मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

छोटी पहचान लम्बा इंतज़ार....

उबासियाँ लेते हुए मेनगेट का लॉक खोला और उसने एक लम्बी सांस ली . सुबह की ताजा हवा की ठंडक कलेजे तक भर गयी . पेड पौधों को निहारते पीले गुलाब के फूल पर उसकी नजर टिक गयी , अधखिले फूल को प्यार से सहलाते मुस्कुरा पड़ी .
कमरे से बाहर निकलते बेटी की नजर माँ की इस बचकाना हरकत पर पड़ी तो हँस पड़ी , आप हमसे ज्यादा इन फूलों से प्यार करती हैं ,संभालिये अपने नन्हे -मुन्नों को , झूठ मूठ नाराज होने का नाटक करती हुई वापस अन्दर चली गयी .
पुष्प होते ही ऐसे हैं , किसी भी रंग रूप आकार में प्रकृति का सौन्दर्य बढ़ाते हैं , अपने छोटे से जीवन में खुशियाँ बाँट देते हैं , खुशियों से लेकर ग़म तक , मिलने से लेकर बिछड़ने तक के साथी होते हैं. किसे प्यार नहीं हो जाता होगा इन फूलों से !!
मुस्कुराते हुए गुनगुनाने लगी ,कौन है ऐसा जिसे फूलों से , गीतों से,पंछियों से प्यार ना हो ....नहीं ....होते हैं बहुत लोंग इस दुनिया में ऐसे भी , जिन्हें इनसे प्यार नहीं होता , हाँ ...सच ऐसे लोंग भी होते हैं !!
फूल के पास पीली पड़ गयी पत्तियां तोड़ते एक कांटा चुभा उसके हाथ में और खून की कुछ बूँदें टपक गयी . यदि ये कांटे नहीं होते तो फूल कितने सुन्दर होते , सोचा उसने , फिर तुरन्त ही ख्याल आया शायद कांटे ही इन फूलों की रक्षा करते हैं , वरना डाल पर इतनी देर तक शान से खड़ा मुस्कुराता ना होता , कांटा खुद दूसरों की आँखों की किरकिरी बन फूल की रक्षा करता है . एक ही पौधे पर पलते , एक जैसी ही हवा , धूप , चांदनी , मिट्टी और खाद मगर कितने अलग एक दूसरे से . एक पौधे पर पलने वाले फूल भी कौन से एक जैसे ही होते हैं .
फूल और काँटा , पुष्प की अभिलाषा , कितनी कवितायेँ याद हो आती हैं ...मन की गति कितनी चंचल है , क्षणांश में ही कितने मीलों की यात्रा , सुबह सुबह उसके ख्यालों की उड़ान कितनी ऊँची उड़ गयी ...खुद को धमकाते हुए कह उठी , अब काम पर लग जाओ ....
सड़क के उस पार नीम के पेड के नीचे पार्क की छोटी दीवार पर रखे पात्र पर चिड़ियाँ शोरगुल मचा रही थी , ओह , आज इसमें पानी नहीं भरा , वह मिट्टी के बड़ी सिकोरे से उस पात्र को उठा लाई और साफ़ कर ताजे पानी से भर दिया . पेड के नीचे फिर से चिड़ियों का वही शोरगुल था , मगर अब खिलखिलाता- सा ... कभी पात्र के किनारे बैठ चोंच से पानी भरती तो कभी पात्र के बीच में बैठ कर जोर से पंख फडफडाते किलोल करती .
उसकी दिनचर्या का ही एक हिस्सा है यह कार्य भी . इसी समय अक्सर एक वृद्ध महिला को लाठी का सहारा लेकर मॉर्निंग वॉक पर जाते हुए देखती हूँ उनके साथ एक लड़का भी होता है , जो शायद उनका नौकर है . कई दिनों से यह संयोग होता है , जब वह पानी भरकर रख रही होती है , उनका गुजरना होता है . कई बार दोनों की नजरें टकरा गयी , मगर अपरिचित चेहरों से मुस्कुराना , बात करना थोडा अजीब लगता है . बस वे ख़ामोशी से कभी उस सड़क से गुजर जाती, कभी अपने नौकर से बतियाती .
बहुत अच्छा काम कर रही हो , बेटा ....एक दिन पात्र में पानी भरते सुनकर चौंक कर मुड़ी तो वही वृद्ध महिला थी . अचानक से टोका था उन्होंने , हडबडाहट में वह सिर्फ मुस्कुराकर रह गयी ,कुछ कह नहीं पाई और वे धीरे धीरे चलते हुए उस रास्ते से गुजर गयी . वह बहुत देर तक सोचती रही , उसने कुछ जवाब क्यों नहीं दिया , चलो कोई नहीं , कल मिलेंगी तो जरुर बात करुँगी उनसे और कुछ नहीं तो गुड मोर्निंग ही कह दूँगी .....
एक महिना , दो महिना , करते समय अब तो एक वर्ष तक बीत गया उस बात को , वह रोज सुबह उनका इंतज़ार करती है मगर उस दिन के बाद वे कभी नजर नहीं आईं .पहले कई दिनों तक सोचती रही कि वे कहीं बाहर गयी हुई होंगी अपने परिवार के साथ , मगर उनके साथ कभी कोई परिवारजन नजर तो नहीं आया था , वे तो बस उस नौकर के साथ ही घूमने निकलती थी , दूसरे शहर में रहते होंगे बेटे -बेटी , उन्हें अपने साथ ले गये होंगे ....कभी- कभी उसका दिल धक् भी रह जाता है , कहीं वे बीमार तो नहीं हो गयी , कही उन्हें कुछ हो तो नहीं गया ....
अब वह कई बार झुंझलाती है , उस छोटी सी पहचान से उसे कितना लम्बा इंतज़ार दे दिया है . उन्हें उस दिन के बाद आना नहीं था तो उस दिन उसे टोका ही क्यों !!!!

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नेट पर घूमते हुए अचानक नजर पड़ी ...http://forums.abhisays.com/showthread.php?t=३५६३
हमें पता ही नहीं होता हम कहाँ कहाँ हैं :):)