दोस्त दुश्मन में फर्क न कर सकें
ऐसे नादाँ भी हम नहीं
दोस्त छुप कर वार किया करते हैं
दुश्मन कलेजा चाक कर देगा ...ग़म नहीं
उस दिन मुंह फेर कर गया जब वो उदास लम्हा
मैं देर तक सोचती रही तन्हा...
लोग हंस कर मिलते हैं कलेजा छिल कर रख देते हैं
वोह तंज़ भी करता था तो मुस्कुराहटें भर देता था ...