मंगलवार, 29 दिसंबर 2009
मतलब ....आंसू इतने घडियाली भी नहीं थे ......!!
कल दोपहर फिर एक लड़की आ खड़ी हुई दरवाजे पर खाने की गुहार करती हुई ...यह पहले भी एक दो बार आजमा चुकी थी
...
जब किसी मांगने वाली महिला को लॉन की सफाई करने पर ही कुछ देने की जिद कर ली थी ...वो महिला तो यह कहते हुई कि बाई , और घणा मिल जासी देबा वाला मुंह चिढाती फर्र से निकाल गयी थी और मैं मुंह बाए खड़े देखती ही रही कि बिना हाथ हिलाए तो खाना हमें भी नहीं मिलता ...क्या नसीब पाया है ...:)
उसके बाद किसी महिला को ना तो मैं कुछ देती हूँ और ना ही काम के लिए कहती हूँ ...
एक बार एक छोटा प्यारा सा बच्चा (यही कोई १०-१२ साल का) कुछ मांगता हुआ सा आया ...उस समय मैं बरामदा साफ़ कर रही थी ....तो मैंने उसे कहा कि वो यहाँ सफाई कर दे तो मैं उसे खाना और पुराने कपडे दे दूंगी ...वो झट से मान गया ...उसे तत्परता से काम करते देख उसे कुछ पुराने कपडे और खाना देना मुझे बहुत अच्छा लगा ...सोचा आज क्यों ना इस लड़की से लॉन की सफाई करवा ली जाये ...
मेरे पडोसी दमत्ति दोनों ही कामकाजी हैं ....इसलिए उन्हें छोटे से लॉन की सार सम्भाल करने का समय नहीं मिलता या फिर शायद इसमें ज्यादा रूचि भी नहीं है ...चूँकि दोनों छोटे से बगीचों में कोई विभाजन नहीं है इसलिए उनके पौधों में पानी डालना और कभी कभी माली से पौधों की कटाई करवाना आदि कार्य मैं ही कर देती हूँ , हाँ कभी कभी कटर लेकर मैं खुद भी काट छंट कर लेती हूँ ....इधर काफी लम्बे अरसे से माली आ नहीं रहा था तो उनका बगीचा बहुत बिखरा सा हो रहा है तो सोचा आज क्यों ना इस लड़की से थोड़ी सफाई करवा ली जाए ...
मैंने उसे कहा ..." तू अन्दर बिखरे सूखे पत्ते आदि हटा दे , मैं अन्दर जाकर देखती हूँ कि क्या कुछ है खाने के लिए .."
" अंटी जी , आज तो म्हारे साथ बकरी है ...मैं छोड़ ना सकूँ ...वा सगळा पेड़ पोधा खा जागी ...लोग लडेगा..."
मलतब बकरी भी पाल रखी है ...मुझे अच्छा लगा जान कर ...मैं यूं ही जान हलकान कर रही थी....
" कोई बात नहीं , तू कल सुबह जल्दी आ जाना ....यहाँ साफ़ कर देना और गरम ताजा खाना ले जाना ..."
आज बिना काम करवाए कुछ देने का मन नहीं कर रहा था ...
वो हामी में गर्दन हिलाती पलटकर जाने लगी ...एक दम से मुड कर मेरे पास आयी ....
" आंटीजी , आपने मेरी फोटो खिंची थी ना....'" ...मैं एक दम से चौंक गयी ...
" अरे , हाँ ...तू तो वही लड़की है ...आज तो पहचान में ही नहीं आ रही ...बिलकुल साफ़ सुथरी ...कही मैल का नामोनिशान नहीं , करीने से दो चोटियाँ बनी हुई ..."
हाँ , आप बोले था ना साफ़ सुथरा रहने को ..."
मुझे एकदम से हंसी आ गयी ....
" हां, मैंने ये भी तो कहा था मांगना भी अच्छी बात नहीं है ...." वो शर्माती हुई भाग खड़ी हुई ...
(फोटो नहीं खिंच पायी ...अगली बार तस्वीर ले सकूँ ....तब तक मेरे शब्दों पर ही विश्वास करना पड़ेगा )
उसे याद कर देर तक मुस्कराहट बनी रही ....मतलब ...मेरे आंसू इतने घड़ियाली भी नहीं थे ....कुछ तो कोशिश सफल हुई ...इसी तरह लगातार टोकाटाकी कर शायद मैं उसे भीख मांगना छोड़ स्कूल तक पहुँचाने में कामयाब हो सकूँ ....
रविवार, 27 दिसंबर 2009
असमय मासूमियत खोते बच्चे .......आपका क्या कहना है ....??
कल शाम को हम सभी डांस पर आधारित एक रिअलिटी शो देख रहे थे ....आजकल के बच्चों की प्रतिभा देख कर बहुत हैरानी होती है ....पढना लिखना खेल कूद और साथ साथ ही नाच गाने में उनकी प्रवीणता प्रभावित किये बिना नहीं रहती ....तभी एक बहुत ही छोटी मासूम सी बच्ची अपना डांस परफोर्म करने आई तो उसकी ड्रेस और भाव भंगिमाएं देखकर तो आँखे फटी ही रह गयी ....
बिपाशा बासु के गाने " जबां पे लागा लागा रे नमक इश्क़ का " पर उसी के अंदाज में उसी के इशारों के साथ थिरकती उस नन्ही बच्ची को देखकर मन जार जार रोया ...मैं सोचने पर विवश हो गयी क्या वह छोटी सी बच्ची इस गाने का मतलब समझती है , और गाने के साथ जो मुद्राएँ उसे सिखाई जा रही है उसे भी ...?
आज के प्रतिस्पर्धी समय में बच्चों को एक मुकाम हासिल करने की अभिभावकों की असीम महत्वाकांक्षा उनके साथ किस तरह का अन्याय कर रही है ....
इसमें कोई शक नहीं कि अधिकांश अभिभावक जो अपनी जिंदगी में जो स्थान स्वयं प्राप्त नहीं कर सके...जो सपने पूरे नहीं हो सके उसे अपने बच्चों द्वारा पूरा करते हुए देखना चाहते हैं ...यह कोई अस्वाभाविक इच्छा नहीं है ...मगर इन लालसाओं की पूर्ति के लिए बच्चों से उनकी मासूमियत छीन ली जाए , यह कहाँ तक उचित है ....यह कैसी अंधी दौड़ है जो इस नाजुक उम्र में उन्हें व्यस्क बना रही है ....बच्चों में संस्कारों के जो बीज हम बो रहे हैं , सबसे आगे बढ़ने के लिए उनसे जो अपेक्षाएं की जा रही है , उन पर जो मानसिक दबाव बनाया जा रहा है ......उसके बाद उनके दिशाहीन होने की शिकायत करना कहाँ तक वाजिब है ....
मांसाहारी परिवारों में बच्चे बहुत छुटपन से ही मांस खाते है , उनके लिए साग भाजी और मांस मछली में कोई अंतर नहीं होता ....यह तो वे व्यस्क होने पर ही समझ सकते हैं के मांस प्राप्त करने के लिए पक्षियों और जानवरों को जिबह होने के लिए कितनी पीड़ा से गुजरना पड़ता है ....
वैसे ही ये मासूम बच्चे जब तक यह समझ पायें कि ये अंधी दौड़ पतन की किस राह पर लेकर जायेगी , उस राह पर चलने के आदि हो जाते हैं ....
नाच गाना अभिनय यह सब स्वाभाविक कलाएं है और इन्हें सीखना और सिखाना कोई असामान्य इच्छा नहीं है मगर जिस तरह रिअलिटी शोज में छोटी उम्र के या व्यस्क बच्चे प्रतियोगिताएं संचालित किये जाने वाले जजों के आगे गिडगिडाते हैं , विभिन्न प्रकार के इशारे मान मनुहार कर उन्हें बस एक चांस देने के लिए मिन्नतें करते हैं .... यह सब देखना बहुत ही पीड़ादायक होता है ....
अभिभावकों द्वारा अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए बच्चों की मासूमियत को हथियार बनाकर उन्हें वक्त से पहले व्यस्क बनाने की इस घिनौनी प्रक्रिया पर मुझे तो सख्त ऐतराज़ है ...
आपका क्या कहना है .........??
चित्र गूगल के सौजन्य से ...
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बिपाशा बासु के गाने " जबां पे लागा लागा रे नमक इश्क़ का " पर उसी के अंदाज में उसी के इशारों के साथ थिरकती उस नन्ही बच्ची को देखकर मन जार जार रोया ...मैं सोचने पर विवश हो गयी क्या वह छोटी सी बच्ची इस गाने का मतलब समझती है , और गाने के साथ जो मुद्राएँ उसे सिखाई जा रही है उसे भी ...?
आज के प्रतिस्पर्धी समय में बच्चों को एक मुकाम हासिल करने की अभिभावकों की असीम महत्वाकांक्षा उनके साथ किस तरह का अन्याय कर रही है ....
इसमें कोई शक नहीं कि अधिकांश अभिभावक जो अपनी जिंदगी में जो स्थान स्वयं प्राप्त नहीं कर सके...जो सपने पूरे नहीं हो सके उसे अपने बच्चों द्वारा पूरा करते हुए देखना चाहते हैं ...यह कोई अस्वाभाविक इच्छा नहीं है ...मगर इन लालसाओं की पूर्ति के लिए बच्चों से उनकी मासूमियत छीन ली जाए , यह कहाँ तक उचित है ....यह कैसी अंधी दौड़ है जो इस नाजुक उम्र में उन्हें व्यस्क बना रही है ....बच्चों में संस्कारों के जो बीज हम बो रहे हैं , सबसे आगे बढ़ने के लिए उनसे जो अपेक्षाएं की जा रही है , उन पर जो मानसिक दबाव बनाया जा रहा है ......उसके बाद उनके दिशाहीन होने की शिकायत करना कहाँ तक वाजिब है ....
मांसाहारी परिवारों में बच्चे बहुत छुटपन से ही मांस खाते है , उनके लिए साग भाजी और मांस मछली में कोई अंतर नहीं होता ....यह तो वे व्यस्क होने पर ही समझ सकते हैं के मांस प्राप्त करने के लिए पक्षियों और जानवरों को जिबह होने के लिए कितनी पीड़ा से गुजरना पड़ता है ....
वैसे ही ये मासूम बच्चे जब तक यह समझ पायें कि ये अंधी दौड़ पतन की किस राह पर लेकर जायेगी , उस राह पर चलने के आदि हो जाते हैं ....
नाच गाना अभिनय यह सब स्वाभाविक कलाएं है और इन्हें सीखना और सिखाना कोई असामान्य इच्छा नहीं है मगर जिस तरह रिअलिटी शोज में छोटी उम्र के या व्यस्क बच्चे प्रतियोगिताएं संचालित किये जाने वाले जजों के आगे गिडगिडाते हैं , विभिन्न प्रकार के इशारे मान मनुहार कर उन्हें बस एक चांस देने के लिए मिन्नतें करते हैं .... यह सब देखना बहुत ही पीड़ादायक होता है ....
अभिभावकों द्वारा अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए बच्चों की मासूमियत को हथियार बनाकर उन्हें वक्त से पहले व्यस्क बनाने की इस घिनौनी प्रक्रिया पर मुझे तो सख्त ऐतराज़ है ...
आपका क्या कहना है .........??
चित्र गूगल के सौजन्य से ...
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