दो तीन दिन पहले अचानक बच्चों के चीखने चिल्लाने की आवाज सुनकर अपनी दुखती कमर को सम्भालते बाहर गई तो अजब नजारा दिखा. पड़ोसी के मेनगेट के अंदर वही लड़का जोर जोर चीखता हुआ रो रहा था जिसे थोड़ी देर पहले ही बची हुई मिठाई का डब्बा पकड़ाया था. दो युवकों ने एक हाथ से गेट और दूसरे हाथ से बच्चे को पकड़ रखा था. बच्चे को भीषण रोते (चीख पुकार) देख ममता जाग उठी और मैं उन दोनों के बीच जा खड़ी हुई.
क्या हुआ. मारो मत बच्चा है.
माताराम, अभी तो हाथ भी नहीं लगाया. हम मार नहीं रहे. सिर्फ पूछने में इतना चिल्ला रहा है.
दीदी, भाभी आदि से आंटीजी, माताराम में हुए प्रमोशन की पीड़ा बच्चों के रोने के आगे गौण थी. माताओं को बीच बचाव करते देख पड़ोसी के लॉन में झुरमुट में छिपी दो लड़कियां भी हाथ जोड़े मेरे सामने आ खड़ी हुईं. वे भी लगातार चीख कर रोती जाती थी.
मैंने पूछा युवकों से कि आखिर हुआ क्या....
कुछ दूर पर ही एक मकान में निर्माण कार्य चल रहा है. ये युवक वहीं ठेकेदार/मजदूर थे. बताया उन्होंने कि साइट से कई बार लोहे की छोटी मोटी चीजें गायब हो रही थीं. मगर आज तो गजब ही हो गया. कल ही नया तिरपाल लाये थे. जरा सी नजर चूकते ही उठा लिया. यह पूरा ग्रुप है. दो बड़ी महिलाएं भी इनके साथ है. वे तिरपाल लेकर कहीं छिप गईं. हम बाइक पर इनका पीछा करते आये तो हमें देखकर ये भी छिपने लगे.
यह सब सुनकर बच्चे और जोर से चीख चीख कर लोट पोट होने लगे.
हम दुविधा में झूल रहे थे सच जानकर भी बच्चों का रोना देखा नहीं जा रहा था.
आप देख लो. हमने हाथ भी नहीं लगाया. सिर्फ पूछ रहे हैं कि तिरपाल कहाँ छिपाया है, बता दे. हम कुछ नहीं कहेंगे... ये लोग ट्रेंड होते हैं. बच्चों और महिलाओं को आगे कर देते हैं. मजमा लगाना जानते हैं कि इस तरह रोने चीखने पर लोग इकट्ठे हो जायेंगे और आप जैसी माताएं बीच बचाव करने आ जायेंगी.
उनकी शिकायती नजरें जाने मुझसे यह कह रही थीं. (छोटी मोटी चोरी से बढ़ती हुई इनकी आदतें महाचोर ही बनायेंगी. सब लोग सुरक्षा, शांति और बदलाव चाहते हैं पर करने की पहल नहीं करते ना ही दूसरों को करने देते हैं )
सीधे तरह नहीं बतायेंगे तो पुलिस को बुलाना पड़ेगा. किंकर्तव्यविमूढ़ हुए हम किसी तरह युवकों को समझाने में सफल रहे कि आप थोड़ी दूर जाओ . हम इनको समझा बुझाकर पूछते है. वे युवक बाइक से कुछ दूर गये और इधर ये बच्चे उसकी विपरीत दिशा में तेजी से भागे. मैंने यह भी ध्यान दिया कि पूरे समय की चीख पुकार, लोट पोट होने में उसने मिठाई का डब्बा हाथ से नहीं छोड़ा था.
लंबी साँस लेते अपने सफल या असफल अभियान को देखकर भीतर आई तो दूर से फिर चीखने / रोने की आवाजें आ रही थी. शायद उन युवकों ने उन्हें फिर से रोका था....
मेरे कानों में उससे भी बहुत किलोमीटर दूर के बच्चों की चीख पुकार गूँज रही थी और उन युवकों के सवाल भी.... क्या संयोग था! और मैं यह सोच रही कि आँसुओं और चीख पुकार की भी भिन्न भिन्न पृष्ठभूमि हो सकती है... कौन जाने कितने सच्चे कितने झूठे!