अब तक ....
खूबसूरत स्वप्निल सुबह में माँ की आवाज़ से नींद टूटी तेजस्वी की , क्या समय है आज ऑफिस जाने का।
"ओह ! माँ ,सपनों में जाने कहाँ दौड़ती -उड़ती -फिरती रही रात भर मैं "
चादर एक तरफ फेंक पैर में चप्पलें फंसाती सी बाथरूम की और भागी। नहा धोकर तैयार हुई तो माँ नाश्ते के साथ दही बताशा चम्मच में भरे खड़ी थी।
घर से निकलते पिता की स्नेहिल ऑंखें सिर्फ इतना ही कह पाई "अपना ध्यान रखना "!
वहीँ माँ की सैकड़ों हिदायतें , ध्यान से जाना , हेलमेट जरुर लगा लेना , मोबाइल चेक करती रहना ....
तेजस्वी सोच कर मुस्कुराती है जब फोन इतने आसानी से उपलब्ध नहीं थे , माओं का गुजारा कैसे होता होगा , कही पहुँचों तो कॉल करो , रवाना हो रहे हो तो कॉल करो , और यदि किसी कारणवश फोन नहीं पाये तो घर पहुँचते जाने कितने दोस्तों के पास फोन पहुँच जाए। कई बार झुंझलाती है तेजस्वी कि क्या है ये माँ , घर ही तो आ रही थी , सब दोस्त हँसते हैं मुझ पर , मैत्रेयी तो अधिक ही। उसके घर से कभी फोन नहीं आता , न वह करती है।
माँ कहती है मन ही मन कभी गुस्से से , कभी खिन्न हो कर तो कभी हँसते हुए - माँ बनोगे तो जानोगे।
एक दिन बहुत हंसती हुई लौटी घर " पता है माँ , आज मैत्रेयी की मम्मी का दो बार फोन आया" .
क्यों ?
शुक्रवार की शाम घर लौटते उसका छोटा- सा एक्सीडेंट हो गया था, आंटी इतना डर गई कि दिन भर फोन कर हालचाल लेती रही।
अब समझ आया न , क्यों चिंता रहती है हमें।
उसके बाद एक परिवर्तन आया तेजस्वी में , देर होने की सम्भावना में माँ को फ़ोन जरुर कर देती।
वाईब्रेंट मीडिआ हाउस में उसका पहला दिन उत्साह भरा था। सबसे पहला काम उसे आलिया के साथ करना था। हंसमुख स्वाभाव की आलिया से मिलकर उसे बहुत अच्छा लगा। दरम्याना कद , कंधे तक बाल , आँखों पर ऐनक उसे उम्र के अनुसार परिपक्व बनाती मगर चेहरे पर शरारती मुस्कान और बच्चों सी खिलखिलाहट , उसके लिए अपने मातहतों से जुड़ने में कोई बाधा नहीं पहुंचाती ।
आलियां ने प्यार भरी मुस्कराहट से तेजस्वी का स्वागत किया और एक सादा कागज़ और पेन उसके सामने रख दिया .
तुम्हारा बायोडाटा देखा , तुम शेरो -शायरी कवितायेँ आदि लिखती हो , कुछ लिखो इस पर।
कुछ ज्यादा नहीं लिखती हूँ , बस यूँ ही कभी कभी डायरी में , कभी किसी को सुनाई भी , सहेलियों ने छीनकर पढ़ ली बस।
सकुचा गयी तेजस्वी. कभी किसी झोंक में डायरी में लिखना अलग बात मगर यूँ अचानक लिखने का इसरार दे तो ठिठकन स्वाभाविक ही लगती है .
कोई बात नहीं , कुछ भी लिखो , जो तुम्हारा दिल करे !
सुबह की खिलती मुस्कुराती धूप में
फूलों पर शबनम के कतरे
गोया कि चाँदनी ने
रात भर आंसू बहाये हों।
मैं ग़र गुल हूँ तो वह नहीं
जो सदाबहार है
मुझे तो चंद लम्हों में मुरझाना है
मैं ग़र खार हूँ तो वह नहीं
जो ग़ुलों का हिफ़ाज़ती है
मैं वह ख़ार हूँ जो हरदम
आँखों में खटका हूँ !
अपनी डायरी के पहले पन्ने पर लिखी अपनी यही पंक्तियाँ उसे याद आई।
कागज़ पर लिखे अक्षर पढ़ते हुए आलिया ने चश्मे के पीछे गहरी आँखों से देखा उसे !
पढ़कर भी सुना दो अब !
ग़र , ग़ुल , ख़ार जैसे शब्दों पर उसके पढ़ने पर बुरी तरह चौंकी आलिया।
उसका बायो डाटा फिर से पढ़ा।
संस्कृत तुम्हारा अतिरिक्त विषय रहा है। फिर तुमने यह ज़बान कहाँ सीखी , इतना साफ़ लहज़ा तो यह विषय पढ़ने वाले भी नहीं बोल पाते कई बार। अचंभित भी थी आलिया !
पता नहीं , बस ग़ज़ल सुनने का शौक रहा है ,शायद वहीं !
हम्म्म .... मगर फिर भी। अब भी अचरज में थी आलिया।
हर व्यक्ति के जीवन में बहुत कुछ बेवजह भी होता है। जीवन सफ़र में कुछ सामान्य पल , विषय और लोग यूँ भी चौंकाते हैं।
स्त्रियों से जुड़ी न्यूज़ चैनल्स की बाईट्स , अख़बारों के समाचारों के संकलन का निर्देश देते हुए आलिया ने उसे पत्रकारों के लिए जरुरी दिशा निर्देश पुस्तिका भी थमा दी।
इसे भी ध्यान से पढ़ना , तुम्हे काम करने और समझने में आसानी होगी।
तेजस्वी कुछ अलग करना चाहती थी , उसे कुछ मायूसी हुई। उसने वैदेही को भी अपने पसंदीदा विषय का संकेत दे दिया था। जो भी हो , मगर उसे कार्य तो यही करना था और उससे पहले उसे ट्रेनी की वर्कशॉप ज्वाइन करनी थी।
वर्कशॉप में मिडिया हॉउस के वरिष्ठ उपसंपादकों और तकनीकी जानकारों ने सूचनाओं को समाचारों में बदलने की बारीकिया और कंप्यूटर से जुडी बहुत तकनीकी जानकारियां साझा की।
याद रखिये, पत्रकारों का कार्य निष्पक्ष होकर सूचनाएं एकत्रित करना और उन्हें आगे बढ़ाना है . उन्हें गलत या सही साबित नहीं करना है, वह कार्य पाठकों अथवा दर्शकों को अपने विवेक अनुसार करने देना है। सूचनाओं को एकांगी अथवा पूर्वाग्रही न होने देने के लिए भावनाओं और संवदनाओं पर काबू रखना है।
वरिष्ठ उपसम्पादक नरोत्तम धौलिया अपने समापन आख्यान में सम्बोधित कर रहे थे।
आंदोलनों , लाठी चार्ज , दुर्घटनाओं , बम विस्फोटों और विभिन्न आपदाओं के चित्र तेजस्वी की आँखों के सामने से गुजर गए। यह ख्याल उसे कई बार आता रहा था कि उन स्थानों पर उपस्थित रिपोर्टर्स के लिए कितना मुश्किल रहा होगा , किस प्रकार उन्होंने अपने जज्बातों पर काबू पाया होगा। उसे हॉस्पिटल में मरीजों से घिरे चिकित्सकों , नर्सों का भी ख्याल आता था , यदि वे अपनी भावनाओं को नियंत्रित ना कर सकें तो उनका कार्य कितना मुश्किल हो जाए।
वर्कशॉप में ही उसकी पहचान कुछ और नए ट्रेनियों से भी हुई , सिमरन , शौर्य ,मयंक , अमिता। समवयस्क होने के कारण वे सब जल्दी ही आपस में घुल मिल गये। अपनी डेस्क तक पहुँचते बेतकल्लुफी इतनी हो गयी कि आपस का परिचय आप से तुम और तू तक पहुच गया। तेजस्वी ने डेस्क पर पहुचते ही सबसे पहले कंप्यूटर डेस्क और आस पास का जायजा लिया। एक लाईन में बने पार्टीशन वाले केबिन में अपने कम्यूटर पर झुके मुस्तैद साथियों को आस पास की खबर नहीं थी । उसके साथी भी अपनी डेस्क में समा चुके थे। तेजस्वी ने भी स्वयं को अपने कार्य पर ध्यान केंद्रित किया अख़बारों और न्यूज़ चैनल की रिपोर्ट खंगालने लगी।
इंदिरा नूई अमेरिका की प्रतिष्ठित पत्रिका फॉर्च्यून के 500 मुख्य कार्यकारी अधिकारियों की सूची में शामिल 18 महिलाओं में जगह बनाने में कामयाब रही हैं। वान्या मिश्रा मिस इंडिया वार्ड चुनी गयी। प्रथम पृष्ठ के मुख्य समाचारों में स्त्रियों की कामयाबी से उत्साहित तेजस्वी तेजी से ख़बरें पलटने लगी।
कूड़े के ढेर से नवजात बच्ची का शव बरामद किया गया , छह वर्ष की बच्ची घायल अवस्था में मिली , हॉस्टल में छात्रा के गर्भवती होने की खबर पर वार्डन तलब , महिला ने तीन बच्चों सहित कुएं में कूद कर जान दे दी.
क्या आम स्त्रियों से जुडी कोई अच्छी खबर नहीं मिलेगी उसे , वह इन जीवित या मृत लड़कियों या स्त्रियों से समाचारों में ही मिल रही थी , इनसे वास्तविकता में आमने -सामने मिलना कैसा रहेगा ,तेजस्वी को लगने लगा था कि उसका काम इतना आसान नहीं रहने वाला है।
यह तो चुनौतियों की दस्तक मात्र ही थी।
घर पहुचते शाम गहरा गयी थी। फ्लैट की सीढियाँ चढ़ते मिसेज वालिया टकरा गयी , नाटे कद की सांवली रंगत वाली मिसेज वालिया सरकारी विद्यालाय में हेडमिस्ट्रेस थी। मगर कॉलोनी के सम्बन्ध में उनकी जानकारी किसी पत्रकार या जासूस से कम नहीं थी। किसकी लड़की किसके साथ कब आई , कौन सी पड़ोसन ने बालकनी में कपडे सुखाते किस पडोसी की खिड़की की ओर झाँका , किस पडोसी का दूसरे पडोसी से अबोला है। अपनी काम वाली बाई की बदौलत उन्हें सबकी खबर रहती थी। सूचनाएँ निकलवाते समय उनकी उदारता चरम पर होती थी , और बाई भी इसका पूरा फायदा उठाती। उनका शहर अभी इतना बड़ा महानगर नहीं था कि लोग आसपास रहने वालों से अनजान रहे।
" वो छोटी बेबी की छींटदार सलवार कमीज तार से उतारते समय उलझ गयी थी , आपकी साडी का तार खीच गया था " फुर्सत में उनको सुधार कर फिर से उपयोग में लेने की धुन चटपटी ख़बरों के चटखारों में जाने कहां बिला जाती और वे जल्दी - जल्दी सर हिलाते हुए हामी भर लेती।
तेजस्वी कई बार माँ से चर्चा करती , पढ़ीलिखी कामकाजी स्त्रियों को भी बातों के चटखारे लेने की आदत नहीं छूटती। जाने कितनी बार माँ को ताना दिया होगा उन्होंने , आपका अच्छा है , दिन भर घर में रहती हैं , हमें तो समय ही नहीं मिलता आसपास की खबर रखने का , आपका तो अच्छा टाईम पास हो जाता है , हमें कहाँ फुर्सत, कहते हुए भी दो -चार पड़ोसनों का हाल बताये बिना नहीं खिसकती।
तेजस्वी भुनभुनाती है माँ पर , कभी मैं इन्हे खरी खोटी न सुना दूं , घरेलू स्त्री होने का मतलब सिर्फ टाईम पास करना नहीं है , मिसेज आहूजा को कॉलोनी की ताजा खबर तो खूब होगी , देश दुनिया की कोई खबर मालूम करने की कोशिश भी की है कभी , कभी अखबार हाथ में उठाकर देखा भी होगा , कभी किसी गरीब बच्चे को पढ़ाने की कोशिश की है , क्या मुकाबला करेंगी मेरी माँ से , बड़ी आई। पता नहीं स्कूल में बच्चो को क्या पढ़ाती होंगी। हुंह !
माँ हंस देती है , छोडो भी , क्यूँ उलझना !
अभिवादन का इन्तजार किये बिना ही मिसेज वालिया पूछ बैठी "कैसी हो तेजस्वी !"
शिष्टाचार वश तेजस्वी को रुकना ही पड़ा " अच्छी हूँ आंटी , आप कैसे हो ? सीमा कैसी है , बहुत दिनों से मिलना नहीं हुआ ".
हाँ , तुम भी पता नहीं कहाँ व्यस्त रहती हो , अब जाकर घर पहुंची हो। 22 मार्च को सीमा की शादी तय कर दी है , लड़का दिल्ली का रहने वाला है , बहुत पैसे वाले हैं। सीमा को देखते ही पसंद कर लिया।
ओह , अच्छा। बहुत बधाई आपको , मगर मार्च में सीमा के फायनल ईअर की परीक्षाएं भी तो है।
होती रहेगी परीक्षा तो , अच्छा लड़का मिला तो कर दी शादी तय , वर्ना आगे जाकर बहुत मुश्किल हो जाती है।
चलती हूँ आंटी , बहुत थक गयी हूँ। कल मिलती हूँ सीमा से ! कहते हुए तेजस्वी तेजी से अपने फ़्लैट की ओर लपक ली।
क्रमशः ....
चित्र गूगल से साभार लिया गया है , आपत्ति होने पर हटा दिया जाएगा !