चारों ओर बड़ा हड़कंप मचा था ....जैसे कोई अनहोनी हो गयी हो ...अनहोनी ही तो थी ....नगर के बीचों बीच एक भैंस ने डेरा जमा रखा था ....क्या नाम है इस नगर का ...चलिए विद्वान् नगर ही रख देते हैं ...तो इस विद्वान् नगर में जहाँ सभी एक से एक पढ़े लिखे विज्ञ महारथी रहते थे वहाँ भैंस का आ धमकना ....ना सिर्फ आना बल्कि ऐसे मार्ग पर आ बैठना जहाँ से रोज जाने कितने महा विद्वान् गुजरते थे ....
विद्वान् नगर एक कुनबा-सा है . समाज है धुरंधरों का ...एक से एक बड़े डॉक्टर , इंजिनियर ,वैज्ञानिक , सैनिक अधिकारी , राजपत्रित अधिकारी , तकनीकी विशेषज्ञ , शिक्षाविद , मिडिया पर्सन , लेखक , साहित्यकार , संपादक ......कौन विद्वान नहीं है यहाँ... अपने अपने क्षेत्रों के महारथी ...मगर यहाँ बस वे लेखन का कार्य करते हैं या कर सकते हैं ... इनकी अपनी अभिरुचियों के अनुसार विद्वमंडल हैं ..... एक साथ कई भाषाओँ के जानकार जब धाराप्रवाह लिखते हैं तो दूसरों की आँखें फटियाई रहती है . पहले तो जड़ स्तब्ध -सी, फिर एक चोर नजर खुद पर डाल लेते हैं - उनकी लिखाई मेरी लिखाई से चमकदार कैसे !
विद्वान् नगर एक कुनबा-सा है . समाज है धुरंधरों का ...एक से एक बड़े डॉक्टर , इंजिनियर ,वैज्ञानिक , सैनिक अधिकारी , राजपत्रित अधिकारी , तकनीकी विशेषज्ञ , शिक्षाविद , मिडिया पर्सन , लेखक , साहित्यकार , संपादक ......कौन विद्वान नहीं है यहाँ... अपने अपने क्षेत्रों के महारथी ...मगर यहाँ बस वे लेखन का कार्य करते हैं या कर सकते हैं ... इनकी अपनी अभिरुचियों के अनुसार विद्वमंडल हैं ..... एक साथ कई भाषाओँ के जानकार जब धाराप्रवाह लिखते हैं तो दूसरों की आँखें फटियाई रहती है . पहले तो जड़ स्तब्ध -सी, फिर एक चोर नजर खुद पर डाल लेते हैं - उनकी लिखाई मेरी लिखाई से चमकदार कैसे !
ऐसे विद्वजनों के नित्य आवागमन वाले मार्ग में एक भैंस का जम जाना ....कुफ्र की बात ही थी ...कुछ देर /दिनों मेहमानों का स्वागत करने जैसी औपचारिकता निभाने वाले हम भारतीय पशुओं का भी निरादर नहीं करते ...तभी तो हर चौराहे पर कुत्ते , सूअर आदि घूमते दिखाई दे जाते हैं ...पेट्रोल के बढ़ते दामों से अपनी जेब पर पड़ते असर से चिंतित लोगों के लिए कभी- कभी ईर्ष्या का सबब हो जाते हैं ...इन्हें आवागमन की कोई कीमत नहीं चुकानी पड़ती इसलिए बड़े मजे से धरती नाप लेते हैं ...कभी कभी गायें और बछड़े भी इसी तरह सडक किनारे पड़े कचरे में मुंह मारते दिख जाते हैं मगर इस बार तो भैंस थी . और वो भी सड़क किनारे कचरे में मुंह डालने वाली नहीं व्यस्ततम मार्ग पर पसरी हुए जुगाली करती ...
इसकी ज्यादा देर अनदेखी नहीं की जा सकती थी ...अफरातफरी मची हुई थी . विद्वमंडल की बैठक जुटी .. ये क्या हो रहा है ! हम विद्वानों के बीच एक भैंस . अब इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा . हटाना होगा इसे यहाँ से ....कहाँ हम लोग अपने क्षेत्र के गंभीर विमर्श करने वाले उच्च शिक्षित लोग और कहाँ यह अनपढ़ भैंस जो जुगाली के सिवा कुछ नहीं जानती ...इसे हटाना होगा यहाँ से वर्ना हमारी साख मिट जायेगी .
तय किया गया की सभी विद्वान भैंस के पास जायेंगे और उससे विनम्र निवेदन करेंगे की वह यह स्थान छोड़ कर चली जाए क्योंकि यह स्थान सिर्फ विद्वानों के लिए हैं ....सभी सूटेड बूटेड लोग गए भैंस के पास निवेदन लेकर ...सब अपने अपने तर्क देकर भैंस को समझाने लगे , अब चूँकि सभी विद्वान् थे और सबके विभिन्न मत ...अस्तव्यस्तता हो गयी...जब वे खुद ही एक दुसरे को समझा नहीं पा रहे थे तो फिर भैंस तो आखिर भैंस है ....जिसके आगे कोई कितनी बीन बजाये मगर वो मस्त पगुराए ....विद्वानों के सर पर पसीना चुहचुहाने लगा ....शोध ,लेखन , सड़केंब नाना , नक़्शे बनाना , नियम कानून बनाना ये सब तो वे जानते थे लेकिन भैंस को कैसे हटाया जाए तत्वज्ञ विद्वान् किसी भी पुस्तक में इसका तरीका नहीं खोज पाए थे ... सामूहिक रूप से कुछ कहने पर तो इसे कुछ असर नहीं हो रहा क्योंकि सब अपने अलग राग में गा रहे थे तो उन्होंने आपस में तय किया की हममें से एक -एक व्यक्ति बारी- बारी से अपने अर्जित विद्या ज्ञान का उपयोग करते हुए भैंस को समझाएगा की ये स्थान उसके लिए नहीं है ....पहले कौन जाएगा ....लॉटरी निकाली गयी ...एक वैज्ञानिक महोदय के नाम से पर्ची निकली ...भैंस को वहां से हटाने का जुगाड़ करना अब उनकी जिम्मेदारी थी ....
क्रमशः
विद्वान् भैंस को अपने स्थान से हटा पाने में सफल रहे या नहीं ...अगले अंक में ...
सभी सूटेड बूटेड लोग गए भैंस के पास निवेदन लेकर ...सब अपने अपने तर्क देकर भैंस को समझाने लगे , अब चूँकि सभी विद्वान् थे और सबके विभिन्न मत ...अस्तव्यस्तता हो गयी...जब वे खुद ही एक दुसरे को समझा नहीं पा रहे थे तो फिर भैंस तो आखिर भैंस है ... karara vyangya , bhains to bhains hai aur ye suted buted !bahut badhiyaa
जवाब देंहटाएंशायद अगली कड़ी में प्रतीकार्थ और निहितार्थ समझ में आ जाये ! अभी तो बस भैंस की कद काठी और नस्ल देख रहा हूँ !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा व्यंग.इसको पढकर दीवार पर लगे उपलों
जवाब देंहटाएंकी बात याद आ गई.शायद इसी नगर के विद्वानों ने उस पर शोध कार्य किया था की उपले दीवार तक कैसे पहुंचे.भैंस रास्ते से हटी या गयी पानी में ,अगली किश्त के इंतज़ार में
हैं हम.
हा हा हा मजेदार।
जवाब देंहटाएंारे ये किस पर तीर चलाये जा रहे हैं? अब अगली कडी का इन्तजार मुश्किल लग रहा है। जल्दी करो बस पोस्ट डाल दो--- अब तुम्हें भैंस जी कह सकती हूँ भला? हा हा हा । शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंहा..हा..हा...खूब मजेदार.
जवाब देंहटाएं_________________________
'पाखी की दुनिया' में 'अंडमान में एक साल...'
fir? fir kya hua???
जवाब देंहटाएंजिसके लिये जो भी बड़ी हो वही रख ली जाये मध्य में।
जवाब देंहटाएंbhens ko pani se nikalna ek mushkil kam ,ha achhi lagi post
जवाब देंहटाएंभैंस की आड़ में आपने जो व्यंग बाण चलाये हैं उनसे घायल होने के बावजूद भी मुस्कराहट नहीं छुप पा रही...कमाल का लेखन...
जवाब देंहटाएंनीरज
कुछ- कुछ समझने की कोशिश कर रही हूँ....पर पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पा रहा.
जवाब देंहटाएंशायद अगली कड़ी में समझ पाऊं...जल्दी पोस्ट करना .
भैंस kaun haen kehaa sae ayee haen iska parcihay sab "भैंस विद्वान" nikal laegae aur uskae ghar tak ho aayegae
जवाब देंहटाएंgood one loved it
भैस....? इक नया पंगा तो नही यह? भैसा होता तो कोई फ़िक नही थी..... लेकिन बेचारी........................
जवाब देंहटाएंभैंस के दर्शनलाभ की प्रतिक्षा में...
जवाब देंहटाएंइतना प्रतीक में बात कर के आप हमारी अक्ल को भैंस के आगे खड़ा कर दीं ,,, देखें अगले अंक में कुछ पकड़ लाता है या नहीं :) !!!
जवाब देंहटाएंभैंस खडी पगुराय.
जवाब देंहटाएंपढा और निहितार्थ भी समझ गये :)
जवाब देंहटाएंलाजवाब व्यंग्य़...धारदार!
जवाब देंहटाएंक्या ्मेरे मेल आई.डी. पर भैंस जी की एक तस्वीर भेजी जा सकती है, ताकि मैं कुछ सहायता कर सकूँ ?
सँभवतः यह मेरी रूठी हुई भैंस है, जो हमेशा दर्शनिक मोड में किसी न किसी मुद्दे पर जुगाली करती रहती है ।
क्या बात है वाणी दी .......
जवाब देंहटाएंइतने दिनों की चुप्पी के बाद ये तीखा तीखा ......
कुछ कुछ तो समझ आ रही है ......
भैंस का बिम्ब जोरदार है ......
अभी तो भैंस के आगे पीछे ही चक्कर काट रहे हैं ,,,,
बाकि अगली कड़ी का इन्तजार है .....!!
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जवाब देंहटाएं.
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समझ गया मैं निशाना किधर है...
अगली किस्त के इंतजार में...
...
मै तो सोच में हूँ कैसे भैंस को उठाने का जतन करू ?आखिर मै भी तो "कुछ "हूँ ही न ?
जवाब देंहटाएंइंतजार .....
:) बड़ा चिंतन मनन का विषय लग रहा है..... आगे जानने की उत्सुकता है......
जवाब देंहटाएंमुहावरा तो भैंस खड़ी पगुराय है ..पर यहाँ तो पसर ही गयी है ....उठाने में जतन तो करना ही पड़ेगा ...यह तीर कहाँ चल रहे हैं अभी तो दिशा की ओर ही देख रहे हैं ..शोभना जी की बात पर गौर करियेगा ..आखिर वो भी तो कुछ हैं ही न ..वैज्ञानिक जी क्या खोज करते हैं या कुछ नया आविष्कार ही हो जाता है ..यही देखना है ...लोग भैंस को लाठी से हांकते हैं यहाँ तो अकल के पीछे लाठी ले कर सोच रहे हैं की भैंस पसरी तो पसरी कैसे ?
जवाब देंहटाएं:) :) अगली कड़ी तक इंतज़ार करते हैं.
जवाब देंहटाएंइंतज़ार ही है सटीक शब्द,अगली कडि़यों(बहुवचन) का इंतज़ार।
जवाब देंहटाएंअगली किस्त के इंतजार में...
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंएक दिन मेरी मित्र राधिका ने कहा - " दिव्या तू पूरी भैंस है , जब देखो तब पगुराती रहती हो , राम जाने तुम्हें कब असर होगा "
हमने कहा , कोई effective idea लाओ , मैं सुधर जाउंगी
उसने कहा - सारे तो ट्राई कर लिए पर तुम्हारा पगुराना बंद नहीं हुआ।
हमने भी कह दिया- कोई ऐसी-वैसी भैंस नहीं हूँ , तेरे को solid solution बता देती हूँ पगुराहत बंद कराने का।
उसने पूछा क्या ?
मैंने कहा - " मुझे पिज्जा पसंद है "
Smiles !
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टिपण्णी का शेष भाग अगले अंक में।
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बहुत सटीक व्यंग्य है , अरे भाई इसके लिए सीबीआई जांच की मांग तुरंत की जानी चाहिए कि ए किसकी साजिश है ? जब तक जांच पूरी होगी भैंस उठ कर चलती बनेगी. फिलहाल पसरे रहने दीजिये आपकी अगली कड़ी में देखते हैं कि कोई नेता तो इसमें शामिल नहीं है. भैंस वाले को कुछ अधिक कमीशन देकर पसरा दिया हो.
जवाब देंहटाएंलगता है आपका दिल दुखा है. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है. हो सकता है आगे की कड़ियों में समझ में आ जाए. मुझे वैसे भी ऐसी बातों की जानकारी सबसे बाद में हो पाती है.
जवाब देंहटाएंमेरे लिए अच्छी बात ये है कि मैं दो किश्तें एक साथ पढ़ सकता हूँ आज।
जवाब देंहटाएंवैसे इतना रोचक है कि इन्तजार भी चलेगा।
पर ये भैस है कौन ? :)
जवाब देंहटाएंbhains ko samjhane lage..........:P
जवाब देंहटाएंbaat kuchh jami nahi..:P