गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

हम मूरख तुम ज्ञानी .......

दुनिया का चलन है ....हम जो है बस वही सही है , हम चतुर , सत्यवादी , निर्मल हृदय ,ईमानदार , कार्यकुशल , परोपकारी , ज्ञानी , ....जो हैं वो बस हम है ...." तुम मूरख हम ज्ञानी "
कभी न कभी हम सब के मन में यह खयाल जरुर आता है ..
हालाँकि ऐसे लोंग भी होते हैं जो सिर्फ अपने को मूर्ख मानते हैं , उन्हें हर व्यक्ति अपने से ज्यादा बुद्धिमान लगता है , मगर इनकी गिनती सिर्फ अन्गुलियों पर की जा सकती है ..दुर्लभ प्राणियों की इस जमात में खुद को शामिल कर हम इठलाते रहे हैं ... ." हम मूरख तुम ज्ञानी "


खांचों में जीते हैं हम लोंग , हमारे मापदंड , मर्यादायें इन खांचों के साथ बदलती रहती है .... अपनी भूमिका बदलते ही सोच भी अपनी सुविधानुसार परिवर्तित हो जाती है ..क्यों नहीं हम ये मान सकते कि दुनिया में हर रंग जरुरी है , हर शख्स ,हर वस्तु की अपनी खूबियाँ हैं , अपनी खामियां भी हैं ....स्वाद सिर्फ मीठा या तीखा ही नहीं देता ...नमकीन , खट्टा और कसैला मिलकर ही भोजन का स्वाद बढ़ाते हैं ..
देखिये तो जो हम है और जो हम नहीं हैं उसके लिए हम क्या -क्या सोचते हैं ....


मैं विवाहित हूँ
.....इसलिए सभी अविवाहित उत्श्रंखल, चरित्रहीन है ...!
मैं अविवाहित हूँ ...विवाहितों का भी कोई जीवन है जैसे कारागृह  के बंदी हों.

मैंने प्रेम विवाह किया है ....अरेंज मैरिज वही करते हैं जिन्हें कोई लड़का /लड़की घास नहीं डालती , ये तो मां -बाप ने शादी करवा दी वरना कुंवारे ही रह जाते .
मेरा अरेंज मैरेज है .... प्रेम विवाह छिछोरापन है .

मैं धार्मिक हूँ
.....इसलिए सभी नास्तिक पापी हैं , घृणा करने योग्य हैं .
मैं नास्तिक हूँ ....धार्मिक मान्यताओं का पालन करने वाले पाखंडी हैं .

मैं .... धर्म को मानती हूँ ....इसलिए दूसरे धर्मों में कोई सार नहीं है , उनमे कुछ भी अच्छा नहीं है .
मैं .... प्रान्त से हूँ ....सभ्य लोंग बस यहीं बसते हैं .
मैं .... भाषी हूँ ...बस मेरी बोली सबसे मीठी , बाकी सक बकवास .

मैं नेता हूँ ....पूरी जनता मेरी प्रजा है .

मैं अमीर हूँ ....गरीबों को जीने का कोई अधिकार नहीं है .
मैं गरीब हूँ ....अमीर सिर्फ नफरत किये जाने योग्य हैं .

मैं सत्यवादी हूँ ....दुनिया कितनी झूठी है .
मैं शिक्षित हूँ ......इसलिए सभी अशिक्षित जंगली हैं , गंवार हैं ..

मैं साहित्यकार हूँ ... .दूसरों को लिखने का शउर ही नहीं है , क्या -क्या लिख देते हैं .
मैं ब्लॉगर हूँ ...साहित्यकार , लेखक क्या चीज है, पैसों के भरोसे पैसों के लिए लिखते हैं ...मेरी जो मर्जी आये लिखता हूँ .

मैं कवि हूँ ....कवितायेँ लिखना कितना दुष्कर है , कहानी लिखने में क्या है , जो देखा आसपास लिख दो , कोई तुक , बहर का ख्याल नहीं रखना पड़ता .

मैं कहानीकार हूँ ....कवितायेँ तो यूँ ही लिख दी जाती हैं , कोई भी पंक्ति कैसे भी जोड़ दो , बस तुक मिलाने की जरुरत है , आधुनिक कविता में तो तुक की भी जरुरत नहीं .

मैं वैज्ञानिक हूँ ....ज्योतिष पाखंड है , सिर्फ बेवकूफ बनाने का जरिया है .
मैं ज्योतिषी हूँ ....वैज्ञानिकों का भाग्य तो हम ही बता सकते हैं ...

मैं बॉस हूँ ....मातहतों को अपने बॉस के साथ विनम्रता से पेश आना चाहिए ,ऑफिस के कार्य के अलावा थोड़े बहुत घर के काम भी कर दिए तो क्या हर्ज़ है ..
मैं मुलाजिम हूँ ...बॉस को कर्मचारियों से प्यार से पेश आना चाहिए , हम तनख्वाह ऑफिस के काम की लेते हैं , इनके घर का कम क्यों करें ...

मैं पुरुष हूँ .....स्त्रियों की अकल उनके घुटने में होती है !
मैं स्त्री हूँ ......पुरुषों के घुटने कहाँ झुकते हैं , कौन नहीं जानता !
मैं कामकाजी महिला हूँ ...घर बैठे सिर्फ डेली सोप देखना , पास पड़ोस में सास बहू की चुगलियाँ और काम क्या होता है इन गृहिणियों को .
मैं गृहिणी हूँ ....सुबह सवेर सज- संवर कर निकल जाना , घर और बच्चों को आया के भरोसे छोड़कर ...काम तो बहाना है.

मैं सास हूँ ....आजकल की बहुएं ना , आते ही पूरे घर पर कब्जा कर लेती हैं , बहू को ससुराल का हर कार्य आदर पूर्वक करना चाहिए..
मैं माँ हूँ ...बेचारी मेरे बेटी से ससुराल वाले कितना काम करवाते हैं , बहू का हक तो उसे मिलना ही चाहिए .
मैं बहू हूँ ....ये सासू माँ , समझती क्या है अपने आप को , जब देखो हुकम चलाती है .
मैं बेटी हूँ ....माँ ने अपनी बहुओं को कितना सर चढ़ा रखा है .
मैं ननद हूँ ...भाभियाँ भाई को अपने वश में रखती हैं , भाई को अपनी बहनों को तीज त्यौहार पर महंगे गिफ्ट देने चाहिए .
मैं भाभी हूँ ....ननद बिजलियाँ होती हैं , आग लगाने के सिवा कुछ नहीं जानती , तीज त्योहारों पर अपने भाई से महंगे तोहफों की मांग करती रहती हैं .

मैं पिता हूँ ....आजकल बच्चे कितने अनुशासनहीन है , हम तो अपने पिता से कितना डरते थे , उन्हें कभी हमें पढने के लिए कहना ही नहीं पड़ता था ..
हम बच्चे हैं .....हमारे पिता को कभी उनके माता पिता ने पढने के लिए नहीं टोका ,मगर ये हमेशा हमारे सर पर सवार रहते हैं ..

मैं ही मैं हूँ ....इस मैं को तो !!!

और बहुत कुछ "मैं " अभी जुड़ सकते हैं इसमें ....थोड़ी कोशिश आप भी कर ले !


..........................................................................