एक भाई था. उसकी एक बहन थी. भाई का नाम जोठो और बहन का नाम धोधां. उसने अपनी पत्नी से कहा कि मैं गया जी जा रहा हूँ श्राद्ध के लिए, मेरी बहन को पन्द्रह दिन तक अच्छी तरह जिमाना.
भाई गयाजी चला गया. भाभी रोज ननद को बुलाती और दो रोटी देकर भेज देती. एक दिन उसके पिता का श्राद्ध था तो उस दिन भाभी ने अपनी ननद से कहा कि बाईसा, कल आप जल्दी आना, काम करना है. बच्चों से कह देना
पेड़ हिले तो आ जाना , पत्ते हिलें तो मत आना. बहन अपने बच्चों को कहकर आई कि तुम नाले की मुंडेर पर बैठ जाना. मैं चावल की माँड़ गिराउँगी तो तुम पी लेना. मगर जब वह माँड गिराने लगी तो उसकी भाभी ने रोक दिया . बोली आज बापूजी का श्राद्ध है सो माँड नाले में मत गिराना. शाम को बहन घर जाने लगी तो उसे चार रोटी देकर भेज दिया. जब ब न घर आई तो बहुत रोई. उसके आँसे उसके पिता के खाने में गिरे. उसी रात उसके पिता बेटी के सपने में आकर बोले कि बेटी , तू क्यों रोई. तब वह बोली कि भाभी ने आपको खीर मालपुआ खिलाया और मैं भूखी मरते सो रही हूँ. पिता ने कहा बेटी रो मत. घर के बाहर जो कचरा पड़ा है, उसे घर में रख लो. तेरा सब सही हो जायेगा. बेटी ने ऐसा ही किया। सुबह उठ कर देखे तो नौ खंड महल, हीरे जवाहरात, मोटर कार, सुंदर वस्त्र हो गये.
उधर भाई गयाजी में पिंडदान कर रहा था तो उसके खाने में खून की बूँदें टपक गईं. उसने पूछा पंडित से ये कैसे हुआ तो उसने कहा कि तुम्हारे घर में कोई बहन/बेटी कलपी (व्यथित) है.
जब भाई श्राद्ध कर वापस लौटा तो उसने पत्नी से पूछा कि क्या तुमने रोज जिमाया था बहन को. उसकी पत्नी बोली कि हाँ...खूब अच्छी तरह जिमाया और आज ही दक्षिणा देकर विदा किया है.
उधर पिता ने पुत्री को अपना श्राद्ध करने और भाई भाभी को जीमने के लिए बुलाने को भी कहा था. बहन खूब अच्छे रेशमी कपड़ों और हीरे जवाहरात से लदी फँदी मोटर गाड़ी में बैठकर भाई के घर बुलावा देने गई . भाई बहन को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ. भाभी ननद के ठाठबाट देखकर अचंभित हो गई और उसका बहुत आदर सत्कार किया. भाई जब खाना खाने बैठा तो पहले बहन को बैठाया. ननद की इच्छा नहीं थी मगर भाई के प्रेमवश उसके साथ बैठ गई...
भाभी ने ननद को भी सब पकवान परोसे. बहन सभी पकवान अपने कीमती वस्त्रों और गहनों के पास लाकर कहने लगी... जीमो म्हारा छल्ला बिंटी, जिमो म्हारा डोरा कंठी, जीमो म्हारा चमचम बेस ...
भाई को समझ नहीं आया. बोला - यह क्या कर रही हो बहन.
भाई . आज ये पकवान इन सबके कारण ही मिल रहे है. वरना मेरी किस्मत में तो मात्र लूखे फुलके ही थे.
अब भाई को तर्पण के समय खून के आँसू का मतलब समझ आया और वह खून के आँसू पीकर रह गया. बहन ने अपने घर पिता का श्राद्ध किया सबको मन भर जिमाया.
कुछ दिन बाद भाई उदास होकर अपनी पत्नी को बोला- तुम्हारे पीहर में आग लग गई . उनका सब जल कर राख हो गया. कुछ सामान बाँध दो तो मैं पहुँचा आऊं. सुनते ही उसकी पत्नी ने घी, तेल, आटा, चीनी, दाल, चावल आदि गाड़ी भरकर तैयार कर दी. भाई ने कहा रास्ते में ब न का घर भी आयेगा. कुछ उसके लिए भी दे देना.
भाभी बोली- हाँ. क्यों नहीं. ननद बाई के घर तो पहले भेजूँ.
उसने ताँबे का बहुत बड़ा घड़ा लेकर उसमें साँप, बिच्छू आदि जहरीले जानवर भरकर भेज दिये और यह भी बोली कि रास्ते में इसे खोलना मत और बहन के हाथ में ही देना. भाई अपने बेटे को साथ लेकर रवाना हुआ. वह पहले अपनी बहन के घर गया और गाड़ी का सब सामान वहीं उतार दिया. अब उसने ताँबे का घड़ा सास के हाथ में दिया और कहा कि वह घड़े को अँधेरे में ही खोलकर देखे. सास ने घड़े में हाथ डाला तो साँप बिच्छू लिपट गये. उनको उसी हालत में छोड़ कर बाप बेटे लौट आये. बहू ने अपने बेटे से पूछा कि घड़ा किसको दिया तो उसने सारी बात बता दी. उसकी पत्नी ने सोचा कि अब तो मुझे बदला लेना है. वह कंबल ओढ़ कर सो गई. उसके पति ने पूछा कि क्या हुआ यो बोली की पंडितों ने बताया है कि मेरी तबियत बहुत खराब है.
तो यह ठीक कैसे होगी?
पंडित ने कहा कि यदि तुम्हारी ननद ननदोई काले कपड़े पहन कर, सिर मुंड़वा कर हाथ में मूसल लेकर खेम कुसलजग्गी रो घर किस्यो कहते आयें तब ही मेरी तबियत ठीक होगी.
उसका पति सब चाल समझ गया. उसने कहा कि मेरी बहन तो तेरी खातिर दौड़ी आयेगी. मैं अभी बोलकर आता हूँ.
भाई पत्नी के मायके गया और बोला कि आपकी बेटी बीमार है और पंडितों ने कहा है कि अगर आप लोग काले कपड़े पहनकर सिर मुड़ा कर आयेंगे तभी उसकी तबियत ठीक होगी. सास ने कहा कि मेरी तो एक ही बेटी है. जैसा आप कहो , हम वैसा ही करेंगे.
बहू के माँ बाप सिर मुड़ाये काले कपड़ों में हाथ में मूसल लिए खेम कुसलझग्गी रो घर किस्यो करते आये. भाभी ने सोचा कि ननद ननदोई आये हैं सो वह छत पर चढ़ गई और कहने लगी.
इ बनी र कारण
ननदल नाचे बारण (इस बहू के कारण ननद घर के बाहर नाच रही है)
भाई ने बोला- भाग्यवान देख तो ले ठीक से. ननद नाच रही या तेरे माँ बाप.
वह यह देखकर वह बहुत जल भुन गई.
कुछ दिन बाद फिर पति से बोली- आज मेरा साँझ साँझूली का व्रत है.
पति बोला यह कौन सा व्रत है. भाभी झूठमूठ पूजने लगी -
मैं तन पूजूँ साँझ साँझूली
मरजो म्हिरी ननद ननदूली...
भाई समझ गया कि यह औरत नहीं सुधरेगी.
उसने दूसरे दिन अपनी पत्नी से कहा- आज मेरा ऊब घोटाले का व्रत है.
पत्नी ने पूछा- ये ऊब घोटाले का कौन सा व्रत होता है.
उसके पति ने कहा -जैसे साँझ साँझूली का होता है वैसे ही ऊब घोटाले का होता है.
फिर झूठमूठ पूजने लगा-
मैं तन पूजूँ ऊब घोटाला
मरजो सुसरा दोण्यूँ साला...
पत्नी समझ गई कि भाई के आगे उसकी चाल नहीं चलने वाली. अब वह अपनी हार मानकर ननद के साथ खुशी- खुशी रहने लगी. नगरी में मुनादी करवा दी कि श्राद्ध पक्ष में कोई भी बहन बेटी दुखी न रहे और अमावस्या के बाद बेटी भी बच्चे के जन्म के बाद पिता का श्राद्ध करे...
फेसबूक पर चर्चा के दौरान पता चला कि अधिकांश लोग इस बात से अनभिज्ञ हैं कि पुत्री भी माता पिता का श्राद्ध कर सकती है. इसे मातामह श्राद्ध के नाम से जाना जाता है. घर में बुजुर्गों से इससे संबंधित कहानी सुनी थी. आभासी दुनिया के परीचित मित्रों ने भी यह कहानी जानने की उत्सुकता जताई तो परिवार के बुजुर्गों से ही इसके बारे में पूछताछ कर लिख दी है. इसमें कुछ त्रुटि हो तो संशोधित करने में सहायता अवश्य करें.
(चित्र गूगल से साभार. आपत्ति होने पर हटा लिया जायेगा)