शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2012

मुस्कराहट एक बड़ा हथियार है !!

कल सुबह कॉलेज जाती हुई एक बच्ची नजर आई कुछ लंगड़ाती हुई . शायद चप्पल टूट गयी थी. झेपी मुस्कराहट के साथ चप्पल घिसट कर चलते देख थोडा दुःख हुआ तो थोड़ी हंसी भी आई . 
मुस्कुराने के बहाने भी कैसे अजीब होते हैं . बेचारे कि चप्पल टूटी है चलने में परेशानी है .  स्टॉप कितनी दूर है . उससे पहले मोची मिलेगा या नहीं , कैसे चल पाएगी इतनी दूर . सब लोंग अजीब नजरों से घूर रहे हैं जो अलग . फिर भी मुस्कुरा रहे हैं  जिसका दुःख है वह भी और जो उसके दुःख में शामिल हो दुखी हो रहा है, वह भी . उसकी मुस्कराहट में शामिल तो मै भी हुई मगर उसके दुःख के अलावा भी मुस्कुराने का मेरा अपना कारण था.

किसी को भी लंगड़ाते देख मुझे बहुत- बहुत-बहुत  साल पहले की स्मृतियाँ सजीव हो उठी है  .  उम्र यही कोई  दस-.ग्यारह वर्ष की रही होगी .  पैर के तलवे में हुए फोड़े ने चलना फिरना मुहल कर रखा था . एड़ी टिका कर चलना संभव ही नहीं था तो  घर में  भी अक्सर सहारा लेकर एक पैर पर चलना पड़ता . घर से बाहर मरहम पट्टी करवाने के अलावा तो जाने का सवाल ही नहीं था . पिता के ऑफिस जाने से पहले सहायक चाबियाँ और उनका ब्रीफकेस लेने आता और  लंच में और शाम को छुट्टी होने पर उनके साथ ही यही समान लेकर लौटता भी . ऐसे ही किसी दिन पापा के साथ आते उनके मुंहलगे  सहायक रामावतार ने मुझे एक पैर पर कूद कर चलते देख लिया .  उसके बाद  हाल ये कि सुबह , शाम ,दोपहर जब भी घर पर मैं उसके सामने नजर आ जाऊं  मुझे देखते ही लंगड़ा कर चलना शुरू कर देता . हम लोग ऐसे ही माहौल में बड़े हुए हैं जहाँ चपरासी , काम वाली बाई आदि भी घर के सदस्य जैसे ही हो जाते हैं  तो कोई उसको डांटता नहीं बल्कि सब उसके साथ ही मुस्कुराने लग जाते.  
 एक तो अपनी हालत से परेशान और ऐसे में किसी का खिझाना और परिजनों का उसमे सहयोग. मैं उस पर बहुत खीझती  चिल्लाती . इतना गुस्सा आता मुझे कि यदि पापा का डर या लिहाज़  नहीं होता उसे गालियाँ भी दे देती या फिर कुछ उठा कर दे मारती .  किस्मत अच्छी थी उसकी कि उसका आना उसी समय होता जब पापा घर में होते .   
खैर , थोड़े दिन बाद पैर ठीक भी हो गया . आराम से चलना -फिरना भी होने लगा  मगर रामावतार का मुझे चिढ़ाना नहीं छूटा. जब भी मैं नजर आ जाऊं ,उसका लंगडाना शुरू . 
मैं बागीचे में हूँ या बरामदे में बैठी रहूँ या फिर कॉलोनी में घूमते मिल जाऊं . मुझे देखते ही उसका लंगड़ाना शुरू .  लोग हैरान होकर उससे पूछते कि अभी तो ठीकठाक थे अचानक क्या हो गया पैर में . मैं तो जानती थी उसके लंगड़ाने का कारण सो खीझ कर रह जाती. ऐसे ही एक दिन लंच के समय पापा के साथ घर लौटते मुझे डाईनिंग टेबल पर खाना खाते देख जब उसने लंगडाना शुरू किया  मैं बस गुस्से से फट पड़ी .  पापा -मम्मी पर भी गुस्सा करने लगी कि आप इसे कुछ कहते नहीं  इसलिए ये हमेशा मुझे चिढ़ाता  है . 
पापा थोड़ी देर सुनते रहे . फिर मुस्कुराते हुए बोले   , " तू चिढ़ती है  इसलिए वह चिढ़ाता है . चिढ़ना छोड़ दे  उसका चिढ़ाना छूट जाएगा ." 
मेरा गुस्सा एकदम से शांत हो गया .  उनकी बात में वजन था . मैं भी उनके साथ मुस्कुराने लगी थी . 
उम्र तो अपनी रफ़्तार से बढती है . जीवन में परिवर्तन भी आते हैं . मैं बड़ी भी हुई ,  विवाह हुआ , बच्चे भी हो गये मगर रामावतार का मुझे चिढ़ाना नहीं छूटा . वह जब भी मुझे देखता पतिदेव या बच्चों के साथ , तब भी उसका लंगड़ाना यथावत रहता .  बस मेरा  खीझना छूट गया था. मैं भी सबके साथ मुस्कुरा देती और  बच्चों को अपने बचपन की कहानी सुनाती. एक अनमोल सबक सिखा मैंने और बच्चों को भी सिखाया  कि  चिढ़ाने वाली परिस्थितियों से कई बार मुस्कुराकर भी बचा जा सकता है . खीझ से बचने में शत प्रतिशत नहीं तो कुछ प्रतिशत जरुर होता है .
पापा नहीं रहे . हमारा वह गाँव छूटा . रामावतार भी रिटायर हो गया . मगर भाई की पास के शहर में नौकरी के कारण अभी संपर्क पूरी तरह नहीं ख़त्म हुआ . एक दिन अचानक मिल गया बड़े भाई को . पूछने लगा हम सबके बारे में   " बबी लोंग कैसन बाड़ी " .
भाई ने झट फोन मिलाकर बात करवा दी  .
का बबी , कैसन बाडू, हम अईनी भैया लगे . पूछत रहनी है कि बबी बाबू लोग कैसन बाड़े ...कईसे   गोड़वा से लंगडात  रहलू ...उहाँ सब ठीक बाटे ना !
पापा-मम्मी और सभी भाई -बहनों की  जाने कितनी ब़ाते याद थी .
भाई ने बताया  वृद्धावस्था  की मार झेलते रामावतार की आँख में आंसू थे .  
 जब भी चिढ़ने चिढ़ाने की बात होती है  मैं इन्ही स्मृतियों से गुजरती हूँ . 
अविश्वास के इस दौर में जीने वाले हमलोग ...सोचती हूँ क्या हमारे बाद वाली पीढ़ी की स्मृतियों में भी ऐसा  अपनापन संभव हो सकेगा !!!

23 टिप्‍पणियां:

  1. .
    .
    .
    मुस्कराहट वाकई एक बहुत बड़ा हथियार है... :)
    आत्मीयता से सराबोर संस्मरण... अच्छा लगा इसे बाँचना...


    ...

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  2. चिढाते भी अपने ही लोग हैं या यह कहे कि, चिढ भी अपनों की ही लगती है | भाव पूर्ण संस्मरण |

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  3. अविश्वास के इस दौर में जीने वाले हमलोग ...सोचती हूँ ,क्या हमारे बाद वाली पीढ़ी की स्मृतियों में भी ऐसा अपनापन संभव हो सकेगा !!!

    अच्छे लोगों को अच्छे लोग हमेशा मिलते हैं वाणी जी ...!!तभी तो कहते हैं ....कुछ बातें कभी नहीं बदलतीं ...!!
    अविश्वास के इस दौर मे विश्वास देता हुआ भावपूर्ण सुंदर आलेख ...
    शुभकामनायें ।

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  4. शायद नहीं ..क्योंकि हमारे और इन बच्चों के जीने के तरीके में बहुत फर्क हैं ....सोच अलहदा है ...लेकिन यह सच है की ऐसे रिश्ते ता उम्र ..जीवन भर यादों का एक हिस्सा बने रहते हैं

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  5. कुछ रिश्ते कुछ बातें भुलाये नही भूला करतीं।

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  6. सच है चिढ़ाते भी तभी है जब कोई चिढ़ता है ... मुस्कुराहट ही सही प्रतियुत्तर है .... अपनत्व से भरा रोचक संस्मरण

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  7. चिढो तो चिढानेवाले को मज़ा आता है...ध्यान देना बन्द कर दो तो मज़ा खत्म ! यह तो हर बात में लागू है.... मुस्कुराहट तो वर्तमान से अतीत की बन ही जाती है,बहुत सही चित्रण पूर्व के जीवन का ...

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  8. अच्छा संस्मरण -बहुधा देखा गया है कि चिढने और चिढाने का एक अटूट रिश्ता बन जाता है ..मगर यह काफी असहज सा होता चिढने वाले के लिए .
    और चिढने वाले व्यक्ति में कहीं न कहीं एक बहुत मासूमियत/सरलता और गैर दुनियादारी निहित होती है जो चिढाने वाला उतना ही घाघ आदमी भांप जाता है और चिढाना उसकी आदत में शुमार हो जाता है !
    मैं इसे बहुत बुरा मानता हूँ क्योकि खुद भी कई लोगों द्वारा चिढाया जाता रहा हूँ -और एक बार तो एक मेस के नौकर को पीट भी दिया था !
    साला जब देखो मुह 'बिराता' रहता था :-) मार खाया ठीक हो गया !
    पीउन=इसे अर्दली या चपरासी करना चाहें!

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  9. बहुत ही आत्मीय संस्मरण...

    बिलकुल परिवार के सदस्य बन जाते थे, ऑफिस के स्टाफ .
    आज के बच्चों के पास दूसरी तरह की यादें होती हैं...आत्मीयता उन यादों भी होती है. क्यूंकि यह मानव-स्वभाव है.

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  10. अप्रभावित रहना खिन्नता और आवेश से बचने का श्रेष्ठ उपाय है।

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  11. एक मुस्कराहट कई खामियों को छुपा लेती है . और दवा का काम भी करती है . badhiya sansmaran .

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  12. अच्छा संस्मरण , बहुत कुछ याद दिला गया .

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  13. पिछले समय से जुड़े लोगों में जो अपनत्व होता था वह अब नहीं मिलेगा. अपनत्व भरे लहजे में चिढाने में जो आत्मीयता छिपी होती है वह हमेशा याद रहती है.

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  14. अगली पीढ़ी के भाग्य में भी अपनापन तो होगा ही, बेशक वर्चुअल वाला हो।
    आपके संस्मरण जैसे वाकये जिन्दगी के कई पाठ सहज ही पढ़ा जाते हैं।

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  15. बिल्कुल सही बहुत हद बचाव हो जाता है..... हर हाल में मुस्कराहट मददगार है

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  16. अविश्वास के इस दौर में जीने वाले हमलोग ...सोचती हूँ ,क्या हमारे बाद वाली पीढ़ी की स्मृतियों में भी ऐसा अपनापन संभव हो सकेगा !!!.....बेहद सार्थक प्रश्न सोचने पर विवश करता शायद रामावतार आज भी हैं पर सहमे सहमे भौतिकवादी युग में लंगडाना भूल चुके हैं...आभार भाव विभोर करने वाली प्रस्तुति....

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  17. वो दौर तो अब खत्म होता जा रहा है जब पराये भी अपनापन रखते थे और उन से रिश्ते बिलकुल घर की तरह होते थे. अब तो मुस्कराने पर भी झगडा हो जाये चिढाने की बात तो बहुत दूर.

    बढ़िया संस्मरण.

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  18. बहुत ही अच्छा संस्मरण..
    मुस्कराहट एक बड़ा हथियार है ..
    सहमत हूँ...
    :-)

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  19. apke prasang par apne aap hi muskurahat is baat par aur gahra gayi jahan aapke pita ji ne aapko samjhaya ki jitna chidhogi utna chidhayenge...so chidhna chhod do...mera chhota beta mujhse bahut chuhul-baziya karta hai jis se kayi baar me bhi chidh jati hun...tab bada beta yahi shabd bolta hai...mummy jitna aap chidhogi vo apko aur chidhayega...aap chidhna chhod do...2-3 bar vo apko tang karke jab koi response nahi payega to chidhana chhod dega...lekin mujhme bhi itni dheeraj kahan ki uska chidhana chup-chap bardaasht karti rahun...aur har baar means din me ek baar to ye sab jaroor ho jata hai. aaj se aise avsar par aapka lekh yaad aana bhi shamil ho gaya hai...lekin asal me main kayi baar jaan-boojh kar bhi uske chidhane par chidhne ka upkram karti hun...mahol ko paarivarik prem sambandhon me sarabor rakhne ke liye. :-)

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  20. ये परिवार की भावना ही हमारी संस्‍कृति का आधार है, बस इसे ही बचाए रखने की आवश्‍यकता है।

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  21. बिल्कुल नहीं, असंभव है ऐसा अपनापन।

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  22. गंगा किनारे मेरी पत्नीजी की भी चप्पल टूट गयी। पहले झेंपीं, खिसियायीं। फिर जब उन्हे झटक दिया तो मुस्कान और सुकून हावी हो गये मन पर!

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