नौकरीशुदा इंसान की सबसे बड़ी ख्वाहिश होती है कि वह अपने सेवाकाल में ही बच्चों की शिक्षा , विवाह के साथ ही एक नीड़ का निर्माण भी कर ले ताकि वृद्धावस्था आराम से कटे . पिता ने भी इस शहर में मकान लेते समय यही सोचा था हालाँकि होनी को कुछ और ही मंजूर था . अपनी व्यस्त दिनचर्या के कारण स्वयं तो गिनती के दिन ही गुजारे होंगे इस मकान में मगर अपनी पत्नी और बेटों के लिए रहने का इंतजाम कर गये . मकान के उपरी हिस्से की छत डली हुई थी , बल्ली फंटों के बीच उस हिस्से को अँधेरे में सिर्फ एक नजर ही देख पाए थे , खैर ...
उनकी मृत्यु के बाद माँ अपने कुनबे सहित यही बस गयीं . शुरू से शुगर मिल कोलोनी में रही माँ को आस- पास के लोगों से अच्छा व्यवहार रखने की आदत पडी हुई है . ऐसी कॉलोनियों में हर धर्म और जाति के लोंग आपस में मिलजुल कर रहते हैं और एक दूसरे के सुख दुःख में काम आते हैं . जब सबके पति ऑफिस में होते हैं तो ये महिलाएं साथ मिल कर पापड़ , बड़ी , अचार आदि बनाने से लेकर मूवी देखना , खरीददारी तक भी साथ ही करती हैं . पूरा मोहल्ला एक कुनबा ही बन जाता है . तारक मेहता का उल्टा चश्मा देखते हुए मुझे वो कोलोनी बरबस ही याद आ जाती है .
माँ की वही आदत यहाँ भी बनी रही . पड़ोसियों के दुःख दर्द में काम आना , किसी की पतोहू की जचगी में उनके साथ अस्पताल में रहना , तो किसी की बेटी की पसंद के कपड़े खरीदने साथ जाना , किसी नई बहू को अचार बनाना सिखाना , किसी अकेली वृद्धा को खुद खाना बना कर पहुँचाना आदि . उनके बेटे -बेटी- बहुएं सब नाराज होते हैं उनसे इस समाज सेवा को लेकर , क्योंकि कई बार इसमें उन्हें पैसे और सम्मान का नुकसान भी उठाना पड़ता है , मगर उनकी आदत है, जो है ...
एक बार छुट्टियों में बच्चों के साथ मैं भी दो-चार दिनों के लिए रहने गयी . एक ही शहर में होने का सबसे बड़ा नुकसान मुझे यही लगता है कि मायके में ज्यादा दिन रहना संभव नहीं हो पाता . माँ के आँचल में तो इस उम्र में भी बच्चों जैसा ही लगता है . सुबह की चाय के साथ अखबार पढ़ते हुए बाहर गेट पर किसी महिला द्वारा मम्मी कह कर पुकारे जाने पर बाहर जाकर देखा तो सामने बने आधे -अधूरे मकान में से कोई महिला माँ को आवाज लगा रही थी । पीछे पीछे माँ भी चली आई . माँ को देखते ही वह महिला दौड़ी चली आई ," अच्छा , दीदी आई हुई हैं " कह कर गले लगने लगी . मेरी बहुत बुरी (?) बुरी आदत है , मैं जल्दी से किसी अनजान को गले लगाना तो क्या हाथ भी नहीं मिलाती , इस पर चाहे कोई मुझे नकचढ़ी कहे या घमंडी !
मैंने पीछे हटते हुए माँ से थोड़े नाराजगी भरे लफ्जों में पूछा ." अब ये नई बहन कहाँ से आ गयी मेरी ". तब तक वह महिला मां के गले में लटक चुकी थी " अरे , सामने ही रहती है , कुछ ही दिन हुए है आये हुए ." तब तक उसके गेट पर कोई युवक आ पहुंचा . माँ से यह कहते हुए कि उसके देवर आये हैं , वह महिला खिसक ली .
अब मैं माँ पर बिगाड़ने लगी । तुम यूँ ही किसी पर विश्वास कर लेती हो , पता नहीं कौन है , क्या है , बेटी बना लिया ...
अरे , गरीब मजदूर है बेचारी , मम्मी -मम्मी करते हुए आ जाती है तो कैसे परे धकेलूं । देख कितनी मुश्किल में रह रही है , घर में लाईट भी नहीं है , इसका आदमी भी कहीं बाहर नौकरी करता है .ये भी पास ही फैक्ट्री में काम करती है .
माँ तुम भी ना ....जानती हूँ , कितनी भोली हैं , जरा सा कोई आँख से आंसूं टपका दे , अपनी परेशानियों का रोना रो दे , बस झट से पिघल जाती हैं , कितना ही समझा लो कि माँ , ये तुम्हारी मिल कोलोनी नहीं है , ये शहर है , यहाँ लोगों को पहचानना इतना आसान नहीं है , नहीं मानती है !
तीन चार दिन तक मैं रही वहां और देखती रही कि उसके घर जाने कैसे अजीब से लोंग आते हैं , जब भी माँ पूछती तो यही जवाब कि मेरा देवर है. मैं माँ पर झुंझला रही थी ," कितने देवर हैं इसके , हर बार कोई नई शकल नजर आती है " .
मेरी भोली माँ समझाती मुझे ," इसके ससुराल का बहुत बड़ा परिवार है , मौसी , मामा , चाचा आदि के लड़के आते रहते हैं यहाँ मिलने "
मैंने माँ को टोका , मुझे ठीक नहीं लग रहा , कभी कोई महिला तो नहीं आती इससे मिलने ..और देवर हैं ,अभी घर में लाईट नहीं है तो इस अँधेरे में अकेले क्या करते हैं घर में ...
अभी कुछ दिन पहले आई थी इसकी मौसी सास ,मेहमान को चाय- नाश्ता नहीं बना कर खिलायेगे क्या , गरीब है इसलिए तुम लोंग हर वक़्त इस पर अंगुली उठाते रहते हो ...
मेरी माँ तो पुरानी हिंदी फिल्मों वाली टिपिकल मां है !
खैर , मैं घर लौट आई वापस अपनी गृहस्थी में मगन , मगर मुझे बार -बार वह महिला ध्यान आती रही । लगभग एक सप्ताह बाद माँ का फोन आया ." तुझे पता है , वो सामने रहती है न मीना, वो बहुत बुरी औरत निकली , कोलोनी वालों ने उससे तुरंत मकान खाली करवा लिया है और आस पास दिखाई भी नहीं देने की चेतावनी दी है .
अब बोलो माँ , तुम कैसी महिला को मेरी बहन बना रही थी .भगवान् बचाए ऐसे भाई -बहनों से !
मन खराब हो गया था ।छत पर यूँ ही टहलते देखा किसामने तीन मंजिला बिल्डिंग के फ़्लैट की बालकनी में एक आधुनिका स्ट्रिप वाली ड्रेस पहने अपने लैपटॉप से उलझी पड़ी मुस्कुरा रही थी . कल ही उनकी पड़ोसन बता रही थी ,पता नहीं कौन है , अकेले रहती है , संडे को अक्सर कोई आता है , तेज संगीत के साथ नाचने- गाने की आवाजें आती हैं , देखते हैं एक दो दिन नहीं तो इसके मकान मालिक से शिकायत करनी पड़ेगी .
मुझे फिर वही मीना याद आ गयी , क्या पता चलता है , किस भेस में कौन मिल जाए !!
सोच रही हूँ जब वास्तविक दुनिया में इंसानों को पहचानना इतना आसान नहीं है तो अंतरजाल पर तो ??
उनकी मृत्यु के बाद माँ अपने कुनबे सहित यही बस गयीं . शुरू से शुगर मिल कोलोनी में रही माँ को आस- पास के लोगों से अच्छा व्यवहार रखने की आदत पडी हुई है . ऐसी कॉलोनियों में हर धर्म और जाति के लोंग आपस में मिलजुल कर रहते हैं और एक दूसरे के सुख दुःख में काम आते हैं . जब सबके पति ऑफिस में होते हैं तो ये महिलाएं साथ मिल कर पापड़ , बड़ी , अचार आदि बनाने से लेकर मूवी देखना , खरीददारी तक भी साथ ही करती हैं . पूरा मोहल्ला एक कुनबा ही बन जाता है . तारक मेहता का उल्टा चश्मा देखते हुए मुझे वो कोलोनी बरबस ही याद आ जाती है .
माँ की वही आदत यहाँ भी बनी रही . पड़ोसियों के दुःख दर्द में काम आना , किसी की पतोहू की जचगी में उनके साथ अस्पताल में रहना , तो किसी की बेटी की पसंद के कपड़े खरीदने साथ जाना , किसी नई बहू को अचार बनाना सिखाना , किसी अकेली वृद्धा को खुद खाना बना कर पहुँचाना आदि . उनके बेटे -बेटी- बहुएं सब नाराज होते हैं उनसे इस समाज सेवा को लेकर , क्योंकि कई बार इसमें उन्हें पैसे और सम्मान का नुकसान भी उठाना पड़ता है , मगर उनकी आदत है, जो है ...
एक बार छुट्टियों में बच्चों के साथ मैं भी दो-चार दिनों के लिए रहने गयी . एक ही शहर में होने का सबसे बड़ा नुकसान मुझे यही लगता है कि मायके में ज्यादा दिन रहना संभव नहीं हो पाता . माँ के आँचल में तो इस उम्र में भी बच्चों जैसा ही लगता है . सुबह की चाय के साथ अखबार पढ़ते हुए बाहर गेट पर किसी महिला द्वारा मम्मी कह कर पुकारे जाने पर बाहर जाकर देखा तो सामने बने आधे -अधूरे मकान में से कोई महिला माँ को आवाज लगा रही थी । पीछे पीछे माँ भी चली आई . माँ को देखते ही वह महिला दौड़ी चली आई ," अच्छा , दीदी आई हुई हैं " कह कर गले लगने लगी . मेरी बहुत बुरी (?) बुरी आदत है , मैं जल्दी से किसी अनजान को गले लगाना तो क्या हाथ भी नहीं मिलाती , इस पर चाहे कोई मुझे नकचढ़ी कहे या घमंडी !
मैंने पीछे हटते हुए माँ से थोड़े नाराजगी भरे लफ्जों में पूछा ." अब ये नई बहन कहाँ से आ गयी मेरी ". तब तक वह महिला मां के गले में लटक चुकी थी " अरे , सामने ही रहती है , कुछ ही दिन हुए है आये हुए ." तब तक उसके गेट पर कोई युवक आ पहुंचा . माँ से यह कहते हुए कि उसके देवर आये हैं , वह महिला खिसक ली .
अब मैं माँ पर बिगाड़ने लगी । तुम यूँ ही किसी पर विश्वास कर लेती हो , पता नहीं कौन है , क्या है , बेटी बना लिया ...
अरे , गरीब मजदूर है बेचारी , मम्मी -मम्मी करते हुए आ जाती है तो कैसे परे धकेलूं । देख कितनी मुश्किल में रह रही है , घर में लाईट भी नहीं है , इसका आदमी भी कहीं बाहर नौकरी करता है .ये भी पास ही फैक्ट्री में काम करती है .
माँ तुम भी ना ....जानती हूँ , कितनी भोली हैं , जरा सा कोई आँख से आंसूं टपका दे , अपनी परेशानियों का रोना रो दे , बस झट से पिघल जाती हैं , कितना ही समझा लो कि माँ , ये तुम्हारी मिल कोलोनी नहीं है , ये शहर है , यहाँ लोगों को पहचानना इतना आसान नहीं है , नहीं मानती है !
तीन चार दिन तक मैं रही वहां और देखती रही कि उसके घर जाने कैसे अजीब से लोंग आते हैं , जब भी माँ पूछती तो यही जवाब कि मेरा देवर है. मैं माँ पर झुंझला रही थी ," कितने देवर हैं इसके , हर बार कोई नई शकल नजर आती है " .
मेरी भोली माँ समझाती मुझे ," इसके ससुराल का बहुत बड़ा परिवार है , मौसी , मामा , चाचा आदि के लड़के आते रहते हैं यहाँ मिलने "
मैंने माँ को टोका , मुझे ठीक नहीं लग रहा , कभी कोई महिला तो नहीं आती इससे मिलने ..और देवर हैं ,अभी घर में लाईट नहीं है तो इस अँधेरे में अकेले क्या करते हैं घर में ...
अभी कुछ दिन पहले आई थी इसकी मौसी सास ,मेहमान को चाय- नाश्ता नहीं बना कर खिलायेगे क्या , गरीब है इसलिए तुम लोंग हर वक़्त इस पर अंगुली उठाते रहते हो ...
मेरी माँ तो पुरानी हिंदी फिल्मों वाली टिपिकल मां है !
खैर , मैं घर लौट आई वापस अपनी गृहस्थी में मगन , मगर मुझे बार -बार वह महिला ध्यान आती रही । लगभग एक सप्ताह बाद माँ का फोन आया ." तुझे पता है , वो सामने रहती है न मीना, वो बहुत बुरी औरत निकली , कोलोनी वालों ने उससे तुरंत मकान खाली करवा लिया है और आस पास दिखाई भी नहीं देने की चेतावनी दी है .
अब बोलो माँ , तुम कैसी महिला को मेरी बहन बना रही थी .भगवान् बचाए ऐसे भाई -बहनों से !
मन खराब हो गया था ।छत पर यूँ ही टहलते देखा किसामने तीन मंजिला बिल्डिंग के फ़्लैट की बालकनी में एक आधुनिका स्ट्रिप वाली ड्रेस पहने अपने लैपटॉप से उलझी पड़ी मुस्कुरा रही थी . कल ही उनकी पड़ोसन बता रही थी ,पता नहीं कौन है , अकेले रहती है , संडे को अक्सर कोई आता है , तेज संगीत के साथ नाचने- गाने की आवाजें आती हैं , देखते हैं एक दो दिन नहीं तो इसके मकान मालिक से शिकायत करनी पड़ेगी .
मुझे फिर वही मीना याद आ गयी , क्या पता चलता है , किस भेस में कौन मिल जाए !!
सोच रही हूँ जब वास्तविक दुनिया में इंसानों को पहचानना इतना आसान नहीं है तो अंतरजाल पर तो ??
बहुत बहुत बहुत ही मुश्किल है ...वैसे माँ के साथ जो वार्तालाप चला है , लगा मेरे बच्चे मुझसे बोल रहे हैं . सच पूछा जाए तो आदमी पहचान में आता है, यह मन की कमजोरी आड़े आ जाती है और बेवजह दयनीय भाव लिए मुस्कुराने लगता है ....
जवाब देंहटाएंमाएं भावनाओं से ज्यादा सोचती हैं .. आज कल का माहौल सच ही सतर्क रहने का है .. पर कभी कभी सच्चे लोगों पर भी संशय हो जाता है ... संवेदनशील मन अक्सर वो नहीं देख पाता जो वास्तविकता होती है ..इंसान जैसा स्वयं होता है वैसा ही दूसरों के बारे में धारणा बना लेता है .. विचारणीय पोस्ट
जवाब देंहटाएंमेरी माँ तो पुरानी हिंदी फिल्मों वाली टिपिकल मां है !
जवाब देंहटाएंमेरी माँ भी : ) सच कहा आपने उनके मन में सच में दूसरों की सहायता का भाव ही रहता है....
आप की माँ जैसे लोगों की इस दुनिया में बहुत ज़रूरत है. जिसके मन में सच्चाई होती है वही दूसरों पर विश्वास कर पाता है.
जवाब देंहटाएंNice post .
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लेन-देन के पीछे छिपी हक़ीक़त को बेनक़ाब होता हुआ देखने के लिए हमने एक कहानी लिखी है
आप क्या जानते हैं हिंदी ब्लॉगिंग की मेंढक शैली के बारे में ? Frogs online
वाणी जी, आप की मां की तरह मैं भी सहज ही लोगों पर विश्वास कर लेता हूं। अधिकांश बार धोखा खाता हूं, ठगा जाता हूं। अर्थ की हानि होती है तो कह लेता हूं .. क्या हुआ ... ले गया, मेरी क़िस्मत तो नहीं ले गया। और जब धोखा खाता हूं तो ... कोई बात नहीं खाने की आदत बन गई है।
जवाब देंहटाएंआपके इस आलेख से कई ऐसी बातें याद आ गईं। “फ़ुरसत में ...” शेयर करूंगा।
सच कहा और सच लिखा आपने। पर एक शिकायत है आपको 'मजदूर टाइप'जैसे जुमले इस्तेमाल करने से बचना चाहिए। इसमें एक तरह का पूर्वाग्रह दिखाई देता है। मजदूर वो है जो मेहनत करता है। इसलिए उसे इस हिकारत से मत देखिए।
जवाब देंहटाएं@सही कहा आपने , हटा दिया है इसे ...
जवाब देंहटाएंआभार !
शुक्रिया वाणी जी।
जवाब देंहटाएंvaani
जवाब देंहटाएंsehaj vishvaas kar lena hamsey pehli peedhi kaa shahswat sach haen maeri maa bhi aesi hi haen
lekin aaj kae samay mae yae galat haen
vridh logo ko bahut saawdhani sae apnae ghar me kisi ko aanae dena chahiyae
mujh badaa samay lagaa apni maa ko yae smajhnae me
bahut badhiyaa lagii yae post
vivaahit stri kae liyae maayake aa paana kitna mushkil haen yae apni chhoti behan ko daekh kar smajh aataa hae ek hi chahar me haen wo bhi par samay nahin miltaa
vaese सोच रही हूँ जब वास्तविक दुनिया में इंसानों को पहचानना इतना आसान नहीं है तो अंतरजाल पर तो ??
mat sochiyae aap kaun si blog meet me jaatee haen aur kitno sae miltee haen
tippani paaney kae liyae risk nahin lena haen kyu sahii kehaa naa {sandarbh ek meethi post by satish saxena aur aap kaa kament }
कई बार तो हम जिनको बरसों से जानते है वे ही वैसे नहीं निकलते तो अंतरजाल की क्या बात करे |
जवाब देंहटाएंमेरे पड़ोसी ने मुझे बताया की हमरी बिल्डिंग में नई नई किराये पर अकेली रहने आई लड़की ठीक नहीं है रात ग्यारह बजे बिल्डिंग के परिसर में मोबाईल पर लड़को से बात करती है देर रात घर आती है | मैंने सवाल किया की आप ने कब देखा उन्होंने कहा अभी परसों की ही तो बात है मैंने कहा आप को ठीक से याद है की परसों की बात है उन्होंने कहा हा, मैंने कहा ये संभव नहीं है क्योकि परसों रात तो हम सभी आप के घर में रात तक थे क्योकि बिल्डिंग में आचानक से जलने की महक आ रही थी और काफी रात तक हम सब बाते कर रहे थे फिर आप उस लड़की को देखने कब चले गये | चलिये मानते है की किसी और दिन देखा होगा तो आप को कैसे पता चला की वो लड़को से ही बात कर रही है और फिर वो अकेले रहती है उसे किसी से बात करना होगा या कुछ भी करना होगा तो बड़े आराम से अपने घर में कर सकती है परिसर में घूमने की उसे क्या जरुरत है और आज कल तो बहुत सारी लड़किया रात की शिफ्ट में काम करती है बेचारे चुप हो गए | वाणी जी ये सब नया नहीं है समाज में हमेसा से अकेले रह रही लड़की महिलाओ के शक की नजर से देखा जाता है खासकर पुरुषो द्वारा उनके बारे में कई इस तरह की बाते फैलाई जाती है | वही वो महिला यदि उन पुरुषो से बात करने लगे तब उन्हें कोई परेशानी नहीं होती है | कभी इस कोण से भी सोच कर देखिएगा |
@ अंशुमाला जी ,
जवाब देंहटाएंहर अकेली रहने वाली लड़की ऐसी नहीं होती , मैं सहमत हूँ , क्योंकि आत्मनिर्भर लड़कियों को नौकरी के लिए बहुत बार अकेले रहना पड़ता है और मैंने ये नहीं कहा कि वह महिला सही थी या गलत .चूँकि मेरी मां और उसके पड़ोसियों ने यह सब देखा और यदि इंसान एक बार चोट खा जाये तो वह सबको शक भरी निगाहों से देखता है, सतर्क रहने की जरुरत तो है ही !
@ मुद्दा रिश्तों की आड़ में घर में घुसपैठ करने वालों का है !
जवाब देंहटाएंऔर आपका यह कहना सही है की वास्तविक जीवन में हीवर्षों से जिसे हम जानते हैं , वे ही वैसे नहीं निकलते तो अंतरजाल की तो बात ही क्या है ...
मैं इससे भी सहमत हूँ की कई बार लड़कियां या महिलाएं किसी खास को भाव नहीं दे रही हों , तब भी ऐसी अफवाहें फैलाई जाती हैं ! क्योंकि इनपर दोषारोपण का सबसे आसान तरीका यही है !
मैंने एक कहानी भी लिखी है इस पर ...http://vanigyan.blogspot.com/2009/11/2.html
माँ तो हमेशा ही सरल हृदय की होती हैं!
जवाब देंहटाएंBahut rochak...
जवाब देंहटाएंतुम्हारी माँ जैसे लोग...सदियों से इस समाज में होते आए हैं...और रहेंगे....कुछ अलग ही मिटटी के बने होते हैं ये लोग...और समाज के लिए प्रेरणा भी...वर्ना...लीक पर तो हर कोई चल लेता है...इस से बातें करना है...उस से नहीं...फलां से नाता रखना है चिलां से नहीं..लीक से अलग चल कर दिखाने वालों को नमन..
जवाब देंहटाएं'बुरी औरत' की जगह उसे किसी ने सिर्फ 'औरत' के रूप में भी देखा.
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ।
जवाब देंहटाएंसोच रही हूँ जब वास्तविक दुनिया में इंसानों को पहचानना इतना आसान नहीं है तो अंतरजाल पर तो ...bilkul sach kaha aapne..
जवाब देंहटाएंbahut achhi rochak prastuti...
@ सच है , मेरी माँ सबसे अलग है , उसपर दुनियादारी का बिलकुल भी असर नहीं है और तमाम शिकायतों के बावजूद मुझे उन पर गर्व है ...पता नहीं कितने लोगों की किस तरह से मदद की होगी उन्होंने , उनका यही गुण हम बच्चों में , विशेषकर मेरे छोटे भाई में कभी- कभी झलक जाता है ...
जवाब देंहटाएंलीक से हटकर एक औरत के रूप में उसे देखना अच्छा सन्देश है , मगर अपनी अच्छाई के कारण वे स्वयं या उनका परिवार किसी मुसीबत में ना आ जाये , बस इसलिए ही फिक्रमंद रहते हैं हम लोंग !
आज की दुनिया मे सच और झूठ मे फ़र्क करना बहुत मुश्किल हो गया है और हर इंसान कभी ना कभी ऐसे हालातो से दो चार जरूर होता है अपनी ज़िन्दगी मे और धोखा खाने पर ही अकल आती है।
जवाब देंहटाएंदुनिया में बहुत छलावा है आजकल । जो दिखता है , वो अक्सर वैसा होता नहीं ।
जवाब देंहटाएंशायद भोले भाले लोगों के लिए बड़ा मुश्किल है दुनिया को समझना ।
माँ का स्वभाव सहज होता है, क्या करें पर वही सहज स्वभाव हमें प्रिय भी होता है।
जवाब देंहटाएंमेरी मां इन मामलों में बड़ी सतर्क रहती है. बहुत ठोक बजाकर देख लेगी. अच्छा आलेख. आभार.
जवाब देंहटाएंkalyug ki kadvi sacchayi ko darshati sunder post.
जवाब देंहटाएंsach me yaha kisi ko bhi pehchaanNa mushkil hai.
एक उम्र के बात वातसल्य के अलावा कुछ सोचना मुश्किल हो जाता है, और यही बात शायद मां के हृदय में होती है. किसी भी बात को दूसरे नजरिये से बुजुर्ग जन नही देख पाते.
जवाब देंहटाएंरामराम
सही कहा आपनें,साथ-साथ वर्षों रहने के बाद भी इस देश में पति-पत्नी भी एक दुसरे को पूरी तरह जान नहीं पाते.
जवाब देंहटाएंलेकिन इसके भी कुछ अपवाद भी होंते हैं-कुछ लोग इसी समाज में खुली किताब की तरह है जिन्हें जब कोई चाहता है पढ़ सकता है.
आभार.
"मेरी बहुत बुरी (?) बुरी आदत है , मैं जल्दी से किसी अनजान को गले लगाना तो क्या हाथ भी नहीं मिलाती , इस पर चाहे कोई मुझे नकचढ़ी कहे या घमंडी!"
जवाब देंहटाएंमैं यहीं बैठे आपके इस व्यवहार को जानता हूँ ,अब बदल पाना भी मुश्किल है !
यह तो एक टिपिकल महिला पोस्ट हो गयी! महिला मनोवृत्ति का अच्छा अध्ययन हुआ!
सच है, लेकिन आत्मिक प्रसन्नता की यही कीमत है।
जवाब देंहटाएंare aap anjan insaan kee bat ka vishvas karne kee kahati hain, aaj jo dekh rahe hain usamen to kitne apanon ne hi vishvasghat kar jaan le lee.
जवाब देंहटाएंmaan kee tarah se mera bhi svabhav hai. kisi bhi dukhi ya asahay kee madad ko taiyar ho jati hoon aur baad men jab pata chalta hai ki vah to bevakooph bana rahi /raha tha to thodi der ko kasht hota hai phir vahi kaam.
बहुत चिंतनीय आलेख है वीणा जी ! एक इंसान का दूसरे इंसान पर सहज विश्वास कर लेने का जज्बा वन्दनीय है और दुनिया में आज भी इंसानियत कायम है इस बात को प्रमाणित भी करती है लेकिन ऐसे लोग भी तो इसी दुनिया में मिल जाते हैं जो अमानत में खयानत करते हैं और रिश्तों की आड़ लेकर पीठ में छुरा भोंकने का मौक़ा तलाशते रहते हैं इसलिए सावधानी और सतर्कता बरतने की बहुत सख्त ज़रूरत है ! आपकी माँ के लिये मन में अपार श्रद्धा उमड़ रही है ! उन्हें मेरा प्रणाम अवश्य कहियेगा !
जवाब देंहटाएंरात को ही आपकी पोस्ट चर्चा मे डाली सुबह गायब....क्या हुआ वाणी जी इतनी खूबसूरत पोस्ट को गायब कर दिया आपने?
जवाब देंहटाएंचर्चा में आज नई पुरानी हलचल
@ सुनीता जी ,
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं बहुत इकट्ठी हो गयी थी , बस इतनी ही चाहिए थी !
वाणी जी,
जवाब देंहटाएंरात को आपकी पोस्ट पढ़ी, सोचा था सुबह कमेंट दूंगा, लेकिन सुबह आपकी वो पोस्ट ही दिखाई नहीं दे रही...
ब्लॉगिंग के दो साल के उत्कृष्ट रचनाकर्म के लिए बहुत बहुत बधाई...
वाणी की ये वीणा सबको हमेशा यूं हीं आनंद से सराबोर करती रहे...
जय हिंद...