अपनी एक पोस्ट में मोहल्ले की सफाई कर्मी महिला "माया "के बारे में लिखा था ...अक्सर उसकी बेटी की पढ़ाई के बारे में पूछताछ करते रहती हूँ ...एक दिन बड़ी ख़ुशी -ख़ुशी कहने लगी ," आपके घर कौन सा अखबार आता है, मेरी बेटी ने रविन्द्र मंच पर अपने विद्यालय के वार्षिकोत्सव में भाग लिया था , उस अखबार में उसकी फोटो छपी थी ...कार्यक्रम की सूचना और रिपोर्ट और तस्वीरें तो बहुत से अखबार में है , मगर मेरी बेटी की तस्वीर उस विशेष अखबार में ".... चूँकि मैं वह समाचार पत्र नहीं लेती ,उसको थोड़ी निराशा हुई ..आगे उसने बताया कि भारती (माया की बेटी ) का उस विद्यालय में आखिरी साल है , अब उसे दूसरी स्कूल में एडमिशन दिलाना है , मगर आर्थिक और सामाजिक मजबूरियों के कारण शायद यह संभव नहीं हो पाए ...
मुझे लगा कि भारती का परिचय ब्लॉग पर लिखना चाहिए ...ब्लॉग के बारे में वो नहीं समझती ...उसे लगा कि उसकी बेटी का परिचय अखबार में लिखा जाएगा , और उसकी इच्छाशक्ति तो देखिये , वर्षा जी ने डेली न्यूज़ में इस पर लिखने की अनुमति दे दी ...
भारती चंडालिया ... पिता का नाम कैलाश चंडालिया ... माता का नाम माया चंडालिया ... मैं लिटिल स्कॉलर्स स्कूल , मानसरोवर में पढ़ती हूँ ... मेरे मातापिता बहुत मेहनती हैं ... मैं शिक्षिका बनकर अपने माता पिता का नाम रौशन करना चाहती हूँ ......
अपना यह परिचय उसने अंग्रेजी में लिख कर दिया और उसके साथ दो सर्टिफिकेट नत्थी थे ...
भारती ने बैडमिन्टन और स्पून रेस प्रतियोगिता में विद्यालय में पहला और दूसरा पुरस्कार भी प्राप्त किया है ...अभी कुछ दिनों पहले भारती ने जयपुर के रविन्द्र मंच पर विद्यालय के वार्षिकोत्सव कार्यक्रम में भी भाग लिया था ...
पहली नजर में इतना कुछ ख़ास नहीं नजर आता इस परिचय में ...मगर यदि इस परिचय को घर -घर कचरा इकठ्ठा करने वाली सफाईकर्मी की पुत्री के रूप में देखें तो .....
आम सफाईकर्मियों से अलग साफ़ सुथरे रहने वाले व्यवहारकुशल माया और कैलाश (भारती के माता- पिता ) अपने बच्चों की शिक्षा के लिए बहुत जागरूक है ...माया बड़े उत्साह से बताती है कि उसके बच्चे अंग्रेजी माध्यम वाले डे -बोर्डिंग स्कूल में पढ़ते हैं ....इस वर्ष उसकी बेटी आठवीं की परीक्षा दे रही है ....अब उनकी समस्या यह है कि उसके बच्चे जिस विद्यालय में पढ़ते हैं , वह सिर्फ आठवीं तक ही है , इसके बाद भारती को दूसरे विद्यालय में प्रवेश लेना होगा ...उसकी अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के उत्साह को देखते हुए यहाँ विद्यालय प्रबंधन ने उनकी आधी फीस माफ कर दी थी ...मगर नए सत्र में बढ़ी हुई फीस दरें आधी करने पर भी आर्थिक बोझ को बढ़ाएंगी ही, माया की चिंता है कि वह इतनी फीस कहाँ से चुका पायेगी ...उधर भारती रो -रोकर हलकान अपनी माँ से कह रही है कि उसे अच्छी स्कूल में ही दाखिला दिलाये , सड़कों की सफाई और कचरा एकत्रित करने में वह उसकी मदद कर देगी , मगर उसकी शिक्षा में खलल ना डाला जाए ...हालाँकि माया स्वयं भी अच्छे स्कूल में अपनी बेटी के एडमिशन के लिए प्रयासरत है मगर उसे एक उम्मीद भी है कि कोई सहृदय विद्यालय प्रबंधन उसकी बेटी की अच्छी शिक्षा में उसकी मदद कर दे तो भारती का भविष्य संवर जाए ...
इस परिवार का जो गुण बहुत प्रभावित करता है ,वह है अपने काम को छोटा नहीं मानना ....बच्चे अपनी माँ के साथ कचरा एकत्रित करने में कोई हेठी नहीं समझते हैं , इसे लेकर उनके मन में कोई हीन भावना नहीं है , कम से कम अभी तक तो ....अल्प आयवर्ग के अस्पृश्य माने जाने वाले लोगों में अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति इतनी जागरूकता और समाज की मुख्य धारा में सामान्य व्यक्ति की तरह ही जुड़ना एक सुखद बदलाव है ...समाज को सुशिक्षित बनाने में प्रयासरत जागरूक समाजसेवी यदि मदद कर सके तो इन हौसलों को पंख लग जाए और भारती की आँखों के सपने साकार हो और सामने हो एक स्वतंत्र खुला आसमान ...
सफाई कर्मियों में शिक्षा को लेकर ऐसी जागरूकता और जुझारूपन प्रभावित करता ही है , साथ ही ऐसे ही दूसरे अभिभावकों के लिए उत्प्रेरक का कार्य भी !