उफ्फ्फ...ये सरनाम(शर्मा ) अक्सर लोगों को इस भ्रम में डाल देता है...थोड़ा बहुत ज्योतिष और शास्त्रों का ज्ञान तो होगा ही...वे बहुत ज्यादा ग़लत भी नही होते ...हम तो वैसे भी ऐसी घोर कर्मकांडी दादी के सानिद्य में पले बढे ...जो कि महज पैर फिसल कर गिरने को भी देवताओं का प्रकोप समझकर प्रसाद चढा देती थी ...प्रसाद मिलने के लालच में हम भी चुप रह जाते ...और इसीलिए श्राद्ध पक्ष में तो चेहरा और सरनाम छुपाते रहना पड़ता है ...हर दूसरे दिन कोई न कोई न्योता लेकर आ जाता है ...बड़ी मुश्किल से उन्हें समझाना पड़ता है कि हम वैसे पंडित नही है ...जीमने वाले ...पूजा कराने वाले ...मगर मानते कहाँ है ...पूरा- पूरा मजा लेते हुए कह ही देते हैं ..." आप तो हमारे घर के सदस्यों के जैसे ही हो ...हमारे यहाँ जीमने में क्या शर्म ..." मन तो होता है चिल्ला कर कह दूँ ..." अच्छा..!! जब अपने बेटे की शादी के बाजे बजवाये तब याद नही आए ये घर के सदस्य...अभी पिछले महीने ही तो अपने सेवानिवृत होने पर इतनी बड़ी पार्टी दे थी ...तब भी नही ..." मगर कह नही सकते...व्यवहारिकता का तकाजा जो होता है ....खैर ...
हाँ तो मैं बता रही थी अपनी सखी के मारकेश योग के बारे में ...उस समय तो मैंने उसे कह दिया ...." चूल्हे में डाल इस मारकेश योग को ..." मगर गाय, कुत्ते, कौवे के लिये चपाती सेकती ख़ुद इसे चूल्हे में नही डाल पाई ...किताबी ज्ञान का दंभ ओढे ...प्रोग्रेसिव होने का मुलम्मा चढाये हुए भी जीवन में यदा कदा इस प्रकार के योग का भय सताता ही है ...मौत के भय के आगे अच्छे अच्छे नास्तिकों को आस्तिक बनते हुए देखा है ...ब्राह्मणों पंडितों को जी भर कर कोसने गरियाने वालों को भी घर में अशांति और बीमारी की स्थिति में महामृत्युंजय और गृह शान्ति पाठ करने की प्रार्थना करते उनके आगे पीछे घूमते हुए भी खूब देखा है .......घरों में विभिन्न त्योहारों के अवसरों पर हमे व्रत पूजा के साथ कहानिया भी सुननी होती हैं (कहानी सुनने के लिए कोई विशेष पर्व की आवश्यकता नही है...प्रत्येक वार के अनुसार भी अलग अलग कथाएँ है ) ...अब इनमे कितना विश्वास करते हैं ...ये अलग बात है ...सफ़ेद घोडे पर आने वाले राजकुमार ...राक्षस की कैद से राजकुमारी को छुडा कर ले जाने वाली ...दुखी अनाथों की मदद करनेवाली परियों की कथाओं पर ही कौन विश्वास होता है... मगर सुनते तो बड़े चाव से रहे है ...ये कहानियाँ भी हमारे लिए कुछ ऐसी ही होती है ...कर्मकांडी धर्मभीरु महिलाएं ख़ुद अपनी कहानियों में कैसे कर्मकांडों को धता बताती है ...इन्हे सुनकर ही तो जाना जा सकता है ...ऐसी ही एक रोचक कहानी है -----
एक बार एक गाँव में एक सास बहू होती है ...सास बहू को बहुत कष्ट देती ...सुबह सुबह ही बिना कुछ खिलाये पिलाये ही उसे खेत में काम करने भेज देती ...खेतों की और जाने वाला रास्ता शमशान की और से होकर गुजरता था जिसके पास में ही एक मन्दिर भी था ...मन्दिर में रोज पूजा होती ...भक्त जी भर कर आटा और घी चढा कर ईश्वर से अपनी सुख समृधि की प्रार्थना करते...भूखी प्यासी बहू यह सब देख कर बहुत दुखी होती ...उसके तो ख़ुद खाने पीने का पता नही था ...क्या तो भेंट चढाती ...क्या आशीष मांगती ...एक दिन घर में उसकी सासू माँ ने उसकी पिटाई कर दी ...वह बड़े दुखी मन से रोती हुई चली जा रही थी ...रास्ते में उस मन्दिर को देखकर कुछ देर वहीं विश्राम करने को रुक पंडी .....भगवान् की मूर्ति के पास सूखे आटे और बहते घी को देख कर वह सोचने लगी ...मैं तो यहाँ हाड़ तोड़ मेहनत कर भूखी प्यासी हूँ और यहाँ इतना घी व्यर्थ बहा जा रह है ...गुस्से से भरी हुई तो वह पहले से ही थी ...उसने इधर उधर देखा ...कोई दूर तक नजर नही आया ...पंचपात्र में रखे जल का उपयोग कर उसने सूखे आटे को गुंधा और पास में ही जलती चिता की राख में बाटिया सेक ली और चक कर खाई ...अब भगवान् की मूर्ति यह सब देखकर बहुत परेशान ...और तो क्या करते ...नाक पर अंगुली रखकर मुंह फेर कर खड़े हो गए....दूसरे दिन तो नगरी में हाहाकार मच गया ...भगवान् की मूर्ति की नाक पर अंगुली ...जरुर किसी ने बड़ी भारी भूल की है ...पुजारी पूजा करते मना मना कर थक गये ..नाक की अंगुली टस से मस ना हुई...मन्दिर के बाहर भारी बड़ी भीड़ जमा हो गयी ...बड़े बड़े विद्वान पंडित आए मगर बात नही बनी ...राजा ने मुनादी करवा दी ...जो भी भगवान् की इस मूर्ति की नाक से अंगुली हटा देगा ...उसे पुरस्कार में अन्न वस्त्रादि के अलावा राज्य का कुछ हिस्सा भी मिलेगा ...बात उड़ते उड़ते उस बहु तक भी पहंची ...एक बार तो वह बहुत भयभीत हो गयी ....घबराती हुए सास के पीछे उस भीड़ में जा खड़ी हुई ...सारे प्रयास विफल होते देख वह अपनी सास से अर्ज करने लगी ...''आप इजाजत दो तो मैं इसे ठीक कर सकती हूँ "..." इतने विद्वान पुजारी सब विफल हो गये ...तू करेगी ठीक ..." सास उसका मजाक उडाते हुए जोर से बोल पड़ी ... पास ही खड़े किसी बुजुर्ग ने यह सब सुना तो कह उठा ..." जब कोई भी सफल नही हो पाया तो एक बार इसे भी मौका देने में क्या हर्ज है ..." अब तो बहू मन्दिर में गयी...". साथ ही सबसे कहती भी गयी ...जब तक मैं भगवान् का परदा नही हटाती कोई मन्दिर में प्रवेश नही करे ..." जाते जाते काँटों से भरी बेर की टहनी भी साथ ले गयी ...जाकर भगवान् के सामने खड़ी हो गयी और क्षमा याचना करते हुए बोली..." मुझसे बड़ी भूल हो गयी ...मुझे क्षमा करें और अपनी नाक से अंगुली हटा दे ..." अपनी क्षमा प्रार्थना का कोई असर ना होते देख उसे बहुत क्रोध आया ...गुस्से में भर कर बोली ..." तेरे दरवाजे पर इतना घी बह कर जा रहा था ...अगर मुझ भूखी ने थोड़ा सा पेट भरने का साधन कर लिया तो वो भी तेरे से बर्दाश्त नही हुआ ...बोल नाक से अंगुली हटाता है या दूँ इस छड़ी की ...अगर मूर्ति खंडित हो गयी तो कौन पूजेगा ...खड़े रहना फिर इसी तरह भूखे प्यासे ..." अब तो भक्त वत्सल भगवान घबराए ..." इसका क्या भरोसा ...यह तो भोली भाली स्त्री, जब चिता की आग में बाटी सेक कर खा गयी तो मेरी मूर्ति का क्या हश्र करेगी ...अगर इसमे समझ होती तो क्या यह ऐसा कार्य करती ..." भगवान् ने मुस्कुराते हुए नाक से अंगुली हटा दी ....जब बहू मन्दिर का परदा हटा कर बाहर आयी तो सब तरफ़ उसके जयकारे होने लगे ...सास ने भी उसकी भक्ति के आगे झुक कर माफ़ी मांग ली ...बहुत सारा धन और पुरस्कार लेकर सब राजी खुशी रहने लगे ...भगवान् जैसी बहू पर टूटी सब पर टूटना ..."
कथा समाप्त हुई ।
घर की बड़ी बूढी स्त्रियों से उनकी विभिन्न भाव भंगिमाओं मुद्राओं के साथ इन कहानियो को सुनना बहुत मनोरंजक होता है...अगली बार बहुत सारी स्त्रियों को इकट्ठा किसी कहानी को कहते सुनते देख कर उनकी निरीहता ,धर्मभीरुता , कर्मकांडी व्यक्तित्व पर व्यग्य बाण छोड़ने या सहानुभूति प्रकट करने से पहले उस छड़ी को याद जरुर कर ले...
इस कहानी को सुनते हुए कई बार मुझे रामचरितमानस में रची तुलसीदासजी की पंक्ति " समरथ को नही दोष गुसाईं " का स्मरण हो आता है ...जिसे आम बोलचाल की भाषा में ..." नागा क आग तो भगवान भी डर जाव " कहा जाता है...
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मारकेश योग... बहुत खूब.. हैपी ब्लॉगिंग
जवाब देंहटाएंवाणी जी,
जवाब देंहटाएंअरे मैडम जी इतनी रोचक कथावस्तु आपकी और आपकी प्रस्तुति तो बस कमाल की
है
वाह भाई मारकेश योग मुझपर हुआ और एक महा-बेहतरीन पोस्ट बना दी आपने
इस पोस्ट की भाषा और शैली के लिए आपकी कलम को सलाम करते हैं हम और आपको दंडवत प्रणाम..
बस आनंद आ गया जी पढ़ कर....
मारकेश योग.ke bare me to hum ne bhi pahli baar suna...interesting post...
जवाब देंहटाएंरोचक कहानी...बहुत बढ़िया..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद..
बहुत बढिया लिखा है .. यह कहानी मैं सुन चुकी हूं .. इससे सीख मिलती है कि ईश्वर भाव के भूखे होते हैं .. कर्मकांड तो एक सामाजिक व्यवस्था है .. जिसके कारण समाज के विभिन्न वर्गों के मध्य पारस्परिक लेने देन होता है .. जिससे समाज के सभी वर्गों की जरूरतें पूरी होती है .. ईश्वर से उसका कोई लेना देना नहीं होता .. एक और कहानी मैने सुनी है .. एक माता पिता घर से बाहर जा रहे थे .. उनके लौटने तक बेटे को ही भगवान का भोग लगाना था .. बच्चा समझ रहा था कि भोग लगायी वस्तु को भगवान आकर खाते हें .. पहले दिन भोग लगाने के बाद वह बार बार आंखे बंद कर इसका इंतजार करने लगा .. पर जब आंखे खोलता पांच के पांच ही लड्डू मिलते .. बार बार प्रार्थना करे पर कोई सुनवाई नहीं .. विनती करते जब थक गया तो वह एक डंडा ले आया .. और हाथ में डंडा देखते ही भगवान जी प्रकट हुए और एक लड्डू खा ली .. और ऐसा ही प्रतिदिन होता रहा .. जब माता पिता आए और उन्हें इस बात की जानकारी हुई तो वे आश्चर्यित हुए !!
जवाब देंहटाएंलाजवाब लिखा आपने मारकेश योग. मजा आगया.
जवाब देंहटाएंरामराम.
DILCHASP KAHAANI ...... ISKE BAARE MEIN HUMKO BHI PATA NAHI THAA ....
जवाब देंहटाएंकथा और प्रस्तुतिकरण दोनो बढ़िया हैं।
जवाब देंहटाएंबधाई।
वाह बहुत ही अच्छा लिखा बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंभगवान भी डण्डे के जोर पर ही मानते हैं! :-)
जवाब देंहटाएंऔर मारकेश तो हमें किसी ने डेढ़ दशक पहले कहा था। बिना कुछ किये यूं ही हैं - जस के तस!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर लिखा आप ने धन्यवाद
जवाब देंहटाएंरोचक प्रस्तुतिकरण्!!!!
जवाब देंहटाएंरोचकता का ताना-बाना यूँ बुन दिया है आपने कि सामान्य-सा विषय भी आकर्षण-युक्त हो उठा है ।
जवाब देंहटाएंमारकेश की बात बताना तो शगल जैसा भी है अनेक पंडितों के लिये, जिसके जरिये अनेकानेक पूजा-विधान कर वह धनागम करने के उपक्रम रचते हैं ।
बेहद खूबसूरत प्रस्तुति का आभार ।
oho 'Cheenk' aa gayi nahi to comment aur lamba karta.
जवाब देंहटाएं:)
badhiya post.
इतने गहरे अर्थों में अभिव्यक्त होगी यह पोस्ट । शायद आपने भी न सोचा होगा । आभार ।
जवाब देंहटाएंइतना धमका दी हैं की कुछौ बोलने की हिम्मतै नहीं हो रही है -अच्छी लोककथा !
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया, रोचक और लाजवाब कहानी लिखा है आपने! पढ़कर बहुत अच्छा लगा और मज़ा आया!
जवाब देंहटाएंBahut sundar...dilchasp laga !!
जवाब देंहटाएंरोचक कथा... ऐसी बातें लड़ने और जिंदादिली से जीने का आधार देती हैं...
जवाब देंहटाएंसभी बहुएं ऐसी ही हों... सरल....