बुधवार, 10 नवंबर 2010
ऐसी रही दिवाली ...कुछ तस्वीरें रावण मंडी की भी
त्यौहारी मौसम चल रहा है ...हालाँकि कुछ के लिए बीत चुका ...मगर बिहार, यू पी में छठ करने वालों और राजस्थान में कार्तिक स्नान करने वालों के लिए उत्सव कार्तिक पूर्णिमा तक चलेगा ...गोपाष्टमी , आंवला नवमी , देवउठनी एकादशी , पंचतीर्थ स्नान , कार्तिक पूर्णिमा ...आदि आदि ..।
जयपुर में इस बार दिवाली पर खरीददारी और रौशनी की बड़ी धूम रही ...बरसों बाद अच्छा मानसून , समय पर सरकारी कर्मचारियों को मिले भत्ते ने बाजार की रौनक बढ़ा दी ...हमारा तो कोई विशेष घूमना नहीं हुआ पुराने शहर के बाजार में ...मगर आस-पास के मार्केट में रौशनी का नजारा शानदार था ...जानकारों का कहना है कि जयपुर में इस बार जैसी रौशनी और सजावट पहले कभी नहीं हुई ...
हम तो दिवाली के एक दिन पहले तक साफ़ -सफाई में ही अटके पड़े थे ...मकान के पिछले खुले गलियारे को लोहे की ग्रिल द्वारा बंद करने का कार्य और उसके लिए बुलाये गए कारीगरों की बदौलत ...छोटे से कार्य के लिए 5 दिन तक घर कबाडखाना बना रहा ...और उसपर कारीगरों के नखरे ...समाजसेवा प्रेमी पतिदेव जाने कितने नीड़ों के निर्माण में नक्शा बनाने से लेकर मटेरिअल से लेकर कारीगर, मजदूर तक उपलब्ध कराने में अपनी श्रेष्टता साबित कर चुके हैं , मगर इस बार अपने घर के छोटे से काम में बुरे उलझे ...जो कारीगर/मजदूर दंपत्ति इस कार्य के लिए आये थे , पति बेचारा (और ऑप्शन भी क्या होता है इन लोगों के पास !!) शांत , जितना पूछो उसका जवाब दे दे औरचुपचाप अपना काम कर ले ...मगरउसकी पत्नी ... !
कितनी बार टोक कर उसको चुप रहने के लिए कहना पड़ा ..... पता नहीं उसके पति ने क्या कहा सिर्फ अंदाजा ही लगा सकती हूँ , क्यूंकि उसके पति की तो आवाज़ मुझे सुनायी ही नहीं दी, जो सुनायी दिया वो थी उस महिला कामगार की गालियों की बौछार ...और उसका पति सर झुकाकर चुपचाप सुनता रहा ...सचुमच कुछ अलग -सा अनुभव था । गालियाँ देते पति और चुपचाप सुनती पत्नियाँ तो खूब देखी हैं , मगर ऐसा दृश्य पहली बार ही देखा ....जहा पति चुपचाप अपने काम में लगा रहता , वहां उसकी पत्नी ज्यादा समय उसे निर्देशित करने , गप्पे हांकने या आराम करने में बीतता ...हद तो तब हुई जब उसके निर्देशन का दायरा बढाकर मुझतक और पतिदेव तक पहुँचने लगा ...
दिन में तीन चार बार मजदूरों के लिए चाय बनाने का पति देव का निर्देश मुझे अखरता नहीं है क्यूंकि चाय पीना मुझे भी बहुत पसंद है और वो भी अदरक , कालीमिर्च आदि मसालों के साथ ... मगर ...
उधर से फरमाईश आई , " म्हारी चाय म काली मिर्च मत डाल्जो और चीनी थोड़ी बत्थी " (मेरी चाय में काली मिर्च मत डालना और चीनी थोड़ी ज्यादा )...फरमाईश की ये तो शुरुआत भर थी... दिवाली करीब आती जा रही थी और घर बिखरा पड़ा था ...दो दिन का कार्य 5 दिन में जाकर ख़त्म हुआ और रोज चख चख करते ...खैर जैसे तैसे उसको विदा किया और वार्षिक सफाई की शुरूआत हुई ...
पांच दिन में पूरे घर को साफ़ सुथरा बनाना हमारे जैसे आलसियों के लिए जंग लड़ने जैसा ही तो है ...जैसे तैसे निपटी साफ़ सफाई और मन गयी दिवाली भी ... रूप चतुर्दशी को खुद के रूप की बजाय रसोई का रूप सुधारा जा रहा था, कई नए पकवान बनाने का अरमान धरा रह गया ...बात सिमटकर बेसन की चक्की , नारियल मूंगफली की बर्फी पर ही अटक गयी ...थकान के मारे हाल बुरा अलग था ...
मगर जब पडोसी आंटी जी और अंकलजी से अपने वार्डरोब कलेक्शन की बडाई ,बच्चों और मेहमानों से मिठाई की , भाई दूज के दिन भाई- भाभीओं से खाने की तारीफ़ , और सबसे ऊपर कुछ महिलाओं का ये कहना ," अब आप अच्छे लगने लगे हो "...सुनी तो सब थकान उड़न छू हो गयी ...अब मारवाड़ियों का अच्छा लगना मतलब तो समझ ही गए होंगे ...बरसों से सेहतमंद लोगों के ताने सुनते रहे हैं कि हम तो खाते पीते घर के हैं , आपको खाना नहीं मिलता क्या ... अब हम भी खाते- पीते की श्रेणी में शामिल होने लगे हैं ... ये बात और है कि पतिदेव रोज योगा करने की सलाह देने लगे हैं . गृहिणियों की खुशियाँ कितनी छोटी -छोटी सी ही तो होती हैं ...तो कभी कभार उनके खाने की , घर सँभालने के गुणों की तारीफ़ कर देने में क्या जाता है ...नहीं क्या ...!!!!
दो दिन आलस मिटाने के बाद देखा कि बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं था ब्लॉग पर , दिमाग सुन्न हो जाता है कभी -कभी...यूँ तो खाली ही है, बस थोथे चने की तरह कभी -कभी बज जाता है ...सोचा आज तो कुछ लिखना ही है ...जो लिख दिया है ...झेलिये !
दशहरे पर देवर की बेटी रहने आई दो दिन के लिए तो अपने बड़े पापा से रावण देखने की जिद करती रही ...वो भी एक दो नहीं , 10,50...पड़ोस में ही है एशिया की सबसे बड़ी रावण मंडी .....दिखा लाये पतिदेव भी ...
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