कल का दिन प्रसाद के नाम रहा ...कोई -कोई दिन ऐसा हो जाता है ...4-5 पड़ोसिनें अलग-अलग कारणों से मिठाई व प्रसाद /लावणे (शादी ब्याह या अन्य शुभ अवसरों पर बांटे जानी वाली मिठाई या प्रसाद ) के रूप में लेकर आई ...कहाँ तो पूरा महिना सूखा जाता है मुफ्त की मिठाई खाने में और कहाँ एक दिन में इतनी सारी ...कोई बेसन के लड्डू लेकर आई थी तो कोई बालूशाही /बूंदी के लड्डू , कोई वैष्णो देवी यात्रा से लौटकर प्रसाद वितरण कर रहा था तो किसी की अमरनाथ यात्रा सफल हो गयी थी ...किसी ने अपने घर में विवाह की ख़ुशी में मिठाई बांटी ...
अब इतने मुफ्तखोर हम भी नहीं है ...हम भी किसी तीर्थ यात्रा या किसी विवाह समारोह से लौटने पर इसी तरह मिठाई व प्रसाद बांटते हैं .....मगर कोशिश यही करते हैं कि प्रसाद के साथ तस्वीरें अनावश्यक रूप से ना दी जाएँ ..
शादी -व्याह की मिठाई तक तो ठीक ही था मामला ...मगर अमरनाथ और वैष्णोदेवी यात्रा से लौटे श्रद्धालु द्वारा लाये गए प्रसाद के पैकेट में प्रसाद के अलावा देवी- देवताओं की छोटी तस्वीरें भी थी ...आये दिन इस तरह के प्रसाद प्राप्त होते रहते हैं और इनके साथ ईश्वर की असीम कृपा भरे ये चित्र भी ... किसी शोक सभा में भी इसी तरह श्रद्धांजलि के रूप में सीताराम जी के चित्र दिए गए तो कोई नए वर्ष की शुभकामनाओं के रूप में श्री कृष्ण की तस्वीरें दे गया ...समझ नहीं आता छोटे से पूजा घर में इन तस्वीरों को कैसे एडजस्ट करूँ .... आखिर कितनी तस्वीरें वहां रखी जा सकती हैं ...और यदि इधर उधर कहीं रख दे तो जूठे/ गंदे हाथों द्वारा छुए जाने अथवा अन्य प्रकार से तस्वीरों के अपमान का भय ...अब शरीफ लोग तो ईश्वर का अपमान करने या होने की कल्पना मात्र से भयभीत हो ही जाते हैं, बाकी लापरवाहों का क्या !
यही समस्या शादी के अवसर पर दिए जाने वाले निमंत्रण पात्रों को लेकर होती है ....लगभग हर निमंत्रण पत्र पर विघ्नविनाशक अपनी पूरी सुन्दरता के साथ मौजूद होते हैं ...अब आखिर कितने कार्ड संभाल कर रखे जा सकते है और वो भी कितनी देर ...?
इतना ही नहीं , घरेलू उपयोग के अन्य सामान अथवा किराने के रैपर , चाबी के छल्ले , अखबार के विज्ञापनों, की होल्डर , आदि में भी अलग- अलग देवी /देवताओं की तस्वीर नजर आ जाती है ...अब इनमे से कितनी चीजें संभाल कर रखी जा सकती हैं ...तुलसी के बिरवा पर भी कितना इकठ्ठा किया जा सकता है ...मंदिर के अहाते में बने बरगद, पीपल के पेड़ों पर भी आप कितनी तस्वीरें अर्पण कर सकते हैं ...आखिर वहां से भी साफ़ -सफाई के दौरान कूड़ा घर में ही जाती है यह सामग्री भी ...
क्या इस तरह अपने देवी- देवताओं का सार्वजानिक उपयोग कर हम उनका अपमान नहीं कर रहे हैं ...
प्यार और सम्मान तो हम अपने अभिभावकों का भी करते हैं पर क्या उनकी तस्वीरों का इस तरह सार्वजनीकरण कर अपमानित होते देख सकते हैं ?
अपने इष्ट देवों को हम आत्मीय और अभिभावकों से भी ऊँचा दर्ज़ा देते हैं फिर उनका इस तरह अपमान क्यों ?
इस प्रकार हर स्थान पर बेवजह उनकी तस्वीरों का प्रयोग कर हम उनके प्रति सम्मान प्रकट कर रहे हैं या अपमान ...?
क्या हमारे देवी देवताओं के प्रति सम्मान और श्रद्धा प्रकट करने का और कोई बेहतर विकल्प हमारे पास नहीं है ...
सोच रही हूँ मैं ...आप भी सोचिये ना ...!
अब इतने मुफ्तखोर हम भी नहीं है ...हम भी किसी तीर्थ यात्रा या किसी विवाह समारोह से लौटने पर इसी तरह मिठाई व प्रसाद बांटते हैं .....मगर कोशिश यही करते हैं कि प्रसाद के साथ तस्वीरें अनावश्यक रूप से ना दी जाएँ ..
शादी -व्याह की मिठाई तक तो ठीक ही था मामला ...मगर अमरनाथ और वैष्णोदेवी यात्रा से लौटे श्रद्धालु द्वारा लाये गए प्रसाद के पैकेट में प्रसाद के अलावा देवी- देवताओं की छोटी तस्वीरें भी थी ...आये दिन इस तरह के प्रसाद प्राप्त होते रहते हैं और इनके साथ ईश्वर की असीम कृपा भरे ये चित्र भी ... किसी शोक सभा में भी इसी तरह श्रद्धांजलि के रूप में सीताराम जी के चित्र दिए गए तो कोई नए वर्ष की शुभकामनाओं के रूप में श्री कृष्ण की तस्वीरें दे गया ...समझ नहीं आता छोटे से पूजा घर में इन तस्वीरों को कैसे एडजस्ट करूँ .... आखिर कितनी तस्वीरें वहां रखी जा सकती हैं ...और यदि इधर उधर कहीं रख दे तो जूठे/ गंदे हाथों द्वारा छुए जाने अथवा अन्य प्रकार से तस्वीरों के अपमान का भय ...अब शरीफ लोग तो ईश्वर का अपमान करने या होने की कल्पना मात्र से भयभीत हो ही जाते हैं, बाकी लापरवाहों का क्या !
यही समस्या शादी के अवसर पर दिए जाने वाले निमंत्रण पात्रों को लेकर होती है ....लगभग हर निमंत्रण पत्र पर विघ्नविनाशक अपनी पूरी सुन्दरता के साथ मौजूद होते हैं ...अब आखिर कितने कार्ड संभाल कर रखे जा सकते है और वो भी कितनी देर ...?
इतना ही नहीं , घरेलू उपयोग के अन्य सामान अथवा किराने के रैपर , चाबी के छल्ले , अखबार के विज्ञापनों, की होल्डर , आदि में भी अलग- अलग देवी /देवताओं की तस्वीर नजर आ जाती है ...अब इनमे से कितनी चीजें संभाल कर रखी जा सकती हैं ...तुलसी के बिरवा पर भी कितना इकठ्ठा किया जा सकता है ...मंदिर के अहाते में बने बरगद, पीपल के पेड़ों पर भी आप कितनी तस्वीरें अर्पण कर सकते हैं ...आखिर वहां से भी साफ़ -सफाई के दौरान कूड़ा घर में ही जाती है यह सामग्री भी ...
क्या इस तरह अपने देवी- देवताओं का सार्वजानिक उपयोग कर हम उनका अपमान नहीं कर रहे हैं ...
प्यार और सम्मान तो हम अपने अभिभावकों का भी करते हैं पर क्या उनकी तस्वीरों का इस तरह सार्वजनीकरण कर अपमानित होते देख सकते हैं ?
अपने इष्ट देवों को हम आत्मीय और अभिभावकों से भी ऊँचा दर्ज़ा देते हैं फिर उनका इस तरह अपमान क्यों ?
इस प्रकार हर स्थान पर बेवजह उनकी तस्वीरों का प्रयोग कर हम उनके प्रति सम्मान प्रकट कर रहे हैं या अपमान ...?
क्या हमारे देवी देवताओं के प्रति सम्मान और श्रद्धा प्रकट करने का और कोई बेहतर विकल्प हमारे पास नहीं है ...
सोच रही हूँ मैं ...आप भी सोचिये ना ...!