शुक्रवार, 9 मई 2014

रोशनी है कि धुआँ..... (8 )



मध्यम वर्ग में पली बढ़ी तेजस्वी अपने तेज के दम पर ही आगे बढती आयी है , कार्यालय की मुसीबतों से लड़ कर विजयी होते इस बार उसने लडाई लड़ी अपनी सखी के लिए , साथ ही उस स्त्री के लिएभी  , जिसने बेटी के रूप में लड़कियों को ताना या निपटा दी जाने वाली जिम्मेदारी ही समझा था . 

अब आगे ...

                                   


मिसेज वालिया ने बेटी के दिन पर दिन पीले पड़ते चेहरे और खाना खाने की इच्छा नहीं होने को बिगड़ते रिश्ते के कारण तनाव और पढाई के साथ कॉलेज की भागदौड़ ही समझा था , मगर एक दिन जब कॉलेज से लौट कर बेहद थकान के साथ सीमा ने खाया पीया सब उलट दिया तो उन्हें चिंता होने लगी थी उसके स्वास्थ्य की भी . लेडी डॉक्टर ने बधाई के साथ जो सूचना दी , उसने एकबारगी उन्हें खुश भी किया था , शायद आने वाले बच्चे की ख़ुशी में परिवार के मतभेद सुलझ सके , मगर सीमा और अधिक चिंतित हो गयी थी . मिसेज वालिया यह खुशखबरी लेकर सीमा के ससुराल पहुंची तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं था , सौरभ घर पर ही मौजूद था , वह दुबई से अपनी नौकरी छोड़ कर आ चूका था . उसके माता पिता ने बहुत अधिक प्रसन्नता न जाहिर करते हुए भी वे सीमा को अपने घर छोड़ जाने की ख्वाहिश प्रकट की , मगर सौरभ ने इस पर कुछ नहीं कहा और वहां से उठकर चला गया . उसी शाम  सीमा के फोन पर सौरभ का फोन आया तो जो थोड़ी बहुत उम्मीद बची थी , वह भी टूट गयी . नशे में फोन पर ही भारी गालीगगलौज करते हुए उसके चरित्र पर अंगुली उठाते सौरभ का यह रूप इससे पहले सीमा ने नहीं देखा था . सौरभ का यह रुख देखते सीमा तय नहीं कर पा रही थी कि वह आगे क्या करेगी , उसकी पढाई , करिअर , जीवन सब अधरझूल में था . अँधेरे आंसुओं में डूबते एक रात पेट में उठे भीषण दर्द ने उसे अस्पताल पहुंचा दिया , आने वाली जिंदगी ने खुद अपना रास्ता तलाश कर लिया था , उसने मुक्त कर दिया सीमा को. यह खबर जब सीमा के के ससुराल पहुंची तो तीनो प्राणी चीख पुकार उठे कि उनके खानदान के वारिस को जानबूझकर इस दुनिया में आने नहीं दिया गया . सीमा और उसके माता पिता हैरान थे कि कल तक जिस बच्चे को स्वीकार ही नहीं किया जा रहा था , वह इतना अजीज हो गया आज कि उसके न होने का कारण भी सीमा के मत्थे ही मंड दिया गया . मगर सीमा के लिए मुश्किलें यही समाप्त नहीं होने वाली थी , हॉस्पिटल से घर पहुँचते उसके सामने कानूनी नोटिस था जिसके अनुसार वह घर के कीमती जेवर और रुपयों के साथ लापता थी . उस नोटिस का जवाब देने के लिए वकील से मिलने जुलने का दौर चल रहा था इन दिनों !गहरी सांस लेकर सीमा ने अपनी कहानी समाप्त की .  उत्पीडन और शोषण के अनेकानेक केस से रूबरू होने के बाद भी तेजस्वी को इस मामले में कुछ कहना सूझा नहीं . खिड़की से बाहर देखा उसने , बाहर घिरता अँधेरा उसके दिल में घर करने लगा था जैसे मगर  अपनी सखी से सब कहकर सीमा का मन हल्का हो गया था .  अब वह बहुत संयमित लग रही थी .
चलती हूँ अब , बहुत रात हो गई सी दिखती है .
सॉरी , यार . तुम दिन भर से थकी मांदी लौटी थी , अपना दुखड़ा रोने में मैंने यह ध्यान ही नहीं रखा .
कोई बात नहीं  , मुझे अच्छा लगा कि मैं तुम्हारे लिए इतनी विश्वसनीय हूँ कि तुम बेहिचक सब कह सकी . चिंता मत करो , सब ठीक ही होगा . अपनी परीक्षा की तैयारी अच्छी तरह करो , कुछ मदद चाहती हो तो भी कहना .
अवश्य ही , खाना खा लो बेटा. मिसेज वालिया उसे बड़े स्नेह से कह रही थी . उनके शब्दों की आर्द्रता ने छुआ तेजस्वी के मन का कोई कोना , बीत कुछ वर्षों की कडवाहट जो उसने कभी जाहिर नहीं की थी , घुल कर बह गयी जैसे उसमे .
नहीं आंटी , माँ इन्तजार करती होंगी . आप सीमा का ख्याल रखिये . मैं अभी चलती हूँ ....स्नेह से भरी तेजस्वी  ने जवाब दिया और दरवाजा खोल कर बाहर निकल आई . माँ-पिता और भाई बहन खाने पर लिए उसका ही इन्तजार कर रहे थे . माँ ने कुछ पुछा नहीं , सिर्फ खाना परोसती रही . तेजस्वी को माँ की यह बात भी बहुत पसंद आती है कि वे चुप रखकर सुनने का इन्तजार करती है . खाने के बाद बालकनी में बैठी माँ बेटी देर रात सीमा की परेशानियों पर विचार करती रही , क्या हल निकलेगा इसका !!
अगला दिन बहुत व्यस्त था तेजस्वी की लिए , सीमा के माता पिता के साथ वह भी वकील बत्रा से मिलने चली गयी थी. उन्होंने सीमा को कोर्ट में प्रताड़ना का केस दर्ज करवाने की सलाह दी मगर वह इसके लिए तैयार नहीं थी . उसके मन में हलकी सी उम्मीद थी कि वह सौरभ से मिलकर बात करेगी तो शायद बात संभल जाए . आखिर तेजस्वी के प्रयासों के फलस्वरूप मध्यस्थ की सहायता से सीमा के कॉलेज में सौरभ का आना तय हुआ क्योंकि वह उसके घर आने के लिए बिलकुल तैयार नहीं था . सौरभ सीमा से मिलने कॉलेज पहुंचा तब भी नशे में ही धुत था . सीमा ने  अपना पक्ष समझाने की बहुत कोशिश की , मगर सौरभ टस से मस ने हुआ.  सीमा का हाथ पकड़कर ग्राउंड में ले आया और चीखने चिल्लाने  लगा ,  कॉलेज के अन्य साथियों ने भरसक प्रयास कर उसे चुप कराया और उसकी गाडी में ले जाकर बैठाया . सुलह की यह आखिरी कोशिश नाकाम हो गयी थी , मगर पास ही मौजूद तेजस्वी के कैमरे में उसकी हरकतें कैद हो चुकी थी . तेजस्वी ने जब यह मिसेज वालिया और उनके परिवार को दिखाया तो वे समझ गए कि अब सुलह की कोई गुन्जाइश नहीं रही हालाँकि वे यह भी जानते थी कि कोर्ट में सीमा के चरित्र हनन की कोशिशों को सामना करना इतना आसान नहीं था . तेजस्वी ने अपने कैमरे की गवाही के साथ ही सौरभ की नशे की आदतों , बुरे व्यवहार  एक मजबूत पक्ष अवश्य खड़ा कर लिया था . तेजस्वी ने सीमा को कुछ बताये बिना ही उसके सास ससुर से अपने सुबूतों के साथ संपर्क किया तब वे समझ चुके थे कि अब सीमा को कोर्ट में बुलाना उनके लिए मुसीबत हो सकता है . वे हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगने लगे और सीमा को वापस ससुराल बुला लेने की बात भी कर उठे .  तेजस्वी जानती थी कि उसके लिए इस तनावपूर्ण  तकलीफदेह व्यवहार को भूला पाना संभव नहीं होगा मगर वह सीमा से मिलकर ही आखिरी फैसला करना चाहती थी . सीमा ने सौरभ के साथ आगे जीवन बिताने में असमर्थता प्रकट की . आखिर तय यह हुआ कि आपसी सहमति के आधार पर तलाक लिया जाएगा , और सीमा के विवाह में होने वाला खर्च , दहेज़ में दिया गया सामान सहित  उसका स्त्रीधन उसे वापस दिया जाएगा . भरण पोषण के लिए सौरभ से रकम लेने में सीमा की कोई रूचि नहीं थी .
तेजस्वी को सीमा के लिए दुःख अवश्य था कि मात्र 24 वर्ष की उम्र में उसने क्या नहीं देखा , मगर फिर भी उसके मुश्किल समय में मददगार होने का आत्मसंतोष भी था.
मिसेज वालिया को समय ने सबक दिया है कि बेटी का विवाह हो जाना ही कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है , उनके सामने सपनों , महत्वाकांक्षाओं का विस्तृत संसार है , उनका साथ देना है , उत्साह बढ़ाना है .जब तब तेजस्वी की सहायता से  गदगद हुई जाती बलईंयाँ लेती हैं , बेटी हो तो तेजस्वी जैसी !
सीमा के जीवन में भी धीरे- धीरे खुशियाँ लौट आएँगी . कडवे दुखद समय को भूलने में कुछ समय तो लगेगा ही . समय ने उसे सिखाया है बहुत कुछ ....
तेजस्वी ने जो बाहर की दुनिया में सीखा , सीमा को घर की चाहरदिवारियों ने ही सिखाया . चुनौतियाँ , कठिनाई , कहीं भी कम नहीं !
अब मिसेज वालिया नहीं करती किसी पर कटाक्ष , यही कहती नजर आती है - बेटी है तो क्या , पढाओ लिखाओ , अपने पैरों पर खड़ा करो , जीने दो उन्हें अपनी जिंदगी , शादी /विवाह भी समय पर हो ही जायेंगे !!
तेजस्वी की एक और यात्रा पूर्ण हुई , हालाँकि चुनौतियों का सफ़र सतत है . उसे अभी अपने जीवन के अनगिनत सोपान इसी दृढ़ता और साहस के साथ तय करने हैं !!
धुंए के पार रोशनी है , विश्वास और  दृढ़ता कायम रहे तो धुंध को चीर कर रोशनी की लकीर पहुँचती ही है !!

(पूरी कहानी को दो भागों में एक साथ यहाँ भी पढ़ा जा सकता है )


चित्र गूगल से साभार!


21 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (10-05-2014) को "मेरी हैरानियों का जवाब बस माँ" (चर्चा मंच-1608) पर भी होगी!
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. हमारे परिवेश का कटु सत्य समझाती हुयी यह कहानी किस तरह एक सार्थक सीख पर आ पहुंची, अच्छा लगा पढ़कर | सच, अब इस दृष्टिकोण से भी सोचना होगा बेटियों के लिए | खुशियों के मायने नए ढंग से परिभाषित करने होंगें |

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    1. भय को परे हटाकर खुशियों भरा जीवन बेटियां भी चाहती हैं , आजकल अभिभावक भी यही सोचते हैं और बच्चियां जबरदस्ती रिश्ता निभाये जाने से मुक्त हैं , सकारात्मक सोच है समाज की !!

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  3. भरण पोषण की रकम लेने में सीमा की रूचि नहीं होना ?
    असहज संबंधों / पीड़ा दाई संबंधों / लगभग एकपक्षीय संबंधों को ढोना सरासर मूर्खता है जिसे सीमा ने काफी लंबे समय तक ढोया !
    असहज संबंधों से मुक्ति / परित्याग / विच्छेद को भी आलोक माना गया ये बात जमती है !
    आख़िरी किश्त ज़रा ज़ल्दबाज़ी में समेट दी गई लगती है ,संभवतः कुछ विघ्नसंतोषी मित्रों का दबाब रहा हो :) बहरहाल कथा को आठों किश्तों में पढ़ने के बाद ही टिप्पणी करना चाहिए मुझे, देखता हूं कि यह कब संभव होगा ?

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    1. विवाह में खर्च होने वाली रकम और स्त्रीधन के रूप में वह अपना अधिकार ले चुकी है , इसलिए आगे भरण पोषण के खर्च में उसकी रूचि नहीं .
      असहजता रिश्तों में मुक्ति मांगती थी !!

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  4. हम्म स्त्री पर अत्याचार की कहानी ......
    ये ही कड़ी पढी अभी ......एक कारन कभी समझ नहीं आया .....लड़की और लड़की के परिवार वाले हमेशा डरते क्यों हैं?

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    1. वास्तव में कहानी की मूल भावना स्त्री पर अत्याचार से अधिक यह है कि परिवारों में बहुत सी घटनाएँ ऐसी होती है जो प्रत्यक्षतः अत्याचार नजर नहीं आती . इस कहानी में भी दिखने में प्रतिष्ठित परिवार है , सुशील लड़का है , मगर लड़की भय के साए में है बिना किसी शारीरिक अत्याचार के . परिवारों के इस प्रकार के शोषण को खुल कर बताया नहीं जा सकता और किसी पत्नी या बेटे के लिए इसे स्वीकार करना भी मुश्किल होता है . यह कहानी भय से मुक्ति की है .
      अच्छा लगता है देखकर कि आजकल लड़कियां और उनके परिवार वाले डरते नहीं है . मगर स्वयं भयभीत न होना अच्छा है बशर्ते दूसरों को भय के साए में न रखा जाए , तस्वीर के इस दूसरे रुख पर भी लिखनी है कहानी जल्दी ही !!

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  5. kahani ka prvaah ekdam badiyaa ek sans mein padh gyi .....Happy blogging ...... kabhi hamari likhi kahaniyaan bhi padhe hamare blog par :)

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  6. चुनौतियों की धार पर शिक्षा देती कहानी

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  7. लड़कियों का स्वावलंबी होना बहुत जरूरी है! सच में।

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  8. धुंए के पार रोशनी देखने का साहस और विश्वास ही बेटियों को देना होगा । सार्थक सीख देती अच्छी कहानी। कहानी में निरंतर प्रवाह बना रहा ।

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  9. इस तरह अभिभावकों का लड़कियों का साथ देना ..हर हाल में निभाये जाने की सीख से परे ,उन्हें नयी ज़िन्दगी शुरू करने में सहयोग देना बहुत ही अच्छे संकेत हैं . कहानी इस बदलती हुई सोच को परिलक्षित करती है.

    सकारात्मक सोच को दर्शाती कहानी बहुत अच्छी लगी .

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  10. अभी तो यही किश्त पढी है पर सीमा और तेजस्वी दोनों ही किरदार आज की लडकियों के सामने उदाहरण हैं । लडकियों को अपने मर्जी की शिक्षा दिलाना ौर अपने पैरों पर खडा करना माँ बाप का कर्तव्य है।

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  11. सीमा को इन्साफ दिलाने के बाद कहानी ख़त्म हो जायेगी ... अंत आते आते ही पाता चला ... शायद जल्दी ख़त्म हो गयी है कहानी ...
    पूरी कहानी सामाजिक ताने बाने और अपने समाज में स्त्री के सामने आने वाली चुनौतियां को मध्य रख रची गयी है ... संवेदनशीलता लिए रोचकता बनी रही कहानी के अंत तक ... बहुत बहुत बधाई ...

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  12. अरे ये क्या। ।ये किश्त तो ताबड़ तोड़ समेट डाली आपने। इतनी किश्तों की उत्सुकता और प्रभाव खत्म कर दिया :( . तेजस्वी के कुछ संघर्ष और कारनामे बाकि थे अभी.
    हालाँकि कहानी अच्छे नोट पर ख़त्म हुई है और सकारात्मक सोच की और प्रेरित करती है। फ़िर भी. । इस किश्त में पहली किश्तों जैसा मजा नहीं आया :(

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  13. धुंए के पार रोशनी है , विश्वास और दृढ़ता कायम रहे तो धुंध को चीर कर रोशनी की लकीर पहुँचती ही है !!


    nice conclusion.

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  14. बहुत ही सकारात्मक सोच, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  15. धुंए के पार रोशनी है , विश्वास और दृढ़ता कायम रहे तो धुंध को चीर कर रोशनी की लकीर पहुँचती ही है !!
    यक़ीनन ......

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