रविवार, 13 जून 2010

अम्माजी का लचीलापन (लघु कथा )





अम्माजी की तीखी आवाज़ घर से सटे छोटे से किचन गार्डेन से पार होती हुई पूजा करती हुए शुभी के कानों तक पहुंची । कल ही गाँव से आई है अम्माजी और आज सुबह सुबह पूरे घर की व्यवस्थाओं का जायजा लेते हुए किचन गार्डेन तक पहुँच गयी । करीने से बनी हुई क्यारियों में ताजा हरी पालक , भिन्डी , हरी मिर्च , बैंगन , टमाटर आदि के छोटे -छोटे कच्चे हरियाये पौधों से उल्लासित अम्माजी गाँव की खुशबू को जी लेती हैं । अपने बेटे गिरीश के लिए शुभी को पसंद करने के निर्णय पर नाज होता है उन्हें । परम्पराओं और आधुनिकता का मेल है शुभी। घर को खूब अच्छी तरह संभाल रखा है । मन ही मन खुश होती हुई अम्माजी की नजर अचानक सलीके से बनी प्याज की क्यारियों पर जा कर अटक गयी । गार्डेन में काम करते माली पर चीख पड़ी ...
" तुम्हे प्याज लगाने को किसने कहा , पता नहीं है तुम्हे हम वैष्णवी प्याज़ लहसुन खाना तो दूर ,स्पर्श तक नहीं करते "

" बाबा और बेबी तो प्याज के बिना सलाद को छूते भी नहीं "....माली कहते कहते रुक गया गलियारे के गेट से आती हुए शुभी के इशारे को देख कर "

" जी, अम्माजी , नयी सब्जियां लगाने के समय मैं कुछ दिन घर से बाहर रही, इस नए माली को पता नहीं था । इसने बाकी सब्जियों के साथ प्याज भी लगा दिया । वापस लौटी तो नन्हे- नन्हे पौधे तैयार हो चुके थे । अब लगभग तैयार हो गयी है पौध तो माली को कह देती हूँ निकाल कर ले जाएगा । आप जानती हैं ना इनका भोजन तो प्याज और लहसुन के बिना पूरा नहीं होता ।

अम्माजी ने पूरी क्यारी का मुआइना किया ..." कितने किलो हो जायेंगे "

" यही कोई30-35किलो "

" तुम इतने सारे प्याज उठाकर इसको दे दोगी " बहू को घूरती हुई अम्माजी बोली.

" जी अम्माजी , बच्चे सलाद में लेते हैं कभी कभार । पर आप तो इसे छू भी नहीं सकती । इसलिए इन्हें रखने से क्या फायदा "

" ऐसा करो , इन्हें आँगन में बने लकड़ीघर में रखवा देना । इतने सारे प्याज एकदम से यूँ ही बाँट दोगी क्या , आँगन में ही खाना खिला दिया करना बच्चों को " नफा- नुकसान का हिसाब लगाती हुई अम्माजी बोली ।

अम्माजी के आने से पहले प्याज लहसुन को घर से बाहर का रास्ता दिखा देने वाली शुभी हैरान थी । अभी पिछली बार अचानक पहुंची अम्माजी रसोई के बाहर छोटी टोकरी में प्याज देखकर आपे से बाहर हो गयी थी , और पूरी रसोई को गंगाजल से पवित्र करने के बाद ही भोजन करने को तैयार हो पाई थी ।

अम्माजी का यह बदलाव नयी पीढ़ी के साथ सामंजस्य की शुरुआत थी या प्याज की बढ़ी हुए कीमतें और माली को मुफ्त दिए जाने की नागवारी .....शुभी सोच विचार में लगी थी।

27 टिप्‍पणियां:

  1. badhiya aalekh...wqt insaan ko badal hi deta hai...ye insaan ki fitrat hai

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  2. अरे मैंने तो सहसा सोचा ये ब्लॉग जगत वाली अम्मा आपके यहाँ तो नही पहुँच गयीं ? ये तो बड़ी नेक हैं पता नहीं प्याज वाज खाती हैं या नहीं !
    प्याज से जरूर कुछ तामसीपन बढ़ता होगा -कारण मैं तो बहुत प्याज भोजी हूँ -कच्चा भी चबा जाता हूँ !

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  3. बहुत सही जगह पहुँचीं आप.. समाज के ये खुरदुरेपन बड़ी असमंजस की स्थिति बना देते हैं..

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  4. सुन्दर लघुकथा ..... और अम्मा जी का लचीलापन भी

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  5. पुराने लोगों के क्रियाकलापों में पाई पाई का‍ हिसाब रहता है !!

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  6. प्रभावशाली रचना....वक्त के साथ सबमें बदलाव आता है

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  7. I admire -

    1- Amma ji for her 'decision-making' capacity and
    2- Shubhi for her presence of mind.

    Nice post !

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  8. yaad karen Kuchh dino pahle ki baat hai PYAJ ne Delhi me sarkar badal di thi........:P
    ........aapke kahani ki amma ko badalne ki koshish lajabab hai....:)

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  9. अच्छी कथा । एक दूसरे के मन को पढ़ने वाली ।

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  10. दी....यह लघुकथा..... बहुत अच्छी लगी..... फ्लेक्सिबिलिटी बहुत ज़रूरी है ....वक़्त के हिसाब से.....

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  11. प्रभावशाली रचना ..बदलना संसार का नियम है

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  12. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  13. कुछ टंकण कि त्रुटि हो गयी पहले वाले में...
    समय के साथ हर किसी को बदलना ही चाहिए...बहुत सुन्दर लघु कथा ...भाषा का प्रवाह देखते ही बनता है ....
    मुझे याद आ गया पिछले साल मैंने इंग्लिश खीरा लगाया था लगभग ४० किलो हुआ, टमाटर लगभग ६० किलो, जुकीनी तो मैंने हिसाब भी नहीं किया, शिमला मिर्च जाने कितने किलो...और इस बार एक छटाक भी नहीं...लगाया ही नहीं.....

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  14. vakt ke sath chlna hi achhe vyktitv ki nishani hai jo ammaji ne kar dikhaya .
    achhi laghukatha

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  15. बहुते नीक पोस्ट बा. जीयो बिटिया. अऊर अरविंद बिटवा तू का कहा चाहत हो? हम क्या नेक नाही बा? हमका जवाब चाही बस हम कह दिया सो कह दिया.

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  16. बहुत सुंदर लिखा जी. टंगडीमार का सलाम कबूल फ़रमाएं।

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  17. ammji ka lcheelapan unke practical hone ka parichayak hai.par theek hai kisi bhi tarah bachchon ko pyaz khane ko to mili.badhiya rachana....

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  18. आजकल नहीं दिखायी देती ऐसे हुकुम चलाती अम्‍माजी और उनके डर से प्‍याज को फेंकती बहुएं। काश ऐसा जमाना फिर चला आता।

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  19. नई पीढ़ी के साथ चलना होगा यह बात बुजुर्गो के समझ मे भी आ गइ है। अच्छा आलेख

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  20. ्वक्त काफ़ी कुछ बदल देता है।

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  21. बहुत ही सुन्दर लघुकथा, जिस वजह से भी हो,पर अम्मा जी ने सामंजस्य करना सीखा तो...यह एक नई शुरुआत तो हुई...आगे भी उन्हें नई चीज़ें स्वीकारने में परेशानी नहीं होगी...

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  22. अच्छी प्रभावशाली लघुकथा। ऐसी भी कई लोगों की मानसिकता रहती है कि चीज़ चाहे अपने काम की न भी हो तो भी किसी को देते हुये दिल छोट होने लगता है। अच्छी लगी अम्मा जी। हा हा हा

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  23. लचीलापन सही शब्द है..!
    सुन्दर लघु कथा ! आभार ।

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  24. विगत प्रविष्टि के पिता और ऐसी माताएं परिवेश को बहुत कुछ दे जाते हैं ! जिजीविषा और सामंजस्य ! सुन्दर लघुकथा ! आभार !

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