जंगल में सभी जानवर एक दूसरे के दुश्मन होकर भी हिल -मिल कर रहते थे . शेर , चीता , हाथी जैसे बड़े और बलवान भी तो लोमड़ी ,भेड़िये जैसे धूर्त भी .,यहाँ तक कि खरगोश , हिरन जैसे निरीह जंतु भी. इन सब जानवरों ने मिलकर शेर को राजा बना लिया था . सदियों से राजा बने रहने के कारण शेर को अपने आप पर बहुत घमंड हो गया था . वह भूल गया था कि सभ्यता के विकास और प्राकृतिक उथलपुथल का असर मनुष्यों के साथ जानवरों के स्वभाव और प्रकृति में भी स्पष्ट नजर आने लगता है .
समय के साथ परिवर्तन अवश्यम्भावी है . शेर के खिलाफ भी जंगल के प्राणियों में खुसर- फुसर शुरू हो गयी . अपने घमंड में सना शेर यह नहीं समझ पाया था कि जनता में व्यवस्था से पनपा असंतुष्टि का भाव सत्ता परिवर्तन में अहम भूमिका निभाता है . बलवान शेर से मुकाबला किसी एक अकेले जानवर के लिए संभव नहीं था . सभी जानवरों ने विचार विमर्श कर निर्णय लिया कि हाथी बलवान तो होते ही हैं और झुण्ड में रहना उनकी शक्ति को और बढाता है ,वही धूर्तता में लोमड़ी का कोई सानी नहीं है इसलिए यदि ये दोनों एक साथ शेर के खिलाफ एकजुट हो जाए तो उसका घमंड तोडा जा सकता है .
जंगल में सभा हुई और सर्वसम्मति से हाथी और लोमड़ी को मिलकर जंगल का प्रशासन सँभालने का भार सौंपा गया .शेर के सामने पदत्याग के सिवा चारा नहीं था .अब चूँकि लोमड़ी और हाथी को एक साथ व्यवस्था का सञ्चालन करना था तो दोनों ने आपसी सहमति से तय किया कि दोनों बारी -बारी से 6 महीने के लिए जंगल का राज्य संभालेंगे . जब हाथी राजा होगा तो लोमड़ी को उसके निर्देशों का पालन और सहयोग करना होगा , वही कार्य लोमड़ी के जंगल की बागडोर सँभालने पर हाथी को करना होगा .सबसे पहले लोमड़ी को राज्य सँभालने का मौका मिला . लोमड़ी स्वभाव से ही धूर्त होती है , उसने पद सँभालते ही अपनी मीठी बोली से सभी जानवरों को अपने पक्ष में करने का अभियान प्रारंभ कर दिया .
अपनी स्थिति कमजोर देखकर शेर अभी तो चुप बैठा था मगर भीतर ही भीतर उसने हाथियों को भड़काना शुरू कर दिया . उसने हाथी को समझाया कि 6 महीनों तक लोमड़ी अपनी पैठ जमा चुकी होगी , जानवरों के साथ खजाने पर भी उसका आधिपत्य हो जाएगा , तुम तो बस राजा बनने के सपने ही देखते रहना . हाथी को भी अब शेर की बातों में दम नजर आता था . उसने व्यवस्था बनाये रखने के लिए लोमड़ी के लिए गए हर निर्णय का विरोध करना शुरू कर दिया . आये दिन हाथियों और लोमड़ी में तकरार होने लगी जिसका असर प्रबंधन पर भी नजर आने लगा . जिस अव्यवस्था से उकताकर जानवरों ने इन्हें अपना राजा बनाया था , वह तो ठीक हुई नहीं , उलटे जानवरों के छोटे- छोटे झुण्ड बनकर उनमे आपस में बैर भाव शुरू हो गया .
अब बेचारे जानवर रोज माथा पीटते थे . इससे तो शेर ही भला था, सिर्फ एक तानाशाह ही तो था , उसे तो जैसे- तैसे झेलते थे , अब तो हर तरफ से मार पड़ने लगी थी . हाथी और लोमड़ी के बीच बढती कलह को देखकर आखिर जंगल में मध्यावधि चुनाव करवाए गए . जंगल की जनता खिचड़ी सरकार की करमात देख चुकी थी इसलिए इस बार शेर को भारी समर्थन से राजा बनाया गया . अब चूँकि सत्ता की चाबी शेर के हाथ में थी , वह फिर से बलशाली हो गया था . उसने अपने गुप्तचरों को सभी उन प्रमुख जानवरों के पीछे लगा दिया जिससे उसे खतरा हो सकता था . गुप्तचरों ने सूचना दी कि भालू और लोमड़ी अभी चुप बैठे हैं , मगर मौके की तलाश में है . अब शेर को उनका शिकार करना था , मगर जंगल के लोकतंत्र में भी बिना किसी साबित अपराध के सजा नहीं दी जा सकती थी . शेर ने कुछ दिन धीरज रखा .
शीत ऋतु में ठण्ड के आते -जाते दौर ने शेर को भी नहीं बख्शा . जुखाम के कारण छींक -छींक कर बेहाल हुआ जा रहा था . वो राजा ही क्या जो अपनी किसी भी कमजोरी या बीमारी को भी इस्तेमाल ना कर सके . .उसके दिमाग ने भी अपनी बीमारी को हथियार बनाकर षड्यंत्रकारियों से बदला लेने का उपाय ढूंढ लिया . पूरे जंगल में खबर फैला दी गयी. शेर अस्वस्थ है , उसे जुखाम हो गया है . सभी जानवर बारी- बारी से अपने राजा का हालचाल पूछने राजा की गुफा के बाहर इकठ्ठा हुए . जंगल के वैद्य को बुलाया गया . वैद्य को पहले ही ताकीद कर दी गयी थी कि सभी जानवरों के सामने राजा की बीमारी का पूर्वनियोजित कारण और उपाय ही बताना है . वैद्य जी ने
परीक्षण करते हुए अपना आला बैग में रखा और गंभीर मुद्रा में सर हिलाते हुए राजा को गंभीर संक्रमण के कारण बीमार होना घोषित किया . वैद्य ने बताया की जुखाम नामक रोग वायु के साथ कीटाणुओं के फैलने से होता है . जंगल के ही किसी प्राणी में इस रोग के कीटाणु हैं , यदि जल्दी ही इसकी रोकथाम ना की जाए तो सभी जानवरों को इस रोग से संक्रमित होने का गंभीर खतरा है .
वैद्य के सामने एक- एक कर सभी जानवरों का परिक्षण किया गया . अपनी षड्यंत्रकारी योजना के अनुसार भालू और लोमड़ी को रोक कर बाकी जानवरों को वैद्य ने संक्रमण मुक्त होने का स्वास्थ्य प्रमाण पत्र दे दिया . भालू और लोमड़ी चकित . वे जुखाम से पीड़ित नहीं थे . लोमड़ी ने कहा ," वैद्य जी , हमें जुखाम नहीं है , बल्कि हमें अपनी जिंदगी में कभी जुखाम नहीं हुई . " "ह्म्म्म....तो तुम्हारे परिवार में किसी को हुआ होगा ." "नहीं महाराज , हमारे परिवार में भी कोई इस रोग से पीड़ित नहीं है ." "तो तुम्हारे दादा -परदादा को रहा होगा ". "मगर वे तो कबके सिधार चुके ." ..तो क्या हुआ . यह एक गंभीर रोग है . इसके कीटाणु वर्षों तक सुरक्षित रहते हैं , जब उन्हें जुखाम हुआ होगा और छींकें आयी ही होंगी , तब ये कीटाणु वातावरण में फ़ैल गए होंगे जिन्होंने आज मुझे बीमार कर दिया है . आखिर भालू और लोमड़ी को जंगल प्रदेश छोड़ कर जाने का फरमान सुना दिया गया . साथ ही यह चेतावनी भी दी गयी कि समय -समय पर जंगल में सभी जानवरों का परीक्षण किया जाएगा , जिसमे भी इस रोग के कीटाणु मिलेंगे , उन्हें जंगल छोड़ कर जाना पड़ेगा .
राजा और वैद्य के षड़यंत्र को समझते हुए भी रोग के फैलने या अपने
परीक्षण में संक्रमित पाए जाने के डर से अन्य किसी भी जानवर ने इसका विरोध नहीं किया ... अब शेर का जंगल पर एकछत्र शासन था !!
मज़ा आ गया इसे पढ़ने में
जवाब देंहटाएंअच्छी है मगर कहानी का मोरल क्या है ?आयी मीन क्या सीख मिलती है ?
जवाब देंहटाएंमगर यहाँ तो सभी हैं अपनी अपनी मांद में खुरचालियां कर रहे हैं ....
कहानी का मॉरल यह है कि यदि राष्ट्र के लिए भला सोचने वाले आपस में लड़ते -झगड़ते रहेंगे तो सत्ता सिर्फ तानाशाहों के हाथ में ही होगी !
हटाएंयही बड़ा कष्टकारी होता है कि कहानी भी लिखो और उसका मोरल भी बताओ !!
हटाएं:)
हटाएंअगर इस तरह से आप आन डिमांड कथा का मोरल डिस्क्लोज करती जाइयेगा तो हम गरीबो के लिए टिप्पणी करने के लिए क्या शेष बचेगा :)
हटाएंयदि ऐसे मॉरल बताती रहेंगी तो दशक के मॉरल बूस्टर पुरस्कार की श्रेणी में नामांकन कर दिया जायेगा, फिर आप लाख सफ़ाई देती रहें, कोई नहीं मानेगा। :)
हटाएंसार्थक और प्रासंगिक!
जवाब देंहटाएंशेअर करने के लिए आभार!
मैं इस कहानी को ब्लॉग जगत के संदर्भ में देखने की कोशिश कर रहा हूं।
जवाब देंहटाएंइसलिए कि मोरल ऑफ द स्टोरी तो आपने बता ही दी अब छींक किसे यह पता चल जाए।
कहानी बड़ी रोचक है, शैली में प्रवाह है।
यह पाठकों पर निर्भर करता है कि वे सन्दर्भ को कहाँ, किससे जोड़े ...लिखते समय ब्लॉग जगत के बारे में सोचा नही था :)
हटाएंमनोज जी का ख्याल रोमांचित कर रहा है ! किसके बारे में क्या कल्पना की जाये :)
हटाएंहाँ, कल्पना-परिकल्पना के लिये पाठक स्वतंत्र हैं। मेरे ख्याल से इस कहानी से निष्कर्ष यह निकलता है कि डॉक्टर-वैद्य-पीएचडी आदि के बारे में "सत्यमेव जयते" कार्यक्रम बनते रहना चाहिये। वैसे कल्पनाशीलता की कमी कहाँ है? सारी कल्पना पाठक ही कर लेते हैं तो कई बार कहानी की दिशा ही यू-टर्न ले लेती है। एक परिचित की 30 साल पुरानी रचना पर एक विद्वान भक्त यह कल्पना करके उखड़ गये कि उसमें उनकी दो साल पुरानी भक्ति का मखौल उड़ाने का मॉरल लिखा गया है। लेखक महोदय लगे हैं सफ़ाई देने में। :(
हटाएंअच्छी कहानी है.
जवाब देंहटाएं...विरोध का झंडा बुलंद करने वालों पर जब स्वयं वही ज़िम्मेदारी आती है तो वे पूर्ववर्ती से भी गए-गुजरे सिद्ध होते हैं.
...लोमड़ी आदिकाल से धूर्त रही है और यह प्रवृत्ति बन गई है जिसका सुधार संभव नहिं है.
...लोमड़ी का थोड़े दिन का उभार भी शेर की बदमाशी से हुआ था.
मोरल ऑफ दा स्टोरी यही कि धूर्त लोगों से धूर्तता से ही निपटा जा सकता है !
...लोमड़ी का थोड़े दिन का उभार भी शेर की बदमाशी से हुआ था.
हटाएंव्याख्या करिए ?
गुरूजी,कहानी के बाहर न जाइए,इसी में संकेत मिलता है कि शेर की नाकामी की वज़ह से ही लोमड़ी को मौक़ा मिला :-)
हटाएंऔर इस तरह संक्रामक बीमारी को बढ़ावा मिला - शेर अपनी जगह पर डटा रहा . इस कहानी में सीख ही सीख है ....
जवाब देंहटाएंअच्छी सीख देती हुई कहानी है...
जवाब देंहटाएंजंगल का लोकतन्त्र ..... अब तो देश ही जंगल बना हुआ है ....
जवाब देंहटाएंरोचक कहानी ... और मैं इसे देश के सन्दर्भ देखना पसंद करूँगा ... पिछले ३० वर्षों की राजनीति पे तो ये खरी उतरती है ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी ज्ञानवर्धक प्रस्तुति ... आभार
जवाब देंहटाएंइस कहानी में राजनीति की झलक दिख रही है . :)
जवाब देंहटाएंअच्छी कथा है...हमारे देश की राजनीति में तो इस कथा की पुनरावृति होती ही रहती है...
जवाब देंहटाएंकाफी सीख देने वाली कहानी है ...
जवाब देंहटाएंदेश के राजनितिक सन्दर्भ में भी अगर ये कथा है...तो शेर का राज कभी था ही नहीं, हमेशा लोमड़ी ही राज करती रही/है...मिटटी का शेर बिठाया हुआ है...नाम के आगे 'सिंह' लग जाने से ही कोई शेर नहीं हो जाता...
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो शेर ढूंढना होगा, तब कहीं शेर का राज आएगा...अल्लाह जाने आएगा भी कि नहीं आएगा...
बाक़ी कहानी बहुत अच्छी है, ऐसी ही कहानी पहले भी पढ़ी थी कहीं....
जंगल राज में कैसा लोकतंत्र..बढ़िया कहानी है.
जवाब देंहटाएंyahan to jo bhi raja banta hai taanashaah ban jata hai. aur agar koi hathi jaisa bhi ban jaye to lomdiyan use nahi bakshti. anna aur raamdev bhi kuchh nahi kar pa rahe. halaat bahut kharaab hain. vishwasneey koi nahi hai aaj.
जवाब देंहटाएंbaat ko kahani k roop me prastut karna prashansneey hai.
जहाँ लोकतंत्र वहां जंगल.... जहाँ जंगल वहां लोकतंत्र ... आजलक देश में कुछ ऐसा ही है...
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मोरल विज्ञान बड़ा जटिल है ः)
जवाब देंहटाएंहुबहू प्रयोग एक बार यूपी में भाजपा और मायावती गठबंधन में हो चुका है.:) एक बहुत ही बेहतरीन सटायर के लिये बधाईयां स्वीकारें.
जवाब देंहटाएंरामराम.