रविवार, 14 मार्च 2010

केवल तुम हो ...तुम

तुम
अपरिचित थे
बुरे नहीं
भले लगे थे
किन्तु
ह्रदय में एक भी
बुलबुला नहीं फूटा
कि
दृष्टि उठा कर तुम्हे देख लूं
तब
ना जाने कौन सी
किरण की इंगित
तुम्हे मेरे करीब
खींच रही थी
मेरी पीर से तुम में
पीर जगा रही थी
अब
ना जाने कौन सी रास
तुम्हे खींचती हुई
मेरे इतने करीब ले आई है
कि आश्चर्य है
तुम वही हो
जिसे तुम्हारी ख़ुशी के लिए
तुम्हारी आँखों को
उदासियों के बादल
घेर ना लें
इसलिए अपना सबकुछ दे दिया
कि
जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी
तुम
मुझे ले आये हो
एक अनजान
आँगन में
जो इस ओर से उस ओर तक
अजनबी है मेरे लिए
स्नेह और सुव्यवहार
भरे अजनबियों
वह एक
जिसने मेरे रागों के इस द्वार को
सोये से जगाया है
मेरे रागों का अपना है
वह केवल
तुम हो
तुम


खास अदाजी की फरमाईश पर पुरानी डायरी में संकलित कविताओं में से ...लेखिका का नाम याद नहीं रहा अब ....

29 टिप्‍पणियां:

  1. कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई

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  2. उफ्फ!! बहुत गहरे उतरी यह रचना!!

    वह केवल
    तुम हो
    तुम!!

    क्या बात है!!

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  3. Roop aur pravah dono me ek fabbare si hai ye kavita.. khud iska aakar dekhiyega jara.. :)

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  4. वाणी मुझे बहुत ही सुन्दर लगी यह कविता, प्रेम में पगी हुई...समर्पण और अनुराग से अंटी हुई...
    ओय खुश कित्ता तुस्सी...
    अगर कवयित्री का भी पता चल जाता तो उन्हें भी खुशामदीद कर देते हम....
    चल कोई नहीं...हमारे लिए तो तूने ही लिखा है....
    पता नहीं क्यूँ हम तो ऐसी प्रेमाभिव्यक्ति की कविता लिख ही नहीं पाते...बस हमेशा 'लाठी-बल्लम' ही करते हैं (वैसे ये तो तेरे भाई रुपी भाई का काम है हा हा हा )
    लेकिन उससे क्या...अगर लिख नहीं पाते लेकिन कमसे कम पढ़ तो पाते है और खुश तो हो पाते हैं....
    सच्ची तेरा शुक्रिया...एक बहुत ही खूबसूरत कविता पढ़वाने के लिए....

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  5. पुरानी डायरियां और भी खागालिये न ऐसे बेशकीमती मोटी ओह सारी मोती (ये गूगल भी न कुछ कुछ जानता समझता है ) और भी मिल ही जायेगें उस सीप में !

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  6. बहुत सुन्दर प्रेमाभिव्यक्ति है। बधाइ दोनो सखियों को जिसके लिये खास कर पोस्ट की गयी और जिसने पोस्ट की। वाणी की अदा भी निराली है। शुभकामनायें

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  7. वो गीत याद आ रहा है:
    ले तो आए हो हमें सपनों के गाँव में

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  8. बहुत ही संवेदी और सुंदर रचना. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  9. बहुत ही सुन्दर कविता...बिलकुल प्रेम रस में पगी हुई...

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  10. पागल हो गयीं है क्या?....इतना अच्छा कोई लिखता है भला....

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  11. @ कृष्ण मुरारी प्रसाद
    यह कविता मेरी लिखी हुई नहीं है ...मैंने संकलित की है .....
    आभार ...!!

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  12. @ अदाजी
    आपके लिखे और गाये गीतों का चयन और उसमे आपकी मिठास भारी आवाज़ ...आपकी प्रेम अभिव्यक्ति को और क्या प्रमाण चाहिए ...?

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  13. बहुत मीठी सी कविता। यह सच है कि हम ऐसे प्‍यार-व्‍यार की बात तो लिख नहीं सकते लेकिन पढ़कर आनन्‍द जरूर लेते हैं।

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  14. जिसने प्रेम किया हो वाही इन भावनाओ को महसूस कर सकता है |
    बहुत सुन्दर संकलन का मोती है |
    गर्मी की तपती दोपहरी में नीम की ठंडी छांव सी कविता |

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  15. सुगठित कविता, सुगठित भाव, सुगठित एहसास
    बेहतरीन

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  16. वाणी जी ,
    आपका संकलन बहुत अच्छा होगा...इस कविता को पढ़ कर पता चलता है...ये कविता भले ही आपने ना लिखी हो पर कहीं ना कहीं आपके दिल कि ही आवाज़ होगी...तभी तो आपने सहेजा था इसे...इस प्रस्तुति के लिए शुक्रिया

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  17. अच्छा लेखन, अच्छी पठनीयता, अच्छा व्यक्तित्व !
    संकलित रचना बेहतर रही । आभार !

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  18. नज़्म पढ़ते पढ़ते खुश हो रही थी की वाणी जी इक मुहब्बत भरी नज़्म तो लिखी .....पर नीचे पहुँचते पहुँचते पाया कि किसी और की है .... वह भी बिना नाम की .....!!

    कहीं हमें बना तो नहीं रहीं .....???

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  19. चलिए..
    जिसने भी लिखी है..
    पढ़कर भला लगा...

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