अलसुबह जो गीत सुन लो , बरबस ही लब पर चढ़ जाता है और दिन भर उसी गीत की धुन लगी रहती है ...अभी एक दिन सुबह पहले अली जी की पोस्ट " तुम्हारा चाहने वाला खुदा की दुनिया में ,मेरे सिवा भी कोई और हो , खुदा ना करे " पढ़ ली , बस फिर क्या था दिन भर यही गीत जबां पर अटका रहा ....जब भी गुनगुन होती इस गीत कि खुद को टोक देती " क्या खतरनाक चाहते हैं " , मगर फिर थोड़ी देर में वही ...गीत का मूड बदलने के लिए ठुमरी , ग़ज़ल , भजन , रॉक संगीत सब सुन लिया , मगर वही ढ़ाक के तीन पात ....जब भी गुनगुनाओ , बस यही गीत फूट पड़ता ....
यह गीत तो अपनी चाल चल ही रहा था कि इंदु जी अपनी टिप्पणी कर गयी ," कोई कुछ भी कहे , तुम्हारा कृष्ण तो राधे रानी के बिना अधूरा है "....पता नहीं क्यों, कुछ बूँदें आंसुओं की लुढ़क गयी ....
जीवन का गणित इतना कैलकुलेटिव कहाँ होता है ...सिर्फ गणित में ही होता है , दो दूनी चार , आठ दूनी सोलह हमेशा , जिंदगी में नहीं ...उसका तो अपना ही गणित , अपनी ही परिभाषा , हर एक के लिए अलग ...किस बात पर हंसी आये , किस बात पर रोना ....
दिन भर से कितनी खबरे पढ़ी , देखी ... लूटमार , हत्या , धोखाधड़ी ,रोना- पीटना , आँखें गीली नहीं हुई ... कितने सुखद , दुखद पल याद किये मगर पलकें फिर भी नम नहीं हुई , और ये जरा -सी बात कृष्ण की हुई तो आंसू छलक गये ...
जी किया कि झगड़ पडूं इंदुजी से ... छलिया कृष्ण , खुद अधूरा कब रहा , वह तो अपने आप में सम्पूर्ण ही था ... उसने हर उस व्यक्ति को अधूरा किया , जिसने उससे प्रेम किया ...माँ यशोदा, राधा , रुक्मिणी , सत्यभामा ,गोपियाँ , मीरा .... सब तो उसके बिना अधूरे ही रहे !
ओ तेरी ! कृष्ण सबको चाहे तो भी चितेरा ही , सबका दुलारा ही !
कैलाश जी भी पूछ रहे थे ," कान्हा, राधा से क्यों रूठे "
मिल जाए कहीं कान खींच कर कह दूं ..."कान्हा , अब ना चलने की है रे तेरी चतुराई!"
समझाया मन को .... फर्क है कृष्ण में , आम इंसान में ...बहुत फर्क है !
ब्लॉग दुनिया में लौटे फिर से ...देखा तो गिरिजेश जी अपलाप कर रहे हैं ....
तुम्हारा चाहने वाला खुदा की दुनिया में मेरे सिवा भी कोई और हो खुदा ना करे तुम्हारा चाहने वाला ... ये बात कैसे गवारा करेगा दिल मेरा तुम्हारा ज़िक्र किसी और की ज़ुबान पे हो तुम्हारे हुस्न की तारीफ़ आईना भी करे तो मैं तुम्हारी क़सम है के तोड़ दूँ उसको तुम्हारे प्यार तुम्हारी अदा का दीवाना मेरे सिवा भी कोई और हो खुदा ना करे तुम्हारा चाहने वाला ...हे भगवान , कितनी खतरनाक चाह्ते हैं ....ये क्या बात है कि तुम्हारी तारीफ कोई और दूसरा करे ही नहीं , ये प्यार कहाँ , जूनून है , जलन है , ईर्ष्या है ...
यह गीत तो अपनी चाल चल ही रहा था कि इंदु जी अपनी टिप्पणी कर गयी ," कोई कुछ भी कहे , तुम्हारा कृष्ण तो राधे रानी के बिना अधूरा है "....पता नहीं क्यों, कुछ बूँदें आंसुओं की लुढ़क गयी ....
जीवन का गणित इतना कैलकुलेटिव कहाँ होता है ...सिर्फ गणित में ही होता है , दो दूनी चार , आठ दूनी सोलह हमेशा , जिंदगी में नहीं ...उसका तो अपना ही गणित , अपनी ही परिभाषा , हर एक के लिए अलग ...किस बात पर हंसी आये , किस बात पर रोना ....
दिन भर से कितनी खबरे पढ़ी , देखी ... लूटमार , हत्या , धोखाधड़ी ,रोना- पीटना , आँखें गीली नहीं हुई ... कितने सुखद , दुखद पल याद किये मगर पलकें फिर भी नम नहीं हुई , और ये जरा -सी बात कृष्ण की हुई तो आंसू छलक गये ...
जी किया कि झगड़ पडूं इंदुजी से ... छलिया कृष्ण , खुद अधूरा कब रहा , वह तो अपने आप में सम्पूर्ण ही था ... उसने हर उस व्यक्ति को अधूरा किया , जिसने उससे प्रेम किया ...माँ यशोदा, राधा , रुक्मिणी , सत्यभामा ,गोपियाँ , मीरा .... सब तो उसके बिना अधूरे ही रहे !
ओ तेरी ! कृष्ण सबको चाहे तो भी चितेरा ही , सबका दुलारा ही !
कैलाश जी भी पूछ रहे थे ," कान्हा, राधा से क्यों रूठे "
मिल जाए कहीं कान खींच कर कह दूं ..."कान्हा , अब ना चलने की है रे तेरी चतुराई!"
समझाया मन को .... फर्क है कृष्ण में , आम इंसान में ...बहुत फर्क है !
ब्लॉग दुनिया में लौटे फिर से ...देखा तो गिरिजेश जी अपलाप कर रहे हैं ....
"मृत्यु के बारे में सोचना पलायन है। अतार्किक भय की तार्किक परिणति।"
"यह कहना सीमित दृष्टि का परिचायक है। तुमने यह मान लिया कि मृत्यु के बारे में सोचने वाला जीवन संघर्षों से घबराता है और यह भी कि वह भयभीत होता है।"
उधर आनद द्विवेदी जी कह रहे थे ...
"इस जगत में प्रेम से बड़ी कोई सृजनात्मक शक्ति नही है ! इसलिए प्रेम मृत्यु को स्वीकार कर ही नही सकता; वह घटती ही नही | अगर तुम प्रेम करते हो किसी को तो वह मरेगा नही; मर नही सकता | प्रेमी कभी नही मरता | प्रेमी मृत्यु को जानता ही नही | प्रेम अमृत है - ओशो"
मृत्यु, प्रेम भी सबके लिए एक जैसा कहाँ ... किसी को मृत्यु में भय है , किसी को प्रेम ...
कितने रूप है प्रेम के , चाहतों के ....
चाहतें कैसी -कैसी ....
ज्यादा पढना भी कई बार कन्फ्यूज कर देता है !
मृत्यु, प्रेम भी सबके लिए एक जैसा कहाँ ... किसी को मृत्यु में भय है , किसी को प्रेम ...
कितने रूप है प्रेम के , चाहतों के ....
चाहतें कैसी -कैसी ....
ज्यादा पढना भी कई बार कन्फ्यूज कर देता है !