रविवार, 1 अगस्त 2010

" गुलज़ार को भी कोई नापसंद कैसे कर सकता है भला "



पकिस्तान के दीना शहर में जन्मे गुलज़ार का वास्तविक नाम समपूरन सिंह कालरा है ...बेहतरीन गीतों , नज्मों , गजलों और कहानियों की सौगात देने वाले गुलज़ार ने बच्चों के लिए भी सीधे सादे शब्दों में आसानी से जुबान पर चढ़ जाने वाले खूबसूरत गाने भी दिए हैं ...
विद्यालयों में प्रार्थना के तौर पर गाये जाने वाला गुड्डी फिल्म का गीत
" हमको मन की शक्ति देना , मन विजय करें " ,
या
जंगल बुक के मोगली के लिए लिखा गया गीत
" जंगल जंगल बात चली है पता चला है चड्डी पहन कर फूल खिला है , "
किसी भी बरमूडा धारी व्यक्ति को देखते ही यह गीत जुबान पर जाता है ...

" और पापड वाले पंग ना ले " अंगूठा दिखाते बच्चे इसे गाते ही रहते हैं ...

अपने नाम को सार्थक करते गुलज़ार पर कुछ लिखना तो जैसे सूरज को दीपक दिखाना ही है ...चेतन भगत के साथ हुए इस हादसे के बाद तो उनके लेखन पर अपनी लेखनी को चलते हुए अटकना ही पड़ता है ...

अभी हाल ही में एक समारोह में गुलज़ार और चेतन भगत एक ही मंच पर मौजूद थे ...चेतन भगत ने गुलज़ार के लिखे गीत " कजरारे -कजरारे " की तारीफ़ करते हुए कहा कि उन्हें इसके पोएट्री बहुत पसंद है ....
अचानक गुलज़ार ने अपने पास ही बैठे एक व्यक्ति से माईक लेकर चेतन भगत को संबोधित करते हुए कहा कि " यदि आपको पोएट्री इतनी ही पसंद आई इस गीत की तो कृपया इसका अर्थ बता दें
" तेरी बातों में किमाम की खुशबू है तेरा आना भी गर्मियों की लू है "
चेतन जी को तो चुप रहना ही था ..इतनी देर में उन्होंने सुझाव भी जड़ दिया ...
" जिस चीज की समझ नहीं हो उसके बार में नहीं बोलना चाहिए "


अब हमको ही कौन इतनी समझ है, इसलिए उनके गीतों की व्याख्या नहीं करके सिर्फ गीतों को याद ही कर लेते हैं ...

बंदिनी के लिए लिखा उनका पहले गीत " मोरा गोरा अंग लई ले " ने ही जो छाप छोड़ी .. प्रेयसी की प्रिय से मिलन की उत्कंठा को इतनी ख़ूबसूरती से मर्यादा की सीमा में बांध कर और कौन लिख सकता था ...

हमने देखी है इन आँखों की महकती खुशबू .....रूहानी प्रेम को अभिव्यक्त करता इससे खूबसूरत गीत कौन सा होगा ...
तुम आ गए हो ...आंधी ,

एक अकेला इस शहर में ...घरौंदा

मेरा कुछ सामान ,

यारा सीली सीली विरह की रात का जलना(लेकिन ) ,

दिल हूम - हूम करे (रुदाली )
छोड़ आये हम वो गालियाँ (माचिस )....
(इन दोनों गीतों के लिए किसी भी सर्च इंजन का इस्तेमाल कर ले ...कुछ मेहनत तो आप भी करें गुलज़ार को समझने में )
बहुत मुश्किल है उनके लिखे बेशुमार बेशकीमती गीतों में से चयन करना ..

गुलज़ार के गीत, नज़्म देखे यहाँ

हज़ार चेहरे वाले गुलज़ार१० बेहद दुर्लभ गीत गुलज़ार साहब के, चुने हैं पंकज सुबीर ने...

ऑस्कर अवार्ड से सम्मानित गुलज़ार पर इस सामग्री को पढ़कर सुनकर भी क्या आप नहीं कहेंगे ...
" गुलज़ार को भी कोई नापसंद कैसे कर सकता है भला "



सभी वेब लिंक्स और तस्वीर साभार गूगल से ...

41 टिप्‍पणियां:

  1. अपनी समझ भी सुनने लायक ही है गुलजार के गीतों के लिए..तो आपने सुनाया और हमने सुन लिया.

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  2. Gulzaar to gar sirf "Hamne dekhi hai",ye ekhi geet likhte to bhi amar ho jate!
    Bandini ka pahla,pahla geet to khair bemisal haihi!

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  3. gulzar ji ke luye ham kya kahe unki lekhni me jo takat hai wo to virle hi dekhne ko miltaa hai

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  4. गुलज़ार बस गुलज़ार हैं .....उनके चुने हुए गीतों को यहाँ प्रेषित करने के लिए आभार

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  5. सब से अच्छी बात यह है कि गुलजार के गीत कभी पाण्डित्य से आतंकित नहीं करते और कभी छिछले पन से उकताहट नहीं होती!

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  6. ओ माझी रे,
    अपना किनारा, नदिया की धारा है...
    पानियों में बह रहे है कई किनारे टूटे हुए,
    हो रास्तों में मिल गए हैं सभी सहारे छूटे हुए,
    कोई सहारा मझधारे में मिले जो अपना सहारा है,
    ओ माझी रे, अपना किनारा नदिया की धारा है...

    गुलज़ार साहब के इस तरह के मास्टरपीसों के बाद कहने को कुछ रह जाता है क्या...

    जय हिंद...

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  7. क्या बात है..एकदम गुलजारीयन हो गयी हो :)
    गुलज़ार के फ़िल्मी गाने हों,नज्में या त्रिवेणी...सबमे एक अलग ही रंग है....जिसे भी नज्मों की थोड़ी समझ है.कैसे नापसंद कर सकता है.
    उनकी लिखी एक पंक्ति मुझे बहुत पसंद है...पर उसके बाद का नहीं पता...अगर तुम्हे या किसी और को पता हो तो प्लीज़ बता दीजिये...

    "बहुत मुश्किल है,आकाश पे चलना, तारे पैरों में चुभते हैं "

    तुम्हे दिल से लिखी चीज़ें ज्यादा पसंद हैं ना (दिमाग से लिखी से ज्यादा ...हाहाहा)
    लो गुलज़ार की कुछ पंक्तियाँ तुम्हारे लिए,

    "रंग चिपका हुआ है,जिस्म से, इक
    जो कि उतरा नहीं , सालों से कई
    तेरे हाथों का छुआ लगता है
    तेरे छूने से हटेगा शायद "

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  8. gulzar sahab ki likhi chand panktiyaan :
    तिनका तिनका कांटे तोड़े ,सारी रात कटाई की
    क्यों इतनी लम्बी होती है चांदनी रात जुदाई की
    आँखों और कानों में कुछ सन्नाटे से भर जाते हैं
    क्या तुमने उड़ती देखी है, रेत कभी तन्हाई की
    तारों की रोशन फसलें और चाँद की एक दराँती थी
    साहू ने गिरवी रख ली थी मेरी रात कटाई की

    unki baat to khair ham kya kahein...kuch bhi kaheinge kam hi hogi..

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  9. बहुत सुंदर लगा गुलजार जी के बारे यहां पढना, बहुत सुंदर लेख, मेरे पास गुलजार जी के तकरीबन सभी गीत सी डी पर है, लेकिन आज आप के ब्लांग पर कई गीतो को सुन कर ओर भी मजा आया धन्यवाद

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  10. are aaz to aapne din gulzaar kar dia ..mera net kharab hai ssojh nahi raha tha kya karun ..itne sundar geet yaad kara diye ..ab yahi sunungi baith kar :)..

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  11. @ shikha ..
    मेरी मेहनत तुम्हारे काम आई..समय व्यर्थ नहीं गया..!

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  12. gulzaar ...a masterpiece!
    aapki post ka title blog tak khinch laya..pahli baar aayi..ab ek naya pata mere paas hai :)

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  13. बहुत खूब....कल ही मैंने गुलज़ार साहब पर एक पोस्ट लिखी थी आज आपकी आ गयी....ऐसा लगा जो मुझसे कुछ छूट गया था वो आपने पूरा कर दिया.... गुलज़ार साहब पर इतना कुछ लिखा गया है मगर उन पर लिखे-पढ़े जाने की प्यास है की कम ही नहीं होती....वक्त मिले तो इसे पढियेगा....http://singhsdm.blogspot.com/2010/07/blog-post_30.html

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  14. for him.....as we live with him since long...

    जिंदगी जब अपने नाखूनों से
    रूह के जिस्म पर
    कई खराशे छोडती है
    ऑर वक़्त किसी सुद्खोर की माफिक
    हर शाम नुक्कड़ पर खडा
    दिन के हर लम्हे का हिसाब मांगता है .........

    लफ्जो के ढेर पर बैठा
    एक शायर
    आहिस्ता आहिस्ता
    अपनी हथेलियों मे छिपे
    कई तसव्वुर
    छोड़ता है
    कितनी रूहे मुस्करा उठती है

    सोचता हूँ कभी मैं भी जाकर
    उन हथेलियों को छू आऊँ
    ऑर
    उस "लम्स" को सूरज पर रख आऊँ

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  15. दिल तो बच्चा है जी तो भूल रही हैं आप।

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  16. बहुत ही नायब पोस्ट . गुलजार तो बस नामानुरूप गुलजार ही हैं.

    रामराम

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  17. ज़रूर कहेंगे
    गुलज़ार को भी कोई नापसंद कैसे कर सकता है भला!

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  18. वाकई में गुलजार के बारे में कुछ कहना तो बिल्कुल सूरज को दीपक दिखाने के सामान है.....सदियों में कोई ऎसा फनकार जन्म लेता है..

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  19. सच तो कहा.. कौन कर सकता है भला? उनकी बात ही कुछ और है.. शायद कुछ सालों बाद लोग उन्हें भी ग़ालिब की तरह ही याद करें.. :)

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  20. गुलजार तो गुलजार है-पापड़ वाला गाना बहुत उम्दा था।

    आभार

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  21. यूनीक है गुलजार जी ..और अपने चहेते भी...इनको कौन नापसंद करेंगा...मुझे तो नही लगता...बाकी देश तो विभिन्नताओं का देश है ...बढ़िया पोस्ट...आभार

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  22. ओह ! वाणी जी, मैं गुलजार के पुराने गानों पर एक पोस्ट लिखने वाली थी, मुझसे पहले आप लिख गयीं. खैर कोई बात नहीं. मैं लिखूं या आप लिखें, बात एक ही है. बस इतना कहूँगी कि उन पर जितना लिखा जाए कम ही है.
    हाँ, एक आदमी को जानती हूँ, जो अक्सर गुलजार की आलोचना करते थे, मेरे बाऊ जी. कहते थे "आँखों की महकती खुशबू" भला आँखों की कोई खुशबू होती है क्या? और होती है तो महकती क्यों है? खुशबू तो वैसे ही महक होती है." मैं कहती थी, " बाऊ, वो गुलजार हैं" :-)

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  23. ओह...आनंद आ गया...
    बहुत बहुत आभार...

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  24. गुलज़ार साहब को आप चाहे जो करें.....नापसंद नहीं कर सकते...ये पक्का है...
    नीरज

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  25. गुलज़ार के लिखे गीत तो हमेशा पसंद रहे हैं । लेकिन अक्सर समझ नहीं आते अब तक ।
    शायद यही महानता है ।
    लेकिन मांफ कीजिये , कोई भी आदमी परफेक्ट नहीं होता ।
    sometimes over qualification is also a dis qualification .

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  26. वाह....वाह....वाह.....वाणी जी बस कमाल ही कर दिया इस बार .......!!

    लिंकों के माध्यम से जिस करीने से पोस्ट को सम्पूर्णता दी है वह काबिले तारीफ है ......

    गुलजार जी पर तो जितना लिखा जाये कम है ......!!

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  27. कोई भी महीन संवेदना का व्यक्ति गुलजार को समर्पित हुए बिना नहीं रह सकता ...
    उन्होंने गद्यात्मक लाईनों को भी संवेदना से लबरेज कर गीतों में ढाल दिया -यह उनका हुनर है !
    अचानक गुलजार क्यों ?
    मैं जनता था आप उनकी ये लाईन नहीं कोट करेगीं ,सो हम कर देते हैं -
    बीडी जलाईले ...पिया करेजवा माँ बड़ी आग है ?
    यह उन्ही का है न ??

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  28. मैं गुलज़ार को नापसंद नहीं करता, पर सच है कि कि उनमें कुछ कमियां भी हैं. मुझे गुलज़ार मोनोटोनस लगते हैं.

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  29. @ अरविंद मिश्रा जी ,Ghost Buster jee,

    इधर कुछ फिल्मों के लिए लिखे गए उनके गीत मेरी भी अभिरुचि के अनुकूल नहीं हैं मगर सिर्फ इसलिए उनके लिखे उत्कृष्ट गीतों को तो भुलाया नहीं जा सकता ...!

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  30. गुलजार को तो मैं भी बहुत पसंद करता हूँ। बहूत ज्यादा। उनके गीत एकदम सरस और मन को छू लेते हैं।

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  31. वाणी जी , गुलजार निश्चित रूप से एक अच्छे कवि हैं | पर सीमाएं किसी की भी हो सकती हैं | कोई किसी को भी नापसंद/पसंद पर सकता है | आपने कहा कि गुलजार को कोई नापसंद कैसे कर सकता है और नीचे एक टीप में यह भी कहा कि गुलजार की इधर की हालिया की रचनाएं आपकी अभिरुचि को पसंद नहीं | इसलिए आपके शीर्षक और मंतव्य में एकनिष्ठता नहीं है | जो कि स्वाभाविक भी है |

    गुलजार की कुछ रचनाओं को मैंने पढ़ा है , वाकही कुछ सुन्दर रचनाएं हैं | पवन भैया की प्रविष्टि के बाद आपकी गुलजार पर प्रविष्टि पढ़कर अच्छा लगा | आभार !

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  32. छनाके से
    तो कभी चुपके से
    जब कोई बूंद गिरती है छत पर
    तो कभी माँ की लोरी
    कभी इश्क़
    कभी तपती दुपहरी में बिखरी सोंधी गंध
    कभी सिहरती हवाओं में बर्फ सा चेहरा .... हौले से कहता है 'गुलज़ार'

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  33. अलग-अलग विषयों पर लीक से हटकर वे फिल्में बनाते रहे।

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  34. ये बहुत पहले की पोस्ट है, लेकिन आज पढ़ रहा हूँ!
    वाणी जी, उनके ने गीतों में भी शायद ही कोई ऐसा गीत है जिसमें शायरी का लेवल कम हुआ हो.. :)

    अरविन्द जी का कमेन्ट देखा तो ये विडियो की याद आई...अपने उसी गाने की बात की है गुलज़ार साहब ने...बीड़ी जलईले पर -
    https://www.youtube.com/watch?v=0mWP6EyS95k

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