शनिवार, 13 मार्च 2010

दोस्त बनकर गले लगाता है वही ......पीठ पर खंजर भी लगाता है वही

दोस्त बनकर गले लगाता है वही
पीठ पर खंजर भी लगाता है वही

वफ़ा की रोज नयी कसमे उठाता है
करवट बदलते ही बदल जाता है वही ....

बंद पलकों में सजे है ख्वाब जिसके लिए
चुपके से ख्वाब चुराता भी है वही .....

तोड़कर अनकहे बेनामी रिश्तों की गिरह
मेरी मायूसी पर मुस्कुराता भी है वही .....

बेवफाई से उसकी अनजान नहीं हरगिज़
मगर यह रस्म भी तो निभाता है वही ....

मुतमईन ना कैसे हो अंदाज- - गुफ्तगू से
झूठ पर सच का लिबास चढ़ाता है वही ....

लबों पर जिसके उदास मुस्कराहट तक मंजूर नहीं
झूठी सिसकियाँ लेकर जार- ज़ार रुलाता है वही ....

साए में जिसके हमें महफूज़ समझता है ये जहाँ
हर सुकून हमारा दिल से मिटाता भी है वही

मेरे लफ़्ज़ों से शिकायत बहुत है जिसको
अपने गीतों में उन्हें सजाता भी तो है वही ....


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दोस्त बनकर गले लगाता है वही
पीठ पर खंजर भी लगाता है वही....

वफा की जो रोज़ कसमें खाता है
करवटों संग बदल जाता है वही.....
बंद पलकों में हैं ख्‍वाब जिसके सजे
खुले आम लूट ले जाता है वही.....
तोड़ गया है जो इक रिश्‍ते की गिरह
आह किस अदा से मुस्‍कुराता है वही....






शुक्रवार, 12 मार्च 2010

ना ....अब बचपन ...ना .....!!




ना अब बचपना
अब बचपन ना
बहुत हुआ बचपन पर हँसना
अब हँसना ना
अब हँस ना ......!!

बचपन कब चाहे बड़ा होना
मगर जब बड़ा होना
तो बड़ा हो ना ......!!

बचपन से बड़प्पन का सफ़र...
पलक नम सुस्त कदम
बुझी निगाह सांस कम
यही तो है बड़ा होना
तो अब बड़ा ही होना
अब बड़ा हो ना ......!!

चाहा यही तो
बचपन से बड़प्पन का सफ़र
सीखे चुप रहना
तो अब चुप है ना
चाहे मौन रखना
तो अब मौन रख ना ......!!

बस अब और ना बचपना
अब बचपन ना .....!!



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