रविवार की एक शाम यूँ ही घूमते -घामते एक पर्यटक स्थल के प्रवेश द्वार पर कुछ सूचनाओं को पढ़ते हुए जयपुर विकास प्राधिकरण के एक बोर्ड के "व्यस्क " शब्द पर नजर टिक गयी . सही शब्द व्यस्क या वयस्क क्या होना चाहिए. इस पर वाद विवाद होता रहा . प्रतिष्ठानों, पार्कों, चिकित्सालयों जैसे स्थानों पर लिखी गयी सूचनाओं को लिखने अथवा चित्रित करने का कार्य अक्सर अशिक्षित पेंटर ही करते हैं इसलिए इनमें मात्राओं की गलतियों की अनदेखी कर दी जाती है. परंतु पिछले कुछ वर्षों में दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल से लेकर प्रिंट मिडिया तक पर कई बार हिंदी के अशुद्ध शब्द आँखों से होकर गुजरते रहे हैं . यहाँ लिखने वालों के अशिक्षित होने का तो सवाल ही नहीं है . विचार करने पर पाया कि मुद्दा शिक्षित या अशिक्षित होने का नहीं है . कई बार टाईपिंग के कारण होने वाली गड़बड़ियों के कारण भी शब्द अशुद्ध लिख दिए जाते हैं . परंतु क्या सचुमच ऐसा ही है !
क्या यह अशुद्धियाँ सिर्फ टाईपिंग की गलतियों के कारण ही है !!
बच्चों की स्कूली शिक्षा के दौरान उनकी हिंदी की जाँची हुई कॉपी में भी मात्राओं की भयंकर अशुद्धियों को देखकर कई बार बहुत खीझ हुई है .
बच्चे बड़ी सफाई से कहते - एक क्लास में साठ बच्चे हैं. मैम आखिर कितने ध्यान से चेक करेंगी और वह भी इंग्लिश मीडियम से पढने वाले बच्चों की हिंदी की कॉपियां . ऐसे में मुझे अपने समय के गुरु /गुरुआईन बहुत याद आते . हिंदी अथवा अंग्रेजी में श्रुतलेखन में अशुद्ध पाए जाने वाले शब्दों को लिखकर दुहराने की सजा मिलती थी . दुहराव की संख्या संख्या दस से पचास तक भी हो सकती थी . बच्चे जब किसी शब्द के बारे में पूछते तो भ्रम होने की अवस्था में शब्द को लिखकर देखते ही सही मात्रा याद हो आती . इसे चाहे रट्टा मारना ही कहें परंतु गणित के पहाड़े और हिंदी और अंग्रेजी के शब्द इसी प्रकार याद कराये जाते थे . अब जब विद्यार्थियों को अशुद्ध लिखने के लिए टोका ही नहीं जाता तब वे शुद्ध और अशुद्ध शब्द का अंतर कैसे पता कर पायें . सिर्फ अपनी पुस्तक से ही तो सही लिखना पढ़ना सीखा नहीं जा सकता . विद्यार्थियों की शंकाओं का समाधान और गलतियों या अशुद्धियों को सही कर पाने में ही विद्यालय और शिक्षकों की उपयोगिता है . आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में कैलकुलेटर और लैपटॉप पर पढ़ने वाली अथवा हिसाब किताब करने वाली पीढ़ी के लिए कुछ भी रटने की आवश्यकता नहीं है . कुछ याद ना आये तो गूगल है ही . अँगुलियों पर ही जुबानी हिसाब किताब कर पाने वाली हमारी पीढ़ी कई बार सोच में पड़ जाती है . क्या यह स्थिति सही है . कहीं इस प्रकार भावी पीढ़ी के दिमाग की कार्यक्षमता प्रभावित तो नहीं हो रही !!!
वर्तमान पीढ़ी के गूगल या अन्य सर्च माध्यमों पर निर्भरता को ध्यान में रखते हुए
अंतर्जाल पर लेखकों
की शब्दों की शुद्धता और सही सूचनाओं को प्रस्तुत करने करने की जवाबदेही बनती है . मेरी अपनी ही एक पोस्ट में शेर शब्द के प्रयोग करने पर कुछ वरिष्ठ ब्लॉगर झूम रहे थे . जब लेखन की शुद्धता पर ध्यान देना शुरू किया तब उनका तंज़ समझ आया :).
कुछ ऐसे ही शब्द हैं यहाँ जो प्रिंट अथवा दृश्य माध्यमों में भी टंकण अथवा फौन्ट्स की त्रुटि के कारण अधिकाधिक अशुद्ध ही लिखे पाए जाते हैं ....
शुद्ध -- अशुद्ध
दीवाली -- दिवाली
कवयित्री -- कवियित्री
परीक्षा -- परिक्षा
तदुपरांत -- तदोपरांत
निःश्वास -- निश्वास
त्योहार -- त्यौहार
गुरु - गुरू
निरीह -- निरिह
पारलौकिक -- परलौकिक
गृहिणी -- गृहणी /ग्रहिणी
अभीष्ट -- अभिष्ठ
पुरुष -- पुरूष
उपलक्ष्य -- उपलक्ष
वयस्क -- व्यस्क
सांसारिक -- संसारिक
तात्कालिक -- तत्कालिक
ब्राह्मण -- ब्राम्हण
हृदय -- ह्रदय
स्रोत --स्त्रोत
सौहार्द -- सौहाद्र
चिह्न -- चिन्ह
उददेश्य -- उदेश्य
श्रीमती -- श्रीमति
आशीर्वाद --आर्शीवाद
मध्याह्न --- मध्यान्ह
साक्षात्कार --साक्छात्कार
रोशनी -- रौशनी
धुँआ -- धुआँ
मात्राओं का सही ज्ञान नहीं होने के कारण अथवा टंकण या फॉन्ट की गड़बड़ी के कारण अंतर्जाल पर कई ब्लॉग्स (मेरे या आपके भी हो सकते हैं ) , समाचारपत्रों , साहित्यिक पत्रिकाओं तक में ये अशुद्धियाँ प्रचुरता में हैं .
यकीन नहीं होता ना , सर्च कर देखें !!!
कुछ त्रुटियाँ इस लेख भी हो तो अनदेखा ना करें , टोकें अवश्य !
अच्छा ध्यान दिलाया है आपने त्रुटियों की ओर
जवाब देंहटाएंYou are right
हटाएंहम लोगों की भी अनगिन अशुद्धियों को शिक्षकों ने सूक्ष्मता जाँचा है व उन्हें ठीक करवाया है। इसकी ज़रूरत तो है ही..पर इस पर जोर ही नहीं आजकल!
जवाब देंहटाएंऐसी प्रविष्टियाँ आती रहें...आभार।
उपलक्ष्य का अर्थ है दूसरा या सहायक लक्ष्य, उपलक्ष ही सही शब्द है।
हटाएंबहुत अच्छी श्रृंखला है ... ज़ारी रहे।
जवाब देंहटाएंएक वाकया याद आ गया। बिहार के एक थाने के बरामदे में छह पाए थे। एक-एक पर एक-एक अक्षर लिखा था --- इस प्रकार
था ना प र भा री (थाना प्रभारी)
नुक्ता न देने के कारण भी अर्थ का अनर्थ हो जाता है ..
इसको सजा दो (फूलों से)
इसको सज़ा दो। (दंड)
अच्छा प्रयास | हम सभी लाभान्वित होंगे |
जवाब देंहटाएंबेहतर ...!
जवाब देंहटाएंअशुद्धियों पर बहुत अच्छी श्रृंखला.
जवाब देंहटाएंजैसा अशुद्ध लिखा गया नेट पर वैसा ही सर्च इंजन पर आता है। पहले स्कूलों में ईमला लिखाई जाती थी। गुरुजी पढते थे और विद्यार्थी स्लेट पर लिखते थे। वर्तमान में स्कूलों में ईमला नहीं लिखाई जाती और नेट पर गलतियाँ हो ही जाती हैं लेखन में। क्योंकि हम खुद ही लिखते है और खुद ही मात्राओं के दोष देखते हैं। बार बार कोशिश करने के बाद भी तत्काल गलती नहीं दिखाई देती। फ़िर कभी एक दो माह पढते हैं तो पता चलता है कि कहाँ पर गलती हुई है। नेट पर गुगल के ओन लाईन लिखने के टूल में कई शब्द नहीं बनते तो लोग उन्हे वैसे ही लगा देते हैं जैसा गुगल दिखाता है। आपको ध्यानाकर्षण पोस्ट के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंऐसे आलेखों की आवश्यकता है, बल्कि ऐसे सन्दर्भ आसानी से उपलब्ध होने चाहिये। अक्षम लोगों को सम्पादक आदि बन जाने से हतोत्साहित किया जाना चाहिये और अशुद्धियों के निराकरण के सुझावों का स्वागत होना चाहिये। आपके आलेख से 15-20 साल पहले के दिल्ली प्रवास का अवलोकन याद आया:
जवाब देंहटाएंतब की दिल्ली के सरकारी बोर्डों पर "ड" को ग़लत करके "ड़" लिखने का रिवाज़ सा था। कोई भी मार्ग हो रोड को रोड़ ही लिखा दिखता था। ऐसे में मंडी हाउस के बस स्टॉप पर जब बिना बिन्दी के नया-नया "मंडी हाउस" सही लिखा देखा तो खुशी हुई। मगर पेंटर के सही लिखे को किसी सरकारी अधिकारी/सम्पादक/निरीक्षक ने अपने टेढे चश्मे से "सही" कराकर दो दिन में ही मंड़ी हाउस करा दिया।
चाहिए सही है, चाहिये नहीं ।
हटाएंऐसे अंतर बोलचाल और लिखने में मिल ही जाते हैं ... हिंदी की अशुद्धियों पर ध्यान जाता है . ध्यान दिलाने के लिए यह सही प्रयास है .
जवाब देंहटाएंहालत तो यह है कि आजकल शिक्षकों को भी सही शब्दों की पूरी जानकारी नहीं है.
जवाब देंहटाएं...श्रीमती का शुद्ध तो मैं श्रीमति समझता हूँ,संस्कृत के अनुसार |
यहाँ मेरा ज़ोर श्रीमती को शुद्ध मान लेने पर श्रीमति को अशुद्ध मानने पर अधिक है |
हटाएंकालांतर में मंजु मंजू बन गया है इसका अर्थ यह नहीं कि मंजु अशुद्ध है !
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंhan sach kaha aapne aisi galtiyan hamare lekhan me aam baat hai. kayi baar hamari laaparwahi aur kayi baar fonts problem iske mukhy kaaran hote hain.
जवाब देंहटाएंbahut acchhi shrinkhla shuru ki hai. badhayi.
बहुत सार्थक श्रृंखला है .... यदि कोई वर्तनी की अशुद्धि यहाँ बताता है तो कह दिया जाता है कि विषय पर विचार देने चाहिएँ न कि वर्तनी पर ...
जवाब देंहटाएंआपने यह शुरुआत की है ... अच्छा लगा ...वैसे कुछ जागरूक ब्लोगर्स हैं जो वर्तनी की शुद्धता को महत्त्व देते हैं ...
--
. प्रतिष्टानों, पार्कों, .................. प्रतिष्टानों की जगह प्रतिष्ठानों कर लें ...
उददेश्य ---- उद्देश्य सही होगा .... इसमें एक द आधा होता है ...
संतोष जी ,
संस्कृत के अनुसार तो नहीं पता लेकिन हिंदी में श्रीमती शब्द ही शुद्ध माना जाता है ..
यहाँ द में हलंत की मात्रा लगनी चाहिए थी , वरना उद्देश्य लिखा जाता ...सही है !
हटाएंपूजनीय सही है , पूज्यनीय गलत ...सही
मगर मुझे उपलक्ष्य सही लग रहा है , कृपया इसकी पुष्टि करें !
शब्दकोश में उपलक्ष शब्द दिया हुआ है लेकिन उसके अर्थ में उपलक्ष्य भी दिया है .... अर्थात दोनों ही शब्द शायद वर्तनी के अनुसार सही होंगे .... किसी और से भी राय लें ...
हटाएंउपलक्ष ही सही है। भार्गव शब्दकोश में भी गलत बताया गया है, बड़े दुख की बात है
हटाएंवैसे दोनों ही शब्द सही बताए गए हैं ,फिर भी उच्चारण करने पर उपलक्ष ही सही बैठता है
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंश्रृंखला और चाहिएँ दोनों शब्द अशुद्ध हैं ।
हटाएंउपलक्ष्य -- उपलक्ष
जवाब देंहटाएंयह आपने उल्टा लिख दिया है .... उपलक्ष शब्द शुद्ध है ...लेकिन अक्सर लोग उपलक्ष्य लिखते हैं ऐसे ही पूज्यनीय शब्द अशुद्ध होता है पूजनीय सही होता है ...
संगीता जी! अवसर, ऑकेशन के अर्थ में सदा "उपलक्ष्य" का ही प्रयोग होता देखा है, उपलक्ष नहीं। क्या आप अपनी बात को विस्तार देंगी?
हटाएंअनुराग जी ,
हटाएंमैंने उपलक्ष शब्द ही पढ़ा है .... वैसे आप गूगल सर्च में हिन्दी में उपलक्ष शब्द लिख कर सर्च करेंगे तो बहुत सी जगह उपलक्ष ही मिलेगा ....
यहाँ क्लिक कर देखिये
मेरी एक टिप्पणी शायद स्पैम में चली गयी है ..... काफी खोजबीन के बाद मुझे लगता है कि दोनों शब्द ही सही हैं ...
हटाएंयहाँ क्लिक कर देखिये
यहाँ क्लिक कर देखिये
शब्दकोश में उपलक्ष शब्द दिया हुआ है लेकिन उसके अर्थ में उपलक्ष्य भी दिया है .... अर्थात दोनों ही शब्द शायद वर्तनी के अनुसार सही होंगे .... किसी और से भी राय लें ...
हटाएंयह टिप्पणी मैं ऊपर भी दे चुकी हूँ .... आभार
संगीता जी, आपके बताने से पहले आज तक "उपलक्ष्य" की दूसरी कोई वर्तनी छपी हुई नहीं देखी। ऑनलाइन स्रोतों का विश्वास कठिन है फिर भी खोज करने पर विश्वसनीय स्थानो पर उपलक्ष्य ही दिख रहा है। हाँ, एक तुलनात्मक लिंक यहाँ है: विकिपीडिया:वर्तनी परियोजना
हटाएंअनुराग जी ,
हटाएंयहाँ लिंक मैंने इस लिए दिये जिससे आप पुष्टि कर सकें .... मेरे पास जो शब्दकोश है उसमें उपलक्ष शब्द है ... और उसके अर्थ में उपलक्ष्य भी दिया हुआ है
जी, शुक्रिया!
हटाएंअनुराग जी ,
हटाएंआपके दिये लिंक ने मुझे संशय में डाल दिया है .... लिंक देने के लिए आभार .... वहाँ और भी बहुत सी जानकारी मिली ।
@अनुराग जी और संगीता जी
हटाएंउपयोगी लिंक देने के लिए आभार !
सांसारिक -- संसारिक
जवाब देंहटाएंतात्कालिक -- तत्कालिक ....
मूल शब्द में "इक" प्रत्यय लगाने से बनने वाले नए शब्दों के पहले वर्ण में मात्राओं में बदलाव आ जाता है ...जैसे
इतिहास = ऐतिहासिक
भूगोल == भौगोलिक
नीति = नैतिक
सप्ताह = साप्ताहिक
पक्ष = पाक्षिक
व्यवहार = व्यावहारिक
आदि ....
राजनीति - राजनीतिक या राजनैतिक
हटाएंbadhiyaa
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ... आभार सहित शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसही ध्यान दिलवाया आपने ... दरअसल जो हिंदी के छात्र नहीं रहे उनमें अक्सर ऐसी गलतियां रहती हैं क्योंकि वो प्रचलित शब्दों कों ही सही मानते हैं ... और प्रचलन ज्यादातर आंचलिक मिश्रण से बदल जाता है ... एक अच्छी शुरुआत है आपकी ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति…………सार्थक श्रृंखला चल रही है।
जवाब देंहटाएंमै तो हिंदी मीडियम से पढ़ी हूँ पर मुझसे सच में बहुत सारी गलतिया होती है और ये रोमन में लिखने से तो और भी बढ़ गई है | आप का ये लेख काम आयेगा आगे भी |
जवाब देंहटाएंमैं ललित शर्मा जी की बात का समर्थन करती हूँ ...
जवाब देंहटाएंवैसे इस सार्थक प्रस्तुति के लिए आभार ....
सही गलत के अच्छे उदाहरण वाले शब्द युग्म !
जवाब देंहटाएंमैं उद्येश्य लिखता हूँ -क्या यह गलत है ? मास्टरनी जी बताईये ! :)
सर 'बताइये' होना
हटाएंहमारा भी थोड़ा ज्ञान बढ़ गया..
जवाब देंहटाएंबहुत ही उपयोगी जानकारी..
जवाब देंहटाएंये सारे शब्द बहुत ही प्रचलित हैं...और अक्सर उन्हें शुद्ध रूप से लिखने में लोग गलतियाँ कर जाते हैं.
टाइपिंग तो एक वजह है...पर शुद्ध लिखने के प्रयत्न में कोताही भी एक बड़ा कारण है.
वैसे तो मेरी हिन्दी भी बहुत कमजोर है लेकिन फिर भी मैं यहाँ संगीता आंटी की बात से सहमत हूँ। बढ़िया प्रयास के लिए आपको आभार सहित शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंजरूरी है ध्यान दिलाना
जवाब देंहटाएंप्रचलित शब्द जब अशुद्ध लिखे जाते हैं जो किरकिरी से चुभते हैं
अच्छा जी बताओ कोई
जवाब देंहटाएंश्रृंखला सही है या शृंखला
पहले वाले शब्द (दो दो "र" ध्वनियाँ) को तो पढकर बोल भी नहीं पा रहा हूँ, सही-ग़लत होना तो उसके बहुत आगे की बात है।
हटाएंकभी हमसे भूल हो जाये तो नि:संकोच चेता दीजियेगा !
जवाब देंहटाएं@ प्रतिष्टानों, पार्कों, चिकित्सालयों जैसे स्थानों पर लिखी गयी सूचनाओं को लिखने अथवा चित्रित करने का कार्य अक्सर अशिक्षित पेंटर ही करते हैं-
जवाब देंहटाएंलगभग हर सरकारी प्रतिष्ठान में राजभाषा अधिकारी रहता है और वो तैनात नहीं भी है तो अन्य अधिकारी तो हैं ही, वे तो अशिक्षित नहीं|
एक समय था जब समाचार पत्रों में भाषाई शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता था, आज शायद ही की समाचार पत्र ऐसा मिले जिसमें कोई अशुद्धि न हो|
अच्छी जानकारी मिल रही है...... सार्थक पोस्ट
जवाब देंहटाएंयही नहीं जनाब! साहित्यिक पत्रिकाओं तक में अहले-सुबह का प्रयोग देखने को मिल जायेगा. अहले का मतलब लोग होता है. मसलन अहले-वतन यानी वतन के लोग. अहले-जर यानी दौलतमंद लोग. लेकिन अहले-सुबह का प्रयोग तडके सुबह कहने के लिए कर दिया जाता है. यह भी गलत है जो धड़ल्ले से हो रहा है. इसकी जगह अल्लसुबह या तडके सुबह का प्रयोग किया जा सकता है.
जवाब देंहटाएंअकसर ब्लोगिये कई दूसरा को 'दुसरा ' लिख रहें हैं .इस्तेमाल को स्तेमाल ,नुस्खे को नुश्खे लिखते रहें हैं .दवाइयों को 'दवाईयों' लिखते रहें हैं .भाइयों को 'भाईयों '.हैं और 'है 'में और मैं ,हमें के भी अशुद्ध रूप मिलें हैं .कुछ तो कंप्यूटर जी के शब्द कोष की भी सीमाएं हैं .
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी श्रृंखला शुरू की है.कई गलतियां तो ऐसी होती हैं कि शुद्ध शब्द कुछ और होता है और प्रचलित कुछ और ऐसे में गूगल बाबा की मेहरबानी से कुछ और ही बन जाता है.
जवाब देंहटाएंअच्छी उपयोगी प्रस्तुति । अब प्रस्तुति संस्कृत में तो सही है क्या हिंदी में प्रस्तुती होगा । मति में श्री लग कर बना है श्रीमति पर हिंदी में यह श्रीमती बन जाता है ।
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रयास वाणी जी ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें
बहुत अच्छा ध्यान दिलाया है आपने .
जवाब देंहटाएंकई बार बहुत सोचने पर भी सही शब्द नहीं मिलता . इसलिए इस तरह की त्रुटियाँ हो जाती हैं .
मुझे लगता है ऐसे सारे शब्दों की एक सूची ही बना लेनी चाहिए.श्रृंखला/ शृंखला, शृंगार भी बहुत परेशानी में डालने वाले शब्द हैं. शायद सही टाइप करने का तरीका या तो है ही नहीं या मुझे पता नहीं.
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती
Very useful and informative post. Thanks.
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है ऐसे सारे शब्दों की एक सूची ही बना लेनी चाहिए.श्रृंखला/ शृंखला, शृंगार भी बहुत परेशानी में डालने वाले शब्द हैं. शायद सही टाइप करने का तरीका या तो है ही नहीं या मुझे पता नहीं.
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती
उपलक्ष शब्द गलत और उपलक्ष्य सही है।
जवाब देंहटाएंआधार क्या है
हटाएंबहुत ही शानदार ...| हमें आगे बढ़ने और सिखने का मौका मिलेगा
जवाब देंहटाएंसीखने
हटाएंधुआँ या धुँआ, कृपया स्पष्ट करें, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंधुआँ...
हटाएंलोग शब्द स्वयं में बहुवचन रूप है फिर भी इसे और रूपवान बनाने के लिए ' लोगो' शब्द का प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है , यह निरर्थक प्रयोग है
जवाब देंहटाएं