मंगलवार, 12 सितंबर 2017

सोचिये उन लोगों के बारे में भी जिनकी कमाई का जरिया सिर्फ पंडिताई है..... 😊

पंडित जो कि अपनी आजीविका मंदिरों में पूजा पाठ कर मिलने वाली दान दक्षिणा से ही चलाते रहे थे.  उनका आदर सत्कार कर विभिन्न अवसरों पर भोजन की व्यवस्था समाज करता रहा...
अभी भी बहुत से पंडित ऐसे हैं जो सिर्फ मंदिरों में साफ सफाई पूजा पाठ कर अथवा विभिन्न #यजमानों के यहाँ पूजादि कर अपनी आजीविका चलाते हैं. 
क्या सिर्फ भोजन की व्यवस्था हो जाने से व्यक्ति की सभी  जरुरतें पूरी हो जाती हैं...शिक्षा, चिकित्सा, मनोरंजन , मकान आदि के लिए धन की आवश्यकता उन पंडितों को भी तो होती होगी कि नहीं...जिनके लिए
यह उनका कार्य है /#रोजगार है... हम इनकी बुराई तो खूब कर लेते हैं मगर यह नहीं सोचते कि हर व्यक्ति अपने रोजगार में ज्यादा से ज्यादा कमाना चाहता है....
क्या व्यवसाय करने वाले अपने #व्यवसाय को बढ़ाने के लिए विभिन्न उपाय नहीं करते....
शिक्षा, चिकित्सा आदि सेवा वाले क्षेत्र में भी क्या प्रशिक्षित लोग सिर्फ सेवा ही करते हैं. क्या वे सब कार्य मुफ्त में करते हैं....??
जिस तरह इन सभी क्षेत्रों में व्यवसायी अथवा सेवक मोल भाव करते हैं उसी तरह पंडित भी करते हैं तो सिर्फ उन्हें ही कोसा जाना क्या उचित है? जिस तरह बाकी स्थानों पर हम जाँच पड़ताल कर कम कीमत पर उचित परिणाम देने वाले लोगों को चुनते हैं उसी प्रकार यह आपकी सुविधा है कि आप भी योग्य पंडितों को ही चुनें यदि आपको उनमें विश्वास है....वरना उन्हें उनके हाल पर छोड़ें...
किसी भी क्षेत्र में योग्य को चुनना हमारी जिम्मेदारी है जो सिर्फ पानी पी -पी कर कोसने से पूरी नहीं होती....यह कोई आवश्यक सेवा भी नहीं है कि पंडितों के पास जाना अनिवार्य ही हो जैसे आप चिकित्सक, व्यापारी, लुहार, सुनार, गौ पालक, किसान के पास न जायें तो आपका कार्य बाधित होता है. वैसा पंडित के पास न जाने से नहीं होता... फिर काहे की मगजमारी....
जब उन पर विश्वास नहीं तो उनके पास जाना क्यों....
और यदि आप #पूजा पाठ वगैरह में विश्वास रखते हैं तो भी  आपके पास योग्य को चुनने की पूरी शक्ति है....यदि आप मंदिर नहीं जाते, पंडितों के पास नहीं जाते तो आपको कोई मजबूर नहीं कर सकता .... यह कोई सरकारी कार्य तो है नहीं जहाँ आपको मजबूरन उन लोगों को चुनना है जो तय किये गये कार्य के योग्य ही नहीं है...और न कोई अत्यावश्यक सेवा है जो आपको लेनी ही है....उनकी अयोग्यता से कुछ बिगाड़ भी नहीं होने वाला है !
अयोग्य पंडितों के लिए तो हमने #पोंगा पंडित नाम ढ़ूंढ़ रखा है मगर अन्य क्षेत्रों के अयोग्यों को भी कोई नाम दे कर देखें...

मैं स्वयं नवरात्रि में झुग्गी झोपड़ी में रहने वाली कन्याओं को ही भोजन कराती हूँ और कोई मुझे न ऐसा करने से रोकता है न इस पर सवाल उठा सकता है...
तो क्या मुझे उन कन्याओं की भर्तस्ना करने का अधिकार मिल जाता है जो खाते पीते घरों की हैं जिन्हें हममें से ही कुछ लोग बड़े आदर सत्कार से भोजन करवाते है, दक्षिणा या विभिन्न उपहार देते हैं....
सोचिये न.....
और अगली बार किसी व्यक्ति के रोजगार  को गरियाने से पहले एक बार फिर से सोचिये...जरुर सोचिये उन लोगों के बारे में भी जिनकी कमाई का जरिया सिर्फ पंडिताई है..... 😊

9 टिप्‍पणियां:

  1. हाँ, हमारे यहां तो कुलगुरु होते हैं,घर में जितने पूजा पाठ होते हैं वे ही करवाते हैं,उन्हें हम दक्षिणा स्वेच्छा से देते हैं अधिकतम अपनी सामर्थ्य के अनुसार और न्यूनतम निर्धारित है ,फिर भी असमर्थ के यहां पूजा पाठ न करावे ऐसा नहीं होता ...

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    1. और क्या ....
      भगवान के दीपक के लिए सस्ता वाला घी लिया जाता है ,वे पंडितों को दान में क्या देते हैं समझा जा सकता है...अच्छे भोजन के सिवा , वह भी अच्छा इसलिए होता है कि उन्हें भी खाना होता है...

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  2. आपकी लिखी रचना  "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 20 सितंबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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