बहुत समय से गोवर्धन परिक्रमा का कार्यक्रम टल रहा था ...कभी मौसम के कारण तो कभी परिक्रमा मार्ग पर चल रहे निर्माण कार्य से होने वाली असुविधा के कारण ..मगर पिछले दिनों कमर कस ही ली कि कुछ भी हो परिक्रमा तो करनी ही है ...इधर घुटनों में कुछ तकलीफ के कारण घबराहट थी कि इतना पैदल चलना हो भी पायेगा या नहीं ...कहाँ तो शहर में एक किलोमीटर भी पैदल नहीं चला जाता ,और कहाँ परिक्रमा मार्ग पर २१ किलोमीटर की पैदल यात्रा नंगे पैर ...एक तसल्ली थी कि रिक्शे में बैठ कर भी परिक्रमा दी जा सकती है ...यही सोचा कि अगर चला नहीं जायेगा तो फिर इसे ही आजमाएंगे ....साथ में एक बुजुर्ग महिला थी ...उनके जोशोखरोश को देखकर हमने भी हिम्मत कर ली ...पूजा पाठ बहुत ज्यादा नहीं करती हूँ मैं और ना ही अन्धविश्वासी हूँ मगर फिर भी खुद का इस कदर पैदल चल लेना मुझे स्वयं को आश्चर्यचकित कर देता है ....
जयपुर से गोवर्धन के मार्ग पर ज्यादा स्थान राजस्थान की सीमा में आता है , बीच में लगभग २ किलोमीटर का मार्ग उत्तर प्रदेश की सीमा में है , फिर से राजस्थान ....सड़क की बदहाली शुरू होते ही ड्राइवर ने बताया कि अब हम उत्तर प्रदेश की सीमा में हैं तो सबकी एक साथ हंसी छूट गयी ...जब बिहार की सदियों पुरानी खस्ता हाल सड़के सुधारी जा सकती हैं तो उत्तर प्रदेश में क्यों नहीं हो सकता ....किससे पूछा जाए ये सवाल ... इस पूरे मार्ग पर सरसों के लहलहाते खेतों ने मन प्रसन्न कर दिया ...अच्छी सर्दी और इससे पूर्व होने वाली बरसात ने खेतों पर दूर दूर तक जैसे पीली चादर ही बिछा रखी है ...
राहत की बात ये हैं कि गोवर्धन पर्वत के चौडाई में होने वाले विस्तार को रोकने के लिए जालियां लगाकर पर्वत को सुरक्षित किया गया है ...यहाँ वन विभाग का कार्य संतोषजनक है ... कुछ स्थानों पर नील गाय भी नजर आ गयी ...
खैर ...गिरिराज धरण का नाम लेकर शुरू कर दी पैदल यात्रा ...परिक्रमा के पहले पड़ाव में गिरिराज मंदिर में गोवर्धन पर्वत के मुखारविंद पर दुग्ध अर्पण कर प्रारंभ की गयी यात्रा लगभग 11किलोमीटर की है , जबकि दूसरी परिक्रमा " राधा कुंड परिक्रमा " लगभग 10 किलोमीटर की ....पूरी परिक्रमा 8 के आकार में की जाती है .....एक पूरी परिक्रमा के बाद फिर से दूसरी जगह से प्रारंभ कर दूसरी परिक्रमा ...इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ दुग्ध अर्पण सिर्फ दोपहर तक किया जा सकता है...श्रृंगार के बाद यकीन करना ही मुशिकल हो जाता है कि यह वही स्थल है जहाँ सुबह दुग्ध अर्पण किया गया था ... परिक्रमा पथ पर यात्रियों की सुविधा के लिए काफी कार्य किया जा रहा है हालाँकि अभी बहुत अधिक सुधार की दरकार है ...
मुखारविंद स्थल को लेकर भी भिन्न मत हैं ...कुछ लोंग परिक्रमा के पथ पर आने वाले दूसरे स्थान को ही वास्तविक पूजा स्थल मानते हैं ...
परिक्रमा मार्ग पर दोनों ओर बनी चाय , नाश्ते उपलब्ध कराती सैकड़ों दुकाने यात्रियों के विश्राम स्थल का कार्य भी करती हैं ...
उनके साथ ही लगभग हर दुकान पर बजती कृष्ण राधा की धुन , मीरा के भजन, सहयात्रियों के जय श्री राधे का जयघोष वातावरण में एक अलग सी चेतना भर देते हैं ... साथ चल रही बुजुर्ग महिला का उत्साह और आत्मविश्वास देखने योग्य था....रास्ते में पड़ने वाले चरण मंदिर में जहाँ सीढिया नहीं है , उबड़ खाबड़ पत्थरों के बीच ही चढ़ना पड़ता है , हम टालना चाह रहे थे , वे बड़े उत्साह के साथ चढ़ गयी....कई बार बैठना पड़ा उन्हें और सांस फूलती रही , मगर उनके उत्साह में कोई कमी नहीं थी ....ऐसे प्रेरणास्पद व्यक्तित्वों का साथ हम सबमे ऊर्जा का संचार कर रहा था ...परिक्रमा पूर्ण होते रात गहरा गयी थी ....बिजली की व्यवस्था भी बहुत डगमगाई हुई थी ...ये गनीमत है कि शुक्ल पक्ष की एकादशी का चन्द्रमा अपनी पूर्ण आभा के साथ मार्गदर्शन कर रहा था ....परिक्रमा पूर्ण होते रात के लगभग ८ बज गए थे ...पूजन के उपरांत विश्रामस्थल पर जाकर सबकी हालात ऐसी थी कि बस जहा जगह मिले वहीँ पसर जाए ....आरामदायक स्थान मिल गया फिर भी और सभी बिना खाए पिए लुढ़क लिए ...सुबह जल्दी उठकर मंगला आरती के दर्शन जो करने थे ...
क्रमशः
गोवर्धन परिक्रमा अच्छी रही। पैदल चलने का तो आनंद कुछ और ही है। हमने भी एक फ़ेरा लगाया है कल ही 20 किलोमीटर पैदल चले जिसमे 8 किलो मीटर पहाड़ की सीधी चढाई-उतराई थी।
जवाब देंहटाएंदो बार आशीर्वाद मिल चुका है इस यात्रा का। जय कन्हैया लाल की।
जवाब देंहटाएंगोवर्धन परिक्रमा के बारे में ज्ञानप्रद एवं सजीव रेखाचित्र पढ़कर अच्छा लगा.. हमारी दो वर्ष पुरानी याद ताज़ी हो गई.. चित्र भी मोहक हैं..
जवाब देंहटाएंअच्छी चल रही है यात्रा...तस्वीर बहुत अच्छे लगे..
जवाब देंहटाएंare waah... isi bahane meri bhi yaatra hui....photo dekhkar achha laga
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी मिली ...आपकी शब्द यात्रा के साथ हम भी कर रहे हैं गोवर्धन यात्रा ...
जवाब देंहटाएंऐसी यात्राएं श्रद्धा के साथ ही सम्पन्न होती हैं। जब श्रद्धा होती है तो उम्र बाधा नहीं पहुंचाती। लेकिन मुझे तो वृन्दावन, नन्दगाँव और बरसाने की दुर्दशा देख दुख होता है।
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अच्छा लगा आपका तीर्थ-यात्रा-वृतांत...
"....सड़क की बदहाली शुरू होते ही ड्राइवर ने बताया कि अब हम उत्तर प्रदेश की सीमा में हैं तो सबकी एक साथ हंसी छूट गयी ..."
वाणी जी,
ऐसा नहीं है...कहीं सड़के बहुत अच्छी हैं कहीं टूटी फूटी... गरीब प्रदेश है, कमाई कम खर्चा ज्यादा, आबादी सबसे ज्यादा... इसलिये ऐसा है...
...
@ प्रवीण शाह जी ,
जवाब देंहटाएंजी हाँ , गरीब प्रदेश जीवित व्यक्तियों तक की मूर्तियाँ हर चौराहे पर लगा रहा है ....:)
@ आदरणीय अजीत गुप्ता जी ,
जवाब देंहटाएंश्रद्धा हो तो ही ऐसे तीर्थस्थलों की यात्रा की जा सकती है ...तीर्थस्थलों की दुर्दशा देखकर दुःख तो होता ही है ...मगर इसके लिए हम सरकार के साथ हम यात्रि भी बहुत जिम्मेदार हैं ..
रश्मि प्रभा जी , ललितजी , अभी , अरुण चन्द्र रॉय जी , प्रवीण जी , संगीता जी ....आप सबका बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंआपने बड़ी सहजता से सचित्र हमें भी गोवर्धन परिक्रमा करवा दी - शुक्रिया
जवाब देंहटाएंक्या बात है वाणी...इस पोस्ट ने तो मन मोह लिया...पहले तो वो सरसों के खेत की तस्वीर....जिनसे होकर गुजरी तुम...हम तो बस, अब करण जौहर की फिल्मो में ही देखते हैं सरसों के खेत :(
जवाब देंहटाएंइतना सुन्दर यात्रा विवरण....मन में श्रद्धा हो...और कुछ अलग सा करने का उत्साह...तो घुटनों में तकलीफ हो या...कुछ और...कोई बाधा नहीं आती, यात्रा में. उन बुजुर्ग महिला का उत्साह अनुकरणीय है. उम्र के बढ़ते अंको का जीने की उछाह-उमंग पर कोई असर नहीं होना चाहिए
पोस्ट के समापन पर एकादशी के चाँद में नहाई धरा का उल्लेख...कम्प्लीट यात्रा रही तुम्हारी .
सजीव चित्रों के साथ जीवंत वर्णन ।
जवाब देंहटाएंआभार।
चलिए आपके साथ गोवर्धन की परिक्रमा भी कर ली ..सुना तो बहुत था पर कभी देखा नहीं .
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी तरह आपने बयान की अपनी यात्रा.
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (23/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
ईश्वर आपकी मनोकामना पूर्ण करें!
जवाब देंहटाएंहम ने तो आज तक गोवर्धन भी नही देखा, कभी किस्मत मे हुआ तो दर्शन भी करेगे ओर परिक्रमा भी करेगे, चलना चाहे कितना भी पडे, रुक रुक कर चल पडेगे भीद के संग वेसे भी बहुत अनंद आता हे,बाकी निर्मला जी की टिपण्णी से भी सहमत हे , धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआभार इस सुन्दर पोस्ट के लिए....
जवाब देंहटाएंन जाने हमारा जाना कब हो पायेगा...
वाह ,मेरी तो अगले जन्म में अगर मानव योनि में आया तब ....
जवाब देंहटाएंमुझे तो अपने घुटनों केदर्द कारणरिक्शा में ही परिक्रमा करना पड़ा |
जवाब देंहटाएंहाँ चलकर जाने का आनंद और अनुभूति निराली ही होती है अब विश्वास ही नहीं होता की कभी यमनोत्री ,केदारनाथ पैदल चढाई की थी |
सुन्दर चित्र और परिक्रमा वर्णन पढ़कर दो साल पूर्व की गई मथुरा व्रन्दावन की सुखद यात्राये स्मरण हो आई |
हाँ ,वहा व्याप्त गंदगी देखकर मन दुखी हुआ था |यात्री लोगो से ज्यादा वहां के स्थानीय लोग ज्यादा गंदगी
फैलाते है कई धार्मिक स्थलों में मैंने देखा और महसूस किया है इस बात को |
अब पार्क बनायें कि सडकें? ज़िम्मेदारी हो तो कुछ प्राथमिकतायें भी तय करनी पडती हैं।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा यह विवरण। देखें कब समय निकल पाता है यहां जाने का।
जवाब देंहटाएंधन्य हुए हम भी मथुरा वृंदावन का दर्शन पा कर । आपका आभार । नववर्ष की शुभ कामनाएं । -आशुतोष मिश्र
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