मंगलवार, 7 मई 2013

चुन चुन करती आई चिड़िया ....


खाने पीने का इंतजाम देखा तो घर ही बसा लिया

ग्रीष्म की हर नयी सुबह उगता सूरज नया -सा दिखता है ,नव आशा ,नव उमंग , नव उत्साह .  शीतल मंद बयार के साथ सब कुछ धुला साफ़ सुथरा शांत स्निग्ध . ऐसे में हर सुबह की मीठी नींद पक्षियों के कलरव से टूटे तो आस पास एक दिव्य  खुशनुमा सकारात्मक परिवेश से  गदगद मन प्रकृति के समक्ष नतमस्तक हो उठता है . 

गौरैया दिवस पर अर्चनाजी ने पेशकश की गौरैया की  तस्वीर साझा करने की , ढेर सारी तस्वीरें खींच डाली गौरैया की .फुर्तीली चिड़िया गैलरी के क्लीनिंग एरिया में पीछे जालियों के बीच से भी  बड़े आराम से भीतर चली आती हैं . उस दिन फोटो खींचते ध्यान ही नहीं रहा कि पुराने  स्टोव और मटकी की आड़ में घास फूस इकठ्ठा कर अपनी कुशल इन्जिनीरिंग का नमूना दिखाती चिड़ियाएँ अपने  नीड़ के निर्माण में  लगी हुई हैं .

अभी यही कोई एक सप्ताह पहले खिड़की से चिड़िया की मधुर चहचहाहट तीखी कर्कश सी लगने  लगी तो जाकर देखा कि आखिर माजरा क्या है . कई बार बिल्ली मौसी की लुक छिपी वाली पदचाप या अन्य पशु पक्षियों को आसपास भांप कर ये इसी प्रकार  चीखती रहती है . हालाँकि जाली और शीट से कवर होने के कारण बड़े पक्षियों का भीतर आना तो संभव  नहीं , मगर एकाध बार पास पड़ोस में सांप , गोइरा  ,नेवला होने की खबर चौकन्ना रखती है . देर तक इधर उधर कुछ नजर नहीं आया मगर चिड़िया और चिड़ा  जाली से चिपके लगातार चीं चीं मचाये हुए थे . अचानक फर्श  पर नजर आ गयी एक छोटी सी चिड़िया ..
तो यह बात है , माँ चिड़िया अपने बच्चे को शायद उड़ना सिखा  रही थी , मगर पंख पूरे खुले नहीं होने के कारण उड़ नहीं पाया और  नीचे फर्श पर उतर आया या कौन जाने अपने परों पर ही उठा लाई हो उसे सैर कराने . जब तक इनके बच्चे उड़ना ना सीख  जाए , कभी - कभी इन्हें भी जरुरत होती है चारदीवारी से घिरे बसेरे की . हर थोड़ी देर में चिड़िया अपनी चोंच में खाना भर लाती , और उस छोटे से बच्चे के मुख में खिलाती , चिड़ा तो बस निगरानी ही करता रहता , जैसे ही कोई दूसरी चिड़िया उनके पास आने की कोशिश करती दोनों चोंच मार कर उसे भागने पर मजबूर कर देते . और हम जाली के पास खड़े बैठे इस नज़ारे को देखते रहे . आखिर खड़े कब तक रहते , इनकी चहलपहल हमें सारे काम छोड़ कर यही टिकने को मजबूर जो कर रही थी . खैर , हमने भी एक प्लेट में पानी और कुछ खाने का इतंजाम कर दिया ताकि चिड़िया को ज्यादा भागदौड़ ना करनी पड़े . दूसरे दिन सुबह आँख खुलते ही छोटी चिड़िया के दर्शन को भागे तो आज उनके साथ एक और छोटी चिड़िया थी , हद तो तब हुई जब तीसरे दिन एक और तीसरी चिड़िया भी उनके कुनबे में शामिल हो गयी . अब घर का काम काज कौन करता . 
हम माँ बेटियां बस सारे दिन चिन्नी , मिन्नी और गिन्नी (हमने तो इनके नाम भी रख दिए  ) की तीमारदारी , अवलोकन  और तस्वीरें खींचने में व्यस्त . कपड़ों का ढेर इकठ्ठा हो गया क्योंकि वाशिंग मशीन चलाने  पर इनको परेशानी हो सकती थी ,  करते भी क्या ,पूरी गैलरी पर इनके परिवार का कब्ज़ा जो हो गया था . 
माँ चिड़िया का बार बार उड़ना , हर थोड़ी देर में चोंच में खाना  भर खिलाना , और यह भी याद रखना कि  अब किस बच्चे को खिलाने की बारी है , पिता चिड़े  का तार से लटके,  जाली से चिपके इनकी निगरानी और सुरक्षा के प्रति चौकस ,सवधान रहना , कभी कभी हरी या सूखी दूब चुन लाना और मादा चिड़िया का उस पर चीखना ...बेटी बोली , माँ शायद ये गुस्सा कर रही है चिड़े  पर , क्या मेरे बच्चे इस सूखी  ख़ास पर रहेंगे :) कितना भी खाना -पानी सामने रखा हो , उसमे से खा ले , मगर थोडा बहुत अपनी  मेहनत का लाये बिना भी  चैन नहीं .
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अक्सर  नारियों की सोशल कंडिशनिंग पर बात होती है मगर इन पक्षियों की जीवन प्रक्रिया के अवलोकन से यही खयाल आता रहा कि अपने बच्चों या परिवार के लिए खाने पीने का इंतजाम करना , ममता से भर कर खिलाना , यह सिर्फ सोशल कंडिशनिंग नहीं है . भला  कौन सिखाता है मादा चिड़िया  को  अपने बच्चों का इस तरह ध्यान रखना , पिता चिड़े  को उनकी सुरक्षा के प्रति सावधान और सतर्क  रहना . मनुष्यों में भी यह प्रकृति प्रदत्त ही अधिक है , जैसे पक्षियों में हैं .

अपने घर के भीतर उनके लिए एक छोटा सा घर बन जाने और उनके लिए खाने पीने का इंतजाम कर मन कितना संतुष्ट और  प्रफुल्लित हुआ ,शब्दों में समझाना संभव नहीं और इस आत्मसंतुष्टि की मात्रा को नापने का कोई यन्त्र भी नहीं  ! 
अब तक एक चिड़िया उड़ चुकी है , एक नहीं रही और एक छोटी सी चिड़िया अभी भी आँगन में इधर उधर फुदक रही है , शायद कल तक वह भी उड़ जायेगी . 
कितना प्रेम से ही पालते हैं ये भी अपनी संतानों को , मगर बिना शर्त , कोई अपेक्षा नहीं , जैसे ही उड़ना सीख जायेंगे इन्हें छोड़ जायेंगे , जानते हुए भी !  हम मनुष्यों ने इनसे उड़ना तो सीखा , मगर बिना शर्त प्रेम क्यों नहीं  !! 

इनकी अठखेलियों के बीच मन में अनगिनत विचार आते रहे .सोचती रही हमसे इस छोटी सी चिड़िया का बसेरा ही नहीं उजाड़ा गया , बल्कि उनके रहने खाने पीने की सुरक्षित व्यवस्था में मन लगा रहा . 
आखिर कैसे लोग मनुष्यों के बसेरे उजाड़ कर सुकून की नींद ले पाते हैं  ? उन्हें नींद कैसे आ पाती है , वे खुश कैसे रह सकते हैं , रह पाते हैं ...कैसे!!!

मन में विचार आया कि क्यों ना सम्पूर्ण मानव जाति के लिए कुछ समय मनुष्यों के लिए पशु पक्षियों की सेवा और अवलोकन अनिवार्य कर दिया ( है न पागलपंथी )  , शायद कुछ मन बदले उनका ... 
शायद !!!!