दुष्टों का स्वभाव .....
सुनहु असंतंह के सुभाऊ। भूलेहु संगति करीअ न काहू ॥
तिन्ह कर संग सदा दुखदाई । जिमी कपिलाही घालइ हरहाई ॥
तिन्ह कर संग सदा दुखदाई । जिमी कपिलाही घालइ हरहाई ॥
अब दुष्टों का स्वभाव सुनो , कभी भूलकर भी उनकी संगती नहीं करनी चाहिए । उनका संग सदा दुःख देनेवाला होता है जैसे हरहाई गाय कपिला गाय को अपने संग से नष्ट कर डालती है .....
खलन्ह ह्रदय अति ताप बिसेषी । जरहिं सदा पर संपत्ति देखी ॥
जहँ कहूँ निंदा सुनहि पराई । हरषहिं मनहूँ परी निधि पाई ॥
जहँ कहूँ निंदा सुनहि पराई । हरषहिं मनहूँ परी निधि पाई ॥
दुष्टों के ह्रदय में बहुत अधिंक संताप होता है । वे परायी संपत्ति (सुख ) देखकर सदा जलते रहते हैं । वे जहाँ कहीं दूसरों की निंदा सुन पाते हैं , वहां ऐसे हर्षित होते हैं मानो रास्ते में पढ़ी निधि (खजाना ) पा लिया हो ।
काम क्रोध मद लोभ परायन । निर्दय कपटी कुटिल मलायन ॥
बयरु अकारन सब काहू सों । जो कर हित अनहित ताहू सों ॥
बयरु अकारन सब काहू सों । जो कर हित अनहित ताहू सों ॥
वे काम , क्रोध, मद और लोभ के परायण तथा निर्दयी, कपटी , कुटिल और पापों के घट होते हैं । वे बिना कारण ही सब किसी से बैर किया करते हैं । जो भलाई करता है उसके साथ भी बुराई करते हैं ।
झूठई लेना झूठई देना । झूठई भोजन झूठई चबेना ॥
बोलहिं मधुर बचन जिमी मोरा। खाई महा अहि ह्रदय कठोर ॥
बोलहिं मधुर बचन जिमी मोरा। खाई महा अहि ह्रदय कठोर ॥
उनका झूठा ही लेना और झूठा ही देना होता है । झूठा ही भोजन होता है और झूठा ही चबेना होता है (अर्थात वे लेन - देन के व्यवहार में झूठ का आश्रय लेकर दूसरों का हक़ मारते हैं और चबेना चबाकर माल खाने की बात करते हैं ) जैसे मोर (बहुत मीठा बोलता है परन्तु ) का ह्रदय ऐसा कठोर होता है कि वह महान विषैले सर्पों को भी खा जाता है । वैसे ही दुष्ट भी ऊपर से मीठे बचन बोलते हैं परन्तु ह्रदय के बड़े निर्दयी होते हैं ।
पर द्रोही पर दार रत पर धन पर अपबाद ।
ते नर पांवर पापमय देह धरे मनुजाद ॥
ते नर पांवर पापमय देह धरे मनुजाद ॥
वे दूसरों से द्रोह करते हैं , और पराये धन, परायी स्त्री और पराई निंदा में आसक्त रहते हैं । वे पामर और पापमय मनुष्य नर शरीर में धारण किये हुए राक्षस ही हैं ।
लोभई ओढ़न लोभई डासन । सिस्नोदर पर जमपुर त्रासन्न ॥
काहू की जों सुनहिं बड़ाई। स्वास लेहीं जनू जुडी आई ॥
काहू की जों सुनहिं बड़ाई। स्वास लेहीं जनू जुडी आई ॥
लोभ ही उनका ओढना और बिचौना होता है । वे पशुओं के सामान होते हैं , उन्हें यमपुर का भय नहीं लगता । यदि किसी की बडाई सुन लेते हैं तो ऐसी सांस लेते हैं , मनो उन्हें जूडी आ गयी हो ...
जब कहूँ के देखहिं बिपति। सुखी भये मनहूँ जग नृपति ॥
स्वारथ रत परिवार बिरोधी । लम्पट काम लोभ अति क्रोधी ॥
स्वारथ रत परिवार बिरोधी । लम्पट काम लोभ अति क्रोधी ॥
और जब किसी को विपत्ति में देखते हैं , तब ऐसे सुखी होते हैं मानो जगत भर के राजा हो गए हों । वे स्वार्थपरायण परिवार वालों के विरोधी, काम और लोभ के कारण लम्पट और अत्यंत क्रोधी होते हैं ।
माता पिता गुरु विप्र न मानहीं । आपु गए अरु घालहि आनहि ॥
करहिं मोह बस द्रोह परावा । संत संग हरी कथा न भावा ॥
करहिं मोह बस द्रोह परावा । संत संग हरी कथा न भावा ॥
वे माता पिता , गुरु किसी की भी नहीं मानते। आप तो नष्ट हुए ही रहते हैं , साथ ही अपने संग से दूसरों को भी नष्ट करते रहते हैं । मोहवश दूसरों से द्रोह करते हैं। उन्हें न संतों का संग अच्छा लगता है , न भगवान की कथा सुहाती है ।
अवगुन सिन्धु मंदमति कामी । बेद बिदूषक परधन स्वामी ॥
बिप्र द्रोह पर द्रोह बिसेषा । दंभ कपट जिय धरे सुबेषा ॥
बिप्र द्रोह पर द्रोह बिसेषा । दंभ कपट जिय धरे सुबेषा ॥
वे अवगुणों के समुद्र , मंदबुद्धि कामी और पराये धन को लूटने वाले होते हैं । वे दूसरों से द्रोह रखते हैं। उनके ह्रदय में कपट और दंभ भरा होता है परन्तु वे सुन्दर वेश धारण किये रहते हैं ...
************************************************************************************
रामचरित मानस तो अद्भुत है. ऐसे ही तमाम मोती भरे पड़े हैं उसमें. आप ढूँढ़कर ऐसे ही मोती ले आयीं हैं. दुष्टों का ऐसा वर्णन पढ़कर आनंद आ गया.
जवाब देंहटाएंआज की पोस्ट से मन गद-गद हो गया .
जवाब देंहटाएंगोस्वामी जी का श्री राम चरित मानस तो ऐसे न जाने कितने अमूल्य रत्नों से भरा है ,इस पोस्ट हेतु बहुत धन्यवाद .
आपने गंभीर पाठिका की तरह रामायण पढ़ कर आज दुष्टों की विशेषता से परिचय करा दिया है....आत्म अवलोकन के लिए अच्छी पोस्ट....बधाई
जवाब देंहटाएंaap sahi kahti hain...
जवाब देंहटाएंdusht mahaan hain...
सुंदर, सत्य और सार्थक विचार....प्रस्तुति के लिए आभार
जवाब देंहटाएंवाणी,
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा देखकर कि आपने बहुत अच्छे तरीके से रामायण का पाठ किया...न सिर्फ़ पढ़ा उसे गुना और आत्मसात किया...और जो दुष्ट (पुराण) आप लायी हैं...राम चरित मानस से ...काफी मदद करेगी ऐसे लोगों को पहचानने में....स्वयं में भी अगर कोई कमी होगी तो उसे हम दूर करने कि कोशिश करेंगे...बहुत ही उपयोगी जानकारी...
मन बहुत हर्षित हुआ आज कि पोस्ट पढ़ कर सच्ची....
बहुत दिनों बाद नज़र आयीं हैं आप ...और आपके आते ही उजाला हो गया...
आभारी हूँ (भारी नहीं हूँ)...
हाँ नहीं तो...!! :)
कितना व्यक्तिगत अनुभव था महाकवि को इन/ऐसे दुष्टों का !
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा पढ़कर ,
कविताओं की टाइपिंग में बड़ी गलतियाँ दिखीं , न होतीं तो बेहतर होता ! आभार !
कुछ दोहे आज ही सुबह पढे थे ……………………।बहुत बढिया लिखा है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पोस्ट है. बहुत धन्यवाद आपका.
जवाब देंहटाएंहमारी संस्कृति में ही शान्ति निहित है. बस अनुसरण करने की जरुरत है.
बहुत ही अच्छा लगा,रामायण पाठ...सच सबकुछ तो हमारे पुरातन कवि सीखा ही गए हैं...हम ही आँखें मूंदे रहते हैं...सच्चाई से उनका अवलोकन करें तो हमें ही लाभ होगा...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सुन्दर मोती चुन कर लाई हो.....ऐसे ही हमें परिचित कराती रहो....इन उत्कृष्ट रचनाओं से ....हम अपनी व्यस्ततम(या फिर आलस्यवश) जिंदगी में जिनका रसास्वादन करने से चूक जाते हैं...बहुत बहुत शुक्रिया
ये तो आपने एक तरह का सार दिया है संस्कारों का , दुष्ट यानि शैतान का ज्ञान ....... अलग प्रयास
जवाब देंहटाएंआह आज तो आपने न जाने कितने बरसों का छूटा काम पूरा करा दिया...इतने अच्छे प्रेरणा प्रद दोहे..बहुत अच्छा लगा पढ़कर.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, आपने रामायण रूपी समुद्र से मोती चुनकर लोक कल्याणार्थ प्रस्तुत किये. साधुवाद.
जवाब देंहटाएंरामराम.
हां, तुलसी ने यह प्रसंग बहुत मन से लिखा है।
जवाब देंहटाएंपर यह भी है कि क्या मन से नहीं लिखा?!
bahut achhi dushto ki vykhya .?iske phle bhi maine tippni post ki hai kya koi samsya hai
जवाब देंहटाएंbadhiya gyanvardhak post....sochenge.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लगी आज की यह बाते, अब देखता हुं मुझ मै कितने चिंह है दुष्टो के, ओर फ़िर उन्हे दुर करता हूं, सच मै आप ने आईना दिखा दिया.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
क्या कहूँ....आपकी अभिरुचि,चिंतन और अभिव्यक्ति मुझे स्वतः ही आपके सम्मुख नतमस्तक कर देती है और ह्रदय से अपने आप ही आपके लिए मान और शुभकामना निकलती है....
जवाब देंहटाएंप्रभु सदा आपपर अपनी कृपादृष्टि और प्रेम बनाये रखें...आपके चित्त को सदा अपने में रमाये रखें...
आदरणीय बहन ..भारत की श्रेष्ठ वाणी को आप विश्व के सामने प्रस्तुत कर रही है..समस्त भारतीय परम्परा की और से मैं आपका धन्यवाद करता हूँ
जवाब देंहटाएंवाह अद्भुत -स्नेहाशीष !
जवाब देंहटाएंशीर्षक लिखा है.. 'दुष्ट महान हैं'..और उनकी दुष्टता का बखान कर दिया है नीचे !
जवाब देंहटाएंशीर्षक के सौन्दर्य पर ही ठहरूँगा ..! खेचरी मुद्रा है यह ! दुष्ट महान हैं.. कह कर कैसे सुन्दर भेद के बाण चला दिए हैं आपने ! खुल रही है उनकी कलई..पर दुष्ट आपका शीर्षक देखकर तो मुग्ध हुआ बैठा होगा ! बाबा की शैली है यह ! मधु और दंश की शैली !
यह तरीका है अदृश्य उपहास का ! यह सम्मुख प्रहार तो नहीं करता पर शत्रु को निरस्त्र कर देता है !
यह हवा भरना है, फिर काँटा चुभा देना है ! मतलब ..पहले वायु विकार, फिर खट्टी डकार ! मतलब साफ है..आप कहती हैं, 'दुष्ट महान हैं', ध्वनि आती है..'महान दुष्ट हैं'!
बाबा को नमन !