शनिवार, 18 जून 2011

थैंक्स , राम !......... (अंतिम किश्त)

थैंक्स, राम! भाग एक , भाग दो , भाग तीन , भाग चार , भाग पांच से आगे ...



कहाँ खो गयी , लीना ने झिंझोड़ा तो अंजना चौंक पड़ी ...हो गयी तेरी पूजा ...

अंजना ने मोती के कुछ आभूषण ख़रीदे,कुछ मैचिंग दुपट्टे भी ...अंजना के हैदराबाद जाने की खबर सुन उसकी ननद ने ख़ास फरमाईश की थी ...खरीददारी करते हुए सामने लकड़ी की सीढियाँ वाले छोटे से रेस्तरां को देख लीना को चाय की तलब हो आई ...लीना भी अजीब है , कब क्या मन कर जाए ...ऐसे ही एक दिन घर लौटते ईरानी चाय की होटल देख उसके मना करते भी खींच ले गयी थी ....बहुत कहा अंजना ने घर पास में ही है , वहीं पी लेंगे ...स्टील की छोटी गिलासों में छोटी प्लेट के साथ सर्व की गयी मलाई युक्त नमक डली ईरानी चाय ...पहले सिप में ही उबकाई आते-आते रह गयी अंजना को ...दूध या मिल्कशेक में से भी छान कर मलाई निकाल देने वाली अंजना चाय में मलाई कब पसंद करती ...मुंह का स्वाद ख़राब कर दिया , अब कुछ चटपटा खाना पड़ेगा ...बहुत बिगड़ी थी अंजना ...पसंद तो लीना को भी नहीं आई थी और दोनों चाय वैसी ही छोड़ कर बाहर निकल आई थी ...

दोनों दोपहर तक घर पहुंची ...माँ और काकियाँ निकासी की सामग्री जुटा रही थी ...दूल्हा चेहरे पर मास्क लगाये अपने दोस्तों से घिरा था ...आजकल लड़कों को भी कम तैयारी नहीं करनी पड़ती ...अम्मा (दादी) हँस रही थी उसकी हालत देख ...
माँ ने छोटी काकी को आवाज़ लगाई थी ," चने की दाल समय से भिगो दी थी या नहीं, बताशे कागज़ की थैलियों में पैक करवा लेती हूँ , यही ले आ "
वहीं काका निकासी के समय बहू बेटियों को देने वाले नेग के लिफाफे तैयार कर रहे थे ...दूल्हा जब घोड़ी पर बैठ कर घर से निकलने की तैयारी में होता है ,तब घोड़ी पर बैठे दूल्हे की घर की सभी महिलाएं आरती करती हैं , यही एक रस्म है जहाँ माँ और भाभी को दूध पिलाने और काजल लगाने के विशेष नेग के साथ ही परिवार की सभी बहू और बेटियों को भी नेग दिया जाता है...
बैंड बाजे के साथ नाचते गाते पहुचे वधू के द्वार तो रात गहरा गयी थी ...विवाह की मस्ती में रिश्तेदारों और दूल्हे के दोस्तों को नृत्य करने से रोकना और आगे बढ़ते रहने को कहना भी एक दुष्कर कार्य ही होता है , काका के जल्दी चलो कहते भी बहुत समय लग गया उन्हें विवाह स्थल तक पहुँचने में ...द्वार पर अगवानी में दोनों पक्षों में मीठी नोंक- झोंक होती रही, फिर भी वधू की भाभी दूल्हे की नाक पकड़ने में कामयाब हो ही गयी ...कुछ रस्मों और खाने के बाद लीना , अंजना और काकी की दोनों भांजियों को अपने कजिन्स के साथ वहीं रुकने का निर्देश दे कर घर की महिलाओं के साथ अधिकांश बाराती लौट चुके थे ....सप्तपदी की रस्म में ससुरापक्ष की ओर भेंट किये जाने वाले वस्त्र और आभूषण अंजना और लीना को ही देने थे ...वे पास ही पड़ी कुर्सियों पर बैठ सप्तपदी की रस्में होती देखती रही ...इन रस्मों के समय हर विवाहित अपनी शादी के समय को जरुर याद करता होगा , दोनों सहेलियां बतियाने लगी ....

लीना के विवाह में दुल्हन की खास सहेली होने के कारण पूरे सप्तपदी के दौरान अंजना वही बैठी रही थी , लीना ने बार- बार उसे अपने साथ ही रहने की जिद जो की थी ....सुबह सुहागिन महिलाओं द्वारा मंगल गीत गाते ,उबटन लगाते हुए उसने अचानक अंजना से पूछा ," तूने राम के हाथ में पट्टी बंधी हुई देखी "
पता नहीं , मैंने ध्यान नहीं दिया , मेरे पास फालतू समय नहीं होता इधर -उधर निहारने के लिए...अनजान चिढ गयी थी !
तुझे देखना चाहिए था ...लीना गंभीर हो गयी ,तू किस दुनिया में रहती है , तुझे आस- पास की कुछ खबर नहीं रहती ...
क्या हुआ ...
कलाई पर कुछ लिखने की कोशिश में ब्लेड से हाथ कटवा बैठा ...
क्या घटिया हरकत है ...
तुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता !!..
.काश कोई हमारे लिए ऐसा करता !!...एक गहरी सांस लेते लीना ने अभिनय किया तो उसके चेहरे पर फिर वही बांकपन था ...अंजना को तसल्ली हुई ...

ऐसी घटिया हरकतों से वही लोंग खुश होते हैं ,जिनका ऊपरी माला खाली होता है ...
बात एक ही है जान , हमारा ऊपरी खाली है , तेरा भीतर का खाली है , तेरा तो दिल ही नहीं है....
ज्यादा हिंदी फ़िल्में देख कर तेरा दिमाग खराब हो गया है , ऐसा कोई प्यार नहीं होता है , किसी को एक बार देखा , ना जान ,ना पहचान ...तू विदा हो ले एक , फिर खबर लेती हूँ इसके पूरे परिवार की ...
अंजना ने घूर कर देखा तो लीना चुप हो गयी ....

"अशुभ है" दिमाग में फिर कहीं बजने- सा लगा ... लीनाके विवाह के भात की रस्म में काका के साथ पूरा परिवार भी शामिल था ...अंजना का दिल जोरों से धड़का ...दर्द की एक तेज लहर उठी उसने पर्स से पेन किलर की गोली निकाली और गटक गयी ...आज दर्द सहन करने के लिए समय कहाँ था ...

तू अपनी मर्जी से दवा मत ले , एक बार डॉक्टर को दिखा लेते हैं ...
हां , चल पहले यही काम कर लेते हैं , शादी तो होती रहेगी ...दोनों जोर से हंसी तो सभी चौंक कर उनकी ओर देखने लगे थे ...

दिन भर विभिन्न रस्मों के बाद दुल्हन के साज श्रृंगार के लिए जब लीना ब्यूटी पार्लर गयी तो भी उसने अंजना को एक पल के लिए नहीं छोड़ा ...उनके साथ गाडी में पूर्णिमा और रामदास भी था ...बहाने से हाथ की पट्टी को सरकाते हुए उसके खरगोशी कुतूहल को अंजना ने देख कर भी अनदेखा कर दिया ...

तूने खाना खाया या नहीं ....लीना राम से मुखातिब थी ...सुना अंजना ने भी मगर असमय इस बेतुके सवाल पर खीझते हुए बोली ...कुछ घंटों में विवाह है तेरा , चकर- चकर लगा रखी है ,थोडा कम बोल लेने में कोई नुकसान नहीं है ...
मेरी बकबक को कोई नहीं रोक सकता , कोई भी नहीं ...

फेरे शुरू होने वाले थे ..मंत्रोच्चार के बीच लीना ने अंजना का हाथ दबाया जोरो से ...

क्या हुआ ...
कुछ देर बाद मैं विदा होकर चली जाउंगी , बस मेरी एक बात मान ले ...राम को खाना खाने को कह दे ...
हद है ...बहुत गुस्सा आया आया लीना को , क्या लड़की है , अपनी शादी के फेरे शुरू होने वाले हैं , फिक्र किसी और की है अभी इस वक़्त भी ...
लीना , तुझमे बिलकुल समझ नहीं है , ये समय ऐसी बातों का है ?? फुसफुसाते हुए लीना और अंजना की बातें हो रही थी ...
बस एक बार , मेरी एक आखिरी बात रख ले ...
मूर्ख लड़की , ठीक है , मैं कह दूँगी , तू अभी इधर- उधर दिमाग मत लगा ...
अपनी झुंझलाहट को दबाते हुए उसे उठना ही पड़ा ...
क्या नौटंकी है , खाना क्यों नहीं खाया है तुमने ...अंजना बरस ही पड़ी थी राम पर ...
कुछ नहीं , अभी खा लूँगा ...
लीना से नजरे मिलाईं अंजना ने ,वह निर्निमेष उनकी ओर ही देख रही थी ...उसके व्यग्र चेहरे पर मुस्कान देख मन हल्का हुआ ...
इसको तो मैं बाद में देख ही लूंगी ...मन ही मन भुनभुनाते ,ऊपर से मुस्कुराते अंजना उसके पास लौट आई ...
सुबह देर तक होने वाले विवाह की रस्मों के बाद लीना विदा हो गयी थी ...ज्यादा दूर नहीं थी उसकी ससुराल मगर विवाह के बाद दूरियां ज्यादा कम होने से भी बहुत कुछ बदल जाता है , बेटी पर अपना अधिकार कम होने या समाप्त होने की भावना लड़की और उसके परिवार , मित्र मंडली सबको एक साथ भावुक कर देती है ...

लीना के पगफेरे की रस्म पर नहीं जा सकी थी वह .....लगातार सिर में दर्द और कमजोरी और कभी- कभी कुछ भी समझ नहीं पाने की उसकी हालत को थकान समझ कर अनदेखा नहीं किया जा सकता था ...एक दिन माँ ले ही गयी उसे चिकित्सक के पास ... टेस्ट की रिपोर्ट से चिंतित माँ ने पिता को बुला लिया था कागजनगर से ...अंजना के टेस्ट की रिपोर्ट्स मस्तिष्क के एक हिस्से में सूजन का होना दिखा रही थी ...कुछ महीने पहले हुए मियादी बुखार ने उसके दिमाग के एक हिस्से पर हमला किया था ...
सब कुछ छूट रहा था अंजना के हाथ से ...पढ़ाई और किताबों से होने वाला उसका पहला प्रेम भी ...डॉक्टर की आराम की सख्त हिदायतों के के बीच उसके पिता ने कुछ महीनों की छुट्टी लेकर कसौली ले जाना तय किया था .....लीना एक दिन मिलने भी आ गयी थी निखिल के साथ , वैसे भी उसे अपने घर खाने पर निमंत्रित करना था उन्हें ...सामान्य बने रहे अंजना के माता -पिता ने किसी को भी उसकी बीमारी के बारे में बताया नहीं ,लीना को भी नहीं ....

कसौली रवाना होने से पहले काकी के साथ लीना से मिलने गयी थी अंजना एक दिन ...राम के घर खाने पर बुलाया गया था उन लोगों को , दूसरे दिन ही निखिल अपने काम पर लौट जाने वाले थे ...

अंजना ने सोच लिया था आज उसे बात करनी ही होगी आंटी से , ड्राइंग रूम में भरसक शांत बने रहने की कोशिश में अंजना ने दीवारों पर रगड़ कर हटाये गए कुछ निशाँ देखे , अचानक सोफे के हत्थे के पास कुछ छिपा सा उभरा हुआ उसका नाम ...उसकी नज़रों का पीछा करते हुए आंटी की उदासी ने बहुत कुछ कहा अंजना से और वह चुप रह गयी ...क्या सचमुच वह अशुभ साबित होने वाली है अपने परिवार के लिए , सबके लिए ...एकदम से इस ख्याल ने अंजना को वहां ज्यादा देर रुकने नहीं दिया , लीना से विदा लेकर वह घर लौट आयी ...

शांत प्राकृतिक वातावरण में सबसे दूर माता पिता की स्नेहिल छाँव की और दवा ने असर किया था या अंजना की इस इच्छा शक्ति ने की ...नहीं , वह किसी के दुःख का कारण नहीं बनेगी , कौन जाने ....
पूर्ण स्वस्थ होकर वापस हैदराबाद लौटने से पहले ही राजस्थान के बीकानेर से बुआ की बेटी स्वाति के विवाह का न्योता आ पहुंचा उनके पास..... स्वाति के विवाह के दौरान ही अंजना के माता पिता का मिलना हुआ आर्णव और उसके परिवार से ... सुयोग्य आर्णव और अंजना का जीवन भर का रिश्ता जुड़ना तय हो गया ...तुरंत फुरंत सगाई और गोद भराई और तीन महीने बाद ही विवाह की तिथि तय होना , कुछ समय ही नहीं मिला किसी को कुछ सोचने का ...
सुलझे विचारों के समझदार आर्णव के साथ ने अंजना के जीवन को एक ठहराव और निश्चिंतता दी थी ...जब पहली बार मिला था आर्णव तभी पूछ लिया था उसें ," आप आगे पढना चाहेंगी " और सास की बड़बड़ाहट को अनदेखा कर भी उसने उसकी शिक्षा को पूर्ण होने में मदद की ...गृहस्थी की जिम्मेदारियों में कभी नौकरी के बारे में सोचा नहीं उसने ...अभी पिछले साल ही जब ट्रांसफर होकर वे लोग अपने शहर से दूर आये तो बचे हुए खाली समय का उपयोग और अपनी शिक्षा से दूसरों का भी भला करने के उद्देश्य से एक एन जी ओ द्वारा संचालित विद्यालय में विभिन्न गंभीर बीमारियों से जूझते बच्चों के विद्यालय में अपनी सेवा दे रही है ...

सप्तपदी की सारी रस्में हो चुकी थी ... दुल्हन के लिए ससुराल से लाये गए वस्त्र , आभूषण और लाख की लाल- हरी चूड़ियों वाला विशेष चूड़ा पहनाया जाना था .....काका ने अंजना को पुकारा तो लीना और अंजना का ध्यान भंग हुआ ...

विवाह कार्यक्रम उल्लास और धूमधाम से संपन्न हो गया था ...अब अंजना को लौट जाना था वापस ...लड़कियां जीवन भर इसी कशमकश में जीती हैं ,कौन सा घर है उनका अपना ...जिसकी छाँव और गोद में बचपन के सुनहरे पल बिताये , जिसने किशोरावस्था की चुहलबाजियाँ छोड़ युवावस्था की और बढ़ते देखा या फिर वह एक जो वर्षों से अनजाना रहा मगर एक ही पल में सबसे बढ़ कर अपना हो गया ...बहुत मुश्किल होता है उस घर से बिछड़ना जो उनके होने का कारण होते हैं तो वहीँ अपनी गृहस्थी की ललक और फिक्र खिंच ले जाती है कदम, जहाँ उनका होना ही घर होता है , जहाँ वे मकान को घर बना देती हैं ....फिर जल्दी ही लौटकर आने का वादा लेते परिवारजन स्टेशन तक छोड़ने आ पहुंचे थे ...
नामपल्ली स्टेशन से रवाना होते आंसू भरी आँखें अपनों के धुंधले होते जाते चेहरों पर टिकी रही देर तक ... ट्रेन से बाहर झाँक कर देखा अंजना ने ...रात गहराने लगी थी ...रात में झिलमिलाती रोशनियाँ शहर के सौंदर्य को और बढ़ा देती है ...

अंजना का मोबाइल घनघना उठा .."रवाना हो गयी , सीट नंबर क्या है , रास्ते में अपना ख्याल रखना , वैसे मैं बार- बार फोन करता रहूँगा "...आर्णव फिक्रमंद था उसके लिए ...

नहीं , अंजना अशुभ नहीं थी , वह प्यार और फिक्र किये जाने योग्य थी , है ...

अंजना लीना के साथ अपनी यादों के दौर को याद कर रही थी ...चाहे -अनचाहे राम को भी शामिल होना ही था उनमे ....समय के साथ घटनाओं के सन्दर्भ और व्याख्याएँ भी बदल जाती है ...आज सोच रही थी अंजना .... निराशा , उदासी और तनाव के उन दिनों में जो उसने सोचा नहीं था ... अकारण किसी का चाहे जाना भी अपने वजूद के होने का एहसास देता है , आत्मविश्वास बनाये रखता है , लडखडाती जिंदगी को मजबूती देता है ...
नहीं , वह अशुभ नहीं थी , अवांछित भी नहीं ... ट्रेन तेज घडघडाहट की आवाज़ के साथ पटरियां बदल रही थी ...उसी में सुर मिलाते धीरे से कहा अंजना ने अपने- आपसे ...." थैंक्स , राम !"



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18 टिप्‍पणियां:

  1. खरगोशी कुतूहल ...

    यह प्रयोग बहुत अच्छा लगा।

    हैदराबाद की पृष्ठ भूमि पर कहानी का ताना-बाना बुना जाना और कसौली का वर्णन आना विषेश आत्मीय लगा।

    (हैदराबाद से हम चंडीगढ़ स्थानान्तरित हुए, और कसौली आना-जाना होता रहता था)

    कहानी पर अपने विचार लेकर फिर आता हूं।

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  2. .. अकारण किसी का चाहे जाना भी अपने वजूद के होने का एहसास देता है , आत्मविश्वास बनाये रखता है , लडखडाती जिंदगी को मजबूती देता है ...

    बहुत बड़ी बात कह दी है .. कहानी का अंत ऐसा है कि पाठक अंत के बाद सोचना शुरू करता है ... अच्छी प्रस्तुति ... थंक्स वाणी :)

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  3. वाणी जी आप एक समर्थ सर्जक हैं। इस कहानी में आपकी मोहक शैली का ऐसा जबरदस्‍त आकर्षण है, एक सांस में पूरा पढ गया। कहानी कथ्य और शिल्प दोनों मामले में बेजोड़ है। कथा बुनने का आपका कौशल सधा हुआ है।

    इस काहानी को पढ़ते वक़्त हमें हर पल ऐसा लगता रहा कि यह तो हमारे बीच की ही कोई कहानी है। आपने मध्यमवर्गीय परिवेश व मानसिकता को बड़े ख़ूबसूरत और संतुलित रूप से उतारा है। आप विवाह संस्था में विश्वास रखने वाली कथाकार हैं। आप इस संस्था में टूट्न या दरार नहीं देखना चाहती हैं।

    आपकी इस कहानी की पूरी यात्रा के दौरान मुझे जो सबसे रुचिकर लगा वह यह कि आप सहज कथानक के साथ शिल्प के बोझ से मुक्त होकर कलम चलाने वाली कथाकार हैं। कथ्य और शिल्प की यह सादगी मन को छू लेने वाली है। कहानी का यथार्थ जमीनी है।

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  4. अकारण किसी का चाहे जाना भी अपने वजूद के होने का एहसास देता है , आत्मविश्वास बनाये रखता है , लडखडाती जिंदगी को मजबूती देता है
    क्या बात कह दी ..वाह.
    आपकी कहानी की सबसे बड़ी बात यह कि छोटी छोटी टिप्पणियों से उसकी रोचकता बनाये रखी है आपने.कहानी किसी और दुनिया की नहीं अपने ही आस पास के परिवेश की लगती है जो पाठकों को बांधे रखता है.
    एक अच्छी कहानी के लिए बधाई वाणी जी !

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  5. थैंक्स राम की अन्तिम कड़ी बहुत अच्छी लगी।
    --
    पितृ-दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

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  6. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (20-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  7. बिलकुल मजे हुए कहानीकार की तरह इस कहानी को आपने अंजाम पर पहुँचाया है ..
    इंडिंग भी बड़ी साहित्यिक बन पडी है !

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  8. हमारा ऊपरी खाली है , तेरा भीतर का खाली है , तेरा तो दिल ही नहीं है....

    अक्सर ऊपर का माला इतना भरा होता है कि भीतर किसी को ठहरने ही नहीं देता...:) कहानी में इस तथ्य को बड़ी कुशलता से पिरोया है.
    किसी की आँखों में अपनी चाहत -पहचान...अपने ही वजूद का अहसास करा जाती है...और पूरी जिंदगी का एक संबल दे जाती है.
    बहुत ही सुन्दर कहानी...और ख़ूबसूरत अंत...

    अब दूसरी कहानी का इंतज़ार...जल्दी लिख डालो ...अग्रिम शुभकामनाएं

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  9. वाणी जी आप तो बहुत सुंदर कथाकारा भी है. बेहतरीन कथा और खूबसूरत अन्त.

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  10. निष्कर्ष एकदम यथोचित है,सहारा कब, कैसे और किससे मिल जाये, नहीं कह सकते।
    और नायिका कृतज्ञ है, होना भी चाहिये। राम जैसे लोग प्रेम के न सही, थैंक्स के पात्र तो हैं ही।

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  11. एकदम सधी हुई, ख़ूबसूरत कहानी।
    सुन्दर अंत।
    आपसे कहानियों की अपेक्षा, आपकी कहानियों की प्रतीक्षा रहेगी।

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  12. बेहतरीन कथा और खूबसूरत अन्त|

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  13. सुन्दर , सार्थक कहानी। रोचक शैली में लिखी हुयी।

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  14. सुन्दर सुखान्त!

    कैशोर्य आते-आते बहुत कुछ बदलता है। सब कुछ नया-नया। नादानियाँ भी होती हैं। मगर अंत भला तो सब भला। वैसे भले लोगों की नादानियाँ भी भली ही होती हैं। दो मालों की बात पर याद आया कि एक तीसरी श्रेणी भी होती जो दिल के साफ और दिमाग़ से साफ होते हैं।

    अंतिम किस्त फुर्सत में पढने के लिये छोड रखी थी। आज पढी, अच्छी लगी। थैंक्स राम!

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