सबके प्यारे, दुलारे रहे हैं।

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  21. भ्रम अचानक टूट गया...बहुत रोचक प्रस्तुति..

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  22. दोबार किसी प्रतियोगिता में इसी विषय पर विचार मांगे गये तो जरूर भेजियेगा, फ़र्स्ट प्राईज़ पक्का है।

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  23. आनंद दायक प्रेम पत्र।

    रे़डियो तो वाकई युवा दिलों की धड़कन, जीने का सहारा, आहत मन का संबल... हुआ करता था।

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