बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक विजयदशमी पर्व की तैयारी पूरे देश में जोर शोर से चल रही है . रामलीलाओं के मंचन के साथ ही रावण के पुतलों को बनाने और जलाने की तैयारियां अपनी चरम पर है . पहले जहाँ चंदे इकठ्ठा कर कोलोनियों के बड़े और बच्चे बुजुर्गों के निर्देशन में सुखी लकड़ियाँ और रंगीन कागजों से लपेट कर दहन स्थल पर ही रावण का निर्माण करते थे , आजकल कारीगरों ने उनकी इस मेहनत को कम कर दिया है . जेब में पैसे लेकर जाओ और अपनी पसंद का रावण छांट लाओ .
जयपुर के गोपालपूरा बाई पास पर गुजर की थड़ी से लेकर किसान धर्म काँटा तक रावण की मंडी सज गयी है . राजस्थान के जालौर जिले के अतिरिक्त अन्य जिलों से भी कारीगर यहाँ रात दिन रावणों के निर्माण में परिवार सहित जुटे हुए हैं . बांस की खपच्चियों पर लेई की मदद से रंगीन कागज लपेट कर विभिन्न चित्ताकर्षक रावण के साथ ही मेघनाद और कुम्भकरण आदि की छवियाँ तैयार की जाती हैं .
रावण की यह मंडी राह चलते राहगीरों को इतना आकर्षित करती है कि इस मार्ग से गुजारने वाले एक बार रुक कर इसे देखते जरुर हैं , साथ ही अपनी कोलोनियों के सार्वजानिक स्थलों पर रावण दहन की तैयारियों के लिए इनका मोलभाव भी करते हैं . कहा जाता है कि यह एशिया की सबसे बड़ी रावण मंडी है . यहाँ दो से तीन फीट के रावण के साथ ही तेईस फीट तक के रेडीमेड रावण उपलब्ध हैं जिनकी कीमत 150 -200 के साथ 7000 तक है .
सिर तानकर खड़े इन रावणों को देखकर लोंग चुटकी लेने से नहीं चूकते कि दो दिन की और बात है फिर तो तुम्हे खाक में मिलना है , तन ले जितना तनना है अभी ...यही तो मानव जीवन पर भी लागू होता है , लालच , लोभ ,अहंकार में आकंठ डूबे लोंग हर वर्ष रावण की ऐसी दुर्गति देखकर भी अपने जीवन पर दृष्टि नहीं डाल पाते .
बड़े से बड़े जहाज को डुबोने के लिए एक छिद्र ही काफी है , रावण के पतन के लिए यह उक्ति बिलकुल उपयुक्त साबित होती है . सभी गुणों से संपन्न होने के बावजूद परायी स्त्री के हरण अर्थात उसकी चरित्रहीनता के कारण ही उसका पतन हुआ .
रावण जहाँ दुष्ट था और पापी था वहीं उसमें शिष्टाचार और ऊँचे आदर्श वाली मर्यादायें भी थीं। राम के वियोग में दुःखी सीता से रावण ने कहा है, "हे सीते! यदि तुम मेरे प्रति काम भाव नहीं रखती तो मैं तुझे स्पर्श नहीं कर सकता।" शास्त्रों के अनुसार वन्ध्या, रजस्वला, अकामा आदि स्त्री को स्पर्श करने का निषेध है अतः अपने प्रति अकामा सीता को स्पर्श न करके रावण मर्यादा का ही आचरण करता है।
वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों ही ग्रंथों में रावण को बहुत महत्त्व दिया गया है। राक्षसी माता और ऋषि पिता की सन्तान होने के कारण सदैव दो परस्पर विरोधी तत्त्व रावण के अन्तःकरण को मथते रहते हैं। (http://bharatdiscovery.org से साभार ).
वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों ही ग्रंथों में रावण को बहुत महत्त्व दिया गया है। राक्षसी माता और ऋषि पिता की सन्तान होने के कारण सदैव दो परस्पर विरोधी तत्त्व रावण के अन्तःकरण को मथते रहते हैं। (http://bharatdiscovery.org से साभार ).
अहंकार को भयंकर दुर्गुण मानते हुए यह भी प्रचलित है कि अहंकार तो रावण का भी नहीं टिका . कहा भी जाता है कि एक अज्ञानी यदि चरित्रवान है तो उसके अज्ञान को क्षमा किया जा सकता है , क्योंकि वह अच्छे और बुरे का फर्क समझता है , मगर यदि एक विद्वान् इस अंतर को नहीं समझता तो वह स्वयं अपना और अपने कुल का भी नाश करता है . अपने शौर्य और विद्वता के अहंकार और मद में डूबा रावण प्रकृति के संतुलन को समझ नहीं सका और उसके सोने की लंका का सर्वनाश हुआ .