उनका कहना है ....." मेरा इन प्रसंगों को लिखने का उद्देश्य मात्र इतना ही है कि भागवत की कथाओं का सार तथा उनके ज्ञान का प्रसार व प्रचार घर बैठे काम समय में हो सके ....
कृष्ण के मथुरा जाने के बाद पुनः राधा से उनका मिलना कब हुआ ...विभिन्न पुस्तकों में कोई जानकारी नहीं मिल सकी थी या फिर उनकी गूढ़ भाषा में उलझ कर रह गयी ...इस छोटी से पुस्तिका में उन्होंने इसका वर्णन इस प्रकार किया है ....
भागवत वेद रूपी वृक्ष का पका फल है तो तोते की ज्ञान रूपी चोंच से मीठा है ....जगत का आधार कृष्ण है और कृष्ण का आधार राधा है परन्तु भागवत में राधा का नाम भी नहीं आया है .....इसके चार कारण बताये गए हैं ...
1. शुकदेव की गुरु राधा थी "
२. राधा गुरु मंत्र है
3.राधा कृष्ण का आधार है
4. कृष्ण ही राधा है व राधा ही कृष्ण है अर्थात राधा एक महाशक्ति है ।
इनका जन्म नहीं हुआ है । राधा अयोनिज है । वह कमल से पैदा हुई । इसी प्रकार सीता पृथ्वी से तथा रुक्मिणी कमल के पत्तों से । कृष्ण की एक ज्योति को भी राधा माना गया है । कृष्ण 11वर्ष की उम्र तक ही वृन्दावन में रहे इसी कारण इस लीला को वात्सल्य लीला कहते हैं ...
कृष्ण का राधा के प्रति प्रेम देख कर कहा गया है कि ---
राधा तुम बड़भागिनी , कौन तपस्या कीं ।
तीन लोक तारण तरन , इसमें मेक न मीन ॥
तीन लोक तारण तरन , इसमें मेक न मीन ॥
वृन्दावन सो वन नहीं , नन्द गाँव सो गाँव
राधा जैसी भक्ति नहीं , मित्र सुदामा जान ॥
राधा जैसी भक्ति नहीं , मित्र सुदामा जान ॥
11वर्ष की बाल्यावस्था में राधा व कृष्ण बिछड़ते हैं , कृष्ण ने राधा को केवल बांसुरी दी थी जिसे उसने जीवन पर्यंत यादगार के रूप में अपने पास रखी । वापिस कब मिलना होगा , ऐसा पूछने पर कृष्ण भी बता नहीं पाए ...इसलिए कहा है :-
" बंशी दिए जात हूँ , राधा मेरे समान ।
अबके बिछड़े कब मिले , कह न सके भगवान् ॥
अबके बिछड़े कब मिले , कह न सके भगवान् ॥
राधा -कृष्ण का बचपन का अमर वात्सल्य प्रेम था । राधा व कृष्ण का विवाह नहीं हुआ था ... आचार्य चतुर सेन शास्त्री के अनुसार राधा व कृष्ण दोनों ही 11वर्ष की अवस्था में बिछड़ते हैं और जीवन के लम्बे थपेड़े खाते हुए 80 वर्ष की अवस्था में जब प्रेम रूपिणी वियोगिनी राधा वृद्धा ,अंधी और जर्जर हो जाती है तथा कृष्ण शोक , दग्ध , भग्न और अभिशप्त हैं तो दोनों का मिलन महा -शमशान में होता है । दोनों अपने पुत्र - पुत्रों को ढूँढने कुरुक्षेत्र में आये थे । प्रेम के प्रभाव से जीवन कहाँ कैसा बीता , वे जानते नहीं थे । वास्तव में उनका मिलन कारण रूप है , कार्य रूप नही ....
राम 12 कला के अवतार थे तो कृष्ण 16 कला के अवतार थे । कृष्ण ने सान्दीपन गुरु से उजैन में शिक्षा ली तथा गुरु के मारे हुए पुत्र को पुनः जीवित किया । कृष्ण ने सिर्फ 64 दिन तक की शिक्षा प्राप्त कर 64 विद्याएँ सीखी । कृष्ण योगीराज थे , मोर भी योगी होता है । उसके आंसुओं को पीकर ही मोरनी गर्भवती होती है । इसी कारण योगी मोर की पंखुड़ी योगिराज कृष्ण धारण करते थे । कृष्ण 4वर्ष गोकुल में व 11 वर्ष 55 दिन वृन्दावन में रहे ।
कृष्ण ने वृन्दावन में चार वस्तुओं का त्याग किया था ...
1 कृष्ण ने कभी मुंडन नहीं कराया
2. चरण पादुकाएं नहीं पहनी अर्थात नंगे पाँव घूमे
3. कभी शास्त्र नहीं लिया
4. कभी सिले वस्त्र नहीं पहने
कृष्ण के वृन्दावन में पैदल घूमने के कारण ही आज उस धाम की मिट्टी को सर पर लगाते हैं , पवित्र मानते हैं । वृन्दावन की सेवा कुंज में आज भी सूर्यास्त के बाद नर , वानर , पशु व पक्षी नहीं जाते हैं ...इस सेवा कुंज की विशेषता है कि इसमें न तो फल लगते हैं , न ही फूल ...इसमें पतझड़ का असर भी नहीं होता ...
भागवत में सतयुग में विष्णु का ध्यान , त्रेता में यज्ञ का , द्वापर में कृष्ण- सेवा का तथा कलयुग में नाम- जप का महत्व बताया गया है । कलयुग में मानसिक पुण्य का फल मिलता है तथा मानसिक पाप का फल नहीं मिलता । राजा परीक्षित को सर्प डसने का शाप जब श्रृंग ऋषि के पुत्र ने दिया तो श्रृंग ऋषि ने नाराज होकर अपने पुत्र को श्राप दिया कि कलयुग में ब्राह्मण का श्राप नहीं लगेगा । कृष्ण स्वयं भी शापित थे ....
भागवत के कुछ चुने हुए प्रसंग अगली कड़ी में ...
अभी मेरी पसंद से सुनिए वाणी जयराम की आवाज़ में मीरा का एक गीत ....