कैसे होते हैं इंसानी रिश्ते ...कुछ प्रकृति प्रदत्त ..जन्म से जैसे माता-पिता, भाई बहन आदि ....कुछ वैधानिक जैसे पति , सास -श्वसुर आदि (क्या ईश्वरीय ही मान ले ...ईश्वर की आज्ञा से )...कुछ अनाम जो रिश्ते होते ही नहीं ...या यूँ कहें... मानवीय (इंसानियत के कारण बने ) रिश्ते ...कई बार इन रिश्तों में घात/प्रतिघात और मानसिक क्षति उठाने के बावजूद इन रिश्तों से मेरी श्रद्धा कम नहीं होती ...क्या करूं ...मैं ऐसी ही हूँ ...आरोपों और आलोचनाओं के बावजूद इन रिश्तों की अहमियत मेरी नजरों में कभी कम नहीं होती ...
ऐसे ही इंसानी रिश्ते को याद कर रही हूँ पिछले कुछ दिनों से ...
बात कॉलेज के ज़माने की है ...अपने गाँव में कॉलेज नहीं होने के कारण ननिहाल में अपने नाना - नानी के पास रह कर डिग्री ज्ञान अर्जित करने का प्रयास कर रही थी ... प्री-यूनिवर्सिटी परीक्षा के लिए कॉलेज में फॉर्म भरे जा रहे थे ...फॉर्म तो क्लास में भरवा दिए गए ...परीक्षा देने के लिए फीस भी जमा करनी होती है ..जाने कैसे मैं ये भूल गयी ...या कभी जरुरत ही नहीं समझी याद रखने की ...फीस जमा करने का काम मेरे कज़िन का होता था ...यहाँ हम तो निश्चिन्त ...फॉर्म भर दिया ...अब तो ठाठ से एक्ज़ाम देना है ...पता ही नहीं कि फीस तो जमा ही नहीं हुई है ...नोटिस बोर्ड पर बाकायदा मोटी अक्षरों में फीस जमा नहीं करने वालों की लिस्ट में दूसरा नाम हमारा ही था ...उस कस्बे में नोटिस बोर्ड के आगे लड़कियां खास मौकों पर ही खड़ी होती थी ...फ्री टाइम में वे भली और उनका कॉमन रूम भला ... गिनी- चुनी तो लड़कियां थी कॉलेज में ... और वे भी अपने भाइयों , मामाओं और चाचाओं की निगेहबानी में ...कभी जहमत ही नहीं उठाई कि जाकर नोटिस बोर्ड देख आये ...
विज्ञान विषय होने के कारण कॉलेज में फ्री टाइम का तो सवाल ही नहीं उठाता था...बाकायदा 9 से 4 बजे तक स्कूल के जैसे ही क्लासेज अटेंड करनी पड़ती थी ...तिस पर हर पिरीअड अलग -अलग कमरे में ...सीढियाँ चढ़ते उतरते ही हालात खस्ता हो जाती थी ...
ऐसे में एक दिन कॉलेज से घर लौटकर बरामदे में बैठी मामी मेरे बाल सुलझा रही थी कि मेन गेट पर दो लड़के आ खड़े हुए ...हमारी दबंग नानी की कठोर मुख मुद्रा के आगे लड़कियां ही घर आने के नाम से कांपती थी ...तो यहाँ तो मामला लड़कों का था ...एक बार तो दिल धक् रह गया ...क्यूँ पूछ ताछ कर रहे है मेरे बारे में ...मामी ने हिम्मत बंधाते हुए कहा ...." जा कर बात तो करो ...शायद कुछ पढ़ाई के विषय में पूछ रहे हों ...आखिर तो सौ कोस तक बुद्धिमान/बुद्धिमती माने जाते रहे थे ...:)
डरते डरते पूछ ही लिया ..." क्या बात है ...?"
उधर से जवाब मिला " आज फीस जमा करने की आखिरी तारीख थी ..."
मैंने त्योरियां चढाते हुए पूछा ..." हाँ ...तो ...?"
" तो ...क्या ...आपकी फीस जमा नहीं हुई है अभी तक ....?"
मेरे तो पैरों के नीचे से जमीन सरक गयी ....एक पूरा साल बर्बाद ...आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा था ...तभी उस लड़के ने अपने हाथ में पकडे रजिस्टर से लाल रंग का कुछ कागज़ निकलते हुई आगे कर दिया ....
" फीस भर दी है आपकी ...आज आखिरी तारीख थी ..."
दोनों लड़के अपनी राह पर आगे बढ़ गए ...मैं बदहवाश -सी खड़ी रह गयी ...इतना ध्यान भी नहीं रहा कि कम से कम धन्यवाद तो कर दूं ....तब तक मामी पास आ गयी थी ...मैं उनके गले लग कर अपने ममेरे भाई को कोसते हुए फूट पडी ...
मामी भी हतप्रभ ....ऐसा कैसे हुआ ...विजय ने कैसे याद नहीं रखा ...आज आने दो उसको ....
खैर ...दूसरे दिन विजय के हाथों फीस तो उस लड़के तक पहुंचा दी ...उसके बाद एक्ज़ाम शुरू हो गए...सुना था धनेश (शायद यही नाम था ...कृतघ्नता की हद है ना ...नाम तक ढंग से याद नहीं ) का NDA में सलेक्शन हो गया था ....और हम भी अपने माता पिता के पास बैक टू पवेलियन हो चुके थे ...अफ़सोस रहता है कि मैं उसके इस अहसान का धन्यवाद भी नहीं कर सकी ...
सोचती हूँ ...यदि वह शख्स मुझे यहाँ ब्लॉग पर या वास्तविक दुनिया में मिल जाए तो मैं उससे अपना क्या रिश्ता साबित कर पाउंगी ...
क्या इंसानियत के सिवा और कोई रिश्ता था यह ...
सोच रहे हैं ना आप भी ....
सोचते रहिये ...
मुझे भी बता दीजिये ....क्या कहलाते हैं ये रिश्ते .....
रिश्ते संभाल के रखिये -ईश्वरीय देंन हैं !
जवाब देंहटाएंकहना आसान मगर करना मुश्क्किल न ?
बहुत ही सुन्दर उदाहरण है । समाज इसे कुछ नाम नहीं दे सकता ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर संस्मरण..और ऐसे रिश्ते इंसानी नहीं होते ये दैवीय होते हैं...भगवान् ही कभी कभी इंसान का रूप धारण कर लेते हैं...ऐसे लोगों की ही वजह से तो धरती टिकी हुई है नहीं तो कब की रसातल में चली गयी होती....
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रेरणादायक प्रस्तुति...
धन्यवाद...
बढ़िया रहा आपके संस्मरण से गुजरना..
जवाब देंहटाएंkuch rishto ke naam nahi hote...ham samajhte hain...
जवाब देंहटाएंऐसे अनाम रिश्ते हर रिश्ते से बहुत ऊंचे होते हैं ! बहुत ही अच्छा लगा आपका संस्मरण ! बधाई एवं आभार !
जवाब देंहटाएंhttp://sudhinama.blogspot.com
http://sadhanavaid.blogspot.com
इस संस्मरण को पढ़ कर ही लगता है कि इंसानियत अभी जिन्दा है....
जवाब देंहटाएंये ऐसे रिश्ते हैं जिनको आप कभी भूल नहीं पाएंगी...जिंदगी में कभी मुलाक़ात हो या ना हो ...एक अमिट छाप बन जीते रहेंगे ऐसे रिश्ते....बढ़िया और प्रेरणा देने वाला प्रसंग
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंyahi to hain we anaam rishte, jo manviyta ke ghere me daal diye jate hain, per ye rishte naam se pare hi rahen to sahi hai.....
जवाब देंहटाएंaisa ladka nda deserve karta hai....
ये अनाम रिश्ते...इंसानियत के ही होते हैं...जो दुनिया पर से विश्वास नहीं उठने देते..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर संस्मरण
no moderation??...ye chamatkaar kaise..:) But i like it this way...thanx
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर आलेख.
जवाब देंहटाएंरामराम.
sach kuch rishton ko koi naam na bhi do tab bhi wo hamare apne rishton se jyada aham ho jaate hain aur yahi inki khasiyat hoti hai..........ye benami rishte sirf yaadon mein sahejne ke liye hote hain.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, ऎसे रिश्तो को शव्दो मै नही बांधना चाहिये...
जवाब देंहटाएंक्या परिभाषित किये बिना,किसी सम्बंध या भावना का एहसास कमतर हो जाता है, कदापि नहीं!कुछ चीजें,अपरिभाषित हो कर भी अपना अहसास कराती रहतीं हैं!शायद उनसे भी बेहतर जो युगो युगान्तरो से परिभाषित होकर भी,ठीक से नहीं समझी जा सकी ,हैं जैसे ’प्रेम’!
जवाब देंहटाएंसुन्दर संस्मरण, उत्तम प्रस्तुति!
बहुत ही सुंदर स्मरण है।
जवाब देंहटाएंआभार
आपका संस्मरण बहुत ही अच्छा लगा!
जवाब देंहटाएंsundar... Kuchh aise rishtey hotey hain jo bin baandhe bandh jaate hain, tum un rishton ko naam naa dena..
जवाब देंहटाएंjindagi ki aisee yaaden, khushi deti hai, aur saath hi kahin daba hua rahta hai ek sukhad ehsaas bhi jaag jata hai............kash wo aaj milta aur usse thanx kah paateeeeeeeee..:) hai na!!
जवाब देंहटाएंyahan par apni upasthithi to darj karen...:P
जवाब देंहटाएंplease
www.jindagikeerahen.blogspot.com
kuch rishte aise hi hote hai aur nam ke bhi mohtaj nahi hote .bhut khubsurat sansmaran.
जवाब देंहटाएंaise sansmaran insaniyat par aastha jagate hain
जवाब देंहटाएंये उस दौर में जीने वाले हर इंसान के देवत्व को आपनें रेखांकित किया है,जो कि समय के साथ परहित की बात भी इतिहास में दफन हो जाती है.
जवाब देंहटाएंआपके इस संस्मरण नें मुझे भी अतीत के पन्नों को पलटने के लिए विवश कर दिया .बेहतरीन पोस्ट.
प्रविष्टि की आत्मीयता ने बाँधा ! शुरुआत ही करती हैं बेहतरीन !
जवाब देंहटाएंयह उपकार हृदय की आत्मीय वृत्ति ने करवा दिया था उस शख्स से..दुर्लभतम वृत्ति !
धन्यवाद कहने की जरूरत तो थी !
वाणी जी इससे यही साबित होता है कि लडके भी शरीफ़ हो सकते है.
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