मंगलवार, 29 दिसंबर 2009
मतलब ....आंसू इतने घडियाली भी नहीं थे ......!!
कल दोपहर फिर एक लड़की आ खड़ी हुई दरवाजे पर खाने की गुहार करती हुई ...यह पहले भी एक दो बार आजमा चुकी थी
...
जब किसी मांगने वाली महिला को लॉन की सफाई करने पर ही कुछ देने की जिद कर ली थी ...वो महिला तो यह कहते हुई कि बाई , और घणा मिल जासी देबा वाला मुंह चिढाती फर्र से निकाल गयी थी और मैं मुंह बाए खड़े देखती ही रही कि बिना हाथ हिलाए तो खाना हमें भी नहीं मिलता ...क्या नसीब पाया है ...:)
उसके बाद किसी महिला को ना तो मैं कुछ देती हूँ और ना ही काम के लिए कहती हूँ ...
एक बार एक छोटा प्यारा सा बच्चा (यही कोई १०-१२ साल का) कुछ मांगता हुआ सा आया ...उस समय मैं बरामदा साफ़ कर रही थी ....तो मैंने उसे कहा कि वो यहाँ सफाई कर दे तो मैं उसे खाना और पुराने कपडे दे दूंगी ...वो झट से मान गया ...उसे तत्परता से काम करते देख उसे कुछ पुराने कपडे और खाना देना मुझे बहुत अच्छा लगा ...सोचा आज क्यों ना इस लड़की से लॉन की सफाई करवा ली जाये ...
मेरे पडोसी दमत्ति दोनों ही कामकाजी हैं ....इसलिए उन्हें छोटे से लॉन की सार सम्भाल करने का समय नहीं मिलता या फिर शायद इसमें ज्यादा रूचि भी नहीं है ...चूँकि दोनों छोटे से बगीचों में कोई विभाजन नहीं है इसलिए उनके पौधों में पानी डालना और कभी कभी माली से पौधों की कटाई करवाना आदि कार्य मैं ही कर देती हूँ , हाँ कभी कभी कटर लेकर मैं खुद भी काट छंट कर लेती हूँ ....इधर काफी लम्बे अरसे से माली आ नहीं रहा था तो उनका बगीचा बहुत बिखरा सा हो रहा है तो सोचा आज क्यों ना इस लड़की से थोड़ी सफाई करवा ली जाए ...
मैंने उसे कहा ..." तू अन्दर बिखरे सूखे पत्ते आदि हटा दे , मैं अन्दर जाकर देखती हूँ कि क्या कुछ है खाने के लिए .."
" अंटी जी , आज तो म्हारे साथ बकरी है ...मैं छोड़ ना सकूँ ...वा सगळा पेड़ पोधा खा जागी ...लोग लडेगा..."
मलतब बकरी भी पाल रखी है ...मुझे अच्छा लगा जान कर ...मैं यूं ही जान हलकान कर रही थी....
" कोई बात नहीं , तू कल सुबह जल्दी आ जाना ....यहाँ साफ़ कर देना और गरम ताजा खाना ले जाना ..."
आज बिना काम करवाए कुछ देने का मन नहीं कर रहा था ...
वो हामी में गर्दन हिलाती पलटकर जाने लगी ...एक दम से मुड कर मेरे पास आयी ....
" आंटीजी , आपने मेरी फोटो खिंची थी ना....'" ...मैं एक दम से चौंक गयी ...
" अरे , हाँ ...तू तो वही लड़की है ...आज तो पहचान में ही नहीं आ रही ...बिलकुल साफ़ सुथरी ...कही मैल का नामोनिशान नहीं , करीने से दो चोटियाँ बनी हुई ..."
हाँ , आप बोले था ना साफ़ सुथरा रहने को ..."
मुझे एकदम से हंसी आ गयी ....
" हां, मैंने ये भी तो कहा था मांगना भी अच्छी बात नहीं है ...." वो शर्माती हुई भाग खड़ी हुई ...
(फोटो नहीं खिंच पायी ...अगली बार तस्वीर ले सकूँ ....तब तक मेरे शब्दों पर ही विश्वास करना पड़ेगा )
उसे याद कर देर तक मुस्कराहट बनी रही ....मतलब ...मेरे आंसू इतने घड़ियाली भी नहीं थे ....कुछ तो कोशिश सफल हुई ...इसी तरह लगातार टोकाटाकी कर शायद मैं उसे भीख मांगना छोड़ स्कूल तक पहुँचाने में कामयाब हो सकूँ ....
रविवार, 27 दिसंबर 2009
असमय मासूमियत खोते बच्चे .......आपका क्या कहना है ....??
कल शाम को हम सभी डांस पर आधारित एक रिअलिटी शो देख रहे थे ....आजकल के बच्चों की प्रतिभा देख कर बहुत हैरानी होती है ....पढना लिखना खेल कूद और साथ साथ ही नाच गाने में उनकी प्रवीणता प्रभावित किये बिना नहीं रहती ....तभी एक बहुत ही छोटी मासूम सी बच्ची अपना डांस परफोर्म करने आई तो उसकी ड्रेस और भाव भंगिमाएं देखकर तो आँखे फटी ही रह गयी ....
बिपाशा बासु के गाने " जबां पे लागा लागा रे नमक इश्क़ का " पर उसी के अंदाज में उसी के इशारों के साथ थिरकती उस नन्ही बच्ची को देखकर मन जार जार रोया ...मैं सोचने पर विवश हो गयी क्या वह छोटी सी बच्ची इस गाने का मतलब समझती है , और गाने के साथ जो मुद्राएँ उसे सिखाई जा रही है उसे भी ...?
आज के प्रतिस्पर्धी समय में बच्चों को एक मुकाम हासिल करने की अभिभावकों की असीम महत्वाकांक्षा उनके साथ किस तरह का अन्याय कर रही है ....
इसमें कोई शक नहीं कि अधिकांश अभिभावक जो अपनी जिंदगी में जो स्थान स्वयं प्राप्त नहीं कर सके...जो सपने पूरे नहीं हो सके उसे अपने बच्चों द्वारा पूरा करते हुए देखना चाहते हैं ...यह कोई अस्वाभाविक इच्छा नहीं है ...मगर इन लालसाओं की पूर्ति के लिए बच्चों से उनकी मासूमियत छीन ली जाए , यह कहाँ तक उचित है ....यह कैसी अंधी दौड़ है जो इस नाजुक उम्र में उन्हें व्यस्क बना रही है ....बच्चों में संस्कारों के जो बीज हम बो रहे हैं , सबसे आगे बढ़ने के लिए उनसे जो अपेक्षाएं की जा रही है , उन पर जो मानसिक दबाव बनाया जा रहा है ......उसके बाद उनके दिशाहीन होने की शिकायत करना कहाँ तक वाजिब है ....
मांसाहारी परिवारों में बच्चे बहुत छुटपन से ही मांस खाते है , उनके लिए साग भाजी और मांस मछली में कोई अंतर नहीं होता ....यह तो वे व्यस्क होने पर ही समझ सकते हैं के मांस प्राप्त करने के लिए पक्षियों और जानवरों को जिबह होने के लिए कितनी पीड़ा से गुजरना पड़ता है ....
वैसे ही ये मासूम बच्चे जब तक यह समझ पायें कि ये अंधी दौड़ पतन की किस राह पर लेकर जायेगी , उस राह पर चलने के आदि हो जाते हैं ....
नाच गाना अभिनय यह सब स्वाभाविक कलाएं है और इन्हें सीखना और सिखाना कोई असामान्य इच्छा नहीं है मगर जिस तरह रिअलिटी शोज में छोटी उम्र के या व्यस्क बच्चे प्रतियोगिताएं संचालित किये जाने वाले जजों के आगे गिडगिडाते हैं , विभिन्न प्रकार के इशारे मान मनुहार कर उन्हें बस एक चांस देने के लिए मिन्नतें करते हैं .... यह सब देखना बहुत ही पीड़ादायक होता है ....
अभिभावकों द्वारा अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए बच्चों की मासूमियत को हथियार बनाकर उन्हें वक्त से पहले व्यस्क बनाने की इस घिनौनी प्रक्रिया पर मुझे तो सख्त ऐतराज़ है ...
आपका क्या कहना है .........??
चित्र गूगल के सौजन्य से ...
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बिपाशा बासु के गाने " जबां पे लागा लागा रे नमक इश्क़ का " पर उसी के अंदाज में उसी के इशारों के साथ थिरकती उस नन्ही बच्ची को देखकर मन जार जार रोया ...मैं सोचने पर विवश हो गयी क्या वह छोटी सी बच्ची इस गाने का मतलब समझती है , और गाने के साथ जो मुद्राएँ उसे सिखाई जा रही है उसे भी ...?
आज के प्रतिस्पर्धी समय में बच्चों को एक मुकाम हासिल करने की अभिभावकों की असीम महत्वाकांक्षा उनके साथ किस तरह का अन्याय कर रही है ....
इसमें कोई शक नहीं कि अधिकांश अभिभावक जो अपनी जिंदगी में जो स्थान स्वयं प्राप्त नहीं कर सके...जो सपने पूरे नहीं हो सके उसे अपने बच्चों द्वारा पूरा करते हुए देखना चाहते हैं ...यह कोई अस्वाभाविक इच्छा नहीं है ...मगर इन लालसाओं की पूर्ति के लिए बच्चों से उनकी मासूमियत छीन ली जाए , यह कहाँ तक उचित है ....यह कैसी अंधी दौड़ है जो इस नाजुक उम्र में उन्हें व्यस्क बना रही है ....बच्चों में संस्कारों के जो बीज हम बो रहे हैं , सबसे आगे बढ़ने के लिए उनसे जो अपेक्षाएं की जा रही है , उन पर जो मानसिक दबाव बनाया जा रहा है ......उसके बाद उनके दिशाहीन होने की शिकायत करना कहाँ तक वाजिब है ....
मांसाहारी परिवारों में बच्चे बहुत छुटपन से ही मांस खाते है , उनके लिए साग भाजी और मांस मछली में कोई अंतर नहीं होता ....यह तो वे व्यस्क होने पर ही समझ सकते हैं के मांस प्राप्त करने के लिए पक्षियों और जानवरों को जिबह होने के लिए कितनी पीड़ा से गुजरना पड़ता है ....
वैसे ही ये मासूम बच्चे जब तक यह समझ पायें कि ये अंधी दौड़ पतन की किस राह पर लेकर जायेगी , उस राह पर चलने के आदि हो जाते हैं ....
नाच गाना अभिनय यह सब स्वाभाविक कलाएं है और इन्हें सीखना और सिखाना कोई असामान्य इच्छा नहीं है मगर जिस तरह रिअलिटी शोज में छोटी उम्र के या व्यस्क बच्चे प्रतियोगिताएं संचालित किये जाने वाले जजों के आगे गिडगिडाते हैं , विभिन्न प्रकार के इशारे मान मनुहार कर उन्हें बस एक चांस देने के लिए मिन्नतें करते हैं .... यह सब देखना बहुत ही पीड़ादायक होता है ....
अभिभावकों द्वारा अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए बच्चों की मासूमियत को हथियार बनाकर उन्हें वक्त से पहले व्यस्क बनाने की इस घिनौनी प्रक्रिया पर मुझे तो सख्त ऐतराज़ है ...
आपका क्या कहना है .........??
चित्र गूगल के सौजन्य से ...
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रविवार, 20 दिसंबर 2009
आप कभी झगड़ते नहीं .....!!
मेरी सबसे प्रिय पत्रिका " अहा ! जिंदगी " के एक अंक का एक शीर्षक " सुख के लिए झगडा करो " ने मुझे बहुत प्रभावित किया ....अपनी सुविधा से मैंने इसमें कुछ परिवर्तन किया है ...
" प्रेम के लिए झगडा करो " ...
बहुत पहले किसी पत्रिका से अपनी डायरी में ये अंग्रेजी कविता नोट की थी ...
कभी झगडा नहीं करने वाले .. क्या कुछ खो देते हैं ...
देखिये इस कविता में ....
लोर्ड मैकाले की कृपा से उनकी नौकरी करने लायक अंग्रेजी ही सीख पाए हैं ताकि अंग्रेजी शिक्षा में उनके योगदान को भुलाये नहीं और थोडा बहुत खुद समझ ले ...इसलिए अनुवाद की अपेक्षा मत कीजियेगा ...वैसे सभी पढ़े लिखे बंधू बांधवऔर बंध्वियाँ है ब्लॉग पर .....इसलिए इतनी अंग्रेजी तो समझ आ ही जायेगी ...
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" प्रेम के लिए झगडा करो " ...
बहुत पहले किसी पत्रिका से अपनी डायरी में ये अंग्रेजी कविता नोट की थी ...
कभी झगडा नहीं करने वाले .. क्या कुछ खो देते हैं ...
देखिये इस कविता में ....
Lovers Quarrel
Today
Once again
I have fought with you....
And I swore as usual
Never to talk to you
Anytime .....Anymore .....
but that was so long ago
(seven and half minutes to be exact )......
And now
Once again
I want to shout
To laugh
To cry
with you
But No
I won't
I'll hide my feelings
cause I want you
to sit by my side
And woo me
With your winsome word....
I want you to give me
That innocent look of
Unknown Guilt
And hide your head in my lap
And ask me affectionately
To fondle your hair
Like so many times
You have done before
I am dying to see
The radiance of all Million Stars
When I finally smile at you
And I know
You'll clasp me to your chest
And coddle me in your arms
When I 'll hide my face
And smile at your engaging
Innocence
And at the tricks that I play on you
And be again
On the look - out ...
Today
Once again
I have fought with you....
And I swore as usual
Never to talk to you
Anytime .....Anymore .....
but that was so long ago
(seven and half minutes to be exact )......
And now
Once again
I want to shout
To laugh
To cry
with you
But No
I won't
I'll hide my feelings
cause I want you
to sit by my side
And woo me
With your winsome word....
I want you to give me
That innocent look of
Unknown Guilt
And hide your head in my lap
And ask me affectionately
To fondle your hair
Like so many times
You have done before
I am dying to see
The radiance of all Million Stars
When I finally smile at you
And I know
You'll clasp me to your chest
And coddle me in your arms
When I 'll hide my face
And smile at your engaging
Innocence
And at the tricks that I play on you
And be again
On the look - out ...
लोर्ड मैकाले की कृपा से उनकी नौकरी करने लायक अंग्रेजी ही सीख पाए हैं ताकि अंग्रेजी शिक्षा में उनके योगदान को भुलाये नहीं और थोडा बहुत खुद समझ ले ...इसलिए अनुवाद की अपेक्षा मत कीजियेगा ...वैसे सभी पढ़े लिखे बंधू बांधवऔर बंध्वियाँ है ब्लॉग पर .....इसलिए इतनी अंग्रेजी तो समझ आ ही जायेगी ...
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शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009
दिल और दिमाग की कहासुनी
14 तारीख की शाम को अचानक ही फ़ोन ठप्प हो गया ...अब चूँकि इन्टरनेट और टीवी भी फ़ोन से ही जुडा है ...तो अचानक ही लगने लगा कि पूरी दुनिया से ही दूर हो गए हैं ...टेलीफोन विभाग से संपर्क करने पर पता चला कि पास में ही कहीं खुदाई में केबल को काफी नुकसान पहुंचा था ....लगभग 800 टेलीफोन एक साथ मृतप्राय हो गए ...ठीक होने में तीन चार दिन लगने की सम्भावना है ....संचार साधनों पर निर्भरता कभी कभी बहुत रिक्तता पैदा कर देती है ...मगर मोबाइल सुविधा और भारतीय गृहिणियों के पास बहुत सारे वैकल्पिक साधन मौजूद होने के कारण यह कमी इतनी ज्यादा नहीं खली ...बस फिक्र यही रही कि ब्लॉगजगत में कही भगोड़ा साबित नहीं कर दिए जाए ....और कुछ शुभचिंतक भी परेशान हो रहे होंगे कि अचानक कहाँ गायब हो गई.
इन्ही छुट्टियों (ब्लॉग छुट्टी ) में एक दिन शाम कों पतिदेव घर लौटे तो हाथ में हेलमेट के साथ भूरे रंग का लेडिज पर्स साथ लिए ...
मेरे दिमाग का पारा चढ़ता ...उससे पहले ही बोल उठे ..." रास्ते में गिरा पड़ा था ...पता नहीं किस जरूरतमंद का होगा ...अभी इसमें से एड्रेस देख कर फ़ोन कर दूंगा ..जिसका हो आकर ले जाए ..."
उनकी आशा के विपरीत मेरा पारा चढ़ ही गया ...
" क्या जरुरत थी आपको इसे उठा लाने की ...पड़े रहने देते वहीँ ....पता नहीं किसका हो ...इसमें क्या हो ...कही उलटे गले पड़ जाए कोई ...." मेरा बड़बड़ाना चालू हो गया ...
कुछ देर तो बेटियां भी मेरे साथ ही रही मगर पापा कों उदास देख झट पाला बदल लिया ...." बस ...मम्मी का रेडियो शुरू हो गया ...पूरी बात पूछेंगी नहीं ...पहले ही गुस्सा कर लेंगी ..." स्त्रियोचित गुण ही है यह प्रकृति प्रदत्त ...पिता की निरीहता बर्दाश्त नहीं कर सकती ...क्या करते हम भी ...आखिर सरेंडर कर ही बैठे ...
पर्स कों उलट पुलट कर देखा ...कुछ रुपये थे और एक मोबाइल भी ....मोबाइल स्विच ऑफ था ...जैसे ही उसे ऑन किया ...उसकी घंटी बज गयी ..." आप कहाँ से बोल रहे है , ये फ़ोन आपको कहाँ मिला ...."
" पहले आप बताएं कि आपने इस नंबर पर फ़ोन किया ...आपको यह नंबर कहाँ से मिला ...." पति देव पूरी तरह आस्वस्त होना चाह रहे थे ..कोई नकली उम्मीदवार ना टपक पड़े ....
" दरअसल ये मेरी पत्नी का नंबर है , अभी स्कूल से लौटे समय रास्ते में कही गिर गया ..." उक्त महाशय का जवाब था ...
" हाँ ...मुझे ये फोन रास्ते में पड़ा मिला मय पर्स ...कुछ रूपये भी है इसमें ...आप आकर ले जाए ..." पति ने उन्हें पूरा पता समझाते हुए आने के लिए कहा ...
अब इधर हमारी धुक धुक शुरू ...पता नहीं कौन हो ....कोई गुंडा मवाली टाइप हुआ तो...कही उलटे हमें ही चोर साबित कर पर्स में पैसे कम होने का शोर मचा दे ...आज कल आये दिन ऐसे किस्से होते हैं ...मेरा मूड एक बार फिर से बिगड़ने लगा था ....
मैंने पहले ही कहा था इसे फेंक आओ रास्ते में ...मगर अब क्या किया जा सकता था ...आगंतुक का इन्तजार करने के अलावा ...थोड़ी देर बाद फिर से वही फ़ोन बजा ...उक्त महाशय घर से थोड़ी दूर तक पहुँच गए थे मगर यहाँ तक आने का रास्ता नहीं मिल रहा था ...आखिर उन्हें वही रुक कर इन्तजार करने कों कह पतिदेव पर्स लिए रवाना होने लगे तो किसी अनहोनी की आशंका से भयभीत मैं भी बाईक की पिछली सीट पर जा बैठी ...उन महाशय के बताये पते पर पहुंचे तो कोई दो सज्जन सुनसान विद्यालय की बाहरी दीवार के सहारे बेंच पर बैठे दिख गए ...अब एक बार फिर से मन में बुरे ख्याल उपजने लगे ...इस अँधेरी रात में सुनसान सड़क पर कुछ दुर्घटना हो गयी तो ...
कड़क आवाज़ में पति उनसे पूछ बैठे ..." क्या बात है ....यहाँ क्यों बैठे हो ..." हम लोग जांचना चाह रहे थे कि क्या यही वो लोग तो नहीं जिनका पर्स ग़ुम गया है ....
वे दोनों एकदम से हडबडा उठे ..." अजी महाराज , म्हे तो अयांयी बैठ गा अठे ...."
उनसे और कुछ पूछते इससे पहले ही आगे से एक मोटरसायकील आ रुकी ...एक सज्जन अपने दो छोटे बच्चों के साथ मौजूद थे ..." आप शायद मुझे ही ढूंढ रहे थे ...." ..पति ने और उन महाशय ने एक दूसरे से हाथ मिलाया ..." सर , आजकल आप जैसे लोग कहाँ होते हैं , आप समझ सकते है एक मध्यमवर्गीय इंसान की हालत ...आपका बहुत धन्यवाद ..."
दोनों ने जब अपने परिचय का आदान प्रदान किया तो पता चला कि वे महाशय पतिदेव के दफ्तर की बिल्डिंग के दूसरे ऑफिस में ही कार्यरत हैं ...घर पास ही था इसलिए उन्होंने कृतज्ञता जताते हुए पतिदेव के चाय पीकर जाने के अनुरोध कों तुरंत स्वीकार कर लिया...इस तरह एक रोचक तरीके से एक और परिवार और सहकर्मी से जान पहचान हुई ...मगर मैं कहे बिना नहीं रह सकी...." हम तो इन पर नाराज हो रहे थे "...
उनको विदा कर रहत की साँस लेते हुए मैं कुछ देर सोचती रही...क्या मेरी सारी आशंकाएं निर्मूल थी ....दिल से सोचने वाली महिलाएं ऐसे मौकों पर अपनी व्यावहारिकता का परिचय देते हुए क्या दिमाग कों ज्यादा महत्व नहीं देती ...अक्सर पड़ जाती हूँ मैं इस दिल और दिमाग के चक्रव्यूह में ...
आज सुबह ही एक सन्देश था मोबाइल पर ....
To handle yourself , use your head....
To handle others , use your heart.....
इस सन्देश के साथ उपर्युक्त घटना कों जोड़े और अपने होठो पर आने वाली मुस्कराहट कों खिलखिलाहट में बदलने दे .......और महिलाओं द्वारा दिमाग पर दिल कों तरजीह देने की शिकायत कों खारिज करें ...हाल फिलहाल तो ......
रविवार, 13 दिसंबर 2009
सपूत......एक लघु कथा
पुराने ज़माने की बात है ....तब आज की तरह पानी के लिए नल और बोरिंग जैसी सुविधा नही थी ....सिर पर कई घड़ों का भार लिए स्त्रियाँ कई किलोमीटर दूर तक जा कर कुओं या बावडियों से पानी भार कर लाती थी
एक बार इसी तरह तीन महिलाएं घर की जरुरत के लिए पानी भार कर ला रही थी ...
तीनों ने आपस में बातचीत प्रारम्भ की ...
पहली महिला ने कहा ..." मेरा पुत्र बहुत बड़ा विद्वान् है ....शास्त्रों का विषद ज्ञान रखता है ...आज तक कोई भी उसे शास्त्रार्थ में नही हरा सका है ....."
दूसरी महिला भी कहाँ पीछे रही ..." हाँ , बहन ...पुत्र यदि विद्वान् हो तो पूरा वंश गौरान्वित होता है ...मेरा पुत्र भी बहुत चतुर है ...व्यवसाय में उसका कोई सानी नही ....उसके व्यवसाय सँभालने के बाद व्यापार में बहुत प्रगति हुई है ..."
तीसरी महिला चुप ही रही ....
" क्यों बहन , तुम अपने पुत्र के बारे में कुछ नही कह रही ...उसकी योग्यता के बारे में भी तो हमें कुछ बताओ ..." दोनों गर्वोन्मत्त महिलाओं ने उससे कहा .....
" क्या कहूँ बहन , मेरा पुत्र बहुत ही साधारण युवक है ....अपनी शिक्षा के अलावा घर के काम काज में अपने पिता का हाथ बटाता है ...कभी कभी जंगल से लकडिया भी बीन कर लाता है ..."
सकुचाते हुए तीसरी महिला ने कहा ...
अभी वे थोड़ी दूर ही चली थी की दोनों महिलाओं के विद्वान् और चतुर पुत्र साथ जाते हुए रास्ते में मिल गए ...दोनों महिलाओं ने गदगद होते हुए अपने पुत्र का परिचय कराया ....बहुत विनम्रता से उन्होंने तीनो माताओं को प्रणाम किया और अपनी राह चले गए....
उन्होंने कुछ दूरी ही तय की ही थी कि अचानक तीसरी महिला का पुत्र वहां आ पहुँचा ...पास आने पर बहुत संकोच के साथ उस महिला ने अपने पुत्र का परिचय दिया ....
उस युवक ने सभी को विनम्रता से प्रणाम किया ....और बोला ...
" आप सभी माताएं इस तपती दुपहरी में इतनी दूरी तय कर आयी है ....लाईये , कुछ बोझ मैं भी बटा दू ..."
और उन महिलाओं के मना करते रहने के बावजूद उन सबसे एक एक पानी का घड़ा ले कर अपने सिर पर रख लिया ....
अब दोनों माताएं शर्मिंदा थी ...
" बहन , तुम तो कहती थी तुम्हारा पुत्र साधारण है ....हमारे विद्वान् पुत्र तो हमारे भार को अनदेखा कर चले गए ...मगर तुम्हारे पुत्र से तो न सिर्फ़ तुम्हारा...अपितु हमारा भार भी अपने कन्धों पर ले लिया ...बहन , तुम धन्य हो , तुम्हारा पुत्र तो अद्वितीय व असाधारण है...सपूत की माता कहलाने की सच्ची अधिकारिणी तो सिर्फ़ तुम ही हो ......"
साधारण में भी असाधारण मनुष्यों का दर्शन लाभ हमें यत्र तत्र होता ही है ...हम अपने जीवन में कितने सफल हैं ....सिर्फ़ यही मायने नही रखता .....हमारा जीवन दूसरों के लिए कितना मायने रखता है....यह अधिक महत्वपूर्ण है ......!!
किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार ...किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार ...जीना इसी का नाम है .....
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एक बार इसी तरह तीन महिलाएं घर की जरुरत के लिए पानी भार कर ला रही थी ...
तीनों ने आपस में बातचीत प्रारम्भ की ...
पहली महिला ने कहा ..." मेरा पुत्र बहुत बड़ा विद्वान् है ....शास्त्रों का विषद ज्ञान रखता है ...आज तक कोई भी उसे शास्त्रार्थ में नही हरा सका है ....."
दूसरी महिला भी कहाँ पीछे रही ..." हाँ , बहन ...पुत्र यदि विद्वान् हो तो पूरा वंश गौरान्वित होता है ...मेरा पुत्र भी बहुत चतुर है ...व्यवसाय में उसका कोई सानी नही ....उसके व्यवसाय सँभालने के बाद व्यापार में बहुत प्रगति हुई है ..."
तीसरी महिला चुप ही रही ....
" क्यों बहन , तुम अपने पुत्र के बारे में कुछ नही कह रही ...उसकी योग्यता के बारे में भी तो हमें कुछ बताओ ..." दोनों गर्वोन्मत्त महिलाओं ने उससे कहा .....
" क्या कहूँ बहन , मेरा पुत्र बहुत ही साधारण युवक है ....अपनी शिक्षा के अलावा घर के काम काज में अपने पिता का हाथ बटाता है ...कभी कभी जंगल से लकडिया भी बीन कर लाता है ..."
सकुचाते हुए तीसरी महिला ने कहा ...
अभी वे थोड़ी दूर ही चली थी की दोनों महिलाओं के विद्वान् और चतुर पुत्र साथ जाते हुए रास्ते में मिल गए ...दोनों महिलाओं ने गदगद होते हुए अपने पुत्र का परिचय कराया ....बहुत विनम्रता से उन्होंने तीनो माताओं को प्रणाम किया और अपनी राह चले गए....
उन्होंने कुछ दूरी ही तय की ही थी कि अचानक तीसरी महिला का पुत्र वहां आ पहुँचा ...पास आने पर बहुत संकोच के साथ उस महिला ने अपने पुत्र का परिचय दिया ....
उस युवक ने सभी को विनम्रता से प्रणाम किया ....और बोला ...
" आप सभी माताएं इस तपती दुपहरी में इतनी दूरी तय कर आयी है ....लाईये , कुछ बोझ मैं भी बटा दू ..."
और उन महिलाओं के मना करते रहने के बावजूद उन सबसे एक एक पानी का घड़ा ले कर अपने सिर पर रख लिया ....
अब दोनों माताएं शर्मिंदा थी ...
" बहन , तुम तो कहती थी तुम्हारा पुत्र साधारण है ....हमारे विद्वान् पुत्र तो हमारे भार को अनदेखा कर चले गए ...मगर तुम्हारे पुत्र से तो न सिर्फ़ तुम्हारा...अपितु हमारा भार भी अपने कन्धों पर ले लिया ...बहन , तुम धन्य हो , तुम्हारा पुत्र तो अद्वितीय व असाधारण है...सपूत की माता कहलाने की सच्ची अधिकारिणी तो सिर्फ़ तुम ही हो ......"
साधारण में भी असाधारण मनुष्यों का दर्शन लाभ हमें यत्र तत्र होता ही है ...हम अपने जीवन में कितने सफल हैं ....सिर्फ़ यही मायने नही रखता .....हमारा जीवन दूसरों के लिए कितना मायने रखता है....यह अधिक महत्वपूर्ण है ......!!
किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार ...किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार ...जीना इसी का नाम है .....
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बुधवार, 9 दिसंबर 2009
क्या आपको भी मथते हैं ये सवाल ....!!
कल सुबह घर के बाहर बने छोटे से बागीचे में पानी डाल रही थी की दो छोटी लड़कियां आ पहुँची ...पिछले एक महीन से कई बार आ जाती है ...वही घर घर खाना मांगने वाली ....क्या भिखारन कहूँ उन्हें ...मन नही मानता ...ये छोटी बच्चियां भिखारन कैसे हो सकती हैं ...जो ये भी नही जानती ... बिना काम किए घर घर खाने की गुहार करना भीख मांगना ही कहलाता है ...
ज्यादा खाना बना लेना ...बहुत बुरी आदत है मेरी जिसे छोड़ना चाहती हूँ मगर बुरी लत की तरह छूटती ही नही ...कुल चार प्राणी है घर में ...आए दिन इतना खाना बन ही जाता है कि दो अतिरिक्त लोग भोजन कर सके ...बहुत हाथ रोक कर बनाने पर भी ज्यादा बन ही जाता है ...अब बासी भोजन को फेंकने की बजाय जरुरतमंदों को देने में कोई बुराई तो नही है ....इसलिए इन बच्चों को दे तो देती हूँ ...मगर साथ ही उनसे बातचीत कर समझाती भी रहती हूँ कि भीख मांगना उचित नही है....तुम्हे स्कूल जाना चाहिए , पढ़ना भी चाहिए ....आदि आदि ...
उनके चेहरे से टपकती बेपरवाही और व्यंग्य भरी मुस्कान और एक दुसरे को देख कर मुस्कुराने को नजरंदाज करते हुए भी मैं अपना अनर्गल (?) प्रलाप जारी रखती हूँ ...कभी कोई बात उनके दिल में उतर जाए ...एक उम्मीद सी रखते हुए ...
मगर आज उनको देखकर अजीब सी वितृष्णा से मन भर गया ...काले कुचैले हाथ पैर ...मैल की मनों परते चढ़े हुए ...मानों सालो से नहाये धोये नही .. गालों और होठों पर ब्लशर का लाल रंग पुता हुआ ...हरे रंग से बिंदी लगाई हुई ...मैं खाना देते देते रुक गयी ...क्या इन्ही गंदे हाथों से ये लोग खाना खा भी लेते हैं ...अपने बच्चों के हाथ में स्याही का निशान ही बर्दाश्त नही कर पाती हूँ मैं ...गंदे हाथ पैरों के लिए डांटते हुए मैं पानी डालकर धुलाती उनसे सवाल करती रही ....
कितनी गन्दी हो रही हो दोनों ....ये लाल हरा क्या पोत रखा है .....
छाले हो गए हैं जो माँ ने लगा दिया ....
छाले ...गाल पर ...माथे पर ...मैं उलझने लगती हूँ ... इतनी गन्दी क्यों रहती हो ...हाथ मुंह नही धुलते तुमसे
पानी नही है ...
पानी नही है ....तुम लोग पानी पीते नही हो ....तुम लोग कहाँ रहते हो ...?
यही पास में ...धरम कांटे पर
वहां पानी नही है ...पानी कहाँ से लाते हो .....?
बोरिंग है बहुत दूर ...वही से
जब पानी ला सकते हो तो हाथ पैर धोना नहाना नही हो सकता...?
दोनों शर्माने लगती हैं ....
पहले अच्छी तरह हाथ मुंह साफ़ करो ...तभी खाना मिलेगा ....
दोनों बड़ी फुर्ती से हाथ मुंह धोने लगती है ...बीच बीच में मेरा नागवार प्रवचन भी झेल लेती हैं ...खाना मिलने के लालच में ...
बस मम्मा , क्या सब एक दिन में ही सिखा दोगे ...बेटी पीछे आ खड़ी होती है ...अपने मोबाइल कैमरे को ऑन करती हुई ...उनकी हालत से बेजार परेशान ....मेरा साक्षात्कार समाप्त नही हुआ अभी ...
तुम कितने भाई बहन हो ...?
दो भाई और तीन बहन
तुम सुबह सुबह खाना मांगे निकल जाती हो ...तुम्हारी माँ खाना नही बनाती ...?
नही...बस सुबह चाय पिलाई थी
और खाना ...सब लोग कहाँ खाते हैं ....?
पिताजी और भाई काम पर जाते हैं ...वही ठेकेदार खिलाता है ...
और तुम्हारी माँ ......?
वो भी मांग कर लाती है ...
मैं सोचने पर विवश हूँ ...क्या अब भी मुझे उन्हेंपढने , स्कूल जाने के लिए समझाना उचित होगा ...??
मैं बताना चाहती थी ...कई सरकारी विद्यालयों में मुफ्त खाना मिलता है ...तुम्हे पढने के साथ खाना भी मिलेगा ...पता नही क्या सोच कर चुप रह गयी...कोई बात नही ...अगली बार समझाउंगी ...
वे दोनों बच्चियां तो खाना लेकर चली गयी ....बेटी अपनी किताबों का बोझ उठाये अन्दर चली गयी ..पौधों में पानी डालते मेरा ख़ुद से विमर्श चलता रहा ...
क्या भविष्य है इन बच्चियों का ...इनके लिए जिंदगी के क्या मायने हैं ....
क्या इनका जन्म भी इनके माता पिता के लिए गर्व अनुभव करने का क्षण होता होगा ....
क्या इन्हे पहली बार गोद में लेकर इनकी माँ ने भी वही आह्लादकारी पल महसूस किया होगा ...
बच्चों को भीख मांगने के गुर सिखाते हुए उनका कलेजा नही काँपता होगा ....ख़ुद तकलीफ में रहकर बच्चों को सब सुविधा उपलब्ध कराने जैसे कोई भाव नही उठते होंगे इनके माता पिता के मन में ....
कीचड़ मिटटी में सने हाथ मुंह प्यार से धुला कर रूखे बालों को करीने से सँवारने की इच्छा नही होती होगी इनकी माँ की ....
आत्मसम्मान , स्वाभिमान ....ये लोग कुछ भी नही समझते होंगे .....!!
भावनाए भूख और बेकारी के आगे दम तोडती होंगी या फिर इनके दिल और दिमाग इस मिटटी से बनते ही नही जो इन्हे सोचने पर विवश कर सके ......
क्या धर्म , राजनीति , आध्यात्म इनका जीवन प्रभावित कर पाते होंगे ...
क्या हमें वाकई अपने शहर के चमचमाते शौपिंग काम्प्लेक्स , अत्याधुनिक मल्टी प्लेक्सों आदि पर ही गर्व करना चाहिए ....इन बच्चों के मटियामेट बचपन को नजरअंदाज करते हुए .....
कितने सवाल....
क्या मिलेंगे कभी मुझे जवाब ...
क्या आप लोगों को भी मथते हैं ये सवाल ..............................!!
****************************************************************************************
* अपनी पिछली पोस्ट पर हरकीरत जी की इस टिपण्णी ने मुझे सोचने पर विवश किया है.....
हरकीरत ' हीर' ने आपकी पोस्ट " मेरी बात ...खालिस गृहिणी वाली " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
पहचानने की कोशिश करती हूँ ......बड़ी सी बिंदी .....कभी कभी किसी और नाम से भी .....है न ...? मैंने भी देखा है अगर वही है तो .....
मैं स्पष्ट कर दूँ....मेरा सिर्फ़ एक ही ब्लॉग है और मैं वाणी गीत के नाम से ही अपनी पोस्ट और कमेन्ट पोस्ट करती हूँ ....जो मेरा वास्तविक नही आभासी नाम है लेखन के लिए .....इसके अलावा मैं http://kabirakhadabazarmein।blogspot.com/ पर आमंत्रित सदस्य हूँ ...एक दो पोस्ट नारी ब्लॉग पर भी लिखी है ....बस इसके अलावा मैं किसी और नाम से ब्लॉग पर मौजूद नही हूँ....
यह सब इसलिए लिखा है...कि कहीं ऐसा ना हो ....रात भर जाग कर गीत कविता लिखूं मैं ....सुबह जल्दी उठकर पोस्ट करू मैं ...और सारी क्रेडिट कोई और ले जाए ..... :) .........!!
ज्यादा खाना बना लेना ...बहुत बुरी आदत है मेरी जिसे छोड़ना चाहती हूँ मगर बुरी लत की तरह छूटती ही नही ...कुल चार प्राणी है घर में ...आए दिन इतना खाना बन ही जाता है कि दो अतिरिक्त लोग भोजन कर सके ...बहुत हाथ रोक कर बनाने पर भी ज्यादा बन ही जाता है ...अब बासी भोजन को फेंकने की बजाय जरुरतमंदों को देने में कोई बुराई तो नही है ....इसलिए इन बच्चों को दे तो देती हूँ ...मगर साथ ही उनसे बातचीत कर समझाती भी रहती हूँ कि भीख मांगना उचित नही है....तुम्हे स्कूल जाना चाहिए , पढ़ना भी चाहिए ....आदि आदि ...
उनके चेहरे से टपकती बेपरवाही और व्यंग्य भरी मुस्कान और एक दुसरे को देख कर मुस्कुराने को नजरंदाज करते हुए भी मैं अपना अनर्गल (?) प्रलाप जारी रखती हूँ ...कभी कोई बात उनके दिल में उतर जाए ...एक उम्मीद सी रखते हुए ...
मगर आज उनको देखकर अजीब सी वितृष्णा से मन भर गया ...काले कुचैले हाथ पैर ...मैल की मनों परते चढ़े हुए ...मानों सालो से नहाये धोये नही .. गालों और होठों पर ब्लशर का लाल रंग पुता हुआ ...हरे रंग से बिंदी लगाई हुई ...मैं खाना देते देते रुक गयी ...क्या इन्ही गंदे हाथों से ये लोग खाना खा भी लेते हैं ...अपने बच्चों के हाथ में स्याही का निशान ही बर्दाश्त नही कर पाती हूँ मैं ...गंदे हाथ पैरों के लिए डांटते हुए मैं पानी डालकर धुलाती उनसे सवाल करती रही ....
कितनी गन्दी हो रही हो दोनों ....ये लाल हरा क्या पोत रखा है .....
छाले हो गए हैं जो माँ ने लगा दिया ....
छाले ...गाल पर ...माथे पर ...मैं उलझने लगती हूँ ... इतनी गन्दी क्यों रहती हो ...हाथ मुंह नही धुलते तुमसे
पानी नही है ...
पानी नही है ....तुम लोग पानी पीते नही हो ....तुम लोग कहाँ रहते हो ...?
यही पास में ...धरम कांटे पर
वहां पानी नही है ...पानी कहाँ से लाते हो .....?
बोरिंग है बहुत दूर ...वही से
जब पानी ला सकते हो तो हाथ पैर धोना नहाना नही हो सकता...?
दोनों शर्माने लगती हैं ....
पहले अच्छी तरह हाथ मुंह साफ़ करो ...तभी खाना मिलेगा ....
दोनों बड़ी फुर्ती से हाथ मुंह धोने लगती है ...बीच बीच में मेरा नागवार प्रवचन भी झेल लेती हैं ...खाना मिलने के लालच में ...
बस मम्मा , क्या सब एक दिन में ही सिखा दोगे ...बेटी पीछे आ खड़ी होती है ...अपने मोबाइल कैमरे को ऑन करती हुई ...उनकी हालत से बेजार परेशान ....मेरा साक्षात्कार समाप्त नही हुआ अभी ...
तुम कितने भाई बहन हो ...?
दो भाई और तीन बहन
तुम सुबह सुबह खाना मांगे निकल जाती हो ...तुम्हारी माँ खाना नही बनाती ...?
नही...बस सुबह चाय पिलाई थी
और खाना ...सब लोग कहाँ खाते हैं ....?
पिताजी और भाई काम पर जाते हैं ...वही ठेकेदार खिलाता है ...
और तुम्हारी माँ ......?
वो भी मांग कर लाती है ...
मैं सोचने पर विवश हूँ ...क्या अब भी मुझे उन्हेंपढने , स्कूल जाने के लिए समझाना उचित होगा ...??
मैं बताना चाहती थी ...कई सरकारी विद्यालयों में मुफ्त खाना मिलता है ...तुम्हे पढने के साथ खाना भी मिलेगा ...पता नही क्या सोच कर चुप रह गयी...कोई बात नही ...अगली बार समझाउंगी ...
वे दोनों बच्चियां तो खाना लेकर चली गयी ....बेटी अपनी किताबों का बोझ उठाये अन्दर चली गयी ..पौधों में पानी डालते मेरा ख़ुद से विमर्श चलता रहा ...
क्या भविष्य है इन बच्चियों का ...इनके लिए जिंदगी के क्या मायने हैं ....
क्या इनका जन्म भी इनके माता पिता के लिए गर्व अनुभव करने का क्षण होता होगा ....
क्या इन्हे पहली बार गोद में लेकर इनकी माँ ने भी वही आह्लादकारी पल महसूस किया होगा ...
बच्चों को भीख मांगने के गुर सिखाते हुए उनका कलेजा नही काँपता होगा ....ख़ुद तकलीफ में रहकर बच्चों को सब सुविधा उपलब्ध कराने जैसे कोई भाव नही उठते होंगे इनके माता पिता के मन में ....
कीचड़ मिटटी में सने हाथ मुंह प्यार से धुला कर रूखे बालों को करीने से सँवारने की इच्छा नही होती होगी इनकी माँ की ....
आत्मसम्मान , स्वाभिमान ....ये लोग कुछ भी नही समझते होंगे .....!!
भावनाए भूख और बेकारी के आगे दम तोडती होंगी या फिर इनके दिल और दिमाग इस मिटटी से बनते ही नही जो इन्हे सोचने पर विवश कर सके ......
क्या धर्म , राजनीति , आध्यात्म इनका जीवन प्रभावित कर पाते होंगे ...
क्या हमें वाकई अपने शहर के चमचमाते शौपिंग काम्प्लेक्स , अत्याधुनिक मल्टी प्लेक्सों आदि पर ही गर्व करना चाहिए ....इन बच्चों के मटियामेट बचपन को नजरअंदाज करते हुए .....
कितने सवाल....
क्या मिलेंगे कभी मुझे जवाब ...
क्या आप लोगों को भी मथते हैं ये सवाल ..............................!!
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* अपनी पिछली पोस्ट पर हरकीरत जी की इस टिपण्णी ने मुझे सोचने पर विवश किया है.....
हरकीरत ' हीर' ने आपकी पोस्ट " मेरी बात ...खालिस गृहिणी वाली " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
पहचानने की कोशिश करती हूँ ......बड़ी सी बिंदी .....कभी कभी किसी और नाम से भी .....है न ...? मैंने भी देखा है अगर वही है तो .....
मैं स्पष्ट कर दूँ....मेरा सिर्फ़ एक ही ब्लॉग है और मैं वाणी गीत के नाम से ही अपनी पोस्ट और कमेन्ट पोस्ट करती हूँ ....जो मेरा वास्तविक नही आभासी नाम है लेखन के लिए .....इसके अलावा मैं http://kabirakhadabazarmein।blogspot.com/ पर आमंत्रित सदस्य हूँ ...एक दो पोस्ट नारी ब्लॉग पर भी लिखी है ....बस इसके अलावा मैं किसी और नाम से ब्लॉग पर मौजूद नही हूँ....
यह सब इसलिए लिखा है...कि कहीं ऐसा ना हो ....रात भर जाग कर गीत कविता लिखूं मैं ....सुबह जल्दी उठकर पोस्ट करू मैं ...और सारी क्रेडिट कोई और ले जाए ..... :) .........!!
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