रेल में यात्रा कर रहे एक तिलकधारी सेठ ने जब अपने भोजन का डिब्बा खोलना चाहा तो पास ही बैठ खद्दरधारी नेता को देखकर उसे कुछ शंका हुई।
सेठ ने कहा ...." अजी नेताजी ! आप किस जाति के हैं? क्षमा करना । जरा ख़ास काम है । इसलिए पूछने की हिम्मत हुई ।"
इस पर खद्दरधारी व्यक्ति ने सेठ से पूछा ..." जात न पूछिये साधू की , पूछ लीजिये ज्ञान .....वाली कहावत नहीं सुनी क्या आपने सेठ जी ..."
पर आप तो गेरुए वस्त्र पहने साधू नहीं हो। आजकल ब्राह्मण , बनिए सभी अपनी नेतागिरी चमकाने के लिए पहन लेते हैं। हो सकता आप भी इसी कारण पहने हो। अपनी जाति बनाने में क्या हर्ज़ है ...?
सेठजी का आग्रह सुनकर नेताजी कुछ सोचकर बोले ..." किसी एक जाति का हो तो बताऊँ । प्रातः काल जब घर आँगन और शौचालय की सफाई करता हूं तो सफाई कर्मी हो जाता हूँ। दाढ़ी बनाते समय नाई , कपडे धोते समय धोबी , हिसाब- किताब करते समय बनिया और विद्यार्थियों को पढ़ाते समय ब्राह्मन ...इस तरह मेरे कर्म के आधार पर आप खुद ही निर्णय ले ।
उत्तर सुनकर ट्रेन के सभी यात्री खुश हुए । तभी स्टेशन आ गया । स्टेशन पर उतरते ही नेताजी को मालाएं पहनाते अभिवादन करते देख सेठ जी ने पुछा ..." ये नेताजी कौन है ....."
तो उन्हें बताया गया..." आचार्य जे. बी.कृपलानी ..."
सुनते ही सेठ जी क्षमा याचना करने लगे ।
तब कृपलानी जी बोले ..." व्यर्थ जाति की श्रेष्ठता का ढोल पीटना छोडो , यही क्षमा है ..."
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छाया का भ्रम
भोर हुई तो लोमड़ी आँखे मलती हुई उठी । उसके पूछ उगते हुए सूरज की ओर थी । छाया सामने पड़ रही थी । उसकी लम्बाई और चौडाई देखकर लोमड़ी को अपने असली स्वरुप का आभास मानो पहली बार हुआ । सोचने लगी कि वह बहुत बड़ी है । और इस लिए कोई बड़ा शिकार करना पड़ेगा । अपने इसी भ्रम को लेकर वह जंगल में गहरी घुसती चली गयी । भूख जोरों से लग रही थी मगर छोटी खुराक से तो पेट नहीं भरेगा , इसी भ्रम में उसे हाथी का शिकार करने की धुन लग गयी थी ।
भूखी लोमड़ी दौड़- दौड़ कर थक कर चूर हो गयी । तब तक दोपहर हो गयी थी। सुस्ताने के लिए जब जमीन पर बैठी तो सारा नजारा ही बदल चुका था । छाया सिमट कर पेड के नीचे जा छुपी थी ।
अब लोमड़ी के चिंतन की नयी दिशा प्रारंभ हो चुकी थी । वह सोचने लगी - मेरे इतने छोटे आकार के लिए तो मेंढक का शिकार ही काफी था । मैं बेकार छाया के भ्रम में इतनी देर भटकी ।
मनुष्य भी इसी तरह अपनी इच्छाओं को देखकर अपनी आवश्यकताएं आसमान के बराबर मानने लगता है । विवेक के आधार पर जब सत्य का आभास होता है , तो उसका दृष्टिकोण बदल जाता है ।
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