गुरुवार, 26 मई 2011

सिनेमाई यादें ......थैंक्स राम !(3)

आपका नाम क्या है .. से आगे


" आपका नाम क्या है " ....उसने सामने देखा ,घुंघराले बालों वाला एक किशोर सामने खड़ा उससे ही मुखातिब था ...
" तुम्हे क्या मतलब है मेरे नाम से "
"नहीं , ऐसे ही पूछ लिया "
" ऐसे ही से क्या मतलब , ऐसे ही राह चलते किसी को भी रोक कर नाम पूछ लेते हो , तमीज नहीं है"...उबल पड़ी अंजना ....
शांत स्वभाव की अंजना का यह रौद्र रूप लीना ने कभी नहीं देखा था ,मगर अंजना ऐसी ही थी , यूँ तो शांत स्वभाव था उसका , मगर गुस्सा होने पर उसकी वाणी धाराप्रवाह आग उगलती थी ...उसने ये भी नहीं देखा कि आस पास लोंग इकट्ठे हो गये हैं ....लीना ने स्थिति सँभालते हुए तेलगु में कुछ कहा उस लड़के से , वह वहां से चला गया ...लीना उसका हाथ पकड़कर खींचती हुई घर ले आई थी ...

" ऐसा कुछ नहीं है अंजू , तू तो यूँ ही इतना गुस्सा हो गयी "
" यूँ ही का क्या मतलब ,बात गुस्सा होने की नहीं है, हिम्मत तो देख उसकी , खा जाता अभी थप्पड़ ...और तूने क्या कहा उस लड़के से , तेलगु में कहने की क्या जरुरत थी , बात ही क्यों करनी थी"
" मैं जानती हूँ उस लड़के को ...यही इसी बाड़े में रहता है "
" क्या , कहाँ रहता है , बता उसका घर , अभी उसके पेरेंट्स से बात करती हूँ , ये तमीज सिखाई है उन्होंने "
"तू क्यों इतना गुस्सा हो रही है , बात तो सुन ले पूरी ...अभी पिछली बार तू यहाँ आई थी तो तुझे देखा था उसने , हमसे नाम पूछा तो कहने लगा नहीं , ये नाम नहीं हो सकता , आप झूठ कह रहे हो , इसलिए जब आज तू अचानक नजर आ गयी तो उसने पूछ लिया "
" जान ना पहचान मैं तेरा मेहमान , करना क्या है उसको मेरे नाम से, खुद का क्या नाम है उसका , कौन से हीरे मोती जड़े हैं उसके नाम में " अंजना अभी तक डपट रही थी लीना को ..
" उसका नाम रामदास है , अच्छा मैं समझा दूंगी , नहीं पूछेगा " लीना हँस रही थी ....
मासी लौट आई थी काम से ...सब सुन कर हंसने लगी
मासी आप भी ...अंजना ने बुरा -सा मुंह बनाया !
तू रामू की बात पर इतना गुस्सा हो रही है , यहीं नीचे की मंजिल में रहता है , बुरा लडका नहीं है ,बावला है , ऐसे ही पूछ लिया होगा , अच्छा परिवार है , माँ टीचर है , पिता सिंचाई विभाग में इंजिनीअर हैं , उनके मकान का काम चल रहा है , यहाँ कुछ दिनों के लिए ही हैं " मासी लीना से भी दो कदम आगे बढ़कर उसका पूरा इतिहास, भूगोल बताने लगी थी...

" चल, तेरा मूड ठीक करते हैं , मूवी देख कर आते हैं ...दिलशाद में राम तेरी गंगा मैली लगी हुई है " बाड़े से कुछ ही कदम की दूरी पर था दिलशाद टॉकीज..

कम दूरियों पर ही अधिक सिनेमाहॉल , ये भी हैदराबाद की विशेषता मानी जानी चाहिए थी ...मूवी का नाम जाने बिना भी काकियाँ कई बार घर से रवाना हो लेती कि किसी न किसी थियेटर में तो अच्छी मूवी मिल ही जायेगी , पास -पास ही तो हैं ...महेश्वरी के साथ परमेश्वरी , संतोष के साथ सपना , रामकृष्ण में एक साथ तीन स्क्रीन , ऐसी ही एक दोपहर में मूवी तलाशते पहुच गयी थी वे लोंग मधुमती देखने ...

अच्छी मूवी होगी क्या ...काकियाँ सशंकित थी ...
"अच्छी क्लासिकल मूवी है , देख लेते हैं " ककियाँ उसपर भरोसा करके चली तो गयी मगर कलरफुल सिनेमा के दौर में उन्हें श्वेत श्याम देखना पसंद नहीं आया , देर तक कोसती रही उसे ," कहाँ लेकर आई है "

आखिर परेशान होकर इंटरवल से पहले ही निकल आई हॉल से और पास के टॉकीज में ले गयी पाताल भैरवी दिखाने...देखो , ऐसी मूवी देखने लायक ही हो आपलोग और काकियों को पूरी तन्मयता से पूरी मूवी देखते हुए उनकी पसंद पर अपना माथा ठोकती रही ...इस शोरगुल में थियेटर में सोया भी तो नहीं जा सकता था...

अंजना गंगोत्री के खूबसूरत दृश्यों में खोयी हुई थी , अचानक लीना को अपनी पास वाली सीट पर किसी से फुसफुसाते हुए बातें करते सुना ...मगर वे दोनों तो अकेले ही आई थी , ये तीसरा कौन है ..लीना पूरी देर उसी लड़के से बात करती रही ..मूवी ख़त्म होने से कुछ देर पहले वह युवक हॉल से बाहर चला गया ... दोनों बाहर निकली तो उसने लीना से उस युवक के बारे में पूछा ..." यहीं पास में ही रहता है , मेरी ही कॉलेज में है " लीना ने टरकाते हुए संक्षिप्त- सा जवाब दिया ...
लीना के ग्रुप से तो परिचित है अंजना , ये उनमे से नहीं था ...हमेशा को एजुकेशन में पढ़ी है लीना ..होगा कोई ..अंजना ने भी अपना सिर झटक दिया ...

घर पहुँचते ही एक और सरप्राईज उसका इंतज़ार कर रहा था ...ककियाँ अपने बाल -बच्चों के साथ बिलकुल तैयार ही थी , उसके घर में कदम रखते ही बोली ," चल , आज तुझे राम तेरी गंगा मैली देखा लायें , हम बस तेरा ही इतंजार कर रहे थे "
गश खाकर गिरना ही बाकी रह गया था अंजना का , कैसे कहती कि अभी यही मूवी देख कर लौटी है लीना के साथ ...चल ,जल्दी कर , कहते हुए काकी ने उसके हाथ में अपना बैग थमा दिया ...छोटे बच्चे हैं साथ में , दूध भर कर बॉटल , बिस्किट वगैरह भरे हैं बैग में ...बड़बड़ाती थी अंजना कई बार ," इतना क्या शौक है आपलोगों को , आलस भी नहीं आता , कांख में बच्चों को दबाये चल देती हैं झट से , कभी कोई रोयेगा , कोई बिस्किट के टुकड़े बिखेरेगा ,"

घर के बीचों बीच बने खुले चौक की रेलिंग से झांकते फुर्ती से से चलते काकियों के हाथ देखकर ...कभी कपड़े धोती , खाना बनाते , बर्तन साफ़ करते , बच्चों को नहलाते धुलाते ...सोचती अंजना कई बार , क्या जिंदगी है इनकी ,वही रोज की दिनचर्या , ये लोंग इतना खुश कैसे रह लेती हैं ...
कभी उसकी अपनी जिंदगी भी ऐसी ही होगी , अंजना ने तब सोचा नहीं था ...

ढेरों सपने थे , एक खास मुकाम पर पहुंचना है , पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर होना है , बहुत कुछ सीखना है , घर की चारदीवारियों के बाहर की दुनिया को जानना है , कुछ करना है इन सबसे अलग ...

सपने , ढेर सारे सपने ..कुछ पूरे होते हैं , कुछ टूट जाते हैं ...जिन सपनों को देखते इंसान बच्चे से बड़ा होता जाता है , टूटे हुए आईने की तरह उन टूटे सपनों की किरचें भी बहुत लहूलुहान करती हैं , आईने का छोटा टुकड़ा जो बाहर चमड़ी पर नजर आता हो , चिमटी से निकाल दिया जाए तो भी लहू तो बहता ही है , कुछ छूटे छोटे टुकड़े जो चमड़ी की सतह को पार कर भीतर चले जाते हैं , कौन सी चोट ज्यादा घायल करती है , बाहर खून टपकती छोटी खरोंचे या या जिगर के भीतर रिसते ज़ख्म ... कैसे भरा जाता है इन्हें ...शायद समय ही!

" देख ये कलर कैसा रहेगा " मजेंटा कलर की साडी का आँचल लहराते लीना उसे ही कह रही थी ...
मजेंटा की पृष्ठभूमि में हरे रंग के बौर्डर के साथ छोटे फूलों की कढ़ाई ...बहुत पसंद आई उसे साडी ...यही ले लेते हैं ...
" और कुछ बचा तो नहीं रह गया " अंजना ने लिस्ट चेक की ...सब काम हो गया ...

दोनों पैदल ऑटो स्टैंड तक आई...बाटा का शोरूम था अभी भी वहीँ , यहाँ से निकलते कई बार विम्मो दी ठिठक जाती थी ..देखना कोई बैठा है क्या , इधर तो नहीं देख रहा ...विम्मो यानि विमला दी , लीना के कॉलेज की चंडाल चौकड़ी की सबसे वरिष्ठ सदस्य , विमला दी सीनिअर थी , एक साल परीक्षा नहीं दे पाई थी , इस लिए एक ही क्लास में होने के बावजूद सब उन्हें विम्मो दी ही कहते थे ...अशफाक भाई भी इस चंडाल चौकड़ी के लिए अनजाने नहीं थे...वही, बाटा शोरुम वाले ...लीना के ग्रुप के सभी सदस्य उन्हें भाई जान ही कहते थे ...कॉलेज में उनके सीनिअर थे...उनके पिता और बड़े भाई व्यवसाय संभालते थे , अशफाक भाई को भी कहा था उन्होंने ," क्या करोगे पढ़ कर , घर का व्यवसाय है , संभालो इसे " मगर उन्हें अपने व्यवसाय में दिलचस्पी नहीं थी ....उनका लक्ष्य उच्च शिक्षा प्राप्त कर विदेश में नौकरी करना था ...विमला दी और अशफाक के रिश्ते के बारे में अशफाक के पिता और भाई के साथ ही लीना के ग्रुप के सभी सदस्य जानते थे , मगर इससे अनजान थे कि वे विवाह बंधन में भी बंध चुके हैं , अशफाक भाई जान और विम्मो दी दोनों ही पहले आत्मनिर्भर होना चाहते थे ....धर्म के कारण बाद में होने वाले विवादों से बचने के लिए कोर्ट मैरिज कर चुके थे, अभी ग्रुप में कुछ लोगों को ही पता था ...

विम्मो दी कहाँ है आजकल ...
अभी दोनों दुबई में हैं ...दो प्यारे छोटे बच्चे हैं उनके ! शुक्र है सबकुछ राजी खुशी निपट गया , वरना हम लोंग उनके लिए बहुत चिंतित थे ...प्रेम कथा सुखद अंजाम तक पहुंची आखिर ...

दोनों ने ऑटो को रोका ," गुलज़ार हौज़ "!



क्रमशः
विवाह की रस्मों के बीच अंजना और लीना तय करेंगी लीना की सगाई से विवाह तक का यादों का सफ़र ...

20 टिप्‍पणियां:

  1. अब नाम पूछने ,टेलीफोन नंबर मांगने पर इतना भड़कने की कोई जरूरत तो नहीं होनी चाहिए -यह संस्कार औरसंस्कृति /परिवेश का फर्क लगता है - कहानी के पात्रों में दरअसल जीवन के असली पात्र बोलते हैं!

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  2. मेरी हाजिरी दर्ज कीजिये ! आहिस्ता आहिस्ता पिछली कड़ियां भी पढूंगा !

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  3. सब में रुचि बनी ही रहती है, उम्र ही ऐसी है।

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  4. uff...ye ladkiyan bhi na...naam na puchha pata nahi kya ho gaya...:)

    aage dekhte hain...:)

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  5. are zarurat kya hai naam janne ki ? ... itna manchala , itna filmi hone ki kya zarurat ......... haan per umra ka takaja to hai

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  6. फ्लैश बैक में चलती कहानी पसंद आई ..आगे का इंतज़ार है

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  7. वो गलियां ... वो चौबारे ...
    नहीं-नहीं, आपकी कहानी पर कमेंट नहीं कर रहा ... मुझे याद आ गए ..
    बाटा की दूकान, वहां की खरीददारी, और उसके बगल में वुडलैंड आदि .. हम तो श्रीदेवी में सिनेमा देखा करते थे ... सूर्यवंशम, राजा, हां .. जी .. वहां सिनेमा देखने की इतना क्रेज था कि तेलुगु फ़िल्में भी देखते थे।
    ... और इस कहानी में आपकी मोहक शैली का ऐसा जबरदस्‍त आकर्षण है कि इसे पढ़ते वक्‍त रचनात्‍मक लेखन सा पाठ सुख मिला।
    • आपकी काहानी पढ़ते वक़्त मुझ जैसे पाठक को हर पल ऐसा लगता है कि यह तो हमारे बीच की ही कोई कहानी है। आपने भारतीय परिवेश व मानसिकता को बड़े ख़ूबसूरत और संतुलित रूप से पन्ने पर (अब की-बोर्ड और कम्प्यूटर का ज़माना है) उतारा है।

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  8. उम्र कातिलाना....और कुछ नही ।

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  9. आपकी पोस्ट यहाँ भी है………http://tetalaa.blogspot.com/2011/05/blog-post_27.html

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  10. ओह!! तो बात नाम पूछने से आगे नहीं बढ़ी.....:(
    हमें लगा..अंजना की कहानी सुनने को मिलेगी...अब लीना की कहानी ही सही..
    सबकुछ बड़ा जाना-पहचना सा लग रहा है...खासकर एक ही फिल्म को दुबारा देखने की यंत्रणा {कुछ याद आ गया :)}
    बड़ी खूबसूरती से परिदृश्य गढ़े हैं....बिलकुल यथार्थ के करीब
    अगली कड़ी का इंतज़ार

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  11. बेचारा राम दास इस फ़िलमी चक्कर मे ही कही गुम हो गया...

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  12. इतने दिनों बाद किश्त डालती हैं कि पिछली भूल जाते हैं अब दुबारा उसे पढकर आते हैं पहले.

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  13. पढ़ रहे हैं...पूरा हो जाए तब ही कुछ कहेंगे...

    खूब रोचक है...जारी रखिये...

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  14. अभी कुछ नहीं कहेंगे ....अगली कड़ी का इंतजार है ....आपका आभार

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  15. मेरी लेट-लतीफी मेहरबान तो हो ही जाती है मुझपे, कि आते आते नया भाग लिख दिया आपने।
    रोचक है कहानी, आगे की प्रतीक्षा।
    वैसे सचमुच, रामदास का क्या हुआ?

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  16. वाह! मजा आ गया पढ के आगे भी इन्तजार रहेगा

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  17. नाम ही पूछा था जी,
    फ़ालतु गर्म होने की क्या जरुरत थी।
    बावला था जो सीधे ही पूछ लिया :)

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