तुम
अपरिचित थे
बुरे नहीं
भले लगे थे
किन्तु
ह्रदय में एक भी
बुलबुला नहीं फूटा
कि
दृष्टि उठा कर तुम्हे देख लूं
तब
ना जाने कौन सी
किरण की इंगित
तुम्हे मेरे करीब
खींच रही थी
मेरी पीर से तुम में
पीर जगा रही थी
अब
ना जाने कौन सी रास
तुम्हे खींचती हुई
मेरे इतने करीब ले आई है
कि आश्चर्य है
तुम वही हो
जिसे तुम्हारी ख़ुशी के लिए
तुम्हारी आँखों को
उदासियों के बादल
घेर ना लें
इसलिए अपना सबकुछ दे दिया
कि
जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी
तुम
मुझे ले आये हो
एक अनजान
आँगन में
जो इस ओर से उस ओर तक
अजनबी है मेरे लिए
स्नेह और सुव्यवहार
भरे अजनबियों
वह एक
जिसने मेरे रागों के इस द्वार को
सोये से जगाया है
मेरे रागों का अपना है
वह केवल
तुम हो
तुम
अपरिचित थे
बुरे नहीं
भले लगे थे
किन्तु
ह्रदय में एक भी
बुलबुला नहीं फूटा
कि
दृष्टि उठा कर तुम्हे देख लूं
तब
ना जाने कौन सी
किरण की इंगित
तुम्हे मेरे करीब
खींच रही थी
मेरी पीर से तुम में
पीर जगा रही थी
अब
ना जाने कौन सी रास
तुम्हे खींचती हुई
मेरे इतने करीब ले आई है
कि आश्चर्य है
तुम वही हो
जिसे तुम्हारी ख़ुशी के लिए
तुम्हारी आँखों को
उदासियों के बादल
घेर ना लें
इसलिए अपना सबकुछ दे दिया
कि
जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी
तुम
मुझे ले आये हो
एक अनजान
आँगन में
जो इस ओर से उस ओर तक
अजनबी है मेरे लिए
स्नेह और सुव्यवहार
भरे अजनबियों
वह एक
जिसने मेरे रागों के इस द्वार को
सोये से जगाया है
मेरे रागों का अपना है
वह केवल
तुम हो
तुम
खास अदाजी की फरमाईश पर पुरानी डायरी में संकलित कविताओं में से ...लेखिका का नाम याद नहीं रहा अब ....
कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई
जवाब देंहटाएंउफ्फ!! बहुत गहरे उतरी यह रचना!!
जवाब देंहटाएंवह केवल
तुम हो
तुम!!
क्या बात है!!
Roop aur pravah dono me ek fabbare si hai ye kavita.. khud iska aakar dekhiyega jara.. :)
जवाब देंहटाएंवाणी मुझे बहुत ही सुन्दर लगी यह कविता, प्रेम में पगी हुई...समर्पण और अनुराग से अंटी हुई...
जवाब देंहटाएंओय खुश कित्ता तुस्सी...
अगर कवयित्री का भी पता चल जाता तो उन्हें भी खुशामदीद कर देते हम....
चल कोई नहीं...हमारे लिए तो तूने ही लिखा है....
पता नहीं क्यूँ हम तो ऐसी प्रेमाभिव्यक्ति की कविता लिख ही नहीं पाते...बस हमेशा 'लाठी-बल्लम' ही करते हैं (वैसे ये तो तेरे भाई रुपी भाई का काम है हा हा हा )
लेकिन उससे क्या...अगर लिख नहीं पाते लेकिन कमसे कम पढ़ तो पाते है और खुश तो हो पाते हैं....
सच्ची तेरा शुक्रिया...एक बहुत ही खूबसूरत कविता पढ़वाने के लिए....
पुरानी डायरियां और भी खागालिये न ऐसे बेशकीमती मोटी ओह सारी मोती (ये गूगल भी न कुछ कुछ जानता समझता है ) और भी मिल ही जायेगें उस सीप में !
जवाब देंहटाएंBahut Sundar kavita dher sari sanvednaao ko khud me samaae hue...!!
जवाब देंहटाएंAabhar
सुंदर अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रेमाभिव्यक्ति है। बधाइ दोनो सखियों को जिसके लिये खास कर पोस्ट की गयी और जिसने पोस्ट की। वाणी की अदा भी निराली है। शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंवो गीत याद आ रहा है:
जवाब देंहटाएंले तो आए हो हमें सपनों के गाँव में
बहुत ही संवेदी और सुंदर रचना. बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
bahut hi sundar prastuti.....bhavon ka adbhut sangam.
जवाब देंहटाएंsundar bhav!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर कविता...बिलकुल प्रेम रस में पगी हुई...
जवाब देंहटाएंitni achhi lagi ki barbas kuch panktiyon ko note karke rakh liya hai.......
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना.....
जवाब देंहटाएंपागल हो गयीं है क्या?....इतना अच्छा कोई लिखता है भला....
जवाब देंहटाएंरचना नें मन मोह लिया....
जवाब देंहटाएं@ कृष्ण मुरारी प्रसाद
जवाब देंहटाएंयह कविता मेरी लिखी हुई नहीं है ...मैंने संकलित की है .....
आभार ...!!
@ अदाजी
जवाब देंहटाएंआपके लिखे और गाये गीतों का चयन और उसमे आपकी मिठास भारी आवाज़ ...आपकी प्रेम अभिव्यक्ति को और क्या प्रमाण चाहिए ...?
@ भारी नहीं भरी ...मिठास भरी
जवाब देंहटाएंबहुत मीठी सी कविता। यह सच है कि हम ऐसे प्यार-व्यार की बात तो लिख नहीं सकते लेकिन पढ़कर आनन्द जरूर लेते हैं।
जवाब देंहटाएंजिसने प्रेम किया हो वाही इन भावनाओ को महसूस कर सकता है |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संकलन का मोती है |
गर्मी की तपती दोपहरी में नीम की ठंडी छांव सी कविता |
सुगठित कविता, सुगठित भाव, सुगठित एहसास
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
सुन्दर !!!!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंवाणी जी ,
जवाब देंहटाएंआपका संकलन बहुत अच्छा होगा...इस कविता को पढ़ कर पता चलता है...ये कविता भले ही आपने ना लिखी हो पर कहीं ना कहीं आपके दिल कि ही आवाज़ होगी...तभी तो आपने सहेजा था इसे...इस प्रस्तुति के लिए शुक्रिया
अच्छा लेखन, अच्छी पठनीयता, अच्छा व्यक्तित्व !
जवाब देंहटाएंसंकलित रचना बेहतर रही । आभार !
नज़्म पढ़ते पढ़ते खुश हो रही थी की वाणी जी इक मुहब्बत भरी नज़्म तो लिखी .....पर नीचे पहुँचते पहुँचते पाया कि किसी और की है .... वह भी बिना नाम की .....!!
जवाब देंहटाएंकहीं हमें बना तो नहीं रहीं .....???
चलिए..
जवाब देंहटाएंजिसने भी लिखी है..
पढ़कर भला लगा...