गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

लिख ही दूँगी फिर से प्रेम गीत ....



लिख ही दूँगी फिर कोई प्रेम गीत
अभी जरा दामन सुलझा लूं ....

ख्वाब मचान चढ़े थे
कदम मगर जमीन पर ही तो थे
आसमान की झिरियों से झांकती थी
टिप - टिप बूँदें
भीगा मेरा तन मन
भीगा मेरा आँचल
पलट कर देखा एक बार
कुछ कांटे भी
लिपटे पड़े थे दामन से
खींचते चले आते थे
इससे पहले कि
दामन होता तार - तार
रुक कर
झुक कर
एक -एक
चुन कर
निकालती रही कांटे
जो लिपटे पड़े थे दामन से ..

लहुलुहान हुई अंगुलियाँ
दर्द तब ज्यादा ना था

देखा जब करीब से
कोई बेहद अपना था...
दर्द की एक तेज लहर उठी
और उठ कर छा गयी
झिरी और गहरी हुई
टिप - टिप रिस रहा लहू
दर्द बस वहीँ था ...
दिल पर अभी तक है
उसी कांटे का निशाँ
इससे पहले कि
चेहरे पर झलक आये
दर्द के निशाँ
फिर से मैं मुस्कुरा ही दूंगी

फिर से लिख ही दूंगी प्रेम गीत
अभी जरा दामन सुलझा लूँ ...




39 टिप्‍पणियां:

  1. दर्द खुद ही मसीहा दोस्तो,
    दर्द से भी दवा का काम लिया जाता है,
    पहन कर पांव में ज़ंजीर भी रक्स किया जाता है,
    आ बता दे के तुझे कैसे जिया जाता है...

    जय हिंद...

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  2. लिख ही दूँगी फिर कोई प्रेम गीत
    अभी जरा दामन सुलझा लूं ...


    -वाह! क्या बात है!

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  3. ओये होय...
    दामन, कांटे, उलझना-सुलझना और प्रेम-गीत ..
    आसमान में झिरी ...क्या बिम्ब है ..लाजवाब,,
    और ख्वाबों का मचान चढ़ना ..गज़ब...
    बहुत सुन्दर कविता...अर्थात प्रेम गीत ...
    गाये जाओ गाये जाओ united के गुण गाये जाओ हमें क्या ...
    हाँ नहीं तो...!!

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  4. दर्द का अहसास तभी ज्यादा होता है जब कोई अपना पास हो....खूबसूरत कविता....प्रेमगीत लिखने की सकारात्मकता ..बहुत खूब

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  5. फिर भी है तो यह इक प्रेम गीत ही और यह तारतम्य कभी टूटा है भला -आगे भी ऐसी उम्दा रचनाओं की प्रतीक्षा रहेगी आपसे !

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  6. बेहद उत्कृष्ट रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  7. गाओ प्रेमगीत गाओ। हम भी सुन ही लेंगे। कोई फड़कता हुआ सा लिखना।

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  8. @ दर्द पर मुस्कुराता रकीब तो कोई बात थी ...
    कहकहे लगाने वाला तो अपना रकिफ़ निकला ...:):)

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  9. आदरणीया
    प्रेम का एहसास.......शाश्वत सत्य.....! बेहतरीन एहसास बयानी के लिए शुक्रिया.

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  10. Bhavipurn dardbhara geet....
    Manobhavon ka sundar chitran..
    Haardki shubhkamnayne.

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  11. लिख ही दूँगी फिर कोई प्रेम गीत
    अभी जरा दामन सुलझा लूं ...बहुत सुन्दर प्रेम गीत यूँ ही लिखे जाते रहेंगे

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  12. क्या बात है....लोग दर्द पढ़ लें,उसके पहले ही मुस्करा देने की चाहत...बहुत ही गहरे भाव लिए सुन्दर सी कविता

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  13. दी.... मैं आ गया.... वापिस....

    आपकी यह कविता बिलकुल अपनी सी लगी....अदा दीदी का कमेन्ट बहुत अच्छा लगा...

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  14. गहन घनीभूत पीड़ा को भावपूर्ण सार्थक अभिव्यक्ति दी है आपने...

    सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना...

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  15. इससे पहले कि
    चेहरे पर झलक आये
    दर्द के निशां
    फिर से मैं मुस्कुरा ही दूंगी

    बहुत सुन्दर भाव हैं !

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  16. dard me maine likhe do alfaaz
    to dekha jis par likha vo hi has k chal diya

    o has k jane wale palat k dekh
    ye jakhm-e-ziger bhi teri hi dain hai...!!

    bt vani ji...fir se me muskura hi dugni..aur likh dungi ek prem geet...ye baat bahut maayne rakhti he..yahi ek positive soch kafi hai sab seh jane aur aage badh jane k liye.

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  17. सुन्दर!अति सुन्दर!

    कुंवर जी,

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  18. जबसे नेट,चैट,सेल/मोबाइल आये,प्रेमगीतया पत्र लिखता ही नही कोई.बरसों से डाइबिटिक होने के कारण अक्सर याद कम रहता है ऐसे में जब कुछ अच्छा पढ़ने से चूक जाता है तों बहुत दुःख होता है.आप याद दिला दिया करिये जब भी कुछ न्य लिखें.

    कुछ नही कभी नही मैं पूछूंगी कि
    क्यों प्रेम गीत लिखती है हम
    तार तार कर देते हैं कुछ कांटे हमारे दामन को
    हम चुन लेते हैं एक एक काँटा
    सिल लेती है बार बार चाक चाक दामन
    छुपा लेती हैं अपनी लहुलुहान अँगुलियों को भी सबकी नजर से
    जाने कब दामन के कांटे सारे जा के गढ जाते हैं गहरे मन में
    और कोई नही देख पाता लहुलुहान आत्मा को .
    बार बार जख्मी करती रहती है खुद को
    और मुस्कराती है
    कहती है तू कितने जख्म दे सकता है
    जानती हूँ मेरा दिया एक जख्म ही पर्याप्त है तेरे पूरे जीवन के लिए
    पर देती कहाँ हूँ ?
    तभी तों मैं औरत हूँ
    ये मैं ही हूँ कदम कदम पर जख्म खाती हूँ
    फिर भी प्रेम-गीत गाती हूँ .

    तू क्या जाने ?
    जिसे समझती है दुनिया मेरी कमजोरी
    वो ताकत है मेरी
    तभी तों दुनिया तू बनाता होगा भले ही
    तेरी दुनिया को जिन्दा रखती हूँ मैं
    और मैं ही इसे सजाती हूँ

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  19. वाह,बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया गया गहन-भाव.

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  20. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    इसे 10.04.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
    http://chitthacharcha.blogspot.com/

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  21. ऐसी कविताएं यहाँ पढ़ना और भी सुकून भरा है !
    आभार ।

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  22. क्या इस कविता को छन्द के साँचे में ढलना चाहिए था ?
    शुरुआती दो पंक्तियों ने तो मेरी प्रवृत्ति वैसी ही कर दी थी पठन में !

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  23. अद्भुत !...अच्छी कविता पढ़कर मैं इससे अधिक कुछ नहीं कह पाती.

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  24. लिख ही दूँगी फिर कोई प्रेम गीत
    अभी जरा दामन सुलझा लूं ...

    वाह...वाह.....वाह्ह्ह.....!!

    वाणी जी ....ये क्या हो रहा है ......दर्दे दिल ....उलझा उलझा ....सुलझा सुलझा ......बहुत खूब .....!!
    पर देखिएगा नंबर कट जायेंगे ......!!

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  25. प्रेम गीत अभिव्यक्त होने में समय लेता ही है।

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  26. अभी दामन सुलझा लूँ ।

    सोचा समेट लूँ जीवन को अपनी हदों के दायरों में,
    उफ, अब तो समेटना ही काम है मेरा ।

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  27. बहुत सुन्दर प्रेम गीत.

    सुलझा लीजिये, हम प्रतीक्षा कर लेंगे. :)

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  28. सुलझाने को लेकर जो धैर्य है, वही प्रेम की परिपक्‍वता का संकेत है। पुरानी प्रीत का दर्द याद के बादल छाते ही मर्मांतक हो उठता है। यादों के ये जजीरे आबाद रहें और जिंदगी प्रेममय बनी रहे, यही कामना है।

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