शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

हम बड़े क्यों हो जाते हैं !!!


सस्ता रिचार्ज आजकल के बच्चों को बहुत ललचाता है ...चूँकि SMS के द्वारा बात करना फोन कॉल से सस्ता पड़ता है , इसलिए ज्यादा समय आजकल के बच्चों की अंगुलियाँ अपन मोबाइल पर ही थिरकती रहती है , वो चाहे परिवार के बीच हो या दोस्तों के बीच . ..कभी टोक दो उन्हें कि इतना समय टाइप करने में बर्बाद होता है , इतने में फोन ही कर लो ,तो जवाब मिलेगा , ये सस्ता है ...एक हमारे जैसे आलसीराम , फ़ोन तो बेचारा इधर -उधर पड़ा रहता है किसी कोने में , कभी मैसेज टोन सुनाई देने पर ढूंढना पड़ जाता है . इसलिए मायके और ससुराल की सारी खबर बच्चों के माध्यम से ही पता चलती रहती है , हम तो ज़रूरी होने पर ही फोन करते हैं या फिर मिलने पर सारी बात होती है .

इधर बहुत दिनों बाद भतीजा घर आया तो देखा कुछ नाराज , कुछ उदास सा लगा . थोडा कुरेदने पर पता चला कि महाशय इसलिए नाराज़ थी कि दोनों भाई -बहनों की लडाई में मैंने अपनी बेटी का पक्ष ले लिया था . मैंने समझाया कि उस समय वह सही थी , सिर्फ इसलिए , मैं पक्षपात नहीं करती हूँ , जो गलत होता है , उसे ही डांटती हूँ , मगर बेटा सुनने को तैयार नहीं ...
नहीं बुआ , आप दीदी का पक्ष ले रहे थे , जबकि वो गलत थी . इतनी देर में बिटिया रानी उठाकर आ गयी कमरे से बाहर और दोनों में वाद विवाद शुरू हो गया , तब समझ आया कि पिछले कुछ दिनों से दोनों में अबोला चल रहा था . दोनों को ही ये शिकायत , तुमने ऐसा कहा , तुमने वैसा कहा , और बात भी कुछ गंभीर नहीं थी , बस नोट्स के आदान प्रदान को लेकर कुछ ग़लतफ़हमी थी .
मैं बहुत देर तक समझाती रही , मगर उस पर कुछ असर नहीं . वो बस यही कहता रहा कि आप दीदी की मम्मी हैं , इसलिए उसका पक्ष ले रही है . मैंने बहुत समझाने की कोशिश की ,मगर वह सुनने को तैयार नहीं ..आखिर मैंने कह दिया ," अगर तुझे ऐसा लग रहा है कि दीदी ही गलत है , तो छोड़ ना , जाने दे , कौन तेरे सगी बहन है , कौन सी दीदी , किसकी दीदी , चल जाने दे , तू सोच ही मत "...
क्या जादू हुआ इन शब्दों का , भतीजा एक दम से शांत हो गया ...
अरे वाह , ऐसे कैसे , दीदी तो दीदी ही रहेगी , झगडा होने का ये मतलब थोड़े हैं कि दीदी ही नहीं है ...
अब मुझे हंसी आ गयी , फिर क्या परेशानी है !!
दोनों भाई- बहन देर तक आपस में बहस करते रहे , तूने उस दिन ऐसे कहा , वैसे कहा , ऐसा क्यों कहा , वैसा क्यों कहा , मैं घर के काम निपटाते सब सुन रही थी , जब नाश्ता बना कर लेकर आई तो देखा दोनों की आँखों से गंगा- जमना बह रही थी , मन का कलुष भी शायद इनके साथ बह कर निकल गया था ...
दोनों के सिर पर हाथ फेर कर मैंने कहा ," इतना सबकुछ इतने दिनों तक मन में क्यों छिपाए रखा था , पहले ही कह सुन लेते "...दोनों फिर से हंसी मजाक करते हुए नाश्ता करने लगे .
बच्चों के लडाई झगडे इतने से ही तो होते हैं , कुछ दिन कुछ महीने फिर सब कुछ वैसा ही , मगर वही बच्चे जब बड़े हो जाते हैं , तो सबकुछ बदल जाता है , कभी कभी लगता है , हम बड़े ही क्यों हो जाते हैं , वैसे ही बच्चे क्यों नहीं बने रहते ...सुनती हूँ माता -पिता की प्रोपर्टी और विरासत के लिए भाई- बहन एक दूसरे के खून के प्यासे , तो मन उदास हो जाता है .
ये लोंग बड़े क्यों हो जाते हैं !!!! शायद इसलिए ही कहा गया है मेरे भीतर का बच्चा बड़ों की देखकर दुनिया, बड़ा होने से डरता है!

कुछ शब्द कैसे जादू करते हैं , जब कोई लगातार नकारात्मक बातें कर रहा हो , एक बार उसकी हाँ में हाँ मिला दीजिये , देखिये उसका असर , बेशक इसके लिए ज़रूरी है दिल का सच्चा होना , और भावनाओं की ईमानदारी ...
" तू जो अच्छा समझे ये तुझपे छोड़ा है " ...वाद विवाद के बाद अक्सर अपने पति और बच्चों को कह देती हूँ , मुझे भी कहा किसी ने, आप भी कभी किसी खास अपने को कह कर तो देखिये!

23 टिप्‍पणियां:

  1. कमाल है, खुद ही सवाल किया:
    ये लोंग बड़े क्यों हो जाते हैं?

    और खुद ही जवाब दे दिया:
    ज़रूरी है दिल का सच्चा होना, और भावनाओं की ईमानदारी ...

    निष्कर्ष: सवाल छोटे-बड़े का नहीं, मन की निर्मलता का है।
    मन चंगा तो कठौती में गंगा :)

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  2. इस आलेख की आत्मीयता बहुत ही अच्छी लगी। बताए गये टिप भी। मन कह रहा है, दूसरों को बदलने का प्रयास करने के बजाए स्‍वयं को बदल लेना कहीं अधिक अच्‍छा है।

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  3. मैं इसीलिए तो कह रही हूं कि बाते करने से ही रिश्‍ते मजबूत होते हैं।

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  4. हम भी अपना बचपन यूँ हीं संभाल कर रखें , लड़कर रो लें , रिश्तों की अहमियत खोने न दें तो स्वर्ग अपने ही पास है - बिल्कुल सही कहा कि तू जो अच्छा समझे ...

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  5. रिश्तों की मिठास बचपन में ज्यादा होती है फिर भी लोग कहते है" अब तो बड़े बन जाइये ." .

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  6. छुटपन की बतियां न्यारी ही रहती हैं। बाद में बचपन के इन्हीं यादों की पोटली रह जाती है जिन्हें हम बड़े होने पर याद करते रहते हैं :)

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  7. बचपन निश्छल, और बड़ा होना मतलब संसार की व्यवहारिक माया-कपट में फंसना, एकांगी सत्य नहीं है। मन किसी भी वह में कोमल निर्मल हो सकते है। जरूरी है इन भावों के प्रति सद्भाव। लोग अक्सर सरल व्यक्ति को मजाक या मूर्खता में लेते है, इस प्रकार उन्हें भोला या मूर्ख मानना ही इन सद्भावो के प्रति वितृष्णा है। और सद्गुणों के प्रति लगाव न होगा तो वह हमारे आत्म में ठहरेंगे कैसे?

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  8. बड़े होते होते मन पर कलुषता छा जाती है ... सच निर्मल मन से दुसरे कि हाँ में हाँ मिलने से शायद दूसरा भी खुद समझ सके ... कैसी भी परिस्थिति हो स्वयं को ही बदलने का प्रयास उचित है ..दूसरे को कह कर नहीं बदला जा सकता ... अच्छी प्रस्तुति

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  9. सच कहा हम बडे क्यो होजाते हैं …………कितना निर्मल और पावन होता हैबचपन सारी कलुषताओ से दूर्……………एक बेहतरीन आलेख्।

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  10. काश कि समय को रोक पाते -
    या न भी रोक पाते -
    तो हम ही समय में कहीं रुक जाते
    समय आगे बढ़ जाता अपनी रह पर
    और हम वहीँ ठहरे रह जाते
    काश .....

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  11. मैं किससे सहमत होऊं चलो स्मार्ट भाई से हो लेता हूँ ...मगर मन चंगा हो तब न !

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  12. बडे होने के बाद महसूस होता है कि हम बच्‍चे ही ठीक थे !!

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  13. कोई झगड़ा बच्चों के दिल में घर नहीं बना पाता ।

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  14. ओह, बचपन से बड़े होने में जो तनाव झेला है, उसकी बजाय बच्चे ही रह जाते तो क्या मजा होता! पर दुनियाँ सतत बचपनत्व के सिद्धांत पर चलती नहीं! :-(

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  15. बहुत अच्छा व भावपूर्ण लेख,बधाई! बचपन मेँ जहाँ हम अपनेपन को पहले रखते हैँ वहीँ बड़े होने पर अहम को । और अहम के चलते दोस्त,रिश्तेदार क्या अपने माँ-बाप से भी दूरी बनाके रखते हैँ। जाने कितनी औपचारिकता,बनावट,दंभ और दंद फंद से ओतप्रोत रहते हैँ। जीवन की सबसे बड़ी हार और जीत व्यक्ति की मासूमियत मेँ ही निहित है।

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  16. बच्चे मन के सच्चे...रोचकता से समझाई बात.सुन्दर पोस्ट.

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  17. बड़े हो जाने पर ज्यादा मन करता है बच्चा बने रहने का ......

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  18. "शायद इसलिए ही कहा गया है मेरे भीतर का बच्चा बड़ों की देखकर दुनिया, बड़ा होने से डरता है!" शायद नहीं सौ फीसदी सच है...

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  19. tabhi kahate hain samwad ka hona jaruri hai rishto ki garmi ko banaye rakhne k liye.

    sunder vishay.

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