शनिवार, 13 मार्च 2010

दोस्त बनकर गले लगाता है वही ......पीठ पर खंजर भी लगाता है वही

दोस्त बनकर गले लगाता है वही
पीठ पर खंजर भी लगाता है वही

वफ़ा की रोज नयी कसमे उठाता है
करवट बदलते ही बदल जाता है वही ....

बंद पलकों में सजे है ख्वाब जिसके लिए
चुपके से ख्वाब चुराता भी है वही .....

तोड़कर अनकहे बेनामी रिश्तों की गिरह
मेरी मायूसी पर मुस्कुराता भी है वही .....

बेवफाई से उसकी अनजान नहीं हरगिज़
मगर यह रस्म भी तो निभाता है वही ....

मुतमईन ना कैसे हो अंदाज- - गुफ्तगू से
झूठ पर सच का लिबास चढ़ाता है वही ....

लबों पर जिसके उदास मुस्कराहट तक मंजूर नहीं
झूठी सिसकियाँ लेकर जार- ज़ार रुलाता है वही ....

साए में जिसके हमें महफूज़ समझता है ये जहाँ
हर सुकून हमारा दिल से मिटाता भी है वही

मेरे लफ़्ज़ों से शिकायत बहुत है जिसको
अपने गीतों में उन्हें सजाता भी तो है वही ....


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दोस्त बनकर गले लगाता है वही
पीठ पर खंजर भी लगाता है वही....

वफा की जो रोज़ कसमें खाता है
करवटों संग बदल जाता है वही.....
बंद पलकों में हैं ख्‍वाब जिसके सजे
खुले आम लूट ले जाता है वही.....
तोड़ गया है जो इक रिश्‍ते की गिरह
आह किस अदा से मुस्‍कुराता है वही....






18 टिप्‍पणियां:

  1. दोस्त बनकर गले लगाता है वही
    पीठ पर खंजर भी लगाता है वही
    भावपूर्ण गज़ल

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  2. ग़ज़ल दिल को छू गई।
    बेहद पसंद आई।

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  3. वाह कितनी सुदर गजल -सच्ची -शाबाश !
    और हे ये महफूज शब्द का कोई और सामान भावों का विकल्प नहीं हो सकता क्या ?
    मुझे महफूज मियाँ याद आ जाते हैं और दिमाग गलत निहितार्थों की और तेजी से भाग चलता है
    कितनी जबर्दस्ती से उस पर काबू करता हूँ की क्या बताऊँ आपको ...
    बस अब तो आप से ही कह सकता हूँ ...

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  4. "सीने में जो खंजर उतरा मेरे
    हम समझे किसी दुश्मन की कारस्तानी है "

    अब देख कल लिखती हूँ मैं भी ....हा हा हा
    पतरकी ...बहुत खूब लिख दिया तूने....बहुत ही बढ़िया....दिल खुश कर दिया तूने...
    आज हम कुछ भी नहीं लिख पाए जाने क्यूँ दिमाग ने काम नहीं किया ....

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  5. bahut khoobsurat gazel he..ek ek sher kamaal ka hai..her ehsas dil ko chhu gaya...

    arvind ji ki tareh me bhi gaflat me aa jati hu ek baar to (ha.ha.ha.)

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  6. लिखने लायक, पढ़ने लायक, सुनने लायक, गाने लायक,
    ...और संजो कर रखने लायक...
    बहुत सुन्दर धरोहर की तरह....अच्छी प्रस्तुति.


    लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से
    http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_3507.html

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  7. बहुत भावप्रवण रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  8. dard ko sahanshilta ke aawran se sanjidgi se nikala hai......jahan khud ko surakshit samajhta hai dil , tufaan wahin uthte hain....

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  9. अर्विंद्र जी की टिपण्णी से मिलते जुलते विचार भी मेरे इस छोटे से दिमाग मै घुम रहे हे, यानि उन की टिपण्णी को ही मेरी टिपण्णी समझे

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  10. बहुत अच्छी गज़ल ...दोस्त ही तो पीछे से बार करते हैं और उनकी चोट भी गहरी लगती है.....सुन्दर भाव..

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  11. "मुतमईन ना कैसे हो अंदाज-ए-गुफ्तगू से
    झूठ पर सच का लिबास चढ़ाता है वही ।"

    खूब शानदार और मौजूँ लाइनें ! खयाल फरमायें-
    "वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से,
    मैं ऐतबार ना करता तो और क्या करता !"

    गज़लों का यहाँ आना सुकून देता है । आभार ।

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  12. आज हम जैसे जिगर वाले कहां,
    ज़ख्म खाया है दिल पे तब हुए हैं जवां,
    तीर बन जाए दोस्तों की नज़र,
    या बने खंजर दुश्मनों की ज़ुबां
    आज तो दुनिया नहीं या हम नहीं,
    कोई आए, कहीं से, हम किसी से कम नहीं, कम नहीं...

    जय हिंद...

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  13. बहुत बढिया गज़ल है.
    प्रेम चन्द गान्धी को यहा पढना सुखद रहा.

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  14. हर दिन के बाद रात भी लाता है वही
    सुबह जगा कर रात सुलाता भी है वही

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