कैसे होते हैं वे साथी जो रुलाते नही ....तडपाते नही ....ना हम उनके लिए कोई सपना देखते हैं ...ना ही उनका साथ पाने की आरजू....पर दिल तब भी उन्हें याद तो करता है ....वो याद एक खुशनुमा एहसास देती हैं ....जुदाई की तड़प या ग़म का एहसास नही ...वे यादें धुप अगरबत्ती की भीनी खुशबू की तरह हमारे तन मन को सुवासित कर जाती हैं ....इन एहसासों की नर्मियां गर्मियों की घनी लू भरी दुपहरियों में केवडे चंदन सी शीतलता भर जाती हैं ....ठंडी सर्द रातों में इन एहसासों की गर्मियां थपकियाँ देकर सुलाती हैं .... ....जिनका कोई रंग रूप नही ...आकार नही ....नाम नही .....मगर ये एहसास हर पल खुशियों में साथ मुस्कुराते हैं ....गम में आंसूं भी बहाते हैं .....समझ नही आता इन यादों को ...इन एहसासों को ...उस साथी को क्या नाम दे ......
सदियों से तुम्हरी याद आयी नही
तुम्हे भूल गए हो ऐसा भी नही
यूँ तो तुम याद नही आते
मगर जब याद आते हो तो
अक्सर याद आते हो
देर तक याद आते हो
कई एहसास होते हैं ... जिन्दगी में जिनसे हम बार बार होकर गुजरते हैं ...मगर...सदियाँ बीत जाने तक भी ये धुंधलाते नही ..अपनी भरपूर ताजगी के साथ मौजूद रहते हैं ...वैज्ञानिक सोच है की कई एहसास और यादें हमारे अवचेतन मस्तिष्क के किसी कोने में संरक्षित डेटा की तरह लुप्तप्राय से पड़े रहते हैं... और जब किसी और को उन्ही एहसासों से गुजरता देखते है तो ये डेटा मस्तिष्क से लेकर ह्रदय तक विस्तारित हो जाते हैं ... ये एहसास समय और काल की सीमा को तोड़ते हुए हमेशा अक्षुण्ण ही रह जाते हैं .....
बहुत पहले अपनी तरुणावस्था (अब कौन सी वृद्धावस्था आ गयी है ) में डायरी की किसी पन्ने पर ये हर्फ़ लिखे थे ....वक़्त के साथ डायरियां फटती गयी मगर फिर भी कुछ पन्ने बचे रह गए ...विगत वर्षों में इस पन्ने को कई बार उलट पलट कर देखा ...मगर इसमे लिखे गए ये लफ्ज़ कभी अप्रासंगिक नही लगे ....हर बार अपने वचनों की सत्यता को साबित ही करते आए ...आज इतने वर्षों बाद उम्र (अब क्या उम्र हो गयी है ) के इस पड़ाव पर भी ये एहसास जस के तस डायरी के इस पन्ने की तरह अविचलित पड़े हैं ...कल जब सच्चा शरणम पर तुमने मुझे एक घड़ी दी थी… पढ़ा तब से ही डायरी का यह पन्ना इतना याद आ रहा था कि वार्षिक सफाई के कारण होने वाली अव्यवस्था , अतिव्यस्तता और अत्यधिक थकान के बावजूद यह प्रविष्टि लिखने का लोभ संवरण नही कर पा रही हूँ ....
क्या कहा ...अब क्या उम्र हो गयी है ... bad manners ... क्या आप नही जानते ...महिलाओं से उनकी उम्र नही पूछते ...खूबसूरत महिलाओं से कभी नही ....और 40 के बाद तो जीवन मरण के प्रश्न पर भी नही .... !!
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बहुत खूबसूरत पन्ना.
जवाब देंहटाएंवाकई कई यादे धुंधलाते नही
आपने लिखा है न कि वक्त के साथ डायरिया फटती गयीं, कुछ पन्ने शेष रह गये, बचे रह गये... जीवन के कोमलतम एहसासों के पन्ने हैं वह ! जीवन बहुविध रूप धरता है, अनेकों आयाम रचता है, पर उन फाहों से एहसास के सम्पुट कभी नहीं बिखरते ।
जवाब देंहटाएंऐसा क्यों होता है कि अक्सर उन पुराने एहसासों के स्वर हमारी जीवन-गति में और तीव्रता देते हैं, और भी प्रेरणा भरते हैं, यद्यपि होते हैं वह अतीत के हिस्से, हो गये होते हैं व्यतीत के चिन्ह, पर उनकी प्रखर उपस्थिति महसूस होती रहती है जीवन के प्रत्येक कार्य में, प्रत्येक अनुभव में, प्रत्येक पद-गति में ।
संवेदना के अमूल्य रत्न जिनके पास होते हैं, हृदय का भावित क्षेत्र जहाँ मुखर होता हैं , वहाँ यूँ ही अनुभूति, भाव और अभिव्यक्ति - तीनों संयुक्त होकर ऐसी प्रविष्टि रचते हैं । आभार ।
मेरी प्रविष्टि को इतना मान दिया - निमग्न हूँ !
यही और ऐसे अहसास ही तो मनुष्यता की धरोहर हैं /पहचान हैं -जिस दिन ये मानव मन से गयीं, मनुष्यता खत्म हुयी !
जवाब देंहटाएंकहीं छू गया आपका यह अतीत - विरह ! यही तो हमें संबल देता रहता है आगे के जीवन के लिए भी ! और हाँ इन दिनों प्रियवर गिरिजेश राव जी भी अपनी डायरी -खोज में जुटे हैं ! उनसे परिचय है आपका ? अरे वही आलसी का चिट्ठा वाले -इन दिनों आलस्य भाव तिरोहित है उनका !
दीपावली पर घर में साफ़-सफाई चल रही है. हर साल यहाँ भी न जाने कितनी भूली-बिसरी नज्मों और कविताओं के दीदार हो जाते है जिनका किसी जमाने में चाहे-न-चाहे ही इलहाम हो जाता था. पुरानी डायरियां, किताबों के भीतर रखे फूल-पत्ते, कागजों की कतरनें, यहाँ तक कि गिफ्ट रैपिंग भी.
जवाब देंहटाएंमुझे तो ये उम्र का अहसास कराते हैं. अब लगता है मैं मिडिल एज में नहीं हूँ बल्कि उम्रदराज़ हो गया हूँ. सब कुछ इतना पुराना सा है...
चलिए, नहीं पूछूंगा उम्र. आपने लिख दिया तो बस जानना चाहता था:)
बहुत सुंदर बात..एहसास,प्रेम,यादों को व्यक्त करता सुंदर प्रसंग...बधाई!!!
जवाब देंहटाएंवाणी जी,
जवाब देंहटाएंआप भी न .....ये दीवाली कि सफाई भी न बड़ी मारक होती है कुछ न कुछ पंगा हो ही जाता है....मुझे भी एक डायरी मिल ही गयी थी....उसका मिलना और अहसासों उछाल मरना...तौबा-तौबा.....अभी तक उससे बहार नहीं आ पायी हूँ....सही कहा है कुछ यादें कभी नहीं जातीं....तो फिर ये यादें कैसी हैं ....जो कभी जातीं नहीं जहन के साथ चिपकी हुई ...नर्म-नर्म सी होती हैं...वाणी जी बहुत बुरी बात है ऐसे आप लिखती हैं हम भी न कहाँ-कहाँ हो आते हैं..
बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने.. हमेशा कि तरह...
डायरीनामा का अच्छा संयोग चल रहा है । यादों पर कभी भी उमर का प्रभाव नहीं होता । क्या सोलह ? क्या चालीस ? क्या अस्सी ? मनोभाव की कोई उमर नहीं । एहसासों को जब भी कुरेदो हरे हो जाते हैं । और जब प्रसंगवश का झंकृत होना हो । अभिव्यक्ति और भी मुखरित हो जाती है ।
जवाब देंहटाएंआभार ।
बेहद रोचक लगा आपके यादो के पन्ने .............डायरी के पन्ने ऐसे ही होते है कभी पुराने नेही होते....
जवाब देंहटाएंबेहद संजीदा लगी आपकी यादे।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बात..एहसास,प्रेम,यादों को व्यक्त करता सुंदर प्रसंग..
जवाब देंहटाएंnamaskaar
डायरी का पुराना पन्ना, पुराने चावलों की महक बिखेरता हुआ लगा।
जवाब देंहटाएंबहुत बधाई!
कुछ पन्ने शेष रह गये, बचे रह गये...यह पन्ने अपने तो नही लेकिन फ़िर भी पता नही क्यो समभाले फ़िरते है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिखा आप ने धन्यवाद
एक कवि की CHAHAEY जो भी UMAR हो USKEY पास हर UMAR का मन होता है. SO CHINTA NA KREIN. आपकी डायरी बहुत SUNDAR HAI.VDHAYEE. JALDI HI MERE BLOG PAR 'EK UDAS DIN KI DAIRY' DEKHNEY KO MILEGI. ABHI TO MUJHEY PRTIKSHA HAI KISI KEE JO MERE BLOG KO KAMCHLAOO KAR DE. AAPKI NAJAR MEIN KOI HO TO ...
जवाब देंहटाएंkhoobsurat panne..or jab unpe yade ukri ho to or khoobsurat ho jate hai.....
जवाब देंहटाएंbahut hi sahi darshan
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा । डायरी पर मैने भी लिखा है मेरा ब्लॉग "पास-पड़ोस " देखियेगा । http://sharadakokas.blogspot.com
जवाब देंहटाएंYAADON KO GULDASTE KI TARAH PIROYA HAI AAPNE ..... SANJEEDA POST HAI .......
जवाब देंहटाएंsooo beautifull... mummy ke bahut kehne par maine bhi akhirkar apne kamre ki safai kar hi daali... aur khoob saare ''bakwaas'' panne jalaye! hahaha !
जवाब देंहटाएं*cough!*
मैं सोच रहा हूँ वह खुशनसीब कैसा होगा जिसे इस तरह याद किया जा रहा है !
जवाब देंहटाएंहिमांशु जी तो संयम और संतुलन रख कर 'घड़ी...' जैसा रच देते हैं। मैं तो इत्ता परेशाँ कि बेचारे की वह पोस्ट भी डूब कर पढ़ नहीं पाता।
गहरे गोता लगाए बिना बात बनती नहीं और आलसी तो आलसी वह डरपोक भी है। घबराता है कि कहीं..शायद पहली बार अपने टिपियाने से संतोष नहीं हुआ था।
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लागी लागी रे
नजर तेरी चीज पर .
अरविन्द जी, जे ठीक नहीं। ;)
लेकिन डायरी के मारों को मिला कर आप ने अच्छा किया।
खूबसूरत यादों से भरा एक पन्ना !
जवाब देंहटाएंयहाँ आना बहुत अच्छा लगा.
कुछ यादें ऐसी होनी ही चाहिए, जिन्हें कभी कभी याद करके अपने पलों को खुशनुमा बनाया जा सके।
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बहुत ही सुन्दर यादों का एक-एक पल संजोया हुआ डायरी से निकाल कर ब्लाग पर लाने के लिये बधाई ।
जवाब देंहटाएंपुराने सफों को फिर से पढना हमेशा एक नया एहसास देता है...........अपने डायरी के एक सफ्फे को खोल कर हम सबको अपने भूत पर सोचने के लिया विवश कर दिया..........
जवाब देंहटाएंbaht achcha laga yeh diarynama..... ek ek pal sanjoya hua hai................
जवाब देंहटाएंaapko deepawali ki haardik shubhkaamnayen......
कई अहसास तो बहुत नियमित अन्तराल पर आते रहते हैं। आप सचेत हैं तो गणना कर सकते हैं कि फलाना वाला अहसास आने वाला है। प्रीमोनीशन होता है न?!
जवाब देंहटाएंमुझे तो होता है। अपने मूड्स का भी होता है!