बुधवार, 23 मई 2012

एक कहानी

.........गतांक से आगे

वृंदा तो चुप रही मगर कृति बोले बिना नही रह सकी ..." पढ़े लिखे लोगों को भी पता नही यह बात कब समझ आएगी कि आजकल लड़के और लड़कियों में कोई अन्तर नहीं है । सही देखभाल और अवसर मिलने पर लड़कियां भी वो सब कुछ कर सकती हैं जो लड़के कर सकते हैं । अब तो लड़कियां अन्तरिक्ष तक भी जा पहुँची हैं। "
बेटी का मूड ख़राब होते देख वृंदा ने समझाया ..."अपने घर में तो ऐसा माहौल नहीं है ना... और फिर इतना बुरा लगता है तो ख़ुद को ऐसा बनाओ कि सभी कहें कि लड़कियां किसी मायने में लड़कों से कम नहीं है। "
यह सब बातचीत चल ही रही थी कि तब तक वृंदा के पति हर्ष भी वहां पहुँच गए और बेटी से थोड़ा रुक कर आराम करने के लिए कहने लगे।
" इस अपनी बेटी को संभालिये । मैं तो कह कर थक चुकी।  गर्व होता है वृंदा को अपने पति हर्ष पर। हर्ष ने ना सिर्फ़ हर कदम पर उसका साथ निभाया है वरन एक बहुत अच्छे पिता होने का फ़र्ज़ भी निभाया है। एक पुत्र होने की स्वाभाविक चाह और सामाजिक दबाव को दरकिनार रखते हुए उसने अपनी बेटियों को हमेशा अच्छी परवरिश दी है। उसके मार्गदर्शन और संरक्षणने बच्चों को अच्छे संस्कार और मजबूत आधार प्रदान किया है.
" क्यों बच्चे ...क्या हुआ..??
हर्ष ने कृति का हाथ पकड़कर साथ चलते हुएउसके उदास होते चेहरे को देखते हुए पुछा।
"कुछ नही पापा...यह देखिये ना..लोग कैसे प्रसाद का अनादर करते हुए चल रहे हैं" बात बदलते हुए कृति बोली।
रास्ते में श्रद्धालुओं द्वारा दिए गए प्रसाद के दोने बिखरे पड़े थे।
तभी फिर से कुछ महिलाओं ने आकर घेर लिया। राखी को दान करते देख अब यह महिलाएं और बच्चे और पैसे मिलने की चाह में उसके इर्द गिर्द ही मंडराते रहे थे। इस बार हर्ष को साथ देख बोली ..." बाई...तेरा जुग़ जुग़ जिए भाई ....कुछ तो हमें भी दे दे..."
अपने पीछे पड़े इस काफिले को देख कर अब तक राखी बहुत झुंझला चुकी थी। इस भीड़ भाड़ से निकलने की उसकी कवायद को देखते हुए कृति मुस्कुरा पड़ी ..." हाँ हाँ ...बुआ ...थोड़ा कुछ दान पुण्य और कर लो ...अजन्मे भतीजे के लिए तो इतना दान कर दिया ...सामने खड़े भाई के लिए कुछ नही करोगी." मां को घूरकर चुप रहने का इशारा करने को अनदेखा करते हुए भी कृति बोल पड़ी। अब झेंपने की बारी राखी की थी।
जय श्री राधे के जयघोष के साथ तेज क़दमों से सभी चल पड़े अपनी परिक्रमा पूरी करने।
जय श्री राधे ...!! जय श्री कृष्ण ...!!


.................गोवेर्धन यात्रा में बस इतना ही

18 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बहुत बढ़िया! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ की जाए कम है!

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  2. हां हां बुआ कुछ थोडा दाण पुण्य और ...सामने खडे भाई के लिये.... वाह बहुत शानदार कटाक्ष किया कृति के माध्यम से. बहुत कुछ कह गई आपकी यह गोवर्धन यात्रा की कहानी.

    रामराम.

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  3. ब्रावो कृति ! मेरी ही टाइप की लगती है !
    बहुत मज़ा आया आया.
    धन्यवाद.

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  4. आपकी यात्रा के तीनो प्रसंग आज पढ़े........... अछे लगे आपके विचार.......... कृति के माध्यम से आपने सजीव और सार्थक विचार रखे हैं.......... आज के समय में भी कुछ लोग हैं जो लड़के की चाह में सब कुछ करते हैं..........

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  5. बहुत ही सुन्दर बात करी है आपने .......जो बहुत कुछ सोचने को मजबूर करता है .......अतिसुन्दर

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  6. बहुत मंजा हुआ लिखा है आपने।

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  7. भाषा बेहद प्रभावशाली है..

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  8. आपके ब्लॉग पर आया तो आपके इस भावनात्मक लेखन के संसार के दर्शन हुए। बहुत अच्छा लेखन है आपका। हैपी ब्लॉगिंग :)

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  9. हमारे देश की हालत बहुत खराब है .सब्सिडी ,अनुदान ,आरक्षण ,सरकार ने सबको भिखारी बना दिया है .जब भी में ही खाने को मिल जा रहा है तो मेहनत करके कोई बेवकूफ ही खायेगा .
    और बेटा तो सबको चाहिए ही भले वह बुढापे में एक गिलास पानी भी न थमाए .
    शास्त्रों में लिखा है --सुपात्र को दिया गया दान ही फलित होता है .अगर आपने किसी को दान दिया और वह आपके पैसों के सहारे दारु पी कर गलत काम कर रहा है तो उसके पाप का फल आपको भी मिलेगा .
    खैर ....अब असली बात ..... बाजार से आप अश्वगंधा का चूर्ण खरीदने की बजाय सूखी जड़ खरीदिये और उसे कूट -पीस लीजिये वह बेहतर काम करेगी .४०० से ५०० रु किलो अश्वगंधा की अच्छी जड़ मिल जाती है .न मिले तो मुझे बताइये .

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  10. आपके लेखनी का तीर निशाने पे बैठा है | बहुत सही लिखा है |

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  11. आपकी शैली बहुत भली लगती है, खुद को जोड़ पाने में सक्षम हो जाते हैं, बहुत अच्छा लगा पढ़ कर, और यह भी जानकार अच्छा लगा आपकी गोवर्धन यात्रा सफल रही...
    बधाई..

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  12. badhai itne sundar aur saarthak lekhan ke liye ...

    regards

    vijay
    please read my new poem " झील" on www.poemsofvijay.blogspot.com

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