मंगलवार, 2 मार्च 2010
असर तो है .........!!
खेतों में सरसों का रंग और चटक हुआ
लहराया मेरा आँचल चुनरी का कसूमल
गालों के भंवर मुस्कुराते रहे गुलाबी
रंगत चेहरे की हुई और सुर्ख रतनारी
कदम नापते रहे दूरियां आसमानी
रंग सुनहरा बिखेरती रही चांदनी
सिलबट्टे पर चढ़ी रही मेहंदी हरियाई
चक्की में पिसता रहा मक्का पीतवर्णी
साबुनी- झाग भरे हाथ
झिलमिलाते रहे इन्द्रधनुषी
सिंक में बर्तनों की खडखडाहट
बन गयी गीत फागुनी
खड़े रहे ....हाथ बान्धे ....
सर झुकाए ....कतारबद्ध
रंग सारे आबनूसी ...
दुआओं में उसकी
असर तो है ....!!
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नोट ....कविता में लय , तुकांत , बहर, कुछ मत ढूंढें ...नहीं मिलेगा .....गौतम राजरिशी जी के ब्लॉग पर टिप्पणी करते हुए आये कुछ खयाल ...बस ऐसे ही लिख दिए ....
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