किसी भी पोस्ट को पढने के बाद मन में जो भी विचार उठते हैं , उनका सम्प्रेषण ही टिप्पणी है ....कलम के धनी साहित्यकारों और इस आभासी दुनिया से दूर काफी नाम कमा चुके लेखकों और लेखिकाओं को टिप्पणी मिलने या नहीं मिलने से कोई फर्क नहीं पड़ता ...मगर जिन्होंने ब्लॉग के माध्यम से ही अपने आप को अभिव्यक्त करना सीखा हो तो लिखने के बाद उसकी प्रतिक्रिया जानने की उत्सुकता रहती ही है ...टिप्पणी से प्राप्त विचारों और सुझावों से अपनी सोच को और व्यापक करने का तथा लेखन में सुधार लाने का हौसला मिलता है...
मैं ज्यादा दूर क्यों जाऊं ...अपना ही उदाहरण पेश ना कर दूँ ...!!
अख़बारों में पढ़ा था कि गूगल ब्लॉग लेखन की निःशुल्क सुविधा उपलब्ध कर रहा है ....तो बस ऐसे ही पहुच गयी एक दिन ब्लॉगर.कॉम पर ...सोचा ...ब्लॉग बना कर देखते हैं...महज कौतुकवश ही...कई दिन बीत गए उसमे यूँ ही सुधार करते ...इस बीच दूसरों के ब्लॉग पढ़ती रही ...मगर लम्बे समय तक साहस ही नहीं हुआ कि उनपर कमेन्ट कर सकूँ ...यूँ तो पढने लिखने का शौक बहुत पुराना था मगर लेखन सिर्फ डायरी तक ही सीमित था ...या बच्चों के विद्यालय में होने वाले वाद विवाद और निबंध प्रतियोगिता में उनकी मदद करते हुए लिखने तक ...२-३ साल तक एक पत्रिका के लिए हल्का- फुल्का सम्पादकीय भी लिखा था, मगर इधर कुछ वर्षों से लिखना बिलकुल बंद सा हो गया था ...अपनी लिखी कवितायेँ आदि अपने एकाध खास मित्रों के अलावा किसी से कभी शेयर नहीं की थी ...एक दिन ब्लॉग पर कुछ लाईंस लिख ही डाली ...और लिख कर भूल गयी ...२-३ बाद अचानक देखा तो इतनी सारी टिप्पणीयांऔर स्वागत सन्देश ... और लिखने का हौसला मिला....फिर धीरे धीरे फोलोअर्स बनते गए और टिप्पणीयां भी ....जिनमे अक्सर लेखन और ब्लॉग सम्बन्धी सुझाव मिलते रहे ....और इन टिप्पणी का ही असर है कि एक साधारण गृहिणी की जिंदगी जीते पहली बार किसी अखबार में अपनी लिखी कविता भेजने का साहस कर पायी ...तो मेरे लिए तो ये टिपण्णीयां किसी वरदान से कम नहीं है ..क्या अब भी आप कहेंगे कि टिपण्णी देने के लिए ही टिपण्णी करना सही नहीं है ...कौन जाने ये टिप्पणी कितनी छुपी हुई प्रतिभाओं प्रोत्साहित कर सामने आने का मौका और हौसला प्रदान कर दे ...इसलिए टिप्पणी तो जरुर की जानी चाहिए ...भले बिना पढ़े की जाए ....मुझे इसमें कोई बुराई नजर नहीं आती ...!!
अब कई बार किसी सार्थक बहस के बीच भी हास्य उपजता ही है ....ये जरुर है कि कई लोग उसे व्यक्त नहीं करते और अपनी गंभीरता प्रकट करते हुए टिप्पनी कर देते हैं और कई हास्य प्रधान लोग इस पर चुटकी लेने से बाज नहीं आते ...क्या सार्थक और गंभीर विषय रोते धोते या दार्शनिकता से ही उठाये और निपटाए जा सकते हैं ....!!
हंसी आपको कब कहाँ और कैसे आ जायेगी ...यह कोई निश्चित नहीं है ...यदि हो तो मशीनीकरण होते हुए इसका वास्तविक आनंद ही समाप्त हो जाएगा ... सड़क पर चलते हुए कोई अचानक किसी से टकराकर गिर जाए , कोई सभ्य इंसान सूट-बूट में सज धज कर जा रहो और उसके कपड़ों या सर पर या कौवा बींट कर दे , राह चलते किसी के कपडे कही अटक कर फट जाए , क्या ऐसे मौके पर बहुधा हंसी नहीं आ जाती है ...और कई बार तो शिकार व्यक्ति खुद भी हंस पड़ता है ....नियम के अनुसार तो ये तो बहुत गंभीर बात है कोई बेचारा सड़क पर गिरा पड़ा और आप हंस रहे हो , कौवे ने किसी की दुर्गति कर दे आप फिर भी हंस रहे हो ....मगर क्यूंकि हास्य तनाव और परेशानी से निजात दिलाने की एक प्रमुख क्रिया है ...मौके बेमौके गंभीर बातों पर हंसी आ जाती है और आप सामान्य होकर परेशानी से निजात पाने का तरीका ढूँढने लग जाते हो ...क्या हास्य वाकई इतनी ज्यादा आलोचना किये जाने योग्य है....
जीवन में हास्य ...यहाँ देख सकते हैं कि अवसाद से मुक्ति पाने के लिए जीवन में हास्य चिकित्सा का रूप ले चुका है ...
ब्लॉग लेखन करते , पढ़ते और उन पर टिपण्णी करते हुए ब्लोगर्स के बीच एक रिश्ता सा बन जाता है ....इसी कारण उनके बीच अनौपचारिकता कायम हो जाती है ...ऐसे में कई बार गंभीर अथवा सार्थक लेखों पर भी हलकी फुलकी हास्यात्मक टिप्पणी आ ही जाती है ...जब तक इस तरह की हास्यात्मक टिप्पणी किसी को लक्ष्य बना कर ना की जाये...मुझे नहीं लगता कि यह कोई आपत्तिजनक कार्य है ......बिलकुल नहीं ...बस यह ध्यान रहे कि कोई हमारे मजाक से परेशान , दुखी या लज्जित ना महसूस करे ....
तो बंधु , बांधव , सखा , सखियों ...जी खोल कर टिपियायें...हंस हंस कर टिपियायें ....बिना पढ़े टिपियायें , चाहे जैसे टिपियायें ...मगर टिपियायें जरुर ...!!
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अरे मैडम जी,
जवाब देंहटाएंहमको तो आपको पढने भी उतना ही आनंद आता है जितना की आपको टिपियाने में...और सच कहें तो जबसे आप आयीं हैं हमरी ज़िन्दगी में बहार ही बहार है....बाहर ही बाहर नहीं बहारही बहार....
और इ बात तो एकदम परफेक्ट है..हँसना जीवन में महा ज़रूरी है.....और हमको तो बिना हंसी-मज़ाक ठीके नहीं लगता है न...जबतक दू-चार को चिढ़ा नहीं लेते हैं ..जीवन में रस बुझाता ही नहीं है....हाँ उ प्राणी का झेलने का कैपसिटी भी जान लेते हैं नहीं तो कहीं बैक फायर कर गया तो :):)
भाई हम को टिपण्णी चाही....काहे की समीर जी और महफूज़ मियाँ को हराना है ...हा हा हा...
अरे टिपण्णी पढने से ऐसा लगता है जैसे लोग हैं हमारे साथ, हम मैदान में अकेले तलवार नहीं भाँज रहे हैं......अरे यही तो एक तरीका है, बताने का किसी को कि हम आपके साथ हैं...नहीं तो पता कैसे चलेगा इस आभासी दुनिया में कि आपके विचारों से लोग सहमत हैंया असहमत हैं...और सारा टंटा ही टिपण्णी का है... टिपण्णी देकर दोस्त बना लो, टिपण्णी देकर दुश्मन...टिपण्णी से बदला ले लो और टिपण्णी से पास बुला लो...कितना कलरफुल है ई टिपण्णी की दुनिया.....इसलिए हमको भी चाही भाई टिपण्णी....आपलोग पढ़िए की मत पढ़िए ..मगर टिपण्णी ज़रूर दीजिये...
और ई रही हमारी टिपण्णी आपके नाम...सम्हालियेगा....!!!
आत्म-manthan
जवाब देंहटाएंfrom aatm-manthan by Mansoor Ali
"आत्म-मन्थन"
"उधार का ख़्याल"* है?
नगद तेरा हिसाब कर्।
भले हो बात बे-तुकी,
छपा दे तू ब्लाग पर्।
समझ न पाए गर कोई,
सवाल कर,जवाब भर्।
न तर्क कर वितर्क कर,
जो लिख दिया किताब कर्।
न मिल सके क्मेन्टस तो,
तू खुद से दस्तयाब* कर्।
तू छप के क्युं छुपा रहे,
न 'हाशमी' हिजाब* कर्।
-मन्सूरअली हाशमी
*1-उधार क ख़्याल =Borrowed thought
*2-उपलब्ध
*3-पर्दा
http://mansooralihashmi.blogspot.com
आपने यह बिलकुल सच कहा" टिपण्णी से प्राप्त विचारों और सुझावों से अपनी सोच को व्यापक करने का तथा लेखन में सुधर लाने का हौसला मिलाता है . "
जवाब देंहटाएंनहीं ,टिप्पणी की चाह हर जेनुईन रचनाकार को होती है मगर कभी कभी कुछ मुद्दे महज टिप्पणियों की ही दरकार/चाह नहीं रखते .....
जवाब देंहटाएंमनोविनोद मनुष्य की बौद्धिकता का ही एक उभय उत्पाद है मगर इसके लिए एक ख़ास किस्म की महीन समझदारी जरूरी है नहीं तो हंसी हंसी में बडेर( विघ्न ) पड़ते देर नहीं लगती
बहुत अच्छा लिखा है आपने !
बहुत जरुरी है टिप्पणी, बिल्कुल सही कहा है, ब्लॉगर्स का प्रोत्साहन बड़ाना जरुरी है भले ही वे नये हों या पुराने ।
जवाब देंहटाएंलिजीये एक तो रसगुल्ला ऊपर से मलाई चढा के , माने जी ये कि एक तो वाणी जी ऊपर से अदा जी , जब सब आपे दुनु ठेल दीजीएगा तो हम लोग का कहेंगे । सब बात से सौ टका सहमत , मगर बिना पढे न जी न ......ई कैसे करें ....हमको नहीं बुझाता है .....और पढने के बाद लगता है कि ...कई जगह पर बिना टीपे ही रह जाना पडता है ....क्योंकि कई बार मौन जरूरी होता है , वैसे आज बहुत सारी बातें बता दी आपने । अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंहांय, इतनी बढ़िया अपील, इतने अच्छे विचार और मात्र दो टिप्पणी
जवाब देंहटाएं!
बहुत बेइंसाफी है यह
!!
सच कहूं तो मुझे उन ब्लागों पर टिप्पणी करने से डर लगता है जिनमें ब्लागर की पहचान एकदम छुपी हो.
और उस पोस्ट पर टिप्पणी न मिलने बहुत दु:ख्ा होता है जिस पर मैने बहुत मेहनत की हो्.
टिप्पणी किए जाता हूं, टिप्पणी पाने की धुन में
जवाब देंहटाएंधड़कती पोस्टों में देशनामा के तराने लिए...
(आगे गाने की डूडलिंग मुझे नहीं आती, इसके लिए अदा जी की इजाज़त से संतोष शैल जी से संपर्क किया जाए)
जय हिंद...
हम तो आपकी विचारधारा से सहमत हैं पर अति ज्ञानप्राप्त लोगों को यह बात पचती नही है. और हम ठहरे अज्ञानी. सो क्या कहें?
जवाब देंहटाएंरामराम.
नये रचनाकार के लिए टिप्पणी एक प्रोत्साहन जैसा होता है उसके पास और कोई भी विषयवस्तु नही होती जो उसे बल दे या सुधारे इसके लिए सबसे उपयुक्त टिप्पणी है हाँ इसके लिए कोई और चाह नही होनी चाहिए और यह स्वेच्छिक होनी चाहिए...
जवाब देंहटाएंपढ़ कर आनन्दित भए।
जवाब देंहटाएंअब मेरे फिसलने पर कोई हँसेगा, ताना देगा तो नहीं खिसियाएँगे :)
टिप्पणी को ऐसे लिखें - टि+ प्प+ णी
'प' को डेढ़ा करना है 'ण' को नहीं ।
__________________________
वैसे टिप्पणी सूखाग्रस्त मेरे ब्लॉगों पर आप की टिप्पणियाँ सोंधी बारिश सी लगती हैं।
बात तो ठीक कहती हैं।
जवाब देंहटाएंवाणी,तुमने तो हम सब नए ब्लोगरों के दिल की बातें लिख डालीं..(दिल का दर्द पढ़ा जाए :))..टिप्पणी से लेखक का उत्साह बढ़ता है और एक आत्मविश्वास भी आता है कि उसका लिखा पढ़ा जा रहा है.कई बार टिप्पणी से लेख की त्रुटियाँ भी पता चलती हैं.और सुधार की गुंजाईश भी होती है.
जवाब देंहटाएंये बातें सब जानते हैं,पर टिप्पणियों में भी थोड़ी राजनीति तो है...पढ़ें चाहे सबको पर टिप्पणी अपने कुछ ख़ास ब्लोगर्स को ही करते हैं,कितने लोगों ने ही मुझे बताया है कि फलां फलां आपकी सारी पोस्ट पढता है...पर टिप्पणी तो हमने कभी देखी नहीं...लोग यह भी बोलते हैं,अरे कमेंट्स पर ना जाइए..आपको लोग बहुत पढ़ते हैं...पर ये silent readers का वेश मुझे समझ में नहीं आता.अजय जी कह रहें हैं कहीं कहीं मौन रहना जरूरी होता है...मेरी पोस्ट्स का जिक्र अक्सर ये अपनी चर्चा में करते हैं..पर कमेंट्स तो नहीं लिखते...मेरा लिखा इन्हें मौन कर देता है..इतना घातक है :)
बहुत बेहतरीन लिखा है आपनें .
जवाब देंहटाएंटिप्पणी की चाह हर किसी को है और यह सम्बल प्रदान करती है.
कुछ दिन पहले मैंने अपने एक मित्र को एक लिंक भेजी, उसके पास शायद समय न था, उसको पढ़ने का। उसने कहा कि टिप्पणी कर देता हूँ। मैंने कहा हर्गिज नहीं, मुझे टिप्पणियों का मोह नहीं। उसने कहा कि स्वामी विवेकानंद तो बिना पढ़े टिप्पणी करते थे, तो मैंने कहा मुझे विवेकानंद नहीं चाहिए। मुझे टिप्पणियों से बेहतर लोग चाहिए, पाठक चाहिए, मार्ग प्रदर्शक चाहिए। आपकी जानकारी के लिए बता दूँ, ब्लॉग जगत में 89 फीसदी टिप्पणीकार विवेकानंद हैं।
जवाब देंहटाएंसच कहा है ट्टिपणी,जरिया-ए-सँवाद.
जवाब देंहटाएंसारे ब्लागर सहमत हैं, इस पर नहीं विवाद.
इस पर कहाँ विवाद, किन्तु हे बन्धु जान लो.
सार्थक हो सँवाद, बात इतनी सी मान लो.
इस साधक ने जो भी कहा है, सच कहा है.
सँवादों का मार्ग ट्टिपणी, सच कहा है.
आपकी बातों से शत-प्रतिशत सहमत हूं। अब झूठ क्यूं बोलूं कि टिप्पणी की चाहत नहीं और मैं बस यूं ही लिखता हूं।
जवाब देंहटाएंऔर हास्य ... लोग हास्य को सिर्फ उसी रूप में क्यूं नहीं लेते। नाराज़ होकर लम्बा-चौड़ा आलेख लिख डालते है कि रोना ही आ जाए।
एकांत श्रीवास्तव जी की पंक्तियां कुछ परिवर्स्मतन के साथ पेश है –
टिप्पणियों का काम जुड़ना और जोड़ना है
वे जहां भी हो जैसी भी हों
अपना काम कर रही हो
संभव है, किसी दिन के पुल की तरह
दिखाई दे किसी उद्दभ नदी के ऊपर
दो ब्लॉगरों को जोड़ती हुई
ये भी संभव हो कि वे अदृश्य हों
और दो ब्लॉगरों को जोड़ रही हो।
टिपण्णी पर आपकी टिपण्णी बहुत अच्छी लगी एकदम सही कहा ... .. लेकिन जानती हैं ! गिनती करने में बहुत ही मज़ा आता है .. अदा कि तरह ही !लीजिये अब संभालिये और फुर्सत हों तो लम्हा लम्हा पर भी मेहरबान होईये .
जवाब देंहटाएंटिप्पणी कर फिर टिप्पणी पा ..यही देखा है जी इस ब्लॉग जगत में ...:)हम भी आपकी इस विचार धारा से पूरी तरह सहमत है
जवाब देंहटाएं@ girijesh rao ji,
जवाब देंहटाएंटिप्पणी लिखने का सही तरीका बताने का बहुत आभार ...अब मुझे tippanniyan और tippaniiyon को भी संधिविच्छेद के साथ लिखना सिखाएं ....!!
@ ताऊ रामपुरिया जी ,
जवाब देंहटाएंआपके कमेंट्स हमेशा ही हौसला बढ़ाते रहे हैं ...मुझे याद है शुरआती फोलोअर्स और कमेंट्स करने वालों में आप भी शामिल हैं ...बहुत आभार ...!!
@स्वप्न मञ्जूषा अदा जी ,
जवाब देंहटाएंआपको धन्यवाद कहूँ.... कभी नहीं ....:):)
दिन दुनी रात चौगुनी प्रगति तो आपके आने के बाद हुई है ....मगर ...आपका आभार हरगिज नहीं ...!!
बिल्कुल सहमत हूँ आपसे , टिप्पणी दे टिप्पणी ले यही तो होता है यहाँ । बढिया प्रस्तुति रही आपकी
जवाब देंहटाएं@ अरविन्द मिश्राजी , गिरिजेश जी ,
जवाब देंहटाएंआप लोगो का स्नेह और मार्गदर्शन इसी प्रकार मिलता रहे ...बहुत आभार ...
@ रश्मि रविजा ,
जवाब देंहटाएंहमारे दिल से आपके दिल का दर्द मिला ...
क्या खूब मिला ...!!
वाणी जी मेरे मन की बात लिख दी मगर मैं तो पढ कर टिपियाति हूँ और खूब टिप्पियाती हूँ बदले मे टिप्पणी पाती भी हूँ । कई बार ब्लागवाणी पर नहीं जा पाती बस अपनी आय़ी तिप्पणिया काफी हो जाती हैं टिप्पियाणे मे । बधाई और शुभकामनायें
जवाब देंहटाएं@ विवेक रस्तोगीजी , अजय झाजी , देवेन्द्रजी , खुशदीपजी, विनोद पांडेयजी, उन्मुक्तजी , मनोज मिश्राजी , साधकजी, मनोज कुमारजी , प्रज्ञा पांडेयजी , रंजना भाटियाजी,
जवाब देंहटाएंसहमत होते हुए टिप्पणी कर हौसला बढ़ाने के लिए बहुत आभार ...!!
@ कुलवंत जी ,
जवाब देंहटाएंबिलकुल ही पढ़े बिना तो टिप्पणी संभव ही नहीं है ...हाँ पूरा आलेख गौर से पढना या सरसरी निगाह से देखना जरुर हो सकता है ...विचार व्यक्त करें काबहुत आभार ..!!
@ मंसूर अली जी ,
जवाब देंहटाएंसमझ न पाए गर कोई,
सवाल कर,जवाब भर्...
जी हाँ ...बिलकुल यही करेंगे ...
आपकी इस सुन्दर कविता का बहुत आभार ...
आज तो हम खुद को ही टिपिया कर टिप्पणी बढ़ाएंगे ....!!
bina padhe kisi rachna par tippani karna sahi nahi hai..or padhne ke baad bhi agar lekhan aapko prabhavit karta hai to hi tariif karni chahiye ..sirf kisi ka man rakhne ke liye tippni karna mere vichar se jayaj nahi hai ..jo acche lekhak hai unhen chahiye ki naye rachnakaro ka protsahan karen unki galtiyo ko sudharne ka priyas karen na ki unki galtiyo par wah-wah karen ..
जवाब देंहटाएंYes i am agri with kulwant ji,
जवाब देंहटाएंpar aapka ye lekh bahut ki pyara aur gyanvardhak laga. badhai.
@निर्मला कपिला जी ,
जवाब देंहटाएंमैं जानती हूँ आप पढ़ कर ही टिपियाती हैं ...आप इसी तरह हौसला बढाती रहे ... बहुत आभार ..!!
बिल्कुल बुरा नहीं है जी!
जवाब देंहटाएंन तो टिप्पणी करना बुरा है और न ही टिप्पणी की चाह रखना बुरा है।
TRP बढ़ाने के लिये कई प्रकार के हथकंडे अपनाने के विषय में क्या विचार हैं आपके?
सहमत हूं आपसे
जवाब देंहटाएंमत पर ध्यान मत दें
टिप्पणी हल्की हास्य प्रधान आनी चाहियें
इस पर भी मत दें
कुछ लोग नहीं चाहते कि
उनकी गंभीरता पर हंसाया जाये
पोस्टों पर खिलखिलाया जाये
हंसी का एक फूल खिलाया जाये
पर हम तो मानेंगे नहीं
हंसाने से
हंसने हंसाने के दीवाने हैं
लड़ जायेंगे जमाने से।
प्रोत्साहन का हर क्षेत्र में अपना वजूद है, और कुछ चीजें, रचनाएँ,प्राप्य ऐसी होती हैं कि हम अनायास बोल पड़ते हैं.....
जवाब देंहटाएंऔर इसके लिए किसी परिश्रम की आवश्यकता नहीं
सहमत हैं आपसे।
जवाब देंहटाएंvani ji
जवाब देंहटाएंtippni karna aur tippani pana dono ki jagah bahut hi aham hai aur aapne is lekh ke jariye inki upyogita par bahut hi sundarta se prakash dala hai........aapne jo shuru mein likha sach vaise hi to mere sath bhi hua.........shaukiya hi to shuru kiya likhna sirf apne liye magar dheere dheere ismein bhi ek naya ras milne laga, na jane kitne naye dost ban gaye aur yahan ek naya ahsaas hua ............to kahne ka matlab sirf itna hai ki tippniyon ki apni mahtta hai aur use nakara nhi ja sakta.
किसी लेख पर कोई टिप्पणी नहीं मिलती है तो कई बार सोंचना पडता है .. टिप्प्णी करना लेखकों को हौसला अवश्य देता है .. सहमत हूं आपसे !!
जवाब देंहटाएंलेकिन टिपण्णियो की भूख नही होनी चाहिये, टिपण्णियां अन्य लोगो दुवारा मिलनी चाहिये, नकली प्रोफ़ाईल बना कर खुद ही टिपण्णियो की संख्या बढाने से हम धोखा किसे दे रहे है, बस इस बात से बचे तो बहुत अच्छा है, आप के लेख से सहमत हुं.
जवाब देंहटाएंहम भी बिना पढे ही टिपया रहे है
आपका कहना सही है ........ टिप्पणिया प्रोत्साहित करती हैं ........ और वैसे भी जिसमें खुशी मिले वो काम तो करना ही चाहिए .... आपके कुछ लिख भर देने से अगर किसी को खुशी मिल सके तो बुराई क्या है देने मैं .......... दिल खोल कर दीजिए ........
जवाब देंहटाएंटिप्पणी तो आवश्यक है , माध्यम की शक्तियों को देखते हुए ..
जवाब देंहटाएंपर , आत्म-समीक्षा (उभयपक्षीय) का धर्म इसमें निहित होना चाहिए ..
blog to make people aware of what you think and dont even bother if you dont get one comment because whne we start bothering about the number of comments we should get we deviate from the actual reason of why we came to blog
जवाब देंहटाएंif someone is bloging to make new relationships then they should be worried about how to build new bridges thru comments that will helpo them to make new relationships
on the other hand if someone wants to write on the day to day issues and write on problems in society then for them the issue is important then the comment
content of the post is more important then the comment on the post
AGAR AAP YE LIKHTI KE KYU NAHI AISI KOSHISH KARE KE AISA LIKHE JISE PADHKAR KOI BHI ANJAAN AADMI BHI AAPKO TIPPANI DE TO BAAT SAMJH ME AATI KYUMKI AAPKE BLOG MITR TO AAPKO HAR BAAT PE VAAH VAAHI DEGE .CHAHE AAP KUCH BHI LIKH DE .
जवाब देंहटाएंPAR KYA SACHMUCH ANDAR SE MAN KE BHEETAR SACCHE DIL SE US BAAT SE AAP KHUSH HOGI ?
TIPPANIYA KISI LEKH KI QUALITY NAHI HAI .
@ अवधिया जी ,राज भाटिया जी , अमरेन्द्रनाथ जी , रचना जी ,तरन्नुम जी ,
जवाब देंहटाएंआपका कहना सही है कि टिप्पणी TRP बढ़ाने के लिए नहीं मांगी जानी चाहिए ...मगर कई ज्वलंत मुद्दे और विचार टिप्पणी के आभाव में खो जाते हैं ....ये तो आप भी मानते ही होंगे ....
@ अविनाश जी , रश्मि प्रभा जी , अनिल जी , वंदना जी , संगीता जी , दिगंबर नस्वा जी ,
जवाब देंहटाएंटिप्पणी की महत्ता को आपने स्वीकार किया ...आभार ...अब ये टिप्पणी का ही तो कमाल है कि टिप्पणी की बजाये टिप्पणी सीख पाए ....
बहुत आभार ....!!
मैं भी ब्लॉग लेखन में टिप्पणी के महत्व को मानती हूँ, कम से कम शुरू में तो।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
आपकी ये बात तो बिल्कुल सही है कि...प्रत्येक रचनाकार अपने लिखे पर टिप्पणी की अकाँक्षा रखता है..ओर ये बात भी सही है कि आपसी रिश्तों में अनौपचारिकता के कारण अमूमन किन्ही गंभीर लेखों पर हल्की फुल्की हास्यात्मक टिप्पणी हो ही जाती है किन्तु कईं बार ऎसा भी होता है कि ऎसी टिप्पणी एक सार्थक,गंभीर मुद्दे के विषयांतर का कारण बन जाती है...जिससे कि हमें बचने का प्रयास करना चाहिए!
जवाब देंहटाएंपर टिप्पणी तो हमने कभी देखी नहीं...लोग यह भी बोलते हैं,अरे कमेंट्स पर ना जाइए..आपको लोग बहुत पढ़ते हैं...पर ये silent readers का वेश मुझे समझ में नहीं आता.अजय जी कह रहें हैं कहीं कहीं मौन रहना जरूरी होता है...मेरी पोस्ट्स का जिक्र अक्सर ये अपनी चर्चा में करते हैं..पर कमेंट्स तो नहीं लिखते...मेरा लिखा इन्हें मौन कर देता है..इतना घातक है :)
जवाब देंहटाएंप्रिय रश्मि जी , आपने मुझे संबोधित करते हुए शायद ऐसा दूसरी बार कहा है , अब देखिए आप खुद ही मानती हैं कि मैं अपनी चर्चा में आपकी पोस्टों को शामिल करता हूं , और मेरी चर्चा को पढने वाले ये बात अब तक जान ही चुके होंगे कि मैं उन दो पंक्तियों में ही पोस्ट का सार रखने की कोशिश करता हूं , हां चर्चा तैयार करते समय टीप नहीं पाता मगर इससे इतना तो आपको पता चल ही गया होगा कि आपके लेखों को मैं पढता जरूर हूं । अब बात आपकी मौन रह जाने संबंधी शिकायत की तो नियमित रूप से जब ब्लोगजगत की उठापटक से रूबरू होंगी न तो आपको भी लगेगा कि कुछ स्थानों पर उर्जा नष्ट करने से बेहतर है कि उसे बचा लिया जाए । आशा है कि आपको अब शिकायत नहीं होगी , भई क्या किया जाए कि आपकी शिकायत दूर हो ...????
मैं आपके विचारो से सहमत हूँ। नया हूँ हिंदी ब्लॉग जगत में परन्तु "टिप्पणियो" पर "आक्रमण" होते हुए देख रहा हूँ। कईं ब्लोग्स पर जा रहा हूँ पिछले कुछ दिनों से, काफी अच्छे अच्छे लेख, कविताये और वक्तव्य पढने को मिल रहें हैं। नया हूँ, टिपण्णी करने के लिए भी ज्ञान की जरुरत लगती हैं, इसलिए अभी टिप्पणिया देने से थोडा सा परहेज कर रहा हूँ। पर जहाँ बात लगती हैं वहां टिपण्णी जरुर करता हूँ। टिपण्णी करने में कोई बुराई नहीं। हाँ यह जरुर हैं बिना पढ़े टिपण्णी न ही करी जाये तो बेहतर होगा, लेखक और टिपण्णीकार दोनो के लिए........सब सार्थक लिखे और सार्थक टिप्पणिया करे।
जवाब देंहटाएंयूं लिखा जाये मानो आप संवाद कर रहे हों। अगर पाठक को बांधा जाये तो टिप्पणी किये बिना जायेगा कहां गरीब!
जवाब देंहटाएंआलेख को प्रतिक्रिया से तलाक दिलाने का ख्याल ही समझ से परे है ! अगर पाठक और टिप्पणियाँ नहीं चाहिए तो आप अपनी रचना सार्वजनिक रूप से प्रकाशित ही क्यों करेंगे ?
जवाब देंहटाएंजो ज्ञानी स्वान्तः सुखाय लिखते हों उन्हें सार्वजनिक प्रकाशन की जरुरत भी क्या है ?
वैसे जो लोग खास किस्म के पाठक और प्रतिक्रिया चाहते हैं वे ऐसा करे तो हमें क्या लेना देना !
आपके आलेख और आपकी साफगोई को सलाम ! आपकी फीलिंग्स से हजार प्रतिशत सहमत !
चटका/Comments!
जवाब देंहटाएंचटके का झटका
वाणी मेरी पढ़के उसने आज एक चटका दिया,
अर्थ उनके शब्दों का में ढूंढ़ता ही रह गया,
वो लिखे कि- इतने सुन्दर,कितने सुन्दर आप है,
इस बुढापे में ये कितनी ज़ोर का झटका दिया.
अब ब्लागों पर लगी तस्वीर का मैं क्या करू,
छप गई; हटती नहीं मुझसे दुबारा क्या करू,
Mail पर भी तो वो आने लगे है आजकल,
थोड़ा-थोड़ा मुझको भी भाने लगे है क्या करू?
नेट पर छपना भी अब तो छोड़ देना चाहिए,
रिश्ता-ए-कागज़ कलम फिर जोड़ देना चाहिए,
नेट के रिश्तो से डर लगने लगा है आजकल,
टिप-टिपाकर pass है ;अब 'मोड़' देना चाहिए.
-मंसूर अली हाशमी
अरे मुझे तो बहूत अफ़सोस हो रहा है ५० टिप्पणी के बाद मैंने आपकी पोस्ट पढ़ी पता नहीं देर कैसे हो गई ?
जवाब देंहटाएंपर कोई बात नहीं अपनी सी ही बात लगी और इतनी खुबसुरत५० टिप्पणिया पढने को मिली |यही तो हमारी पूंजी है जो हमे आश्वस्त रखती है कि हां आपके साथ है |मैंने भी करीब दस साल बाद ब्लॉग से लेखन फिर आरम्भ किया जिसमे मेरी बहू ने मुझे प्रोत्साहित किया और मेरी गुरु भी बनी |और इस ब्लॉग और पर आई प्रतिक्रियाओ ने बहूत से अच्छे साथियों का उपहार में दिया जिसमे एक आप भी है |
शुभकामनाये |
धन्यवाद
पूरा आलेख आपने कितनी मेहनत से लिखा या जो कवितायें आप लिखती हैं...मैं पढ़ूं और फिर "nice" लिख कर चलता बनूं,,,क्या इसे भी आप टिप्पणी में गिनेंगी, मैम।
जवाब देंहटाएंबगैर पढ़े भी टिप्पणी देने की वकालत कम-से-कम मुझे तो हजम नहीं। वो तो वैसे भी नंबर आफ विजिटर्स से पता चल ही जाता है कि कितने लोगों ने अपके पोस्ट को देखा है। टिप्पणी की दरकार है, मगर पता चले कि हमने जो लिखा है उसे उस टिप्पणी वाले ने पढ़ा भी है या नहीं...यहां तो आप किसी समस्या पर लिखीये तो कोई "अच्छी रचना" कह कर बधाई दे देगा तो कोई nice लिखकर रस्म निभा देगा।
टिप्पणी की दरकार है, मगर जब वो सिर्फ रस्म-अदायगी बन जाये तो कष्ट होता है।
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमेरी विचारधारा को शब्दों में बाँधने के लिए बहुत आभार एवं साधुवाद. :)
जवाब देंहटाएंइस बार बड़े कायदे से, ध्यान से पढ़कर टिप्पणी दी जा रही है. हा हा!!
पूरी तरह सहमत.. बीच में कुछ पंक्तियाँ इसी विचारधारा के पोषण के लिए चलाई थी:
मुझसे किसी ने पूछा
तुम सबको टिप्पणियाँ देते रहते हो,
तुम्हें क्या मिलता है..
मैंने हंस कर कहा:
देना लेना तो व्यापार है..
जो देकर कुछ न मांगे
वो ही तो प्यार हैं.
-अपनी मातृ भाषा से प्यार करिये और उसे जाहिर करिये-
आईये, साथ जुड़िये..इस संदेश को विस्तार दिजिये..इसे अपने हस्ताक्षर बनाईये. कम से कम आपसे तो यह आशा कर ही सकता हूँ...
वाणी जी दिल से लिखी आपकी इस पोस्ट ने दिल खुश कर दिया. ब्लोग मै भी लिखता हू. टिप्पणी मिलती है तो खुश भी हो लेता हू क्योकि खुशी के वहाने खोजना मेरी फ़ितरत मे है लेकिन अपनी खुशी के लिये लिखता हू
जवाब देंहटाएं@ कुल्वन्त जी विवेकानन्द जी के बारे मे थोडा हल्के मे कह गये. हमने थोडा सा पढा है विवेकानन्द जी को और बिना पधे टिपियाने का उनका कोई प्रसन्ग भी नही सुना. वो बहुत तेजी से पढ लेते थे और पढे को कन्ठस्थ कर लेते थे ये उनके दुर्लभ गुण थे. आपकी वय कितनी है पता नही पर उनके नाम के बाद जी या पहले स्वामी लगा देते तो शायद आपका लिखा हुआ कुछ शोभायमान हो जाता.
पुनस्च: कुलवन्त जी से मेरा कोई व्यक्तिगत बिरोध नही है और इसे किसी नये विवाद का आधार नही बनाया जाये.
"मिले टिप्पणी तुम्हारी
जवाब देंहटाएंतो पता चले कुछ हमारा"
निंदक नियरे राखिये की धुन पर .
केवल बेनामी से है थोड़ा किनारा
हो सकत है उनकी भी कुछ मजबूरिया हो
टिप्पणियों के सम्बन्ध में आपके विचारों से १००%सहमत |
जवाब देंहटाएंटिप्पणियाँ हिंदी चिट्ठाजगत के विकास लिए अति आवश्यक है |
दी... टिप्पणी करना या पाने कि चाह रखना बुरा नहीं है.... सार्थक टिप्पणी करने कि ज़रुरत है.... पूरी पोस्ट पढ़ कर ही टिप्पणी करना चाहिए... कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें कोई नॉलेज नहीं है... सेमी-लिट्रेट हैं... लेकिन खुद को फन्ने खान समझते हैं... अधजल गगरी छलकत जाये वाला हाल है... ब्लॉग पर आ कर खुद को सब प्रेमचंद ही समझते हैं.... और चाहते हैं कि सब उन्हें सराहें...आलोचना नहीं कोई सुन सकता... जिनके पास कोई नॉलेज नहीं है...वही लोग सारी पोस्ट खराब करते हैं.... टिप्पणी ....करना एक आर्ट है... और चाह रखना एक आस... पर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पूरी पोस्ट नहीं पढ़ते हैं... और टिप्पणी करते हैं... और पोस्ट कि चिता जला देते हैं.. .. होना यह चाहिए कि जिस पोस्ट को आप देखें तो उसे पढ़ें ज़रूर....और उस पर सार्थक टिप्पणी करें... सार्थक नहीं कर पा रहे हैं तो कुछ तो लिखें ही... हाँ टिप्पणी से किसी को परेशां मत करिए... और कोई आपको या आपके दोस्त को परेशां कर रहा है तो मूंह-तोड़ जवाब भी दीजिये...
जवाब देंहटाएंअरे हमे तो लगता था कि निरर्थक है हमारी टिप्पणियाँ सो कम टिपिया पाते थे जरा..मगर आपने कहा है तो जरूर टिपियाएंगे..हँस-हँस के टिपियाएंगे. :-)
जवाब देंहटाएंएक विचार उपजा है अभी अभी --कि क्यों नहीं नेशनल बैंक या ब्लड बैंक की तरह एक टिप्पणी बैंक की स्थापना कर दी जाए....नेशनल टिप्पणी बैंक ऑफ़ इंडिया.
जवाब देंहटाएंसब टिप्पणियाँ जो नाईस,उम्दा,बेहतरीन ,अच्छी रचना,बढ़िया.आदि किस्म की हों को सीधे उसमे जमा कर रख दी जाए.फिर टिप्पणियों से सूखे ब्लॉग पर अकाल राहत के रूप में सहायता दे दी जाए....गंभीर टिप्पणियां मनोबल बढ़ाती है इसमें संदेह नहीं है.!
vani ji aapka article tippani karne ki(matlab yaha kuchh likhne ki) himmat de raha hai varna jaise ada di tarannum ko daant rahi hai me to buri tareh se dar gayi hu. isliye jyada bakar bakar nahi karungi bhaiya sabko ram ram.
जवाब देंहटाएंमजा आया आपकी यह पोस्ट पढकर । अरे बिना प्रशंसकों के तो किसी महानायक अस्त्तिव भी नहीं होता । टिप्पणी चाहना और करना बिल्कुल स्वाभाविक है । लेकिन पढकर टिप्पणी की जाय ऐसी उम्मीद की जाती है । खासकर नए ब्लॉगरों को इससे काफी हौसला मिलता है । हॉं यदि कोई टिप्पणी नहीं कर पाया तो इसे नकरात्मक रूप में नहीं लेना चाहिए :)
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग में टिप्पणियों की ताकत किसे पता नहीं है । पढिए हिन्दी ब्लॉग्गिंग में टिप्पणी का महत्व
लेख और टिप्पणियां मजेदार हैं।
जवाब देंहटाएंटिप्पणियां चाहना कतई बुरा नहीं है। लेकिन सिर्फ़ टिप्पणियों के तमाम तरह के लटके-झटके करना लफ़ड़े वाला काम है।
टिप्पणियां आपके लेखन, व्यवहार, नेटवर्किंग आदि तमाम बातों पर निर्भर करती हैं। टिप्पणियों के बारे में बातचीत करते हुये
कुछ सूत्रवाक्य लिखे थे देखिये:
1.ब्लाग पर टिप्पणी सुहागन के माथे पर बिंदी के समान होती है।
2.टिप्पणी विहीन ब्लाग विधवा की मांग की तरह सूना दिखता है।
3.किसी पोस्ट पर आत्मविश्वासपूर्वक सटीक टिप्पणी करने का एकमात्र उपाय है कि आप टिप्पणी करने के तुरंत बाद उस पोस्ट को पढ़ना शुरु कर दें। पहले पढ़कर टिप्पणी करने में पढ़ने के साथ आपका आत्मविश्वास कम होता जायेगा।
4.अगर आपके ब्लाग पर लोग टिप्पणियां नहीं करते हैं तो यह मानने में कोई बुराई नहीं है कि जनता की समझ का स्तर अभी आपकी समझ के स्तर तक नहीं पहुंचा है। अक्सर समझ के स्तर को उठने या गिरने में लगने वाला समय स्तर के अंतर के समानुपाती होता है।
5.अनजान टिप्पणियां अक्सर खुदा के नूर की तरह होती हैं जो आपको तब भी राह दिखाती हैं जबकि आप चारो तरफ से प्रशंसा के कुहासे में घिरे होते हैं।
इसके अलावा यह भी होता है कि कई बार वे लोग टिप्पणियां नहीं कर पाते जिन्होंने आपका लेख पढ़ा और पसंद किया। इस बारे में देखिये-टिप्पणी करी करी न करी।
बहुत अच्छा लगा पढ़कर। आपकी बातों से सहमत हूं।
जवाब देंहटाएंजो स्थान साहित्य में आलोचना का है,ब्लाग में वही टिप्पणी का हो. हिन्दी ब्लागिंग टिप्पणी का एक महत्व भी है. हिन्दी ब्लागिंग एक नया पौधा है जिसे वृक्ष बनने के लिये लालन पालन की आवश्यकता है, और टिप्पणी पानी और खाद है. क्यूंकि, हिन्दी ब्लागिंग अभी बड़े सीमित दायरे में है, खुद सह ब्लागरस ही एक दूसरे के टिप्पणीकार होते हैं. विकास के बाद अंग्रेजी ब्लाग्स की तरह टिप्पणी एक स्वतंत्र प्रक्रिया होगी. ब्लागर समुदाय के अतिरिक्त. तब तक उड़्न तस्तरी, वाणी जी, अदा जी, गिरिजेश जी....(लिस्ट पूरी नहीं है) को साधुवाद कि पौधे को पानी की कमी नहीं होने देते.
जवाब देंहटाएंजो स्थान साहित्य में आलोचना का है,ब्लाग में वही टिप्पणी का हो. हिन्दी ब्लागिंग टिप्पणी का एक महत्व भी है. हिन्दी ब्लागिंग एक नया पौधा है जिसे वृक्ष बनने के लिये लालन पालन की आवश्यकता है, और टिप्पणी पानी और खाद है. क्यूंकि, हिन्दी ब्लागिंग अभी बड़े सीमित दायरे में है, खुद सह ब्लागरस ही एक दूसरे के टिप्पणीकार होते हैं. विकास के बाद अंग्रेजी ब्लाग्स की तरह टिप्पणी एक स्वतंत्र प्रक्रिया होगी. ब्लागर समुदाय के अतिरिक्त. तब तक उड़्न तस्तरी, वाणी जी, अदा जी,गिरिजेश जी....(लिस्ट पूरी नहीं है) को साधुवाद कि पौधे को पानी की कमी नहीं होने देते.
जवाब देंहटाएंलो भाई ,सारी बहन ,हमने आपके आदेश का पालन कर दिया और टिपिया दिया
जवाब देंहटाएंवैसे ये टिपियाना भी कभी कभी कमाल कर detaa है
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं@वाणी जी
जवाब देंहटाएंये महेश शर्मा कौन हैं
माफ़ कीजियेगा जरा देर से आई यहाँ पर, यकीन मानिये एकदम अपने दिल के करीब लगी आपकी ये पोस्ट...सच हम जैसे लिखने वालों के लिए ये टिप्पिनियाँ किसी वरदान से कम नहीं ...और हास्य ही जीवन का रस है पर सिर्फ तब तक जब तक वो किसी और के लिए करुण रस न बन जाये :) बहुत बधाई आपको सार्थक लेखन के लिए.
जवाब देंहटाएं@ डॉ. महेश सिन्हा
जवाब देंहटाएंसॉरी ....डॉ. महेश सिन्हा जी ...
यह हर ब्लॉगर का मौलिक अधिकार है।
जवाब देंहटाएं--------
अपना ब्लॉग सबसे बढ़िया, बाकी चूल्हे-भाड़ में।
ब्लॉगिंग की ताकत को Science Reporter ने भी स्वीकारा।
likhate ja, tippaniyo ki china mat kar ai blogar..
जवाब देंहटाएंyahi kripa hai log blog ko parhate hai aa kar..
aaj parhenge to ek din karenge ve tippanee
dheere-dheere hi jamati hai har badi kampanee.
...aur dekhiye...tippaniyon ka pahaad hi khadaa ho gaya. ye hai bloging ki udaarata. vanee se jab aah ka geet footata hai, to aisa hi hota hai. badhai. aapne logo ko badhy kar diya..ab tippaniyon ki kami nahi khalegi.
मुझे तो आज ही पता चला..इस पोस्ट के बारे में!टिप्पणी जरूर करनी चाहिए.!हम नयों के लिए तो ये संजीवनी का काम करती है...
जवाब देंहटाएंआप की बात तो कभी-कभी मैं भी सोचता हूँ.... अच्छा और सारगर्भित लेख....
जवाब देंहटाएंटिप्पणिया हौसला देती है.. छुपी प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करती है... अतः: टिप्पियाना जरुरी है.
जवाब देंहटाएंजब ठेस लगे दिल पर शिकायत दर्ज कीजिये
बहस कीजिये खुल कर अदावत ना कीजिये
ब्लॉगरी कोई खेल नहीं बस इतना ख्याल रहे
टिप्पणी कीजिये खूब कोई शरारत ना कीजिये
- सुलभ
एकदम सच्ची और सार्थक बात कही है वाणी जी आपने.
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